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Lokesh Pal August 26, 2024 05:00 113 0
“अपना शास्त्र विहित कर्तव्य कर्म करो, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है”
(भगवद् गीता, अध्याय 3, श्लोक संख्या 8)
यह उद्धरण, किसी की ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के महत्व और निष्क्रिय रहने के बजाय सक्रिय कदम उठाने के मूल्य पर ज़ोर देता है। यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि कार्य, भले ही परिपूर्ण हो या न हो परंतु निष्क्रिय रहने की तुलना में वह अत्यधिक उत्पादक और लाभकारी है। यह उद्धरण इस विश्वास पर आधारित है कि कर्तव्यों का पालन करने से न केवल बाहरी उपलब्धियाँ मिलती हैं, बल्कि मन शुद्ध और अनुशासित भी होता है, जिससे आध्यात्मिक और भौतिक रूप से प्रगति करने में सफलता प्राप्त होती है।
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