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नौकरशाही में ‘सामाजिक न्याय’ सुनिश्चित करना

Lokesh Pal August 23, 2024 02:40 60 0

संदर्भ 

हाल ही में भारतीय संसद के नेता प्रतिपक्ष ने केंद्रीय बजट 2024 को तैयार करने में SC/ST वर्ग के  अधिकारियों की नगण्य भूमिका की ओर सरकार एवं जनता का ध्यानाकर्षित किया। 

संबंधित तथ्य

  • UPSC द्वारा जारी किया गया विज्ञापन: हाल ही में UPSC ने ‘लेटरल एंट्री’ के तहत 24 मंत्रालयों में 45 वरिष्ठ पदों के लिए आवेदन संबंधी विज्ञापन जारी किया था, जिसको लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार द्वारा आरक्षण के नियमों की अनदेखी करने संबंधी मुद्दे को लेकर आवाज उठाई थी। हालाँकि बाद में UPSC द्वारा इस विज्ञापन को वापस ले लिया गया था।  
  • महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ: ये भूमिकाएँ महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि इनमें सरकार के भीतर प्रमुख निर्णय लेने की जिम्मेदारियाँ शामिल हैं। 
  • आलोचना: विपक्ष ने ‘लेटरल एंट्री’ के लिए सरकार के प्रयास की कड़ी आलोचना की थी, मुख्यतः इसलिए कि इन नियुक्तियों में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए अनिवार्य आरक्षण नहीं है। 
    • चिंता जताई गई: इस प्रथा के कारण हाशिए पर पड़े समुदायों को महत्त्वपूर्ण सरकारी पदों पर आसीन होने से वंचित किया जा सकता है, जो परंपरागत रूप से 13-सूत्री रोस्टर नीति के तहत आरक्षण के साथ आते हैं। 
      • उनका मानना ​​है कि आरक्षण प्रणाली को दरकिनार करने के लिए ‘लेटरल एंट्री’ का इस्तेमाल किया जा सकता है। 

नौकरशाही में ‘लेटरल एंट्री’ क्या है?

  • लेटरल एंट्री (Lateral Entry): इसका तात्पर्य नौकरशाही के अंतर्गत मध्य और वरिष्ठ स्तर के पदों को भरने के लिए पारंपरिक सरकारी सेवा संवर्ग के बाहर से व्यक्तियों की भर्ती करने की व्यवस्था से है। 
  • सिविल सेवा के अंतर्गत अधिकारियों का चयन करने के बजाय, लेटरल एंट्री निजी क्षेत्र, शिक्षा क्षेत्र, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs), राज्य सरकारों एवं अन्य गैर-सरकारी संगठनों के पेशेवरों को केंद्र सरकार में प्रमुख भूमिकाओं में नियुक्त करने की अनुमति देता है। 
  • प्रक्रिया: UPSC विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव जैसे विभिन्न वरिष्ठ पदों के लिए विज्ञापन जारी करके इस प्रक्रिया को सुगम बनाता है। 
    • उपयुक्त योग्यता एवं अनुभव वाले उम्मीदवारों को आवेदन करने के लिए आमंत्रित किया जाता है, जिससे इन पदों पर निर्णयन प्रक्रिया को प्रभावी बनाया जाता है। 
  • अवधि: उन्हें तीन वर्ष का अनुबंध दिया जाता है, जिसे कुल पाँच वर्ष की अवधि तक बढ़ाया जा सकता है। 

UPSC के तहत लेटरल एंट्री की उत्पत्ति और कार्यान्वयन 

  • दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC): लेटरल एंट्री के सिद्धांत का समर्थन दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा किया गया था, जिसका गठन वर्ष 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में किया गया था। 
  • नीति आयोग की सिफारिश: नीति आयोग ने अपने तीन-वर्षीय कार्य एजेंडा में और शासन पर सचिवों के क्षेत्रीय समूह (SGoS) ने फरवरी 2017 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में, केंद्र सरकार में मध्यम एवं वरिष्ठ प्रबंधन स्तर पर कर्मियों को शामिल करने की सिफारिश की। 
    • ‘लेटरल एंट्री’ के तहत शामिल किए गए विशेषज्ञ केंद्रीय सचिवालय का हिस्सा होंगे, जिसमें सामान्य तौर पर केवल अखिल भारतीय सेवाओं/केंद्रीय सिविल सेवाओं के तहत शामिल नौकरशाह होते हैं।

लेटरल एंट्री के संबंध में विभिन्न विशेषज्ञ समूहों/समितियों की सिफारिशें 

  • प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग
    • इसमें विशेषज्ञता की आवश्यकता को मान्यता दी गई क्योंकि सरकार को विविध परियोजनाओं पर प्रभावी निर्णयन की आवश्यकता होती है।
    • प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सशस्त्र बलों से प्रदर्शन मूल्यांकन को अपनाया जा सकता है, जिससे खराब प्रदर्शन करने वालों को बाहर करने में मदद मिल सकती है। 
    • वर्ष 2003 में सुरेंद्र नाथ समिति और 2004 में होता समिति ने भी सिविल सेवाओं में डोमेन विशेषज्ञता की सिफारिश की थी। 
  • वर्ष 2005 में: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर लेटरल एंट्री की सिफारिश की। 
    • ARC ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सशस्त्र बलों से प्रदर्शन मूल्यांकन को अपनाया जा सकता है, जिससे खराब प्रदर्शन करने वालों को बाहर करने में मदद मिल सकती है। 
  • लेटरल एंट्री के पूर्व के उदाहरण: नंदन नीलेकणी, मोंटेक सिंह अहलूवालिया, विजय केलकर, अरविंद सुब्रमण्यम् और रघुराम राजन सभी को विभिन्न समितियों एवं संगठनों का नेतृत्व करने के लिए सेवाओं के बाहर से लाया गया है। 

विशेषज्ञ या डोमेन विशेषज्ञ की आवश्यकता

  • तकनीकी ज्ञान: ये डोमेन विशेषज्ञ नीति निर्माण और उसके कार्यान्वयन से जुड़ी जमीनी स्तर की जानकारी और वास्तविक चुनौतियों के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं। 
  • जटिल परिस्थितियाँ: प्रशासन से संबंधित कार्य अब अधिकाधिक जटिल, तकनीकी एवं विषय विशेष होते जा रहे हैं, अतः केवल एक विशेषज्ञ ही इनसे प्रभावी ढंग से निपट सकता है। 
  • क्षेत्रीय ज्ञान का अभाव: सामान्यवादी या पारंपरिक नौकरशाहों को क्षेत्रीय वास्तविकता का ज्ञान नहीं होता। 
  • शासन और प्रदर्शन में सुधार: नीति आयोग का वर्ष 2017-2020 के लिए तीन-वर्षीय कार्य एजेंडा, क्योंकि इससे ‘मौजूदा कॅरियर नौकरशाही में प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ेगी।’ 
  • अधिकारी रिक्तियों की पूर्ति: देश में लगभग 1,500 IAS अधिकारियों की कमी है (कार्मिक मंत्रालय के आँकड़े) 
    • उदाहरण: बसवान समिति (2016) ने भी इन रिक्तियों को भरने के लिए लेटरल एंट्री की सिफारिश की थी।
  • सरकार में प्रतिभा का प्रवेश और प्रतिधारण: छठे केंद्रीय वेतन आयोग की रिपोर्ट (2006) के अनुसार, लेटरल एंट्री ‘सरकार में प्रतिभा का प्रवेश और प्रतिधारण सुनिश्चित करेगा, यहाँ तक ​​कि उन पदों के लिए भी जिनकी खुले क्षेत्र में उच्च माँग और प्रीमियम है। 

लेटरल एंट्री के विरुद्ध तर्क

  • क्षेत्रीय अनुभव का अभाव: बाह्य प्रतिभाओं में क्षेत्रीय अनुभव की व्यापकता और गुंजाइश का अभाव होता है, जो सिविल सेवा प्रदान करती है। 
  • दीर्घकालिक प्रतिबद्धता: लेटरल एंट्री के विशेषज्ञ, जिन्हें अक्सर कम अवधि के लिए नियुक्त किया जाता है, में दीर्घकालिक प्रतिबद्धता और निष्ठा का अभाव हो सकता है, जो स्थायी सिविल सेवकों में विकसित होती है। 
    • सार्वजनिक सेवा और निजी क्षेत्र की पृष्ठभूमि के बीच संभावित हितों का टकराव, निर्णय लेने को प्रभावित कर सकता है। 
  • कार्यान्वयन संबंधी समस्या: नीति निर्माण और जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन के बीच के अंतर को पाटने में पेशेवर सिविल सेवक बाहरी प्रतिभाओं की तुलना में बेहतर होते हैं। 
  • आंतरिक खींचतान: बड़े पैमाने पर पार्श्विक नियुक्ति के परिणामस्वरूप सरकारी कार्मिक प्रबंधन प्रणाली में अविश्वास प्रस्ताव आएगा। 
  • सिविल सेवकों की भूमिका को कमजोर करना: सिविल सेवक पहले से ही संस्थागत रूप से सुस्थापित परिदृश्यों में दक्षता के साथ कार्य कर रहे हैं। लेटरल एंट्री से उनका मनोबल गिर जाएगा।  

लेटरल एंट्री को आरक्षण के दायरे से बाहर कैसे रखा गया है?

  • ‘13-पॉइंट रोस्टर’: सार्वजनिक नौकरियों और विश्वविद्यालयों में आरक्षण ‘13-पॉइंट रोस्टर’ के नाम से जाना जाता है।  
    • इस नीति के अनुसार, रिक्तियों की सूची में किसी उम्मीदवार की स्थिति उसके समूह (SC, ST, OBC और अब EWS) के कोटा प्रतिशत को 100 से विभाजित करके निर्धारित की जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: OBC कोटा 27% है। इसलिए, OBC उम्मीदवारों को प्रत्येक चौथे पद पर भर्ती किया जाता है, जिसके लिए किसी विभाग/संवर्ग में रिक्तियाँ उत्पन्न होती हैं। (100/27=3.7) 
      • इसी तरह, 15% आरक्षण के साथ अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को प्रत्येक 7वीं रिक्ति (100/15=6.66) को भरना है, आदि।
  • एकल पद भरना-आरक्षण की नीति को दरकिनार करना: एकल पद संवर्ग में आरक्षण लागू नहीं होता। चूँकि इस योजना [लेटरल एंट्री] के तहत भरा जाने वाला प्रत्येक पद एकल पद है, इसलिए आरक्षण लागू नहीं होता। 
    • उदाहरण के लिए: भर्ती के वर्तमान दौर में UPSC ने 45 रिक्तियों (यदि इन्हें एक ही समूह के रूप में माना जाए) का विज्ञापन दिया है।  
      • 13 पॉइंट रोस्टर के अनुसार: अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए छह रिक्तियाँ, अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए तीन, अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों के लिए 12 तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए चार रिक्तियाँ आरक्षित होंगी। 
      • लेकिन चूँकि ये रिक्तियाँ प्रत्येक विभाग के लिए अलग-अलग विज्ञापित की गई हैं, इसलिए ये सभी प्रभावी रूप से एकल-पद वाली रिक्तियाँ हैं और इसलिए आरक्षण की नीति को दरकिनार कर दिया गया है। 

नौकरशाही में सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में समस्याएँ

  • हाशिए पर पड़े समुदायों के प्रतिनिधित्व का अभाव: हाल ही में अपने संसदीय संबोधन के दौरान, विपक्ष के नेता ने वर्ष 2024 के बजट प्रस्तावों को तैयार करने में शामिल 20 अधिकारियों में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के अधिकारियों की अनुपस्थिति पर प्रकाश डाला। 
    • इस प्रक्रिया में अल्पसंख्यक वर्ग से केवल एक अधिकारी तथा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से एक अधिकारी को शामिल किया गया। 
  • नीति निर्माण में कोई भूमिका नहीं: इससे यह स्पष्ट होता है कि जो लोग मूल रूप से समाज के गरीब और वंचित वर्गों से हैं, उनकी सरकार की आर्थिक नीति के महत्त्वपूर्ण पहलू के निर्माण में कोई भूमिका नहीं है। 
  • उच्च जाति का प्रभुत्व: संयुक्त सचिव और सचिव पदों पर आसीन 322 अधिकारियों में से 254 सामान्य श्रेणी के थे, जबकि केवल 16 SC, 13 ST और 39 OBC श्रेणी से थे। 
    • सचिव और संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों की संख्या क्रमशः 4% और 4.9% रही। 

पात्रता

  • आयु एवं प्रयास सीमा: सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थी 21 से 32 वर्ष की आयु के बीच सिविल सेवा परीक्षा में अधिकतम छह प्रयासों के साथ उपस्थित हो सकते हैं। 
    • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थी: वे 37 वर्ष की आयु तक असीमित प्रयासों के साथ परीक्षा दे सकते हैं। 
    • OBC उम्मीदवार: इनके लिए अधिकतम आयु सीमा 35 वर्ष है तथा इन्हें 9 प्रयास करने होते हैं। 
    • बेंचमार्क दिव्यांगता वाले व्यक्तियों (PwBD) के लिए ऊपरी आयु सीमा 42 वर्ष है।

  • प्रवेश में देरी का नुकसान: अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और दिव्यांग उम्मीदवार अक्सर जीवन में बाद में सिविल सेवाओं में शामिल होते हैं और वरिष्ठ पदों पर पहुँचने से पहले ही सेवानिवृत्त हो जाने के कारण उच्चतम पदों तक पहुँचने में असमर्थ होते हैं। 
  • अनारक्षित उम्मीदवारों को औसतन तीन वर्ष अधिक सेवा मिल रही है: वर्ष 2004 के कैबिनेट सचिवालय डेटा (द्वितीय ARC) से पता चलता है कि औसतन अनारक्षित उम्मीदवार 24.7 वर्ष की आयु में सेवा में प्रवेश करते हैं, जबकि SC, STऔर OBC सदस्य क्रमशः 27.6 वर्ष, 26.9 वर्ष और 27.1 वर्ष की आयु में ऐसा करते हैं। 
    • इन देर से प्रवेश करने वालों की सेवा अवधि कम होगी, जिसका अर्थ है कि उन्हें उच्च स्तर पर नीति-निर्माण में योगदान करने के लिए पर्याप्त अवसर नहीं मिलेंगे। 
  • उच्च पदों के लिए पैनलीकरण की व्यक्तिपरक प्रक्रिया: इस प्रक्रिया में, सरकार पहले पात्र उम्मीदवारों के आवेदनों पर विचार करती है। 
    • आदर्श रूप से, इच्छुक उम्मीदवारों का मूल्यांकन उनकी योग्यता, जवाबदेही, कार्यकुशलता, कार्य के प्रति उनकी रुचि आदि के आधार पर किया जाना चाहिए।
    • लेकिन ये सभी व्यक्तिपरक मानदंड हैं और भारत जैसे विभाजित समाज में आदर्श स्थितियाँ बनाना बहुत कठिन है। 
  • लेटरल एंट्री भर्ती की आलोचना: लेटरल एंट्री की आलोचना इस आधार पर की गई है कि ऐसी भर्ती में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों के लिए कोई आरक्षण नहीं है। 
    • उद्देश्य: लेटरल एंट्री का उद्देश्य नई प्रतिभाओं को लाने के साथ-साथ जनशक्ति की उपलब्धता को बढ़ाने के दोहरे उद्देश्य को प्राप्त करना है। 

आगे की राह एवं प्रस्तावित परिवर्तन

  • प्रतिनिधित्व की भूमिका निर्धारित करना: जब देश की संस्थाओं में जनसंख्या का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त होता है तो लोकतंत्र प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं रह जाता। 
    • ज्योतिबा फुले के तर्क: यह तर्क ज्योतिबा फुले ने दिया था, जब उन्होंने कहा था कि यदि केवल कुछ जातियों का नियंत्रण है तो पुणे सार्वजनिक सभा को सार्वजनिक सभा नहीं कहा जा सकता है। 
    • संविधान का अनुच्छेद-16(4): यह तर्क अनुच्छेद-16(4) में भी परिलक्षित होता है: ‘इस अनुच्छेद की कोई भी बात राज्य को नागरिकों के किसी पिछड़े वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए कोई प्रावधान करने से नहीं रोकेगी, जिसका राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।’  
  • कोठारी आयोग: कोठारी आयोग ने न केवल सामान्य उम्मीदवारों के लिए बल्कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए भी केवल दो प्रयासों का समर्थन किया था। 
  • द्वितीय ARC ने सिफारिश की: ‘सिविल सेवा परीक्षा में बैठने के लिए स्वीकार्य आयु सामान्य उम्मीदवारों के लिए 21 से 25 वर्ष, OBC उम्मीदवारों के लिए 21 से 28 वर्ष और SC/ST और PH उम्मीदवारों के लिए 21 से 29 वर्ष होनी चाहिए। 
    • इससे सेवा में प्रवेश करने वाला प्रत्येक व्यक्ति, कम-से-कम सैद्धांतिक रूप से, सचिव पद के लिए पैनल में शामिल होने का पात्र हो जाएगा। 
  • सेवानिवृत्ति के लिए सेवा वर्ष को एक शर्त के रूप में निर्धारित करना: सभी अधिकारियों के लिए एक निश्चित कार्यकाल हो सकता है, चाहे उनकी प्रवेश आयु कुछ भी हो। 
    • साथ ही, सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि अधिकारियों की कॅरियर प्रगति के मामले में मनमानी, भेदभाव और व्यक्तिपरकता की गुंजाइश कम हो। 
  • सेवानिवृत्ति आयु समायोजन: सेवानिवृत्ति आयु सीमा को समायोजित किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी सिविल सेवक लगभग 67 वर्ष की आयु तक सेवानिवृत्त हो जाएँ तथा 62 वर्ष की आयु के बाद वार्षिक चिकित्सा फिटनेस जाँच कराई जाए। 
  • शीर्ष नौकरशाही में मनमानी और व्यक्तिपरकता को कम करने के लिए 
    • प्रथम ARC ने सिफारिश की थी: किसी भी संगठन में समान प्रकृति और समान स्तर के कार्य में लगे केवल 5 से 10 प्रतिशत सिविल सेवकों को ‘क्रमागत रूप से पहले पदोन्नति के लिए उपयुक्त’ ग्रेड दिया जाना चाहिए। 
    • वर्ष 2004 में, होता समिति ने सुझाव दिया: वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ARC) को एक नई प्रणाली से प्रतिस्थापित किया जाए, जो स्पष्ट कार्य योजनाओं और वस्तुनिष्ठ उपायों के आधार पर निष्पादन के मूल्यांकन पर अधिक ध्यान केंद्रित करेगी। 
  • समिति का गठन: निश्चित कार्यकाल के प्रस्ताव और सामाजिक न्याय के लिए इसके निहितार्थ की जाँच करने के लिए SC/ST, OBC और PwBD समुदायों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व के साथ एक स्वतंत्र और बहु-विषयक समिति की स्थापना की जानी चाहिए। 

निष्कर्ष

  • नौकरशाही के भीतर सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना वास्तव में प्रतिनिधि लोकतंत्र के लिए महत्त्वपूर्ण है। हाशिए पर पड़े समुदायों के कम प्रतिनिधित्व को संबोधित करना, विशेष रूप से निर्णय लेने वाले पदों पर, एक समावेशी और न्यायसंगत शासन संरचना बनाने के लिए आवश्यक है। 
  • दूसरी ओर, विशेषज्ञ पदों के लिए लेटरल एंट्री को समानता पर दक्षता को प्राथमिकता देनी चाहिए। एक कुशल नौकरशाही अंततः विशेष श्रेणियों के लिए विशेष नौकरियों को आरक्षित करने की तुलना में सामाजिक न्याय प्रदान करने में अधिक प्रभावी है। सार्वजनिक हित को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा को लाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

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