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धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत गिरफ्तारी और जमानत संबंधी प्रावधान

Lokesh Pal September 02, 2024 04:02 138 0

संदर्भ

भले ही धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) के तहत गिरफ्तारी और जमानत से संबंधित सख्त प्रावधान हैं, परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक निर्णयों में धन शोधन के आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों पर प्रकाश डाला है।

संबंधित तथ्य

  • विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ (2022) मामले में, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर (सेवानिवृत्त) की अगुआई वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने प्रतिबंधित जमानत शर्तों और प्रवर्तन निदेशालय (ED) को दी गई जाँच और गिरफ्तारी की व्यापक शक्तियों सहित सभी चुनौती दिए गए PMLA प्रावधानों को बरकरार रखा। 
    • हाल ही में इन शक्तियों पर छोटे-छोटे हस्तक्षेपों के माध्यम से सीमा आरोपित की गई है।

 PMLA के तहत गिरफ्तारी के आधार और व्यक्तियों के अधिकार का संरक्षण

  • PMLA की धारा 19, ED को गिरफ्तारी का अधिकार प्रदान करती है, अगर उसके पास मौजूद सामग्री उसे यह विश्वास दिलाती है कि कोई व्यक्ति धन शोधन  का दोषी है। 
  • अभियुक्त को गिरफ्तारी के आधार के बारे में “जितनी जल्दी हो सके” सूचित किया जाना चाहिए। 
  • सर्वोच्च न्यायालय का मत
    • विजय मदनलाल मामले में, न्यायालय ने माना कि ED अभियुक्त को प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट (FIR के समान) की एक प्रति देने के लिए बाध्य नहीं है और केवल उन्हें गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करने के लिए बाध्य है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने पंकज बंसल बनाम भारत संघ (2023) मामले में इस मुद्दे का विस्तार से विश्लेषण किया। 
      • इसने पाया कि कुछ मामलों में आधार मौखिक रूप से बताए गए थे और अन्य में लिखित रूप में। 
      • न्यायालय ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-20 के तहत किसी अभियुक्त को  गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित किया जाना मौलिक अधिकार है। 
      •  गिरफ्तारी के लिखित आधार “स्वाभाविक रूप से और बिना किसी अपवाद के” दिए जाने चाहिए। 
        • इसके बिना  गिरफ्तारी अवैध और अमान्य होगी।

धन शोधन (Money Laundering) क्या है?

  • धन शोधन अधिक मात्रा में धन कमाने की अवैध प्रक्रिया है। यह धन एक आपराधिक गतिविधियों के माध्यम से कमाया जाता है, लेकिन ऐसा प्रतीत हो सकता है कि यह किसी वैध स्रोत से आया है।
  • आपराधिक गतिविधियों में मादक पदार्थों की तस्करी, आतंकवादी फंडिंग, अवैध हथियारों की बिक्री, तस्करी, वेश्यावृत्ति गिरोह, अवैध व्यापार, रिश्वतखोरी और कंप्यूटर धोखाधड़ी शामिल हैं, जो बड़े पैमाने पर लाभ अर्जित करती हैं।

धन शोधन के विरुद्ध वैश्विक पहल

  • वियना कन्वेंशन, 1988 (Vienna Convention, 1988): इस कन्वेंशन को वर्ष 1988 में वियना में आयोजित नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक पदार्थों में अवैध तस्करी के खिलाफ एक कन्वेंशन को अपनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा अपनाया गया था।
    • सभी देशों से नशीली दवाओं से जुड़े अपराधों और अन्य संबंधित गतिविधियों की आय के शोधन को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया गया था।
  • वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force- FATF) की स्थापना
    • वर्ष 1989 में, G7 देशों ने पेरिस में एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया और धन शोधन की समस्या की जाँच करने और इस खतरे से निपटने के उपायों की सिफारिश करने हेतु FATF की स्थापना की।
      • G7 या ‘ग्रुप ऑफ सेवन’ एक अंतरसरकारी राजनीतिक एवं आर्थिक मंच है, जिसमें कनाडा, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
  • राजनीतिक घोषणा और कार्रवाई का वैश्विक कार्यक्रम (Political Declaration and Global Programme of Action)
    • वर्ष 1990 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक संकल्प, राजनीतिक घोषणा और वैश्विक कार्रवाई कार्यक्रम को अपनाया था।
    • इसने सभी सदस्य देशों से नशीली दवाओं के धन के वैधीकरण को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए उपयुक्त कानून बनाने का आह्वान किया।
      • इस संकल्प के अनुसरण में, भारत ने ड्रग संबंधी मनी लॉण्ड्रिंग को रोकने हेतु कानून बनाने के लिए FATF की सिफारिशों का उपयोग किया।
  • संयुक्त राष्ट्र का विशेष सत्र
    • वर्ष 1998 में, संयुक्त राष्ट्र ने ‘वैश्विक स्तर पर नशीली दवाओं की समस्या का मिलकर मुकाबला करना’ (Countering World Drug Problem Together) विषय पर एक विशेष सत्र आयोजित किया और धन शोधन से निपटने की तत्काल आवश्यकता पर एक और घोषणा की।
    • तदनुसार, भारत ने वर्ष 2002 में धन शोधन निवारण अधिनियम अधिनियमित किया, लेकिन इसे वर्ष 2005 में लागू किया गया।
  • पलेर्मो कन्वेंशन, 2000 (Palermo Convention, 2000): दिसंबर 2000 में इटली के पलेर्मो में ‘अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन’ (UN Convention against Transnational Organized Crime) पर हस्ताक्षर के साथ, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने वैश्विक चुनौती का वैश्विक प्रतिक्रिया के साथ जवाब देने की राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया।
    • यदि अपराध सीमाओं को पार करता है, तो कानून प्रवर्तन भी आवश्यक है।


  • विचाराधीन कैदियों के लिए जमानत
    • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 436A के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को उस अपराध के लिए कारावास की अधिकतम अवधि के आधे से अधिक समय तक हिरासत में रखा गया है, जबकि मुकदमा या जाँच चल रही है, तो उसे जमानत पर रिहा किया जाएगा। 
      • विजय मदनलाल मामले में, SC ने कहा कि यह निर्णय PMLA पर भी लागू होगा।
    • 16 मई 2024 को अजय अजीत पीटर केरकर बनाम प्रवर्तन निदेशालय मामले में न्यायालय ने इसकी पुष्टि की। 
      • उल्लेखनीय है कि धारा 436A को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 479 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है, जो संभवतः PMLA मामलों को प्रभावित कर रही है। 
        • उदाहरण के लिए, धारा में एक नई व्याख्या में कहा गया है कि यदि किसी के खिलाफ एक से अधिक अपराध या कई मामले लंबित हैं जो धन शोधन मामलों में सामान्य है तो जमानत संबंधी धारा लागू नहीं होगी।
  • गिरफ्तारी की आवश्यकता और अनिवार्यता
    • 12 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दिल्ली आबकारी नीति मामले में ED की शिकायत के सिलसिले में अंतरिम जमानत दे दी। 
    • केजरीवाल ने तर्क दिया कि PMLA की धारा 19 के तहत उनकी गिरफ्तारी अवैध थी क्योंकि उन्हें गिरफ्तार करने की कोई “आवश्यकता” नहीं थी। 
      • चूँकि धारा 19(1) में प्रावधान है कि ED के पास “यह मानने का कारण” होना चाहिए कि आरोपी “दोषी” है, इसलिए अदालत ने कहा कि ये कारण उच्च सीमा को पूरा करने चाहिए और प्रभावी रूप से “अदालत में स्वीकार्य साक्ष्य” के रूप में होने चाहिए।
    • SC ने यह मुद्दा भी पाँच न्यायाधीशों की पीठ को भेजा कि क्या “गिरफ्तारी की जरूरत और अनिवार्यता” PMLA के तहत गिरफ्तारी  को चुनौती देने का वैध आधार है।
  • ‘दोहरी शर्तों’ में ढील देना
    • 9 अगस्त को दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को दिल्ली आबकारी नीति मामले में जमानत दी गई।
    • पीएमएलए की धारा 45 में जमानत के लिए कठोर “दोहरी शर्तें” दी गई हैं, जिसके तहत आरोपी को यह साबित करना होगा कि उसने पीएमएलए (आपराधिक मामलों में सुबूत के मानक बोझ को उलटना) के तहत कोई अपराध नहीं किया है और जमानत पर रहते हुए उसके कोई अपराध करने की संभावना नहीं है। 
    • हालाँकि पीठ ने कहा कि अगर आरोपी ने लंबे समय तक कारावास में रहा है तो इन शर्तों में “ढील” दी जा सकती है। 
      • दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री को बिना मुकदमा शुरू हुए करीब 17 महीने तक कारावास में रहना पड़ा।
  • महिलाओं के लिए जमानत: अपवाद
    • न्यायालय ने आबकारी नीति मामले में 27 अगस्त को के. कविता को जमानत दे दी।
    • इसने यह भी माना कि कविता को धारा 45 में अपवाद का लाभ मिलेगा, जिसमें कहा गया है कि एक महिला “जमानत पर रिहा हो सकती है, अगर विशेष अदालत ऐसा निर्देश देती है”।
  • ED अधिकारी के समक्ष स्वीकारोक्ति
    • पीएमएलए की धारा 50 ED को “किसी भी व्यक्ति” को बुलाने और जाँच के दौरान उनसे बयान लेने की अनुमति देती है। 
    • विजय मदनलाल मामले में, न्यायालय ने माना कि यह संविधान के अनुच्छेद-20(3) के तहत आत्म-दोष के विरुद्ध अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है।
    • साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 25 (अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 23) के तहत, पुलिस अधिकारियों के समक्ष किए गए स्वीकारोक्ति परीक्षण के दौरान साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं हैं।
  • प्रेम प्रकाश बनाम भारत संघ (2024) मामले में, जस्टिस गवई और विश्वनाथन की पीठ ने एक ऐसे मामले पर विचार किया, जिसमें एक आरोपी ने न्यायिक हिरासत में रहते हुए अपना अपराध स्वीकार कर लिया था। 
    • जस्टिस विश्वनाथन ने तर्क दिया कि हिरासत में लिया गया व्यक्ति “ऐसा व्यक्ति नहीं है, जिसे स्वतंत्र मस्तिष्क से कार्य करने वाला माना जा सके”। 
    • उन्होंने SC के पूर्ण निर्णयों को सही ठहराया, जिसमें कहा गया था कि बलपूर्वक तरीकों से प्राप्त ‘मजबूरन गवाही’ के माध्यम से प्राप्त साक्ष्य आत्म-दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अधिकार का उल्लंघन करेंगे।

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