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25 वर्षों के बाद भी भारत का परमाणु सिद्धांत प्रासंगिक बना हुआ है

Lokesh Pal August 22, 2024 05:00 106 0

भारत के परमाणु कार्यक्रम की पृष्ठभूमि

  • प्रारंभिक विकास और परीक्षण : भारत की परमाणु यात्रा की शुरुआत वर्ष 1974 के दौरान पोखरण परीक्षण रेंज में अपने पहले परीक्षण के साथ हुई थी, जिसका कोड नाम ‘स्माइलिंग बुद्धा’ रखा गया था। यह परीक्षण एक शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट (पीएनई) था, जिसका उद्देश्य व्यापक परमाणु शस्त्रागार बनाने के बजाय तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन करना था।
  • पोखरण-II परीक्षण (1998) : मई 1998 में भारत ने पाँच परमाणु परीक्षणों की शृंखला आयोजित की, जिसे पोखरण-II के नाम से जाना जाता है, जो प्रौद्योगिकी प्रदर्शन से लेकर परमाणु शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को स्थापित करने की दिशा में एक परिवर्तनकारी प्रतीक है।

संबंधित तथ्य

प्रश्न : 1974 में शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट (Peaceful Nuclear Explosion- PNE) के बाद द्विपक्षीय नीति अपनाने के बावजूद भारत ने 1998 में परमाणु विकल्प का चयन क्यों किया?

उत्तर : इसे निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझा जा सकता है –

  • प्रतिबंधात्मक अप्रसार वातावरण का निर्माण : 1990 के दशक में अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty – NPT) का अनिश्चितकालीन विस्तार, जिसका भारत ने विरोध किया, ने परमाणु और गैर-परमाणु राज्यों के मध्य विभाजन पैदा करके वैश्विक परमाणु असमानताओं को मजबूत किया। 
    • भारत ने इन असमानताओं को मजबूत करने के लिए एनपीटी की आलोचना की और दबावों का मुकाबला करने तथा बदलते वैश्विक परिदृश्य में अपनी स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया।
  • शत्रुतापूर्ण पड़ोसी : 1990 के दशक में भारत को क्षेत्रीय खतरों का सामना करना पड़ा। पड़ोसी देशों, विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन की बढ़ती परमाणु क्षमताओं ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया। पाकिस्तान की परमाणु महत्त्वाकांक्षाओं और मिसाइल विकास सहित परमाणु प्रौद्योगिकी में चीन की प्रगति ने 1998 के परीक्षणों के माध्यम से खुद को परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित करने के भारत के फैसले को प्रभावित किया।
  • USSR का विघटन : शीत युद्ध के दौरान, सोवियत संघ के साथ भारत का घनिष्ठ गठबंधन इसकी सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण था, जिसमें 1971 के युद्ध में सहायता भी शामिल थी। हालाँकि, 1991 में यूएसएसआर के विघटन ने इस रणनीतिक साझेदारी को समाप्त कर दिया और वैश्विक शक्ति गतिशीलता में बदलाव के कारण भारत अलग-थलग पड़ गया, जिससे भारत को अपनी सुरक्षा स्थिति का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

  • पोखरण परीक्षण की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया तथा परिणाम : भारत के 1998 के परीक्षणों की वैश्विक स्तर पर आलोचना हुई तथा उस पर अमेरिका सहित विभिन्न राष्ट्रों की ओर से प्रतिबंध लगाए गए।
    • भारत ने परमाणु परीक्षणों को राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने हेतु एक आवश्यक कदम के रूप में उचित ठहराया, विशेष रूप से चीन के तेजी से बढ़ते प्रभाव के जवाब में। संयुक्त राज्य अमेरिका ने शुरू में संभावित हथियारों की दौड़ और क्षेत्रीय अस्थिरता पर चिंता व्यक्त की, साथ ही चीन की बढ़ती शक्ति के बारे में चिंता भी साझा कीं। नतीजतन, अपनी आपत्तियों के बावजूद अमेरिका ने अंततः भारत के सुरक्षा तर्क को मान्यता दी और उभरते एशियाई भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक विश्वसनीय निवारक (Credible Deterrent) की आवश्यकता को स्वीकार किया।
    • राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की वर्ष 2000 की यात्रा ने भारत-अमेरिका संबंधों को सुधारने में मदद की, जिसकी परिणति 2005 के यू.एस.-भारत असैन्य परमाणु समझौते के रूप में हुई; जिसने भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता दी और अप्रसार संबंधी चिंताओं को संबोधित करते हुए असैन्य परमाणु सहयोग को सुविधाजनक बनाया।
    • इसके अतिरिक्त, इस अवधि के दौरान भारत एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा था, जिसने वैश्विक धारणाओं और कूटनीतिक वार्त्ताओं को और अधिक प्रभावित किया।

भारत का परमाणु सिद्धांत

परमाणु सिद्धांत का विकास : 1998 के बाद भारत ने अपनी परमाणु रणनीति को परिभाषित  किया। 17 अगस्त, 1999 को पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) के संयोजक के. सुब्रह्मण्यम ने भारत के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा को परमाणु सिद्धांत का मसौदा प्रस्तुत किया। इस दस्तावेज़ ने भारत के परमाणु सिद्धांत की नींव रखी, जिसमें विश्वसनीय न्यूनतम निवारक और नो फर्स्ट यूज़ (NFU) पर ज़ोर दिया गया। इस सिद्धांत को 2003 में लागू किया गया।

भारत के परमाणु सिद्धांत की मुख्य विशेषताएँ

  • विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध : भारत के पास हथियारों की होड़ में शामिल हुए बिना हमलों को रोकने के लिए पर्याप्त परमाणु हथियार हैं, जो सुनिश्चित रूप से पहले हमला न करने की रणनीति पर ध्यान केंद्रित करता है। उदाहरण के लिए कारगिल युद्ध के दौरान, भारत ने पाकिस्तान की परमाणु धमकियों के बाद भी पहले हमला न करते हुए जवाबी कार्यवाही की।
  • पहले प्रयोग नहीं करने की निति (No First Use) : भारत परमाणु हमले के जवाब में परमाणु हथियारों का सख्ती से इस्तेमाल करने की नीति का पालन करता है, जो निरोध पर केंद्रित एक रक्षात्मक रणनीति को रेखांकित करता है। यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि कोई भी परमाणु जवाबी कार्रवाई केवल नागरिक राजनीतिक नेतृत्व द्वारा अधिकृत हो। हालाँकि, 2016 में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने “पहले इस्तेमाल न करने” की नीति की आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए अधिक लचीले दृष्टिकोण का सुझाव देकर बहस छेड़ दी थी। इन टिप्पणियों के बावजूद सरकार ने परमाणु संयम के स्थापित रुख को बनाए रखने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की तुरंत पुष्टि की।
  • व्यापक जवाबी कार्रवाई : भारत पर किसी भी परमाणु हमले का परिणाम व्यापक जवाबी हमला होगा, जिससे हमलावर को अस्वीकार्य क्षति पहुंचेगी।

भारत के परमाणु सिद्धांत की प्रासंगिकता

  • स्थिरता : 2019 के बालाकोट हवाई हमलों के दौरान, भारत ने पारंपरिक युद्ध रणनीति का पालन किया, जिससे युद्ध के बढ़ने के जोखिम कम हो गए। अगर भारत ने प्रथम प्रयोग की परमाणु नीति अपनाई होती, तो इससे भयावह परमाणु संघर्ष शुरू हो सकता था । यह क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने और परमाणु युद्ध को रोकने में प्रथम प्रयोग न करने की नीति के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के महत्त्व को उजागर करता है।
  • आर्थिक लाभ : भारत की विश्वसनीय न्यूनतम निवारण नीति, अन्य परमाणु-सशस्त्र राष्ट्रों की तुलना में रक्षा व्यय को मध्यम बनाए रखती है, जो 2021-2022 में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2% है।
  • वैश्विक प्रतिष्ठा को बढ़ावा देना : भारत का परमाणु सिद्धांत इसकी वैश्विक प्रतिष्ठा, अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव तथा सॉफ्ट पावर को बढ़ावा देता है।
  • भारत की जवाबदेह नीति : जवाबदेह परमाणु नीति के प्रति भारत की प्रतिबद्धता ने 2008 के अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौते और 2016 के जापान के साथ असैन्य परमाणु समझौते को संभव बनाया ।

चुनौतियाँ 

  • पाकिस्तान की रणनीति : पाकिस्तान की रणनीति में कम दूरी के सामरिक परमाणु हथियार शामिल हैं, जैसे कि 2017 में परीक्षण की गई बाबर मिसाइल, जिसे भारत को चुनौती देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। ये सामरिक परमाणु हथियार, रणनीतिक वारहेड्स की तुलना में कम प्रभाव डालते हुए भी अपनी परमाणु प्रकृति को बनाए रखते हैं; साथ ही इनका उद्देश्य किसी भी पारंपरिक या सीमित आक्रमण को रोकना है।
  • चीन का परमाणु विस्तार : चीन का 2021 हाइपरसोनिक मिसाइल परीक्षण, जो पारंपरिक रक्षा प्रणालियों को दरकिनार करने में सक्षम है, क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा है।
  • उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ और उनके खतरे : युद्ध, साइबर हमलों और अंतरिक्ष आधारित प्रणालियों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसी प्रौद्योगिकियाँ महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती हैं। उदाहरण के लिए 2010 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ इज़राइल द्वारा स्टक्सनेट वायरस का प्रयोग यह दर्शाता है. कि कैसे उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ महत्त्वपूर्ण प्रणालियों को बाधित कर सकती हैं। ऐसे खतरे भारत की कमान, नियंत्रण प्रणालियों और परमाणु कार्यक्रम के लिए भी काफी जोखिम पैदा करते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन : सीमित परमाणु आदान-प्रदान भी तापमान में कमी ला सकता है, जिससे गंभीर और लंबे समय तक वैश्विक शीतलन हो सकता है। यह परिदृश्य जलवायु प्रतिरूप और कृषि को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।

आगे की राह 

भविष्य की ओर देखते हुए, भारत को स्थायी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए दो स्तरों पर कार्रवाई करने की आवश्यकता है। पहला है विश्वसनीय निवारक का संकेत देने के लिए पर्याप्त और लचीली जवाबी क्षमता का निर्माण करके तत्काल सुरक्षा खतरों का समाधान करना। दूसरे स्तर पर, भारत को शांति और सार्वभौमिक परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए अनुकूल वैश्विक वातावरण के निर्माण की दिशा में दीर्घकालिक अभिनव कूटनीतिक निवेश करने की आवश्यकता है। अन्य सुझाव निम्नलिखित हैं – 

  • तकनीकी सुधार : भारत के परमाणु शस्त्रागार की विश्वसनीयता और सटीकता को बढ़ाना।
  • समुद्र-आधारित परमाणु अवसंरचना : भारत को अपनी द्वितीय आक्रमण नीति को मजबूत करने और एक विश्वसनीय परमाणु निवारक सुनिश्चित करने के लिए, समुद्र-आधारित परमाणु क्षमताओं को बढ़ाना चाहिए। यह विकास भूमि-आधारित परमाणु परिसंपत्तियों से समझौता होने पर भी एक मजबूत प्रतिक्रिया बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग : वैश्विक अप्रसार प्रयासों को बढ़ावा देना तथा हथियार नियंत्रण वार्त्ताओं में शामिल होना।
  • संकट प्रबंधन : आकस्मिक या अनपेक्षित परमाणु वृद्धि को रोकने के लिए व्यापक संकट प्रबंधन योजनाएँ विकसित करना।

निष्कर्ष 

स्पष्ट है कि 25 वर्ष पूर्व मसौदे में प्रस्तुत सिद्धांत की मूल विशेषताएँ, समकालीन परमाणु प्रवृत्तियों के सामने वैध बनी हुई हैं। वास्तव में भारत का परमाणु सिद्धांत परमाणु स्थिरता का प्रतीक है, जबकि अन्य देश ऐसे व्यवहार में लिप्त हैं, जो हेजिंग रणनीतियों तथा हथियारों की दौड़ के चक्र को प्रोत्साहित करता है। आज के परमाणु युद्धों के बीच भारत का सिद्धांत एक शांति का प्रतीक है।

 

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न 

वर्तमान भू-राजनीतिक गतिशीलता के संदर्भ में भारत के परमाणु सिद्धांत की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिए । यह भारत की रणनीतिक सुरक्षा चिंताओं को कैसे संबोधित करता है तथा क्षेत्रीय स्थिरता में कैसे योगदान देता है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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