मद्रास दिवस (Madras Day) के उपलक्ष्य में, निम्नलिखित पाँच प्राचीन मंदिर चेन्नई के लोकाचार, विरासत और सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाते हैं।
कपालेश्वर मंदिर, मायलापुर (Kapalishwarar Temple, Mylapore)
कपालेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक हिंदू मंदिर है, जो तमिलनाडु के चेन्नई के मायलापुर में अवस्थित है।
प्रमुख देवता: शिव की पूजा कपालेश्वर के रूप में की जाती है, तथा उनका प्रतिनिधित्व लिंगम् द्वारा किया जाता है।
पार्वती की पूजा कर्पगम्बल (इच्छापूर्ति करने वाले वृक्ष की देवी) के रूप में की जाती है।
‘मायलापुर’ नाम की उत्पत्ति यहाँ पार्वती द्वारा शिव की मोर के रूप में पूजा करने से हुई है।
महत्त्व: चेन्नई के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक और इसे ‘पाडल पेट्रा स्थलम’ (Paadal Petra Sthalam) में से एक के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसकी 63 नयनमार (शैव भक्तों) द्वारा प्रशंसा की जाती है।
इतिहास: थिरुग्नानसंबंदर (Thirugnanasambandar) ने 7वीं शताब्दी में पूमपवई पथिकम् (Poompavai Pathikam) के माध्यम से यहाँ पूमपवई (Poompavai) को पुनः संचालित किया गया।
स्थानांतरण: मूलतः मायलापुर में समुद्र के पास स्थित इस मंदिर को लगभग 400 वर्ष पहले अपने वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित किया गया था।
विशिष्ट विशेषताएँ:स्थल-वृक्षम् (पवित्र वृक्ष) पुन्नई है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसमें औषधीय गुण होते हैं।
त्योहार: पंगुनी में ब्रह्मोत्सवम् (Brahmotsavam) चेन्नई के सबसे प्रसिद्ध मंदिर त्योहारों में से एक है।
पार्थसारथी स्वामी मंदिर, तिरुवल्लिकेनी (Parthasarathi Swami Temple, Thiruvallikeni)
पार्थसारथी मंदिर चेन्नई, भारत में भगवान विष्णु को समर्पित छठी शताब्दी का एक हिंदू वैष्णव मंदिर है।
महत्त्व: 108 दिव्य देसमों (Divya Desams) में से एक, चेन्नई शहर की सीमा के भीतर एकमात्र।
मंदिर में विष्णु के पाँच रूपों के प्रतीक हैं: योग नरसिम्हा, राम, गजेंद्र वरदराज, रंगनाथ, और कृष्ण पार्थसारथी के रूप में
उल्लेख: मंदिर का महिमामंडन नालयिर दिव्यप्रबंधम् (Naalayira Divya Prabandham) में किया गया है, जो 6वीं से 9वीं शताब्दी के अलवर संतों का प्रारंभिक मध्यकालीन तमिल साहित्य है।
उल्लेखनीय विशेषताएँ (Notable Features): इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसका नाम धार्मिक यात्रा के देवता पार्थसारथी स्वामी के नाम पर रखा गया है, जबकि मुख्य प्रतिमा वेंकटकृष्णन की है।
इसमें एक जुड़वाँ मंदिर भी है, जिसमें योग नरसिंह नामक एक अन्य मुख्य देवता विराजमान हैं।
ऐतिहासिक शिलालेख: सबसे पुराने शिलालेख पल्लव राजा दंतिवर्मन (8वीं-9वीं शताब्दी) के शासनकाल के हैं।
मरुंदीश्वरर मंदिर, तिरुवन्मियूर (Marundishwarar Temple, Thiruvanmiyur)
मरुंदीश्वरर मंदिर (औषादिश्वरर) हिंदू देवता शिव को समर्पित एक मंदिर है, जो चेन्नई के तिरुवन्मियूर में स्थित है।
महत्त्व: इसे पाडल पेट्रा स्थलम (Padal Petra Sthalam) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जहाँ 7वीं शताब्दी ई. में नयनमार अप्पार (Nayanmars Appar) और थिरुगनासंबंदर (Thirugnanasambandar) ने भ्रमण किया था।
संबंध: ऋषि वाल्मीकि और अरुणगिरिनाथर (Arunagirinathar) पारंपरिक रूप से इस मंदिर से जुड़े हुए हैं।
देवी त्रिपुरसुंदरी मंदिर के गर्भगृह का निर्माण संभवतः राजेंद्र चोल प्रथम के शासनकाल (11वीं शताब्दी) के दौरान किया गया था।
मंदिर की विशेषताएँ: यहाँ का पवित्र वृक्ष वन्नी (Vanni) है और यहाँ के मंदिर में दो तालाब हैं – पापनासिनी (Papanasini) और जन्मनासिनी (Janmanasini)।
त्योहार: पंगुनी में ब्रह्मोत्सव मनाया जाता है, जो कपालीश्वर मंदिर के वार्षिक उत्सव के साथ मेल खाता है।
आदिपुरीश्वर मंदिर, तिरुवोट्टियूर (Adipurishwarar Temple, Thiruvottiyur)
महत्त्व: इस मंदिर को त्यागराज स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
इसे पल्लव काल से चली आ रही प्डल पेट्रा स्थलम् (Padal Petra Sthalam) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
मुख्य देवता: आदिपुरीश्वर (Adipurishwarar), मिट्टी से बना शिवलिंग, और देवी पार्वती, जिन्हें वडिवुडई अम्मन (Vadivudai Amman) के रूप में पूजा जाता है।
संबंधित व्यक्तित्त्व: आदि शंकराचार्य, अरुणगिरिनाथर (Arunagirinathar), पट्टिनाथर (Pattinathar) और रामलिंग स्वामी (Ramalinga Swami) जैसे भक्त इस मंदिर से जुड़े हुए हैं।
स्थापत्य विरासत (Architectural Heritage): मुख्य गर्भगृह अर्द्धवृत्ताकार है और इस पर राजेंद्र चोल प्रथम का 11वीं शताब्दी का संस्कृत शिलालेख अंकित है।
कालीकंबल मंदिर, पैरी कॉर्नर (Kalikambal Temple, Parry’s Corner)
स्थान: पैरी कॉर्नर (Parry’s Corner),जॉर्ज टाउन (George Town) में स्थित यह मंदिर चेन्नई की प्रसिद्ध देवी कालीकंबल को समर्पित है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: यह मंदिर मूलतः समुद्र तट के पास था और 17वीं शताब्दी में इसे वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित किया गया था।
देवता: देवी का मूल नाम चेन्नम्मा था और शिव को कामदेश्वर के नाम से जाना जाता है।
ऐतिहासिक यात्रा:मराठा शासक शिवाजी ने अपने दक्षिण दिग्विजय अभियानों के दौरान 3 अक्टूबर, 1667 को यहाँ पूजा की थी।
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