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भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) द्वारा सूर्य संबंधी अध्ययन

Lokesh Pal August 23, 2024 02:33 50 0

संदर्भ

भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) के खगोलविदों ने सौर वायुमंडल की विभिन्न परतों पर चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करके सूर्य के रहस्यों की गहराई से जाँच करने का एक नया तरीका खोजा है। 

संबंधित तथ्य

  • प्रयुक्त डेटा 
    • खगोलविदों ने IIA के कोडईकनाल टॉवर टनल टेलिस्कोप से प्राप्त डेटा का उपयोग करके यह अध्ययन किया है।
  • अध्ययन के निष्कर्ष
    • IIA खगोलविदों ने कोडाईकनाल टॉवर टनल टेलिस्कोप से हाइड्रोजन-अल्फा और कैल्शियम II 8662 Å लाइनों में एक साथ अवलोकन के माध्यम से कई अम्ब्रा और एक पेनम्ब्रा सहित जटिल विशेषताओं वाले एक सक्रिय क्षेत्र (सनस्पॉट) का परीक्षण किया है।
    • अध्ययन में सौर वायुमंडल की विभिन्न ऊँचाइयों पर चुंबकीय क्षेत्र के स्तरीकरण का अनुमान लगाने के लिए एक साथ प्राप्त कई वर्णक्रमीय रेखाओं, विशेष रूप से हाइड्रोजन-अल्फा रेखा, 6562.8 एंगस्ट्रॉम (Å) से डेटा का उपयोग किया गया, जिसे कोडाईकनाल सौर वेधशाला में टनल टेलिस्कोप से लिया गया, जिसे IIA संचालित करता है।
    • टनल टेलिस्कोप की क्रियाविधि
      • टनल टेलीस्कोप में तीन दर्पण समूह कार्य करते हैं-
      • प्राथमिक दर्पण (M1) सूर्य को ट्रैक करता है
      • द्वितीयक दर्पण (M2) सूर्य के प्रकाश को नीचे की ओर पुनर्निर्देशित करता है, और,
      • तृतीयक दर्पण (M3) किरण को क्षैतिज बनाता है। 
      • इस तरह के सेटअप, जहाँ प्राथमिक दर्पण को आकाश में संचालित एक वस्तु, तथा सूर्य को ट्रैक करने के लिए घुमाया जाता है, को ‘कोलोस्टेट’ कहा जाता है। 
      • एक ‘एक्रोमैटिक डबलट’ (38 सेमी एपर्चर, f/96), 5.5 आर्कसेक प्रति मिमी. के छवि पैमाने के साथ 36 मीटर की दूरी पर सूर्य की छवि को केंद्रित करता है।
      • वर्णक्रमीय रेखाओं में क्रोमोस्फेरिक चुंबकीय क्षेत्र का अनुमान आमतौर पर कैल्शियम II 8542 Å और हीलियम I 10830 Å रेखा का उपयोग करके लगाया जाता है। 
      • हालाँकि, इन डायग्नोस्टिक जाँचों की कुछ सीमाएँ हैं, जो विभिन्न सौर विशेषताओं में उनकी प्रयोज्यता को सीमित करती हैं।

सौरमंडल संबंधी अन्य जानकारी

  • सौर वायुमंडल चुंबकीय क्षेत्रों के माध्यम से परस्पर जुड़ी विभिन्न परतों द्वारा निर्मित है। 
  • चुंबकीय क्षेत्र आंतरिक परतों से बाहरी परतों तक ऊर्जा और द्रव्यमान को स्थानांतरित करने के लिए एक मार्ग के रूप में कार्य करता है, जिसे आमतौर पर ‘कोरोनल हीटिंग’ समस्या के रूप में जाना जाता है और यह सौर पवन का प्रमुख चालक भी है। 
  • इन प्रक्रियाओं के पीछे के भौतिक तंत्र को समझने के लिए, सौर वायुमंडल की विभिन्न ऊँचाइयों पर चुंबकीय क्षेत्रों का मापन महत्त्वपूर्ण है।
  • क्रोमोस्फेयर में जटिल चुंबकीय क्षेत्रों के विभिन्न स्तरों को समझने के लिए बहुरेखीय दृष्टिकोण बहुत महत्त्वपूर्ण है।

कोडईकनाल सौर वेधशाला 

  • अंग्रेजों द्वारा मद्रास वेधशाला की स्थापना: 1792 ईसवी में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मद्रास वेधशाला की स्थापना की, जो भारतीय उपमहाद्वीप के इस हिस्से में अपनी तरह की पहली थी।
    • प्रारंभिक उपकरण में दो तीन इंच के एक्रोमेटिक दूरबीन (Achromatic Telescopes), मिश्रित पेंडुलम वाली दो खगोलीय घड़ियाँ एवं एक पारगमन उपकरण शामिल थे।
    • 18 अगस्त, 1868 को सूर्य ग्रहण जैसी खगोलीय घटना को पहली बार कैप्चर करने से सौर भौतिकी के विषय की जानकारी प्राप्त होना शुरू हुई।
    • सौर विशिष्टता की गैसीय प्रकृति की खोज के लिए पहली बार स्पेक्ट्रोस्कोप का उपयोग किया गया था।
  • कवलूर वेधशाला (Kavalur Observatory) की स्थापना: वर्ष 1968 में तारकीय स्पेक्ट्रोस्कोपी एवं फोटोमेट्री (Stellar Spectroscopy and Photometry) के लिए कवलूर, तमिलनाडु में एक नई वेधशाला शुरू की गई थी।
    • आकाशगंगाओं, तारों एवं सौरमंडल पर शोध के लिए अधिकांश अवलोकन अब कवलूर वेधशाला के माध्यम से प्राप्त किए जाते हैं।
    • कोडईकनाल सौर वेधशाला (KSO) का बुनियादी ढाँचा अधिक उत्तम एवं यहाँ दूरबीनों की अधिक संख्या मौजूद है। यह अपने सौर अवलोकनों को रिकॉर्ड करने के लिए हाथ से खींची गई छवियों, फोटोग्राफिक प्लेटों तथा फिल्मों के संयोजन का उपयोग करता है।
    • अभिलेखागार में लगभग 2,00,000 लेंस एवं चार दूरबीनें हैं:
      • एच-अल्फा दूरबीन (H-Alpha Telescope)
      • जुड़वाँ दूरबीनें (Twin Telescopes) 
      • व्हाइट लाइट एक्टिव रीजन मॉनिटर टेलिस्कोप (White light Active Region Monitor Telescope- WARM)
    • इसके उपकरणों की पूरी शृंखला में एक स्पेक्ट्रोग्राफ, एक फोटोहेलियोग्राफ (Photoheliograph), दो पूर्ण-डिस्क स्पेक्ट्रोहेलोग्राफ (Spectroheliograph) एवं एक रेडियो स्पेक्ट्रोग्राफ (Radio Spectrograph) भी शामिल है।

कोडईकनाल सौर वेधशाला (KSO) का योगदान

  • एवरशेड प्रभाव (Evershed Effect) की पुष्टि: KSO, वर्ष 1909 में एवरशेड प्रभाव (सनस्पॉट में रेडियल गति) की पुष्टि करने वाली पहली वेधशाला थी।
  • डेटा रिपॉजिटरी: KSO एक सदी से अधिक समय से सूर्य का अवलोकन कर रहा है एवं इसमें डेटा का एक समृद्ध भंडार है।
    • यह न केवल सूर्य के अतीत के पुनर्निर्माण के लिए बेहद उपयोगी है, बल्कि इसमें भविष्य में होने वाली घटनाओं का पृथ्वी के मौसम तथा यहाँ के जीवन पर होने वाले प्रभाव को बेहतर ढंग से समझने एवं भविष्यवाणी करने के लिए इसके व्यवाहारिक परिवर्तनों को जोड़ने हेतु भी बेहद उपयोगी है।
  • सौर अवलोकन: यह सूर्य एवं उसकी विशेषताओं का अवलोकन तथा रिकॉर्ड करता है।
    • केवल दो अन्य संस्थानों [पेरिस में मीडॉन वेधशाला (Meudon Observatory) एवं माउंट विल्सन वेधशाला (Mount Wilson Observatory)] के पास एक समान समयावधि का संग्रह है।
  • इक्वेटोरियल इलेक्ट्रोजेट (Equatorial Electrojet) की निगरानी: दक्षिण भारत की  पलानी पहाड़ियों में अपने स्थान के कारण, KSO इक्वेटोरियल इलेक्ट्रोजेट में परिवर्तन देखने में एक केंद्रीय भूमिका निभाता है। 
    • इक्वेटोरियल इलेक्ट्रोजेट एक विद्युत धारा, जो पृथ्वी के आयनमंडल (Earth’s Ionosphere) में प्रवाहित होती है।

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