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बलात्कार के लिए मृत्युदंड पर न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति

Lokesh Pal August 27, 2024 05:16 161 0

संदर्भ

कोलकाता में डॉक्टर की हत्या के बाद आरोपियों को मृत्युदंड  देने की माँग उठ रही है, लेकिन वर्ष 2013 की न्यायमूर्ति वर्मा समिति ने इसका विरोध किया था और इसे बलात्कार के मामलों के लिए प्रतिगामी माना था। 

बलात्कार और मृत्युदंड

  • परिभाषा: भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के अनुसार, यदि कोई पुरुष निम्नलिखित परिस्थितियों में किसी महिला के साथ यौन संबंध बनाता है तो वह बलात्कार की श्रेणी में आता है:- 
    • महिला की इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध।
    • महिला की सहमति के बिना यौन संबंध।
    • महिला या उसके किसी प्रियजन को जान से मारने या नुकसान पहुँचाने की धमकी देकर उसकी सहमति प्राप्त करना।
    • उसे यह विश्वास दिलाकर धोखा दिया जाना, कि वह उसका वैध पति है।
    • जब वह सहमति तो देती है, लेकिन मानसिक विकृति, नशे या नशीली दवाओं के प्रभाव के कारण प्रकृति और परिणामों को समझने में असमर्थ होती है।
    • जब उसकी आयु 18 वर्ष से कम हो, चाहे उसकी सहमति कुछ भी हो।
    • जब वह अपनी सहमति व्यक्त करने में असमर्थ हो।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-375 में बलात्कार की परिभाषा में किसी महिला के साथ बिना सहमति के संभोग करने सहित सभी प्रकार के यौन हमले शामिल हैं। 
  • ‘बलात्कार’ शब्द का परिचय: ‘बलात्कार’ शब्द को भारतीय दंड संहिता के माध्यम से थॉमस बैबिंगटन मैकाले द्वारा वर्ष 1860 में भारतीय विधिक प्रणाली में पेश किया गया था। 
    • प्रारंभ में, यह परिभाषा गैर-सहमति वाले लैंगिक संभोग तक ही सीमित थी, तथा अपराध की प्रकृति या गंभीरता के संबंध में कोई भेद नहीं किया गया था। 
  • नवीनतम आँकड़े: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार, बलात्कार पीड़ितों में से अधिकांश 18-30 आयु वर्ग की महिलाएँ हैं। 
  • मृत्युदंड: मृत्युदंड, जिसे मौत की सजा  के रूप में भी जाना जाता है, एक ऐसे व्यक्ति की फाँसी की सजा है, जिसे किसी गंभीर अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद न्यायालय द्वारा मौत की सजा सुनाई गई हो।
    • यह किसी दोषी व्यक्ति पर लगाया जाने वाला सबसे कठोर दंड है। 
    • वर्तमान में इसे केवल ‘दुर्लभतम’ मामलों के लिए ही निर्धारित किया जाता है।
    • ‘दुर्लभतम में से दुर्लभतम’  क्या है, इसकी व्याख्या न्यायालय द्वारा की जाएगी है।  

न्यायमूर्ति जे.एस.वर्मा समिति

  • परिचय: न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति का गठन वर्ष 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार के समय किया गया था। 

बलात्कार के लिए मृत्युदंड पर न्यायमूर्ति वर्मा समिति की सिफारिशें

  • शक्ति की अभिव्यक्ति: बलात्कार और यौन उत्पीड़न महज जुनून के अपराध नहीं हैं बल्कि शक्ति की अभिव्यक्ति हैं। 
  • बलात्कार का दायरा: बलात्कार को एक अलग अपराध के रूप में रखा जाना चाहिए और इसे केवल योनि, मुख या गुदा में लैंगिक प्रवेश तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए।  
    • यौन प्रकृति के किसी भी गैर-सहमति वाले कृत्य को बलात्कार की परिभाषा में शामिल किया जाना चाहिए।  
  • बलात्कार के लिए मृत्युदंड की अस्वीकृति
    • न्यायमूर्ति वर्मा समिति ने बलात्कार के लिए मृत्युदंड की सिफारिश नहीं की, यहाँ तक ​​कि दुर्लभतम मामलों में भी मृत्युदंड के प्रति अस्वीकृति व्यक्त की। 
    • उन्होंने बलात्कार के लिए रासायनिक नपुंसकीकरण (Chemical Castration) का विरोध किया। 
    • समिति ने तर्क दिया कि मृत्युदंड की माँग करना एक प्रतिगामी कदम है तथा इसका निवारक प्रभाव एक मिथक है। 
  • मृत्यु दंड के स्थान पर सजा में बढ़ोतरी 
    • समिति ने बलात्कार के लिए सजा बढ़ाने का सुझाव दिया तथा मृत्युदंड के स्थान पर 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा की सिफारिश की।
    • लगातार निष्क्रिय अवस्था (भारतीय दंड संहिता की धारा 376 A) के मामलों में, इसमें न्यूनतम 20 वर्ष के कठोर कारावास या आजीवन कारावास का प्रस्ताव किया गया। 
  • निवारक के रूप में मृत्युदंड की आलोचना
    • समिति ने बताया कि इस बात का कोई निर्णायक प्रमाण नहीं है कि मृत्युदंड गंभीर अपराधों को प्रभावी ढंग से रोकता है। 
    • उन्होंने वर्ष  1980 के बाद से कम फाँसी की सजा के बावजूद भारत में हत्या की दर में गिरावट दिखाने वाले आँकड़े उद्धृत किए। 
  • मौखिक यौन हमला: अवांछित यौन धमकियाँ देना अपराध है, जिसके लिए 1 वर्ष तक की जेल या जुर्माना हो सकता है। 
  • बलात्कार पीड़ितों की चिकित्सा जाँच: ‘टू फिंगर टेस्ट’ पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए, और पीड़िता के पिछले यौन इतिहास को उनके मामले के परिणाम को प्रभावित नहीं करना चाहिए।
  • वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को हटाया जाए: भारत में वैवाहिक बलात्कार को अपराध न मानने का प्रावधान धारा 375 के अपवाद 2 से उत्पन्न होता है।
    • वर्मा समिति ने सिफारिश की थी कि वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को हटा दिया जाना चाहिए, तथा कहा था कि ‘अपराधी या पीड़ित के बीच वैवाहिक या अन्य संबंध बलात्कार या यौन उल्लंघन के अपराधों के विरुद्ध वैध बचाव नहीं है।’ 
  • यूरोपीय मानवाधिकार निर्णय के लिए समर्थन: समिति ने इस दृष्टिकोण का समर्थन किया कि बलात्कारी, पीड़िता के साथ अपने रिश्ते की परवाह किए बिना, बलात्कारी ही रहता है। 
  • विवाह का तात्पर्य स्वतः सहमति से नहीं होना चाहिए। (C.R. बनाम U.K. में यूरोपीय मानवाधिकार आयोग) 
  • जीरो FIR का प्रावधान: ‘जीरो FIR’ की अवधारणा अपराध के पीड़ितों को किसी भी पुलिस स्टेशन में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने की अनुमति देती है, चाहे घटना कहीं भी घटित हुई हो। 
    • इससे यह सुनिश्चित होता है कि मामला शीघ्रता से पंजीकृत हो, जिससे जाँच में तेजी आए और क्षेत्राधिकार संबंधी मुद्दों के कारण होने वाली देरी से बचा जा सके। 

मृत्युदंड पर केंद्रीय मंत्रिमंडल का निर्णय

  • मृत्युदंड की सिफारिश की अस्वीकृति: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2013 के आपराधिक कानून संशोधनों को लागू करते समय मृत्युदंड के खिलाफ न्यायमूर्ति वर्मा समिति की सिफारिश को नहीं अपनाया। 
  • प्रमुख संशोधन प्रस्तुत किए गए
    • वर्ष 2013 अध्यादेश: संशोधनों में बलात्कार के परिणामस्वरूप पीड़िता की मृत्यु या लगातार निष्क्रिय अवस्था (IPC की धारा 376A) और बार-बार अपराध करने वालों के लिए मृत्युदंड (धारा 376E) का प्रावधान किया गया। 
  • वर्ष 2018 में संशोधन
    • सामूहिक बलात्कार: वर्ष 2018 के संशोधनों ने सामूहिक बलात्कार में अपराधियों के लिए मृत्युदंड की शुरुआत की, जहाँ पीड़िता 12 वर्ष से कम उम्र की हो (धारा 376 DB) तथा 16 वर्ष से कम उम्र की  पीड़िता होने पर  आजीवन कारावास (धारा 376DA) का प्रावधान किया गया।
  • भारतीय न्याय संहिता के तहत वर्तमान कानून: नई भारतीय न्याय संहिता में 18 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड का प्रावधान शामिल है (धारा 64, 65 और 70 (2))। 
  • सरकार ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने से किया इनकार: केंद्र सरकार ने समिति की सिफारिश को नहीं अपनाया और वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने से इनकार कर दिया। 
    • भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत, धारा 63 के अपवाद 2 में कहा गया है कि यदि पत्नी 18 वर्ष से अधिक उम्र की है तो पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ किए गए यौन कृत्य को दुष्कर्म नहीं माना जाएगा। 

विश्व  में वैवाहिक बलात्कार के प्रावधान

  • रूस: वर्ष 1922 में, सोवियत संघ, जो अब रूस है, बलात्कार को अपराध घोषित करने वाला और अपने बलात्कार कानूनों से ‘वैवाहिक छूट’ को समाप्त करने वाला पहला देश बना। 
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: वर्ष 1993 से, वैवाहिक बलात्कार को अमेरिका के सभी 50 राज्यों में अपराध घोषित कर दिया गया है, हालाँकि राज्य के अनुसार कानून अलग-अलग हैं।
  • यूनाइटेड किंगडम: ब्रिटेन में वैवाहिक बलात्कार को भी आपराधिक कृत्य घोषित कर दिया गया है, जिसके लिए आजीवन कारावास सहित सजा हो सकती है।
  • दक्षिण अफ्रीका: दक्षिण अफ्रीका में वर्ष 1993 से वैवाहिक बलात्कार अवैध है।
  • कनाडा: कनाडा में वैवाहिक बलात्कार दंडनीय है।

लैंगिक अधिकार और सशक्तीकरण पर वर्मा समिति

  • सशक्तीकरण की व्यापक अवधारणा: वर्मा समिति ने इस बात पर जोर दिया, कि महिला सशक्तीकरण में राजनीतिक समानता से आगे बढ़कर सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक समानता भी शामिल है। 
  • व्यापक सहभागिता की आवश्यकता: समिति ने तर्क दिया कि सच्चे सशक्तीकरण के लिए महिलाओं के अधिकारों, अवसरों, कौशल विकास, आत्मविश्वास और समाज तथा राज्य के साथ संबंधों में समानता को सक्रिय रूप से समर्थन देने के लिए कानूनी एवं सार्वजनिक नीतिगत उपायों की आवश्यकता होती है।
  • सामाजिक मानसिकता और प्रणालीगत परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करना: लैंगिक पूर्वाग्रह को दूर करने के लिए सामाजिक मानदंडों में बदलाव और नेतृत्व तथा शिक्षा और सामाजिक व्यवहार में प्रणालीगत परिवर्तन के माध्यम से कमियों पर नियंत्रण   की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

बलात्कार एक जटिल मुद्दा है, जिसके कई परस्पर संबंधित कारक हैं। इससे निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सांस्कृतिक मानदंडों को नया रूप देना, शिक्षा को बढ़ावा देना, कानूनी प्रणालियों को मजबूत करना और जिम्मेदार और संवेदनशील मीडिया चित्रण को बढ़ावा देना शामिल है।

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