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भारतीय प्रधानमंत्री की वर्तमान सिंगापुर यात्रा

Lokesh Pal September 04, 2024 02:31 53 0

संदर्भ

वर्तमान में भारतीय प्रधानमंत्री ब्रुनेई और सिंगापुर की तीन दिवसीय यात्रा पर हैं।

संबंधित तथ्य

  • यह स्पष्ट है कि भारत-सिंगापुर संबंध जीवंत हैं और लगातार नई संभावनाओं के द्वार खोल रहे हैं।
  • प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले भारत-सिंगापुर मंत्रिस्तरीय गोलमेज की दूसरी बैठक हुई थी, जिसमें चार वरिष्ठ भारतीय मंत्री अपने समकक्षों से मिलने के लिए सिंगापुर गए थे। 
  • ये द्विपक्षीय संबंधों में खोले जा रहे और मजबूत किए जा रहे इन नए मोर्चे से संबंधित संकेत हैं: 
    • डिजिटलीकरण, कौशल विकास, स्थिरता, स्वास्थ्य सेवा, उन्नत विनिर्माण और कनेक्टिविटी। 
      • इन उच्च-स्तरीय आदान-प्रदानों को अन्य द्वारा पूरक बनाया जाता है – संसदीय संपर्क, उच्च न्यायपालिका के बीच संपर्क आदि।

भारत-सिंगापुर संबंध

भारत और सिंगापुर के बीच घनिष्ठ संबंधों का इतिहास एक सहस्राब्दी से मजबूत वाणिज्यिक, सांस्कृतिक और लोगों के बीच आपसी संबंधों पर आधारित है।

सिंगापुर आसियान देशों में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और वैश्विक दृष्टि से छठा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। यह सुनने में भले ही अविश्वसनीय लगे, लेकिन सिंगापुर भारत के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत भी है।

  • आधुनिक संबंध: इसका श्रेय सर स्टैमफोर्ड रैफल्स को दिया जाता है, जिन्होंने वर्ष 1819 में मलक्का जलडमरूमध्य के मार्ग पर सिंगापुर में एक व्यापारिक स्टेशन स्थापित किया था, जो बाद में एक शाही उपनिवेश बन गया और वर्ष 1867 तक कोलकाता से शासित होता रहा।
    • भारत वर्ष 1965 में सिंगापुर को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था।
  • औपनिवेशिक संबंधों का प्रतिबिंब: संस्थाओं और प्रथाओं में, अंग्रेजी का प्रयोग और एक बड़े भारतीय समुदाय की उपस्थिति।
  • भारत-सिंगापुर संबंधों का आधार: साझा मूल्यों और दृष्टिकोणों, आर्थिक अवसरों और प्रमुख मुद्दों पर हितों के अभिसरण पर।
    • दोनों देशों के बीच 20 से अधिक नियमित द्विपक्षीय तंत्र, संवाद और अभ्यास आयोजित किए गए हैं।
    • दोनों देश पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, जी-20, राष्ट्रमंडल, IORA  (Indian Ocean Rim Association) और IONS (Indian Ocean Naval Symposium) सहित कई मंचों के सदस्य हैं।
  • प्रमुख समझौते
    • व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (2005) और इसकी द्वितीय समीक्षा (2018)
    • दोहरा कराधान बचाव समझौता (1994, प्रोटोकॉल पर 2011 में हस्ताक्षर किए गए)
    • द्विपक्षीय हवाई सेवा समझौता (वर्ष 1968, 2013 में संशोधित)
    • रक्षा सहयोग समझौता (वर्ष 2003, 2015 में उन्नत समझौते पर हस्ताक्षर किए गए)
    • विदेश कार्यालय परामर्श पर समझौता ज्ञापन (1994)
    • पारस्परिक कानूनी सहायता संधि (2005)
    • नर्सिंग पर पारस्परिक मान्यता समझौता (2018) और फिनटेक में सहयोग (2018)
    • संयुक्त सेना प्रशिक्षण और अभ्यास के संचालन के लिए समझौता (वर्ष 2019 में नवीनीकृत)
    • सिंगापुर मौद्रिक प्राधिकरण (MAS) और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (IFSCA) के बीच फिनटेक सहयोग समझौता
    • एक संयुक्त मंत्रिस्तरीय समिति (JMC) है, जिसकी अध्यक्षता सिंगापुर के विदेश मंत्री करते हैं।
    • फरवरी 2023 में, देश की रियल-टाइम रिटेल भुगतान प्रणाली UPI और सिंगापुर में इसके समकक्ष नेटवर्क PayNow को दोनों देशों के नागरिकों के बीच अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी दर पर तीव्र धन प्रेषण सक्षम करने के लिए एकीकृत किया गया था। 
      • UPI QR कोड भूटान, फ्राँस, मॉरीशस, श्रीलंका, नेपाल और UAE जैसे देशों में स्वीकार किया जाता है।
  • सैन्य अभ्यास
    • नौसेना: SIMBEX
    • वायु सेन: SINDEX
    • थल सेना: बोल्ड कुरुक्षेत्र
  • भारत के लिए सिंगापुर का महत्त्व 
    • वर्ष 2023-24 में, सिंगापुर भारत के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का सबसे बड़ा स्रोत था, जिसमें अनुमानित 11.77 बिलियन डॉलर का निवेश हुआ।
    • द्विपक्षीय व्यापार में, सिंगापुर वर्ष 2023-24 में भारत का छठा सबसे बड़ा वैश्विक व्यापार भागीदार था, जिसका कुल व्यापार 35.61 बिलियन डॉलर था।
    • अच्छे अनुकूल वातावरण, उपर्युक्त हवाई संपर्क और बड़ी संख्या में भारतीय समुदाय की उपस्थिति के कारण सिंगापुर कई भारतीय कॉरपोरेट के लिए एक प्रमुख ऑफशोर लॉजिस्टिक और वित्तीय केंद्र के रूप में उभरा है।
      • ऐसा अनुमान है कि सिंगापुर में लगभग 4,000 पंजीकृत ‘भारतीय’ कंपनियाँ हैं।

सिंगापुर के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

सकारात्मक

नकारात्मक

  • व्यापार वृद्धि: आर्थिक संबंधों को मजबूत करने से दोनों देशों के लिए निवेश एवं निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
  • हरित ऊर्जा सहयोग: स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में संयुक्त प्रयासों से पर्यावरणीय लाभ एवं तकनीकी प्रगति हो सकती है।
  • आपूर्ति शृंखला लचीलापन: सिंगापुर के साथ सहयोग भारत की आपूर्ति शृंखला विविधीकरण एवं जोखिम प्रबंधन रणनीतियों को बढ़ा सकता है।
  • रक्षा और सुरक्षा: घनिष्ठ सहयोग आपसी रक्षा हितों एवं क्षेत्रीय स्थिरता को सुनिश्चित करता है।
  • क्षेत्रीय प्रभाव: व्यापक क्षेत्रीय गतिशीलता पर विचार करने से दोनों देशों की आर्थिक वृद्धि एवं स्थिरता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • व्यापार चुनौतियाँ: दोनों देशों को वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधान एवं बाजार में अस्थिरता जैसी आर्थिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिसे दूर करने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता होती है।
  • रक्षा प्राथमिकताएँ: हालाँकि रक्षा सहयोग महत्त्वपूर्ण है, संसाधनों एवं प्राथमिकताओं को संरेखित करना जटिल हो सकता है, जिसके लिए अन्य राष्ट्रीय अनिवार्यताओं के साथ संतुलन की आवश्यकता होती है।
  • सीमित मूर्त परिणाम: व्यापार एवं हरित ऊर्जा पर चर्चा के बावजूद, कोई विशिष्ट समझौते या कदम की घोषणा नहीं की गई।
  • जटिल क्षेत्रीय गतिशीलता: भारत-प्रशांत एवं पश्चिम एशिया क्षेत्रों में मुद्दों को संबोधित करने में जटिल भू-राजनीतिक चुनौतियों से निपटना शामिल है, जो संबंधों में तनाव पैदा कर सकती हैं।

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