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नीति आयोग द्वारा कार्बन कैप्चर उपयोग और भंडारण (CCUS) संबंधी कार्यशाला

Lokesh Pal August 26, 2024 01:05 46 0

संदर्भ

हाल ही में नीति आयोग द्वारा नई दिल्ली में ‘कार्बन कैप्चर उपयोग और भंडारण’ (CCUS) के लिए विधिक तथा नियामक ढाँचे व तकनीकी विचार पर दो दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गईं।

संबंधित तथ्य

  • आयोजनकर्ता 
    • इस कार्यशाला का आयोजन नीति आयोग, भारत सरकार, यूएस डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट्स ब्यूरो ऑफ रिसोर्सेज, यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी ऑफिस ऑफ कार्बन मैनेजमेंट और यूएस डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स कमर्शियल लॉ डेवलपमेंट प्रोग्राम द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
    • कार्यशाला के दौरान की गई पहल:
      • अमेरिका द्वारा अमेरिका-भारत के बीच दीर्घकालिक सहयोग और इस साझेदारी के संभावित गुणात्मक प्रभाव को रेखांकित किया। 
        • अमेरिका ने सीसीयूएस के संक्षिप्त नाम को “अमेरिका के साथ सहयोग और समन्वय” के रूप में परिभाषित किया और इस साझेदारी की भावना का उल्लेख किया।
      • नीति आयोग ने भारत के नेट जीरो 2070 लक्ष्य के लिए राह तैयार करने में मौजूदा प्रयासों का उल्लेख किया, 
        • जो रोजगार, विकास व पर्यावरणीय स्थिरता की अनिवार्यताओं को संतुलित करते हैं और विभिन्न प्रौद्योगिकियों व संबंधित लागतों की भूमिका का परीक्षण करते हैं।
  • भारत के संदर्भ में कार्बन कैप्चर उपयोग और भंडारण (CCUS) का महत्त्व
    • CCUS भारत के आर्थिक विकास के लिए ‘हार्ड-टू-एबेट’ उद्योगों, जैसे कि- इस्पात, सीमेंट, रसायन और उर्वरक, जो जीवाश्म ईंधन पर बहुत अधिक निर्भर हैं, को कार्बन मुक्त करने के लिए उपकरणों का एक अनोखा समूह प्रदान करता है। 

‘हार्ड-टू-एबेट’ उद्योग

  • ऐसे उद्योग, जिनमें ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में मुश्किलें आती हैं। 

    • यह एक स्वच्छ कोयला गैसीकरण अर्थव्यवस्था को सक्षम बनाता है, जिससे भारत के विशाल कोयला भंडार का अधिक टिकाऊ उपयोग संभव हो सकेगा। 
    • इसके अलावा CCUS ‘ब्लू हाइड्रोजन’ उत्पादन को सक्षम करके हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था का भी समर्थन करता है- जिससे नवीकरणीय ऊर्जा पर आधारित हरित हाइड्रोजन के लिए व्यापक परिवर्तन का रास्ता खुलता है। 

‘ब्लू हाइड्रोजन’

  • ‘ब्लू हाइड्रोजन’ का उत्पादन मुख्य रूप से प्राकृतिक गैस से किया जाता है,
  • इसे ‘स्टीम रिफॉर्मिंग’ नामक प्रक्रिया का उपयोग करके उत्पादित किया जाता है, जो प्राकृतिक गैस और गर्म जल को वाष्प के रूप में एक साथ लाता है।
  • यह उत्पादित हाइड्रोजन है, लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड भी एक उप-उत्पाद के रूप में उत्पन्न होता है।
    • इसलिए, ‘ब्लू हाइड्रोजन’ की परिभाषा में इस कार्बन को प्रगृहीत और  संगृहीत करने के लिए कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) का उपयोग शामिल है।

    • इसके अलावा CCUS नए उद्योगों और बाजारों की स्थापना करके नए आर्थिक अवसर उत्पन्न कर सकता है।
  • नीति आयोग द्वारा पहल
    • नीति आयोग ने कार्बनडाइऑक्साइड के मानकों, भंडारण, परिवहन और उपयोग पर चार तकनीकी अंतर-मंत्रालयी समितियों का गठन किया है। 
    • इन समितियों को भारत में CCUS कार्यान्वयन से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक सुदृढ़ नीतिगत ढाँचा तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। 
    • इनमें चुनौतियों में प्रौद्योगिकी तत्परता, उच्च अग्रिम पूँजीगत लागत, कार्बन डाइऑक्साइड परिवहन व भंडारण के लिए बुनियादी ढाँचे की कमी, नियामक कमियाँ और सार्वजनिक स्वीकृति के मुद्दे शामिल हैं। 
    • नीति आयोग और अमेरिकी एजेंसियाँ ​​सीसीयूएस तकनीकी सहयोग पर कार्य योजना के तहत सीसीयूएस के विभिन्न पहलुओं पर सहयोग कर रही हैं।

कार्बन कैप्चर, उपयोग एवं भंडारण (CCUS)

  • CCUS में 3 घटक शामिल हैं। 
    • कार्बन कैप्चर: CO2 को विद्युत उत्पादन या औद्योगिक सुविधाओं जैसे बड़े बिंदु स्रोतों से कैप्चर किया जाता है, जो ईंधन के रूप में जीवाश्म ईंधन या बायोमास का उपयोग करते हैं।
      • कार्बन कैप्चर अकेले ही शुद्ध CCUS लागत का लगभग 75% हिस्सा है।
    • उपयोग: प्राप्त कार्बन का उपयोग संबंधित स्थल पर किया जा सकता है या इसे संपीडित करके पाइपलाइन, जहाज, रेल या ट्रक द्वारा परिवहन किया जा सकता है, ताकि संबंधित स्थल के बाहर विभिन्न अनुप्रयोगों में इसका उपयोग किया जा सके।
    • भंडारण: CO2 को भविष्य में उपयोग के लिए गहरी भू-वैज्ञानिक संरचनाओं जैसे समाप्त हो चुके तेल एवं गैस भंडारों या खारे जलभृतों में इंजेक्ट करके भी संगृहीत किया जा सकता है।

स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में CCUS की भूमिका 

  • आसान परिनियोजन: CCUS को मौजूदा विद्युत एवं औद्योगिक संयंत्रों में दोबारा लगाया जा सकता है, जिससे उनका संचालन जारी रखा जा सकता है।
  • अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों में उत्सर्जन में कमी: यह उन क्षेत्रों में उत्सर्जन से निपट सकता है, जिन्हें कम करना मुश्किल है, विशेष रूप से सीमेंट, स्टील या रसायन जैसे भारी उद्योगों में। 
  • डीकार्बोनाइजेशन: CCUS न्यूनतम लागत वाले निम्न-कार्बन हाइड्रोजन उत्पादन को सक्षम बनाता है और इस्पात, सीमेंट, तेल तथा गैस, पेट्रोकेमिकल्स एवं रसायन व उर्वरक जैसे विद्युतीकरण तथा CO2 प्रधान क्षेत्रों को डीकार्बोनाइज करने के लिए एकमात्र ज्ञात प्रौद्योगिकी प्रदान करता है।
    • CO2 सांद्रता को संतुलित करना: अंत में, CCUS उत्सर्जन को संतुलित करने के लिए वायु से CO2 को हटा सकता है, जो अपरिहार्य या तकनीकी रूप से कम करना मुश्किल है।

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