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भारत में प्रवासन का परिदृश्य

Lokesh Pal August 23, 2024 05:27 144 0

संदर्भ

वर्ष 2020-2021 में आयोजित ‘नेशनल सैंपल राउंड’ का बहु-संकेतक सर्वेक्षण, पूरे भारत में अंतः राज्यीय तथा अंतर-राज्यीय प्रवास के कारणों एवं प्रवासियों के सामने आने वाली समस्याओं पर विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।

अंतः राज्यीय प्रवास (Intra-State Migration)

  • अंतः राज्यीय प्रवास का तात्पर्य एक ही राज्य या क्षेत्र के भीतर लोगों की आवाजाही से है। 
  • इसमें ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में, एक शहर से दूसरे शहर में या एक ही राज्य के भीतर एक ग्रामीण क्षेत्र से दूसरे ग्रामीण क्षेत्र में प्रवास शामिल हो सकता है।

अंतर-राज्यीय प्रवास (Inter-State Migration) 

  • अंतर-राज्यीय प्रवास का तात्पर्य एक ही देश के भीतर एक राज्य से दूसरे राज्य में लोगों के आवागमन से है।
  • राज्यों के बीच भाषा, संस्कृति और आर्थिक स्थितियों में अंतर के कारण इस प्रकार का प्रवास अधिक जटिल हो सकता है।

प्रवासन क्या है? 

  • प्रवासन लोगों का अपने सामान्य निवास स्थान से दूर, या तो आंतरिक (देश के भीतर) अथवा अंतरराष्ट्रीय (देश भर में) सीमाओं से दूर जाना है।
  • ‘अप्रवासन’ (Immigration) तथा  ‘उत्प्रवासन’ (Emigration) शब्दों का उपयोग देशों के बीच आवागमन (अंतरराष्ट्रीय प्रवासन) को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। 
  • संवैधानिक प्रावधान
    • अनुच्छेद-19: कार्य के लिए देश के भीतर प्रवास करना एक नागरिक का मौलिक अधिकार है, जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद-19 द्वारा बरकरार रखा गया है।
    • संरक्षण: मौलिक अधिकार मानव तस्करी पर रोक लगाते हैं तथा जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव से मुक्ति, रोजगार के समान अवसर तथा बलपूर्वक एवं बाल श्रम से सुरक्षा की गारंटी देते हैं।
    • संविधान की सातवीं अनुसूची: अंतरराज्यीय प्रवासन संविधान की सातवीं अनुसूची, सूचीI (संघ सूची) के अंतर्गत आता है, जो केंद्र सरकार को प्राधिकार सौंपती है।
  • प्रवासन पर डेटा: महाराष्ट्र में बाहरी प्रवासियों की सबसे अधिक हिस्सेदारी है।
    • इसके बाद उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल का स्थान है।
    • प्रवासियों की सबसे अधिक संख्या: उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक प्रवासी आए, उसके बाद महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और बिहार का स्थान है।
    • यदि हम क्षेत्रों के युग्मों को देखें तो उत्तर प्रदेश से महाराष्ट्र जाने वाले प्रवासी सभी बाहरी प्रवासियों का सबसे बड़ा हिस्सा थे।
      • इसके बाद खाड़ी देशों से आने वाले प्रवासी (कुछ केरल लौटकर आ रहे हैं) और उत्तर प्रदेश से दिल्ली जाने वाले प्रवासी आते हैं।
    • मेजबान शहर: उपनगरीय मुंबई वह जिला है, जो सबसे अधिक संख्या में प्रवासियों को आश्रय देता है।
      • इसके बाद महाराष्ट्र में पुणे और ठाणे का स्थान है।

‘पुल’ (Pull) और ‘पुश’ (Push) कारक

  • प्रवास के लिए दो प्रमुख कारक जिम्मेदार हैं – ‘पुल’ और ‘पुश’।
    • पुश (Push) कारक गरीबी, कार्य के अवसरों की कमी, बेरोजगारी और अविकसितता, खराब आर्थिक स्थिति, अवसरों की कमी, प्राकृतिक संसाधनों की कमी आदि हैं।
    • पुल (Pull) कारक प्रवासियों को एक क्षेत्र (गंतव्य का क्षेत्र) की ओर आकर्षित करते हैं, जैसे, रोजगार और उच्च शिक्षा के अवसर, उच्च मजदूरी की सुविधाएँ, बेहतर कार्य करने की स्थिति।

भारत में आंतरिक प्रवास के कारण

  • शहरीकरण: ग्रामीण-शहरी प्रवास देशों में शहरी संक्रमण की एक प्रमुख विशेषता है।
    • शहरीकरण की दरें ग्रामीण-शहरी मजदूरी अंतर को प्रभावित करती हैं।
    •  शहरी क्षेत्रों में श्रम की माँग में वृद्धि और बेहतर मजदूरी से प्रवासन बढ़ता है।
  • विवाह: विवाह प्रवास का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सामाजिक कारक है। हर लड़की को अपने ससुराल जाना पड़ता है।
    • इस प्रकार, भारत की संपूर्ण महिला आबादी को छोटी या लंबी दूरी तय करके पलायन करना पड़ता है।
    • डेटा: विवाह भी पलायन के मुख्य कारणों में से एक था (सभी कारणों का 68.2%),
      • उत्तर प्रदेश से महाराष्ट्र, बिहार से झारखंड और मध्य प्रदेश से उत्तर प्रदेश जाने वाले प्रवासियों की संख्या सबसे अधिक (क्रमागत रूप से शीर्ष तीन) में है।

  • आर्थिक कारण: इसमें बेहतर रोजगार संभावनाएँ, व्यवसाय, सेवा स्थानांतरण आदि शामिल हैं।
    • डेटा: आर्थिक कारणों से राज्यों में जाने वाले प्रवासियों में (जो सभी कारणों का लगभग 22% हिस्सा है)
      • उत्तर प्रदेश से महाराष्ट्र जाने वाले प्रवासियों की संख्या सभी प्रवासियों में सबसे बड़ी है।
      • इसके बाद उत्तर प्रदेश से दिल्ली तथा बिहार से पश्चिम बंगाल जाने वालों का स्थान है।

    • रोजगार
      • ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में पलायन का मुख्य कारण उद्योगों, व्यापार, परिवहन और सेवाओं में बेहतर रोजगार की तलाश है।
      • लोग अलग-अलग क्षेत्रों और विभिन्न उद्योगों में रोजगार के लिए मौसमी रूप से पलायन करते हैं।
      • कृषि कार्य: परिपत्र प्रवासी कृषि कार्य से भी आकर्षित होते हैं, जैसे कि पश्चिम बंगाल में चावल की कटाई का मौसम और गुजरात में गन्ने की कटाई का मौसम।
  • शिक्षा: ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा सुविधाओं की कमी के कारण लोग बेहतर शैक्षणिक अवसरों के लिए शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 1.77% लोग शिक्षा के लिए पलायन करते हैं।
  • सुरक्षा का अभाव: राजनीतिक अशांति और अंतरजातीय संघर्ष आंतरिक प्रवास का एक अन्य कारण है।
  • पर्यावरणीय एवं आपदा प्रेरित कारक: ऐसे प्रवासी हैं, जो पर्यावरणीय आपदा के परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं, जिसके कारण उनके घर और खेत नष्ट हो सकते हैं।
    • पर्यावरणीय परिस्थितियों में क्रमिक गिरावट के कारण भी लोग अपने पारंपरिक आवासों से पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं।
    • विकास परियोजनाओं जैसे कारणों से भी जबरन विस्थापन हो सकता है।
    • लोकसभा में रखी गई वर्ष 2013 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 50 वर्षों में विकास परियोजनाओं के नाम पर लगभग 50 मिलियन लोग विस्थापित हुए हैं।

भारत में प्रवासी श्रमिकों के समक्ष चुनौतियाँ

  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में रोजगार: शहरी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में प्रवासियों का प्रभुत्व है, जो उच्च गरीबी और कमजोरियों से ग्रस्त हैं।
    • असंगठित और अव्यवस्थित श्रम बाजार में, प्रवासी श्रमिकों को नियमित रूप से कार्यस्थल पर संघर्ष और विवादों का सामना करना पड़ता है।
    • वे जिन आम मुद्दों का सामना करते हैं, उनमें मजदूरी का भुगतान न होना, शारीरिक शोषण, दुर्घटनाएँ और यहाँ तक कि कार्य के दौरान मृत्यु भी शामिल है।
  • पहचान संबंधी दस्तावेजों का मुद्दा: गंतव्य क्षेत्रों में गरीब प्रवासी मजदूरों के सामने अपनी पहचान साबित करना एक प्रमुख मुद्दा है।
    • पहचान स्थापित करने की मूल समस्या के परिणामस्वरूप, अधिकारों और सामाजिक सेवाओं, जैसे सब्सिडी वाले भोजन, ईंधन, स्वास्थ्य सेवाओं या शिक्षा तक पहुँच में कमी आती है, जो आबादी के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए हैं।
  • आवास: भारतीय शहरों में किफायती आवास की कमी के कारण प्रवासियों को झुग्गी-झोपड़ियों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
    • कई मौसमी प्रवासी झुग्गी-झोपड़ियों में रहने के लिए किराया भी नहीं दे पाते हैं, जिससे उन्हें अपने कार्यस्थलों (जैसे निर्माण स्थलों एवं होटलों के भोजन कक्षों), दुकानों के फुटपाथों या शहर के खुले क्षेत्रों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
  • वित्तीय पहुँच: प्रवासी श्रमिकों की औपचारिक वित्तीय सेवाओं तक सीमित पहुँच है और वे बैंकिंग सेवाओं से वंचित हैं।
  • स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच: प्रवासी श्रमिकों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच बहुत खराब है, जिसके परिणामस्वरूप उनका व्यावसायिक स्वास्थ्य बहुत दयनीय है।
  • बच्चों की शिक्षा: यूनेस्को की वर्ष 2019 की वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट (Global Education Monitoring Report- GEM Report) से पता चलता है कि प्रवासी माता-पिता और मौसमी प्रवासियों द्वारा छोड़े गए बच्चों को कुल मिलाकर कम शैक्षिक अवसर प्राप्त होते हैं।
    • रिपोर्ट के अनुसार, सात भारतीय शहरों में 80% प्रवासी बच्चों को कार्यस्थल के निकट शिक्षा की सुविधा उपलब्ध नहीं पाती है।
    • 15 से 19 वर्ष की आयु के युवा जो मौसमी प्रवासी के साथ ग्रामीण परिवारों में पले-बढ़े हैं, उनमें से 28% अशिक्षित हैं या उनकी प्राथमिक शिक्षा अधूरी है।
  • सामाजिक बहिष्कार: शहरी सरकारों के साथ-साथ मध्यम वर्ग के नागरिकों में भी शहरी गरीबों, विशेषकर शहरों में आने वाले प्रवासियों के प्रति शत्रुता बढ़ रही है।
  • राजनीतिक बहिष्कार: प्रवासी श्रमिकों को अपने राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग करने के कई अवसरों से वंचित किया जाता है।
    • वर्ष 2011 के एक अध्ययन में बताया गया कि भारत में 22% मौसमी प्रवासी श्रमिकों के पास मतदाता पहचान-पत्र नहीं है या उनका नाम मतदाता सूची में नहीं है।

प्रवासन चुनौतियों से निपटने के लिए उठाए गए कदम

  • अंतर-राज्यीय प्रवासी कर्मकार (रोजगार विनियमन एवं सेवा शर्तें) अधिनियम, 1979: इसका उद्देश्य प्रवासी श्रमिकों की अन्यायपूर्ण कार्य स्थितियों को संबोधित करना है, जिसमें बिचौलियों, ठेकेदारों या एजेंटों के माध्यम से रोजगार प्राप्त करने की आवश्यकता शामिल है, जो मासिक वेतन का वादा करते हैं, लेकिन समय आने पर भुगतान नहीं करते हैं।
  • ग्रामीण आबादी के लिए आजीविका के अवसरों में वृद्धि: सरकार ने समय-समय पर किसानों की परेशानी से निपटने और ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के अवसरों को बढ़ाने के लिए विभिन्न पहल की हैं।
    • उदाहरण: दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, कृषि में युवाओं को आकर्षित करना और संयोजित रखना (ARYA)।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे का विकास
    • रुर्बन मिशन (RURBAN Mission): इसका उद्देश्य स्थानीय आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना, बुनियादी सेवाओं को बढ़ाना तथा सुनियोजित रुर्बन क्लस्टर (क्लस्टर गाँव) बनाना है।
      • इसका एक मुख्य उद्देश्य ग्रामीण-शहरी विभाजन को कम करना है, अर्थात् आर्थिक, तकनीकी और सुविधाओं और सेवा से संबंधित विभाजन।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाएँ प्रदान करना (PURA): इसका उद्देश्य रोजगार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर लोगों के प्रवास की समस्या से निपटना है।
      • इसका उद्देश्य गाँवों में प्रौद्योगिकी का विकास करना, बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करना, आजीविका के अवसरों को बढ़ाना आदि है।
    • स्मार्ट विलेज (Smart Village): यह भारत में राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारों द्वारा समग्र ग्रामीण विकास पर केंद्रित पहल के रूप में अपनाई गई अवधारणा है।
      • इको नीड्स फाउंडेशन (Eco Needs Foundation) ने ‘स्मार्ट विलेज’ (Smart Village) की अवधारणा शुरू की है। 
      • इस परियोजना के तहत फाउंडेशन गाँवों को गोद ले रहा है तथा  स्वच्छता, सुरक्षित पेयजल, आंतरिक सड़क, वृक्षारोपण, जल संरक्षण जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करके सतत् विकास के लिए प्रयास कर रहा है।

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