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भारत में महिला सुरक्षा

Lokesh Pal August 26, 2024 01:20 152 0

संदर्भ

हाल ही में कोलकाता में एक डॉक्टर के साथ दुष्कर्म तथा हत्या की घटना ने एक बार फिर 21वीं सदी के भारत में भी महिलाओं के विरुद्ध क्रूर अत्याचारों को उजागर कर दिया है।

‘जिस दिन एक महिला रात में सड़कों पर स्वतंत्र रूप से चल सकेगी, उस दिन हम कह सकते हैं कि भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है’ – महात्मा गांधी।

महिलाओं के विरुद्ध अपराध के आँकड़े

  • जॉर्जटाउन इंस्टिट्यूट फॉर विमेन (Georgetown Institute for Women), पीस एंड सिक्योरिटी (Peace and Security) द्वारा जारी महिला शांति एवं सुरक्षा सूचकांक 2023 के अनुसार: महिलाओं के समावेशन, न्याय और सुरक्षा के मामले में भारत 177 देशों में से 128वें स्थान पर है।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के डेटा से पता चलता है:
    • संख्या में वृद्धि: भारत में महिलाओं के विरुद्ध  अपराध (प्रति 100,000 महिला जनसंख्या पर अपराध के रूप में गणना) वर्ष 2018 से 2022 के बीच 12.9% की वृद्धि हुई।
      • भारत में प्रति 1,00,000 महिला जनसंख्या पर महिलाओं के विरुद्ध दर्ज अपराध वर्ष 2022 में 66.4 होंगे, जबकि वर्ष 2018 में यह 58.8 थे।

    • कारण: यह वृद्धि कई कारकों के कारण हो सकती है, जिनमें वास्तविक अपराधों में वृद्धि, रिपोर्टिंग तंत्र (reporting mechanisms) में सुधार तथा महिलाओं में हिंसा के अपने अनुभवों के बारे में बोलने की बढ़ती इच्छा शामिल है।
  • राज्यवार आँकड़े
    • NCRB की वार्षिक रिपोर्ट, ‘भारत में अपराध 2022’ के आँकड़े बताते हैं कि कुल 13 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अपराध दर राष्ट्रीय औसत 66.4 से अधिक दर्ज की गई थीं।

    • दिल्ली 144.4 के साथ सूची में शीर्ष पर है। इसके बाद हरियाणा (118.7), तेलंगाना (117), राजस्थान (115.1) और ओडिशा (103.3) का स्थान है।
    • उत्तर प्रदेश में अपराध की दर, जो भारत में अपराध के कुल मामलों में लगभग 15 प्रतिशत का योगदान देती है, 58.6 प्रतिशत रही।
  • महिलाओं के विरुद्ध अपराध की श्रेणियाँ
    • महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अधिकतर अपराधों को पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता (31.4%) के रूप में वर्गीकृत किया गया।
    • इसके बाद अपहरण (19.2%), शील भंग करने के उद्देश्य से हमला (18.7%), और दुष्कर्म (7.1%) का स्थान आता है।

वैश्विक आँकड़े

  • महिलाओं एवं बालिकाओं के विरुद्ध हिंसा (Violence Against Women and Girls- VAWG) एक गंभीर एवं व्यापक मुद्दा है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार: दुनिया भर में कम-से-कम तीन में से एक महिला ने अपने जीवनकाल में शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव किया है।
  • लगभग 10 में से एक लड़की ने जबरन संभोग या अन्य यौन कृत्यों का अनुभव किया है।

भारत में महिला सुरक्षा की कमी के पीछे कारण

  • आर्थिक स्वतंत्रता: आर्थिक स्वतंत्रता का अभाव महिलाओं की दुर्व्यवहार और उत्पीड़न से स्वयं को बचाने की क्षमता को कमजोर कर देता है।
    • संपत्ति में हिस्सा: कानूनी ढाँचे के बावजूद, स्थापित सामाजिक मानदंडों के कारण अधिकांश महिलाओं को संपत्ति में हिस्सा पाने का अधिकार नहीं है।
    • अनुपातहीन प्रतिनिधित्व: पुरुषों को सरकारी और कॉरपोरेट पदों पर असमान रूप से प्रतिनिधित्व प्राप्त है।
      • इससे यह एक कठिन संघर्ष बन जाता है तथा व्यापार में महिलाओं के योगदान के महत्त्व को स्वीकार करने का एक अवसर चूक जाता है।
      • सकल घरेलू उत्पाद में महिलाओं का योगदान 18 प्रतिशत है, जो दुनिया में सबसे कम में से एक है, यह इस तथ्य को दर्शाता है कि श्रम शक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 25 प्रतिशत है।
  • श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी: यह अधिकांशतः अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में है, जिससे उन्हें सामाजिक सुरक्षा तक बहुत कम पहुँच मिलती है।
    • कार्यस्थल पर हिंसा: कार्यस्थल पर भी महिलाओं को लैंगिक हिंसा का अधिक जोखिम रहता है।

    • POSH अधिनियम: कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 (जिसे सामान्यतः POSH अधिनियम के नाम से जाना जाता है) के अस्तित्व में होने के बावजूद।
      • NCRB के अनुसार, कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं की संख्या वर्ष 2018 में 402 से बढ़कर वर्ष 2022 में 422 हो गई है।
      • चिंताजनक: यह चिंता का विषय है, क्योंकि यह अच्छी तरह से स्थापित है कि महिलाएँ परिणामों के डर, अपर्याप्त जागरूकता और सामाजिक पूर्वाग्रहों के कारण अपने विरुद्ध अपराधों की शिकायत कम ही करती हैं।
  • सांस्कृतिक मानदंड और स्त्रीद्वेष: स्त्रीद्वेष, जो महिलाओं के प्रति घृणा या पूर्वाग्रह को संदर्भित करता है, कई समाजों में प्रचलित है, जहाँ महिलाओं को वस्तु के रूप में देखा जाता है और उनका अवमूल्यन किया जाता है।
    • उदाहरण के लिए, वॉशिंग पाउडर जैसे उत्पादों के विज्ञापनों पर विचार करें, जहाँ केवल महिलाओं को दिखाया जाता है, या लड़कों को गुड़ियों के साथ खेलने से हतोत्साहित किया जाता है और कहा जाता है कि  ‘पुरुष बनो’,  इस विचार को मजबूत करना कि केवल लड़कियाँ ही गुड़ियों के साथ खेलती हैं, पूर्वाग्रहों को जन्म देता है।
    • सांस्कृतिक मानदंड जो पुरुष श्रेष्ठता, पीड़ित को दोष देने और महिलाओं के यौनीकरण को बढ़ावा देते हैं, ऐसी मानसिकता को बढ़ावा देते हैं, जो महिलाओं के विरुद्ध यौन हिंसा को उचित ठहराती है या सामान्य बनाती है।
      • ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ बलात्कार पीड़ितों को बोलने के लिए ट्रोल किया जाता है, जो अपराध को संबोधित करने के बजाय पीड़िता को ही दोषी ठहराते हैं।
  • कमजोर कानूनी व्यवस्था तथा दंड का अभाव
    • दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराधों में वृद्धि का एक महत्त्वपूर्ण कारक यौन अपराधों से निपटने में कमजोर कानूनी प्रणाली उत्तरदायी है।
    • जब अपराधियों में दंड का भय नहीं रहता, तो ऐसे कृत्यों की संभावना बढ़ जाती है।
    • बलात्कारियों पर तुरंत मुकदमा चलाने तथा उन्हें सजा देने में विफलता दंड से मुक्ति की संस्कृति को जन्म देती है। इसलिए, कानूनों को मजबूत करने की आवश्यकता है, जिससे संभावित अपराधियों में डर उत्पन्न हो।
  • पितृसत्ता तथा लैंगिक असमानता: दुष्कर्म जैसे अपराध पितृसत्तात्मक संरचनाओं में गहराई से निहित हैं, जहाँ पुरुषों को अक्सर महिलाओं पर हावी माना जाता है।
    • यह असमानता इस विचार को निरंतर बनाए रखती है कि महिलाएँ अधीनस्थ हैं तथा उन्हें नियंत्रित या अपमानित किया जा सकता है। 
    • महिलाओं पर प्रभुत्व जताने के लिए पुरुषों की सोशल कंडीशनिंग, बलात्कार जैसी शक्ति की हिंसक अभिव्यक्ति को जन्म दे सकती है।
  • सार्वजनिक स्थानों पर अपर्याप्त सुरक्षा: सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे में अपर्याप्तता, जैसे खराब सड़कें, सुरक्षित परिवहन विकल्पों की कमी, CCTV की कमी, महिलाओं के अपराध के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाती है।
    • उदाहरण के लिए: सार्वजनिक परिवहन में निर्भया कांड तथा हाल ही में कोलकाता के सार्वजनिक अस्पताल में दुष्कर्म की घटना ने महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्थानों पर  सुरक्षा संबंधी कमियों को उजागर किया है।

भारत में महिला सुरक्षा से संबंधित विभिन्न विशेष कानून शामिल हैं

  • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005।
  • दहेज निषेध अधिनियम, 1961।
  • महिलाओं का अभद्र चित्रण (निषेध) अधिनियम, 1986।
  • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013।
  • बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006।
  • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015।
  • बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005।
  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012।
  • सती प्रथा (निवारण) अधिनियम, 1987।

कानूनों पर अधिक जानकारी

  • दहेज हत्या एवं प्रक्रियात्मक कानून (Dowry Death and Procedural Laws)
    • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 174 में संशोधन किया गया है, ताकि विवाह के सात वर्ष के भीतर महिला द्वारा आत्महत्या या मृत्यु के मामले में चिकित्सा जाँच सुनिश्चित की जा सके।
    • साक्ष्य अधिनियम, 1872 में धारा 113-A पेश की गई है।
    • इसमें कहा गया है कि यदि पत्नी विवाह के सात वर्ष की अवधि के भीतर आत्महत्या करती है, तो यह माना जाएगा कि उसके पति और उसके रिश्तेदारों ने  IPC की धारा 498-A के अनुसार, उसके साथ क्रूरता की है।
  • एसिड अटैक
    • भारतीय दंड संहिता की धारा 326 को 2 अप्रैल, 2013 को आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 के पारित होने के साथ संशोधित किया गया था।
    • संशोधन के परिणामस्वरूप विशेष रूप से एसिड अटैक से निपटने के लिए धारा 326-A और 326-B को शामिल किया गया।
  • यौन उत्पीड़न तथा महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुँचाना
    • धारा 354 IPC में ‘शील’ शब्द को महिलाओं से जुड़े एक गुण के रूप में परिभाषित किया गया है। 
    • शील: किसी महिला पर यौन उत्पीड़न करने के इरादे से बल का प्रयोग (जैसे उसके कपड़े उतारना) करना उसकी शील भंग करने वाला कृत्य माना जाता है।
    • सजा: कम-से-कम एक वर्ष की सजा है, जिसे पाँच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
  • यौन उत्पीड़न तथा दुष्कर्म
    • इसमें अपराधी द्वारा महिला पर शारीरिक रूप से यौन संबंध स्थापित करने का दबाव डालना शामिल है।
    • भारतीय दंड संहिता की धारा 375, 376, 376 A-D दुष्कर्म से संबंधित है।
  • घरेलू हिंसा
    • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act- PWDVA) हिंसा और भय से मुक्त जीवन को मान्यता देता है तथा महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करने के लिए राज्य को शक्ति प्रदान करता है।
  • सम्मान के नाम पर हत्या 
    • यह परिवार के किसी सदस्य की अन्य सदस्यों द्वारा हत्या है, क्योंकि अपराधियों का मानना ​​है कि पीड़ित ने परिवार को बदनाम या अपमानित किया है।
    • या वे मानते हैं कि इसने किसी समुदाय या धर्म के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है, आमतौर पर निम्नलिखित कारणों से यह माना जाता है:
      • अरेंज मैरिज में शामिल होने से इनकार करना।
      • ऐसे रिश्ते में रहना, जिसे उनका परिवार अस्वीकार करता हो।
      • विवाहेतर यौन संबंध बनाना।
      • दुष्कर्म से पीड़ित।
      • ऐसे कपड़े पहनना जो अनुचित माने जाते हों।
      • गैर-विषमलैंगिक संबंध बनाना या किसी धर्म का त्याग करना।

महिला सुरक्षा कानूनों के समान उद्देश्य तथा परिणाम सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ

  • उदार जमानत व्यवस्था: एक उदार जमानत व्यवस्था को अन्य न्यायिक सुधारों से स्वतंत्र बनाए नहीं रखा जा सकता है।
    • दहेज मृत्यु: वर्ष 2022 में न्यायालयों द्वारा निपटाए गए दहेज हत्या के 3,449 मामलों में से 64 प्रतिशत बिना सुनवाई के निपटा दिए गए तथा केवल 35 प्रतिशत मामलों में ही दोषसिद्धि हुई।
    • पतियों द्वारा क्रूरता के 85,2598 मामले लंबित थे, जिनमें से मात्र 7.7 प्रतिशत का ही निपटारा किया गया, जिनमें से 87 प्रतिशत का निपटारा बिना सुनवाई के ही कर दिया गया।
  • बड़ी विफलता उद्देश्य तथा परिणाम के बीच का अंतर है:
    • वर्ष 2012 में भयावह सामूहिक दुष्कर्म की घटना के बाद किए गए वादे अब तक केवल दिखावटी वादे बनकर रह गए हैं।
    • धन का आवंटन: वर्ष 2024- 2025 के लिए निर्भया कोष के बजटीय आवंटन में 100 प्रतिशत की वृद्धि सराहनीय हो सकती है।
    • धन का उपयोग: लेकिन, डेटा से पता चलता है कि वर्ष 2013 (जब इसे स्थापित किया गया था) तथा वर्ष 2022 के बीच, आवंटन का आधे से भी कम उपयोग किया गया था।
  • अधिनियम का आधे-अधूरे मन से क्रियान्वयन: यह पाया गया है कि वर्ष 2013 में अधिसूचित कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध, निवारण) अधिनियम का क्रियान्वयन आधे-अधूरे मन से किया गया है।
    • मई 2023 में, उच्चतम न्यायालय ने महिलाओं के लिए ‘सुरक्षित और संरक्षित कार्यस्थल’ सुनिश्चित करने में विफल रहने के लिए ‘अधिकारियों/प्रबंधन/नियोक्ताओं’ को फटकार लगाई थी।
  • लंबित एवं विलंबित न्याय: भारत की न्यायिक प्रणाली में लंबित मामले बहुत अधिक हैं तथा मामलों को अदालतों में पहुँचने में वर्षों लग जाते हैं।
    • कई महिलाओं के लिए, इससे दुष्कर्म या यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कराने में कलंक की भावना और बढ़ जाती है, क्योंकि किसी भी प्रकार का न्याय पाने में उन्हें काफी देरी का सामना करना पड़ता है।
  • पुलिस बल: अधिकांशतः पुलिस बल में भी बदलाव की आवश्यकता है – महिलाओं की संख्या लगभग 11 प्रतिशत है, जो ब्रिटेन से काफी पीछे है, जहाँ कुल कानून प्रवर्तन में महिला अधिकारियों की हिस्सेदारी एक-तिहाई है।
    • वर्ष 2022: इंडिया जस्टिस रिपोर्ट, जो कानून प्रवर्तन की स्थिति का सर्वेक्षण करती है, में कहा गया है कि पुलिस के 33 प्रतिशत महिला प्रतिनिधित्व के लक्ष्य तक पहुँचने में 24 वर्ष लगेंगे।
  • वर्मा समिति की सिफारिश की अनदेखी: वर्मा समिति, जिसका गठन दिसंबर 2012 में दिल्ली में हुए सामूहिक दुष्कर्म के बाद किया गया था, ने सिफारिश की थी कि अभियोजन के लिए जिम्मेदारी हेतु उत्तरदायी बनाया जाए, खासकर तब जब राज्य बड़े पैमाने पर यौन हिंसा को रोकने के अपने कर्तव्य की अनदेखी करते हैं।
    • BNS ने स्वायत्त महिला आंदोलनों द्वारा बार-बार यौन हिंसा के निवारण तथा रोकथाम के लिए की गई गंभीर सिफारिशों को भी नजरअंदाज कर दिया।

सरकार की पहल

  • वित्तीय सशक्तीकरण: महिलाओं का सशक्तीकरण महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण पर निर्भर करता है। इसीलिए सरकार ने महिलाओं में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं।
    • स्टैंड-अप इंडिया योजना: यह महिलाओं, अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes- SC) और अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes- ST) के बीच ग्रीनफील्ड उद्यमों की स्थापना के लिए सहायता प्रदान करने पर केंद्रित है।
    • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (Pradhan Mantri Mudra Yojana): PMMY का उद्देश्य गैर-कॉरपोरेट, गैर-कृषि सूक्ष्म और लघु उद्यमों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
      • PMMY  के अंतर्गत लगभग 69% ऋण महिला उद्यमियों को स्वीकृत किए गए हैं तथा स्टैंड-अप इंडिया के अंतर्गत 84% लाभार्थी महिलाएँ हैं।
    • महिला सम्मान बचत प्रमाणपत्र: इसे केंद्रीय बजट वर्ष 2023- 2024 के हिस्से के रूप में पेश किया गया था, जो विशेष रूप से महिला निवेशकों के लिए एक छोटी बचत योजना है।
    • इन पहलों ने महिलाओं को अपना रास्ता तय करने और राष्ट्र के आर्थिक विकास में योगदान करने में सक्षम बनाया है।
  • संरक्षा एवं सुरक्षा
    • मिशन शक्ति: यह सरकार का एक और उल्लेखनीय प्रयास है, जिसका उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा, सशक्तिकरण और कार्यबल में उनकी भागीदारी को बढ़ाना है।
      • मिशन शक्ति ने महिलाओं के लिए समाज में सक्रिय योगदान देने हेतु सक्षम वातावरण तैयार किया है।
      • उद्देश्य: इस मिशन का उद्देश्य कौशल विकास, क्षमता निर्माण, वित्तीय साक्षरता और सूक्ष्म ऋण तक पहुंच के माध्यम से लैंगिक पूर्वाग्रह, भेदभाव और महिलाओं पर देखभाल के बोझ को कम करना है।
    • वन-स्टॉप सेंटर (One-Stop Centres- OSCs): एक ही छत के नीचे प्रदान की जाने वाली एकीकृत सेवाएं, जैसे पुलिस, चिकित्सा और कानूनी सहायता, परामर्श, तथा वन-स्टॉप सेंटर (OSC) के माध्यम से मनोवैज्ञानिक-सामाजिक सहायता, हिंसा से प्रभावित महिलाओं के लिए व्यापक सहायता सुनिश्चित करती हैं।
    • एक टोल-फ्री महिला हेल्पलाइन (181) आपातकालीन तथा गैर-आपातकालीन सहायता प्रदान करती है।
    • कामकाजी महिला छात्रावास: इस योजना का उद्देश्य कामकाजी महिलाओं के लिए सुरक्षित तथा सुविधाजनक स्थान पर आवास की उपलब्धता को बढ़ावा देना है।
      • जहां भी संभव हो, शहरी, अर्ध-शहरी या यहां तक ​​कि ग्रामीण क्षेत्रों में जहां महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर मौजूद हों, उनके बच्चों के लिए डे केयर सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
    • सामुदायिक पुलिसिंग मॉडल: जयपुर में पिंक पेट्रोल जैसी पहल में महिला पुलिस अधिकारियों को सार्वजनिक स्थानों पर गश्त के लिए प्रशिक्षित किया गया है ताकि निगरानी बढ़ाई जा सके तथा सुरक्षा संबंधी चिंताओं का समाधान किया जा सके।
    • यौन अपराधों के लिए जाँच ट्रैकिंग प्रणाली: गृह मंत्रालय ने आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2018 के अनुसार, यौन उत्पीड़न मामलों में समयबद्ध जाँच की निगरानी और इसे ट्रैक करने के लिए लॉन्च किया है।
    • मेरी सहेली पहल: रेलवे सुरक्षा बल द्वारा शुरू की गई यह पहल एक समर्पित महिला अधिकारियों की टीम द्वारा ट्रेन से यात्रा करने वाली महिला यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
  • आजीविका की गरिमा
    • प्रधानमंत्री आवास योजना – ग्रामीण: महिलाओं के लिए सुरक्षित आवास और वित्तीय निर्णय लेने के महत्त्व को स्वीकार करना।
    • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना: महिलाओं की स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (Pradhan Mantri Ujjwala Yojana – PMUY) मई 2016 में शुरू की गई थी।
      • इस पहल का उद्देश्य ग्रामीण एवं वंचित परिवारों को स्वच्छ खाना पकाने का ईंधन (LPG) उपलब्ध कराना है।
  • नारी शक्ति अधिनियम – अमृत पीढ़ी का क्षण
    • इस यात्रा में एक मील का पत्थर नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023 के पारित होने से हासिल हुआ है, जिसका उद्देश्य लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए कुल सीटों की एक-तिहाई सीटें आरक्षित करना है।
  • बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ – लैंगिक सशक्तीकरण की दिशा में एक कदम
    • BBBP  योजना,  प्रमुख पहलों में से एक है जिसने लैंगिक भेदभाव से निपटने और बालिकाओं के महत्त्व को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण जन आंदोलन उत्पन्न किया है।
    •  हर स्तर पर, इस योजना ने सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से बालिकाओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए लगन से काम किया है।
    • जन्म के समय लिंग चयन को प्रतिबंधित करके और उनकी शैक्षिक वृद्धि को समर्थन देने के लिए सकारात्मक कार्रवाई को प्रोत्साहित करके, बीबीबीपी ने सकारात्मक बदलाव लाया है।

आगे की राह

हमें एक प्रणालीगत परिवर्तन की आवश्यकता है, जो केवल बहुआयामी दृष्टिकोण से ही संभव है।

  • नीति तथा कानून में सुधार
    • महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के संपूर्ण परिदृश्य की समीक्षा करें
      • महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक गंभीर कानूनी प्रतिक्रिया में उनके विरुद्ध होने वाले अपराधों के पूरे स्पेक्ट्रम की समीक्षा शामिल होनी चाहिए ताकि समाज में किसी भी तरह के दुर्व्यवहार के प्रति असहिष्णुता पैदा हो सके।
      • अपराध की गंभीरता के आधार पर श्रेणीबद्ध दंड प्रावधानों की आवश्यकता है।
      • किसी महिला को जबरन निर्वस्त्र करना या यौन उत्पीड़न करने के इरादे से उसका लगातार पीछा करना आदि को ‘उत्पीड़न’ के हलके कृत्यों में नहीं गिना जा सकता है।
    • फास्ट-ट्रैक मोड में सुनवाई: महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की जाँच तथा सुनवाई फास्ट-ट्रैक मोड में करने के लिए एक आपराधिक न्याय प्रणाली विकसित करने की अत्यंत आवश्यकता है।
    • कठोर सजा: जब अदालती मामले लंबे समय तक चलते हैं, तो लोगों को कानून के प्रति भयभीत करने का एकमात्र तरीका उन्हें लंबे समय तक जेल में रखना है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि अपराध कितना गंभीर है।
    • अतिरिक्त न्यायिक समझौतों को सुनिश्चित नहीं किया जाना चाहिए: न्यायालयों को अतिरिक्त न्यायिक समझौतों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की आवश्यकता है, जो लंबी कानूनी प्रक्रिया के कारण या समाज द्वारा ऐसे समझौतों को स्वीकार किए जाने के कारण पीड़ितों पर थोपे जाते हैं।
  • शिक्षा: लिंग-परिवर्तनकारी दृष्टिकोण को बाल शिक्षा एवं घरेलू तथा सामुदायिक स्तर पर हस्तक्षेप के माध्यम से क्रियान्वित किया जा सकता है।
    • नवीन पद्धतियाँ: गेमप्ले जैसे तरीकों का उपयोग लैंगिक समानता पहल में पुरुषों और महिलाओं दोनों को शामिल करने के लिए किया जा सकता है।
  • जागरूकता बढ़ाना: नागरिक समाज, SPO, आशा कार्यकर्ता, स्वयं सहायता समूह, धार्मिक/आस्था आधारित संस्थाएँ और सरकारी पहल भी सामाजिक समारोहों तथा नेटवर्किंग साइटों के माध्यम से लिंग आधारित हिंसा के बारे में जागरूकता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
    • ये संस्थाएँ शैक्षिक अभियानों, सामुदायिक पहुँच और मीडिया सहभागिता के माध्यम से जागरूकता बढ़ा सकती हैं।
    • वे कार्यशालाओं का आयोजन करके, सोशल मीडिया का लाभ उठाकर तथा लिंग आधारित हिंसा को संबोधित करने तथा सम्मान एवं समानता की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सहयोग करके काम करती हैं।
  • अन्य तरीकों में सांस्कृतिक दृष्टिकोण में परिवर्तन, नीति और कानून में सुधार, उत्तरजीवियों के लिए सहायता सेवाओं में वृद्धि, तथा अधिक सूचना अभियान, कार्यशालाएँ और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना, एवं आँकड़ों के आधार पर हस्तक्षेप कार्यक्रम तैयार करना शामिल है।

निष्कर्ष

जनशक्ति ने भारत में महिलाओं की दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित किया है। लेकिन अब यह पर्याप्त नहीं है। सार्थक बदलाव के लिए, नीति निर्माताओं को उन संस्थानों में सुधार करने की आवश्यकता है जो आधी आबादी के जीवन को सीधे तौर पर बेहतर बना सकते हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में महिलाएँ इसकी हकदार हैं।

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