केंद्रीय गृह मंत्रालय, मणिपुर में कुकी-जो विद्रोही समूहों पर लागू आधारभूत नियमों की समीक्षा कर रहा है।
संबंधित तथ्य
मणिपुर में कुकी-जो उग्रवादी समूह वर्ष 2008 से सरकार के साथ ऑपरेशन स्थगन (Suspension of Operation-SoO) समझौते पर हैं।
केंद्र सरकार ने घाटी के उन जिलों के निकट स्थित SoO शिविरों को हटाने का प्रस्ताव दिया है, जहाँ मैतेई लोगों का प्रभुत्त्व है।
यह प्रस्ताव मैतेई समूहों की अपने क्षेत्रों से शिविरों को हटाने की मांग का परिणाम है।
मणिपुर सरकार ने त्रिपक्षीय समझौते को रद्द कर दिया था, क्योंकि उसने कुकी-जो विद्रोही समूहों के साथ SoO समझौते को बढ़ाने के लिए गृह मंत्रालय द्वारा बुलाई गई बैठक में अपना प्रतिनिधि भेजने से इनकार कर दिया था, जिससे समझौता अधर में लटक गया था।
कुकी विद्रोह की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
नागा आंदोलन के साथ-साथ उद्भव: कुकी विद्रोह नागा आंदोलन के समानांतर विकसित हुआ, जो स्वायत्तता और अपनी विशिष्ट जातीय पहचान की मान्यता के लिए प्रयासरत था।
1990 के दशक में वृद्धि: 1990 के दशक के प्रारंभ में मणिपुर में कुकी और नागाओं के बीच जातीय संघर्षों ने कुकी विद्रोह को काफी तीव्र कर दिया, जो कुकी द्वारा नागा आक्रमण के रूप में देखी गई प्रतिक्रिया के रूप में उभरा।
शत्रुता की औपनिवेशिक विरासत: कुकी और नागा जनजातियों के बीच लंबे समय से चली आ रही दुश्मनी, जो औपनिवेशिक युग से संचालित है, ने नागा-कुकी संघर्षों के दौरान तनाव को और बढ़ा दिया।
कुकी मातृभूमि बनाम नागा मातृभूमि: कुकी दावा करते हैं कि मणिपुर की पहाड़ियाँ उनकी “मातृभूमि” हैं, यह दावा नागाओं की ग्रेटर नागालैंड या नागालिम के दावों के साथ टकराव करता है, जिसमें वही क्षेत्र शामिल है।
टेंग्नौपाल नरसंहार (Tengnoupal Massacre): वर्ष 1993 में, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-इसाक-मुइवा (NSCN-IM) ने टेंग्नौपाल में कथित तौर पर लगभग 115 कुकी लोगों की हत्या कर दी थी। इस दुखद घटना को कुकी समुदाय द्वारा ‘काला दिन’ के रूप में याद किया जाता है।
परिचालन निलंबन (SoO) संधि के बारे में
परिभाषा: SoO एक त्रिपक्षीय युद्धविराम समझौता है, जिस पर केंद्र और मणिपुर सरकार ने मणिपुर में कुकी विद्रोही समूहों के साथ राजनीतिक वार्ता शुरू करने के लिए हस्ताक्षर किए हैं।
इस समझौते पर वर्ष 2008 में हस्ताक्षर किये गए थे और मणिपुर में 30 कुकी उग्रवादी समूहों में से 25 इस समझौते के अंतर्गत हैं।
ऐतिहासिक संदर्भ: इस समझौते पर 1990 के दशक में कुकी-नागा संघर्ष के बाद हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे। विद्रोही समूहों ने कुकी-जो के लिए एक स्वतंत्र भूमि की मांग की थी
किसी उग्रवादी समूह के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद उग्रवादी कैडरों को सरकार द्वारा निर्धारित शिविरों में रखा जाएगा।
हथियारों को ‘डबल लॉकिंग सिस्टम’ के तहत एक सुरक्षित कमरे में जमा किया जाता है। समूहों को हथियार सिर्फ अपने शिविरों की रक्षा करने और अपने नेताओं की सुरक्षा के लिए दिए जाते हैं।
वर्तमान स्थिति: एक अनुमान के अनुसार, SoO समूहों के लगभग 2,200 कार्यकर्ता मणिपुर के पहाड़ी जिलों में 14 निर्दिष्ट शिविरों में रहते हैं।
समझौते की शर्तें: इस समझौते के तहत, विद्रोही समूह सरकार से कुछ रियायतें प्राप्त करने के बदले में हिंसात्मक गतिविधियों सहित अपने कार्यों को रोकने के लिए सहमत होते हैं, जैसे कि निर्दिष्ट शिविरों की स्थापना और उनके विरुद्ध सैन्य अभियानों को स्थगित करना।
SoO समझौते की मुख्य शर्तें
युद्धविराम समझौता: विद्रोही समूह सभी सशस्त्र गतिविधियाँ बंद कर देते हैं, जबकि सरकार उनके विरुद्ध सैन्य अभियान रोक देती है।
निर्दिष्ट शिविर: आगे की आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए विद्रोहियों को विशिष्ट, निगरानी वाले शिविरों में रहना आवश्यक है।
निगरानी एवं अनुपालन: सरकार और सुरक्षा प्रतिनिधियों सहित एक संयुक्त निगरानी समूह द्वारा नियमित जाँच के माध्यम से अनुपालन सुनिश्चित किया जाता है।
निरस्त्रीकरण: शांति प्रक्रिया के भाग के रूप में विद्रोहियों से अपने हथियार आत्मसमर्पण करने की अपेक्षा की जाती है।
पुनर्वास: पुनर्वास पैकेज के रूप में, निर्दिष्ट शिविरों में रहने वाले कैडरों को 6000 रुपये मासिक वजीफा दिया जाता है। निर्दिष्ट शिविरों के रख-रखाव के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान की जा रही है।
राजनीतिक वार्ता: यह समझौता शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से राजनीतिक शिकायतों के समाधान के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है।.
नवीकरण: समझौते की समय-समय पर समीक्षा की जाती है और उसे नवीकृत किया जाता है, जो शांति वार्ता में निरंतर अनुपालन और प्रगति पर निर्भर करता है।
समझौते के निलंबन के कारण
आपराधिक गतिविधियाँ: मणिपुर सरकार ने SoO समझौते से इसलिए हाथ खींच लिया क्योंकि SoO के कार्यकर्ता आपराधिक गतिविधियों में शामिल थे, जिनमें भड़काना और अवैध अतिक्रमण शामिल था, जिससे शांति प्रयासों को नुकसान पहुँचा।
जातीय हिंसा: वर्ष2023 में कुकी-जो और मैतेई समुदायों के बीच बढ़ते संघर्ष ने शांति बनाए रखने में SoO समझौते की अप्रभाविता को उजागर किया
केंद्र सरकार की निष्क्रियता: SoO संधि के विस्तार या निरस्तीकरण के संबंध में केंद्र सरकार की स्पष्ट कार्रवाई या संचार की कमी ने संधि के प्रवर्तन पर केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता के बारे में अनिश्चितता और संदेह उत्पन्न किया।
राजनीतिक विभाजन: SoO समझौते की वैधता पर मणिपुर विधानसभा के भीतर मतभेदों ने इसके जारी रहने को और जटिल बना दिया
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