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आत्म सुरक्षा हेतु निरंतर सतर्क रहने से उत्पन्न महिला समस्याएँ

Lokesh Pal August 27, 2024 05:30 92 0

संदर्भ: 

कोलकाता में एक महिला डॉक्टर के साथ हुए क्रूर बलात्कार और हत्या ने देश को एक बार फिर महिलाओं की सुरक्षा पर गहन चर्चा में शामिल कर दिया है। राज्य और समाज द्वारा पर्याप्त संरचनात्मक सुरक्षा के अभाव में, अपनी सुरक्षा का दायित्व (बोझ) अक्सर महिलाओं पर ही पड़ता है।जिससे अनेक शारीरिक व मानसिक समस्याएँ जन्म लेती हैं। 

महिला हिंसा के स्वरूप एवं सुरक्षा

  • महिलाओं की सुरक्षा सिर्फ़ डॉक्टर की सुरक्षा से ही संबंधित नहीं है, बल्कि इसमें मनोवैज्ञानिक सुरक्षा भी शामिल है। मनोवैज्ञानिक सुरक्षा का अर्थ मानसिक शांति और आज़ादी से है। 
    • उदाहरण के लिए, 25 वर्षीय स्वतंत्र कामकाजी महिला रिया, जो हर रोज़ रात 9 बजे दफ़्तर से घर लौटती है, उसे डर रहता है कि वापस आते समय उसके साथ कुछ गलत हो सकता है । यह डर उस पर हावी हो जाता है और उसकी मानसिक शांति छीन लेता है।
  • देश भर में महिलाओं को आक्रामक व्यवहार और यौन उत्पीड़न और दहेज से संबंधित मौतों से लेकर बलात्कार और घरेलू हिंसा तक का सामना करना पड़ता है।
  • जबकि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के शारीरिक प्रभाव को राज्य और समाज दोनों द्वारा महिलाओं पर प्रत्यक्ष और स्पष्ट संकेत के रूप में स्वीकार किया जाता है, इसके मनोवैज्ञानिक और व्यवहारिक परिणामों पर काफी कम ध्यान दिया जाता है।
    • इस अनदेखी का अर्थ यह है कि हालांकि हिंसा के भौतिक और स्पष्ट कृत्य तत्काल और प्रत्यक्ष प्रतिक्रियाएं भड़का सकते हैं तथा जनता का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं, लेकिन स्थायी मनोवैज्ञानिक प्रभाव को मापना कठिन है यही कारण है कि अक्सर इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

आत्म सुरक्षा हेतु निरंतर सतर्क रहने से उत्पन्न महिला समस्याएं :

  • राज्य और समाज द्वारा पर्याप्त संरचनात्मक सुरक्षा के अभाव में, अपनी सुरक्षा का दायित्व (बोझ) अक्सर महिलाओं पर ही पड़ता है।
  • परिणामस्वरूप, भारत में महिलाओं को निरंतर सतर्कता और मानसिक तनाव की स्थिति में रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है, सार्वजनिक और निजी स्थानों पर संभावित खतरों के लिए अपने आस-पास के वातावरण का लगातार मूल्यांकन करने से दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: लगातार बढ़ती महिला हिंसा की घटनाओं के कारण निरंतर सतर्कता की यह स्थिति, महिलाओं के मानस में गहराई से समाहित हो चुकी है, जिसे महिलाओं द्वारा छोटी उम्र से ही सीखा और आत्मसात किया जाता है। 
  • करियर व सुरक्षा सम्बन्धी मुद्दे : करियर व सुरक्षा महिलाओं के सामने आने वाली एक बड़ी चुनौती है। देर रात की शिफ्ट और नए शहरों में नौकरी करना दुनिया भर में विकास और अवसरों के लिए गंभीर चुनौतियां पेश करता है।
  • सामाजिक जीवन पर प्रभाव: एक महिला आमतौर पर देर रात तक बाहर जाने या दोस्तों के साथ पार्टियों में जाने से बचती है, नए लोगों से मिलने में झिझकती है, किसी पर आसानी से भरोसा नहीं करती है, जिससे एक महिला की मित्र मंडली का दायरा पुरुषों की तुलना में बहुत छोटा हो जाता है। 
  • आवागमन की स्वतंत्रता: कई बार महिलाएं समाज में मौजूद असामाजिक तत्वों के कारण अकेले यात्रा करने से डरती हैं, जिससे वह आवश्यक कार्यों से भी समझौता कर लेती हैं। 
  • मनोवैज्ञानिक सुरक्षा की अनदेखी : महिलाओं के खिलाफ हिंसा की हर भयावह घटना के बाद विरोध प्रदर्शन किए जाते हैं, मौजूदा सरकार पर भारी दबाव डाला जाता है और कई लेख प्रकाशित किए जाते हैं, लेकिन मनोवैज्ञानिक सुरक्षा के प्रमुख मुद्दे पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता।

महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव से संबंधित शब्द:

  • अंतर्संबंध: जाति, वर्ग और धर्म की सामाजिक श्रेणियां जब एक दूसरे से ओवरलैप होती हैं तो सतर्कता के बोझ को और अधिक जटिल बना देती हैं, जिसे महिलाओं को वहन करना पड़ता है, तथा हाशिए पर रहने वाली महिलाओं को तीव्र भेदभाव और पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है।
    • उनके लिए, खतरे सिर्फ़ लिंग आधारित ही नहीं हैं, बल्कि सामाजिक पदानुक्रम में भी निहित हैं। इसे जाति, वर्ग और धर्म के अंतर्संबंध के रूप में जाना जाता है। 

उदाहरण के लिए, एक दलित महिला को दोहरा भेदभाव झेलना पड़ता है, पहला, वह एक महिला है और दूसरा, वह दलित है।

    • हालांकि विशेषाधिकार प्राप्त जाति और वर्ग की पृष्ठभूमि से संबंधित महिलाओं को अपेक्षाकृत सुरक्षित वातावरण, जैसे कि सुरक्षित समुदाय या सोसाइटी और निजी परिवहन तक पहुंच हो सकती है, फिर भी वह उत्पीड़न और हिंसा से मुक्त नहीं हैं।
    • हालांकि, वंचित समूहों की महिलाओं को अधिक तात्कालिक और व्यापक खतरों का सामना करना पड़ता है। उनके समक्ष सामान्य महिलाओं की तुलना में सुरक्षा संबंधी चिंताओं के समाधान के लिए अक्सर संस्थागत समर्थन का अभाव रहता है।
  • अंतर-पीढ़ीगत प्रभाव: अपनी बेटी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक माँ कई पहलुओं पर संयम रखती है। बाद में, जब बेटी अपने बच्चे को जन्म देती है, तो वह अपनी बचपन की असुरक्षा और आघात को अपनी बेटी को दे देती है और यह चक्र चलता रहता है। इसे अंतर-पीढ़ीगत प्रभाव के रूप में समझा जा सकता है।
  • मानसिक तनाव एक अदृश्य बोझ: अक्सर सुरक्षा चिंताओं के परिणामस्वरूप मानसिक तनाव को शारीरिक हिंसा की तरह व्यापक रूप से संबोधित नहीं किया जाता है। इससे महिला पर एक ऐसा बोझ पैदा होता है जो सभी के लिए अदृश्य होता है।

महिलाओं के निरंतर भय का समाज पर प्रभाव:

  • जब महिलाओं को जिज्ञासा की जगह सुरक्षा को तथा अन्वेषण की जगह सतर्कता को प्राथमिकता देने के लिए मजबूर किया जाता है, तो उन्हें मानवीय अनुभव के पूर्ण स्पेक्ट्रम से वंचित कर दिया जाता है।
  • वर्तमान समय में, दुनिया नवाचर, खोज और विकास का स्थान बनने के बजाय खतरे और असुरक्षा का स्थान बनती जा रही है।
  • इससे न केवल उनके अनुभव सीमित हो जाते हैं, बल्कि समाज को उन योगदानों और नवाचारों से भी वंचित होना पड़ता है जो महिलाओं में क्षमता होने के बावजूद इस निरंतर बोझ से मुक्त होने पर फल-फूल सकते थे।

निष्कर्ष:

आत्म रक्षा हेतु निरंतर सतर्कता से महिलाओं के जीने के तरीके और उनकी इच्छा के बीच भी विसंगति पैदा हो सकती है। सशक्तिकरण प्रयासों के साथ ही साथ अपनी सुरक्षा से जुड़े जोखिमों को कम करने एवं इससे निपटने के लिए महिलाओं को अक्सर अपने व्यवहार को बदलने के लिए मजबूर किया जाता है।

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