केंद्रीय जल आयोग (CWC) की हालिया रिपोर्ट में भारतीय नदियों में भारी धातु संदूषण के खतरनाक स्तर पर प्रकाश डाला गया है।
संबंधित तथ्य
सुरक्षित सीमा से अधिक विषाक्त धातुओं में आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, ताँबा, लोहा, सीसा, पारा और निकेल शामिल हैं।
प्रभावित नदियाँ: भारत में कुल 81 मुख्य नदियों एवं उनकी सहायक नदियों में एक या अधिक विषैली भारी धातुओं की उच्च सांद्रता पाई गई है।
आँकड़े
निगरानी डेटा: 81 नदियों के 328 निगरानी स्टेशनों में से 141 (43%) ने विषाक्त धातु का स्तर स्वीकार्य सीमा से अधिक दिखाया है।
भौगोलिक विस्तार: ये निगरानी स्टेशन 13 राज्यों और 99 जिलों में फैले हुए हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश में आर्सेनिक का स्तर सबसे अधिक है, विशेष रूप से गंगा और गोमती नदियों में।
भारी धातु (Heavy metal) क्या है?
यह आमतौर पर सघन धातुओं को संदर्भित करता है, जो कम सांद्रता पर भी विषाक्त होती हैं।
भारी धातुओं की विशिष्ट विशेषताएँ
उच्च परमाणु भार: भारी धातुओं का परमाणु क्रमांक और परमाणु भार आमतौर पर उच्च होता है।
विशिष्ट गुरुत्व: इन धातुओं का विशिष्ट गुरुत्व अक्सर 5.0 से अधिक होता है, जिसका अर्थ है कि वे बहुत सघन होती हैं।
विविध समूह: भारी धातुओं में विभिन्न श्रेणियाँ शामिल हैं जैसे- मेटालॉयड (Metalloids), संक्रमण धातु, मूल धातुएं, लैंथेनाइड (Lanthanides) और एक्टिनाइड (Actinides)।
धातु
प्रमुख स्वास्थ्य जोखिम
आर्सेनिक
कैंसर, हृदय रोग, त्वचाशोथ, फेफड़े और मस्तिष्क संबंधी समस्याएँ
कैडमियम
गुर्दे की क्षति, हृदय रोग
क्रोमियम
फेफड़े का कैंसर, श्वसन संबंधी समस्याएँ
ताँबा
यकृत और गुर्दे की क्षति (जब अत्यधिक हो)
लोहा
लौह अधिभार विकार (जब अत्यधिक हो)
सीसा
तंत्रिका तंत्र क्षति, मस्तिष्क क्षति, अन्य अंगों की क्षति
पारा
तंत्रिका तंत्र क्षति, गुर्दे की क्षति, मस्तिष्क क्षति
निकेल
त्वचा एलर्जी, श्वसन संबंधी समस्याएँ
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
भारी धातु की उपस्थिति
प्रमुख धातुएँ: आर्सेनिक, पारा और क्रोमियम कई नदियों में पाए गए है। उदाहरण के लिए:-
आर्सेनिक: 30 निगरानी स्टेशनों पर सीमा पार हो गई।
पारा: 18 निगरानी स्टेशनों पर सुरक्षित सीमा से ऊपर पाया गया।
क्रोमियम: 16 निगरानी स्टेशनों पर सीमा पार हो गई।
विशिष्ट क्षेत्र
उत्तरकाशी (भागीरथी नदी) में आर्सेनिक, सीसा और लोहा पाया गया।
कर्नाटक के होन्नाली (तुंगभद्रा नदी) में क्रोमियम, पारा और सीसा सुरक्षित सीमा से अधिक पाया गया।
केरल के मदामोन निगरानी स्टेशन में लोहा, पारा, सीसा और निकल का स्तर स्वीकार्य सीमा से अधिक था।
संदूषण के स्रोत
मानवीय गतिविधियाँ: भारी धातुएँ नदियों में निम्नलिखित कारणों से प्रवेश करती हैं:-
धातु खनन और प्रगलन उद्योग।
कृषि अपवाह, जिसमें उर्वरक और पशु अपशिष्ट शामिल हैं।
शहरी अपवाह, औद्योगिक अपशिष्ट, और लैंडफिल निक्षालन।
प्राकृतिक स्रोत: प्राकृतिक जमाव और क्षरण भी धातु के स्तर में योगदान करते हैं।
वनस्पति और जीव-जंतुओं पर प्रभाव
अजैव-निम्नीकरणीय धातुएँ: भारी धातुएँ, एक बार जल में मौजूद होने के बाद आसानी से विघटित नहीं होती हैं। इससे पौधों और जानवरों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न होता है।
फसल संदूषण: दूषित मिट्टी और जल में उगाई जाने वाली फसलें जैसे- अनाज और सब्जियाँ, इन धातुओं को अवशोषित कर सकती हैं, जिससे हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं।
मनुष्यों के लिए स्वास्थ्य जोखिम
आवश्यक और विषैली धातुएँ: ताँबे जैसी धातुएँ मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत कम मात्रा में आवश्यक हैं, लेकिन अधिक मात्रा में विषाक्त हो सकती हैं। पारा, कैडमियम और सीसा जैसी अन्य धातुएँ कम मात्रा में भी सीधे तौर पर हानिकारक होती हैं।
विषाक्तता और जैवसंचय: भारी धातुएँ विषाक्त होती हैं और विघटित नहीं होती हैं, जीवों में जमा हो जाती हैं और मनुष्यों तथा पशुओं दोनों के लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न करती हैं।
स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के उदाहरण
आर्सेनिक से संदूषित जल पीने से त्वचा पर घाव हो सकते हैं और आर्सेनिकोसिस (Arsenicosis) नामक दीर्घकालिक बीमारी हो सकती है।
कैडमियम का संपर्क: कैडमियम के कम संपर्क से भी हड्डियाँ कमजोर हो सकती हैं तथा फ्रैक्चर और ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) का खतरा बढ़ सकता है।
पारे के संपर्क में आना: पारे का उच्च स्तर तंत्रिकाओं, मस्तिष्क और गुर्दों को नुकसान पहुँचा सकता है तथा फेफड़ों में जलन, त्वचा पर चकत्ते, उल्टी और दस्त जैसे लक्षण उत्पन्न कर सकता है।
शमन और समाधान (Mitigation and Solutions)
कार्रवाई की आवश्यकता: रिपोर्ट में सक्रिय उपायों के माध्यम से धातु संदूषण को दूर करने के महत्त्व पर बल दिया गया है।
सख्त नियम: जल निकायों में भारी धातुओं के उत्सर्जन को कम करने के लिए उद्योगों और कृषि प्रथाओं के लिए सख्त नियम लागू करना।
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन: नई औद्योगिक परियोजनाओं, विशेषकर धातुओं से संबंधित परियोजनाओं के लिए, गहन पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की आवश्यकता होती है।
सतत् प्रथाएँ: सतत् कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना जो भारी धातु युक्त रसायनों और उर्वरकों के उपयोग को कम करती हैं।
प्रौद्योगिकी प्रगति
झिल्लिका निस्पंदन (Membrane Filtration): जल से भारी धातुओं को पृथक करने के लिए उन्नत झिल्लिका निस्पंदन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना।
नैनो प्रौद्योगिकी (Nanotechnology): भारी धातु को कुशलतापूर्वक हटाने और पुनः प्राप्ति के लिए नैनो सामग्रियों का उपयोग करना।
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