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गाद हटाना भारत की जल भंडारण बाधाओं और ग्रामीण जल संकट के समाधान हेतु आवश्यक

Lokesh Pal September 03, 2024 05:30 41 0

संदर्भ:

भारत जलवायु परिवर्तन और गैर-संवहनीय प्रथाओं के कारण लगातार गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। पिछले 25 वर्षों में, भारत के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में 50% से अधिक की वृद्धि हुई है, जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे की आवृत्ति में भी इसी तरह की वृद्धि देखी गयी है। पिछले दशक में, भारतीय राज्यों के प्रत्येक तीसरे जिले ने एक अवधि में चार से अधिक गंभीर सूखे की समस्याओं का अनुभव किया है। भारत की लगभग आधी आबादी वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर है, इसलिए बदलते मौसम पैटर्न के प्रति संवेदनशीलता बढ़ रही है, जो भविष्य में एक बड़े संकट की ओर इशारा करती है। इन जोखिमों को कम करने या इनका समाधान करने के लिए समयपर प्रभावी कार्रवाई करना अनिवार्य है।

जल भंडारण और भूजल पुनःपूर्ति का महत्व

ऐतिहासिक रूप से, मानव सभ्यताएँ जल स्रोतों के पास बसी हैं, जहाँ पानी जन-जीवन के अनेक आवश्यक कार्यों में केंद्रीय भूमिका निभाता है और यहाँ तक कि इसके उपयोग को लेकर संघर्ष और युद्ध भी होते हैं। इसलिए, जल संरक्षण बहुत ज़रूरी है, जिसके लिए दो मुख्य पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है:

  • जल संग्रहण: जिस तरह हम बैंकों में पैसा जमा करते हैं, उसी तरह जल का भंडारण करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री के “बारिश को जहाँ भी गिरे, जब भी गिरे, उसे इकट्ठा करने” के प्रस्ताव ने अमृत सरोवर परियोजना जैसी पहल को जन्म दिया है, जिसका उद्देश्य प्रति जिले 75 तालाबों का निर्माण या पुनरुद्धार करना है, जो देश भर में कुल 50,000 जल निकायों के निर्माण के बराबर है। यह प्रयास जल संसाधनों के प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी को भी प्रोत्साहित करता है।
  • समुदाय-केंद्रित मॉडल: अतीत में, समुदाय अपने स्थानीय जल निकायों के प्रबंधन की जिम्मेदारी लेते थे, जो पूरे वर्ष खासकर गांवों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनमें से कुछ जल निकायों ने भी भूजल को रिचार्ज करने में मदद की है। हालांकि, समय के साथ, समुदाय के नेतृत्व वाली पहल में गिरावट आई है, जिससे संरक्षण और कायाकल्प पहल के लिए सब कुछ सरकार पर छोड़ दिया गया है। दीर्घकालिक स्थिरता प्राप्त करने के लिए समुदाय के नेतृत्व वाली जल प्रबंधन की परंपरा को पुनर्जीवित करना महत्वपूर्ण है।

गाद से भरे जल निकायों को पुनर्जीवित करना

गाद तब बनती है जब भारी बारिश के कारण उपजाऊ मिट्टी का क्षरण होता है और यह जल निकायों में जमा हो जाती है। इससे उनकी भंडारण क्षमता और पानी की गुणवत्ता कम हो जाती है। यह प्रक्रिया न केवल कृषि और व्यक्तिगत उपयोग के लिए पानी की उपलब्धता को कम करती है, बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता को भी खराब करती है, जिससे कृषि उत्पादकता कम होती है। सूखाग्रस्त क्षेत्रों में, गाद के जमने से पानी की कमी बढ़ जाती है, जिससे एक दुष्चक्र बन जाता है जो ग्रामीण आजीविका को कमजोर करता है।

  • जल शक्ति मंत्रालय की जल निकाय गणना: जल शक्ति मंत्रालय की पहली जल निकाय गणना में 2.3 मिलियन से अधिक ग्रामीण जल निकायों की पहचान की गई, जिनमें से अधिकांश निकाय गाद से प्रभावित हैं। बड़े जल निकायों, विशेष रूप से सूखाग्रस्त क्षेत्रों में, से गाद हटाने को प्राथमिकता देकर, अपेक्षाकृत कम लागत पर लाखों लोगों के लिए जल सुरक्षा बढ़ाई जा सकती है।
  • गाद हटाने के लिए सामुदायिक भागीदारी : नदियों और तालाबों जैसे जल निकायों की गाद हटाने में स्थानीय समुदायों को शामिल करना चाहिए, जो जल की कमी से निपटने और कृषि उत्पादकता में सुधार करने के लिए एक व्यावहारिक समाधान प्रदान करता है। गाद हटाने के दौरान निकाली गई उपजाऊ गाद का उपयोग किसान अपने खेतों को उपजाऊ बनाने, फसल की पैदावार बढ़ाने और इन निकायों की जल भंडारण क्षमता को बहाल करने के लिए कर सकते हैं। इस दृष्टिकोण की सफलता के लिए सरकार और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग आवश्यक है, जिसमें सरकार गाद हटाने की प्रक्रिया के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है और उपजाऊ गाद को खेतों तक पहुँचाने में सहायता करती है।
  • सहयोगात्मक जल पुनरोद्धार: रणनीतिक सरकारी योजनाओं, सामुदायिक भागीदारी और उचित वित्तपोषण से संभावित रूप से 200,000 से अधिक जल निकायों को पुनर्जीवित किया जा सकता है, जिससे 300 मिलियन से अधिक नागरिकों को लाभ होने की सम्भावना है। इस दृष्टिकोण के लिए अत्यधिक वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह समुदाय और सरकार के बीच प्रभावी सहयोग पर निर्भर है।
  • नीति आयोग की पहल: छह राज्यों में नीति आयोग के आकांक्षी जिला कार्यक्रम ने गाद निकालने की प्रक्रिया में सामुदायिक भागीदारी की संभावना को उजागर किया है। इस पहल में, सरकार ने जल निकायों से गाद निकालने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की, जबकि किसानों ने परिवहन लागत वहन की। जल सुरक्षा व संरक्षण के लिए समर्पित एक फाउंडेशन ने प्रगति की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र प्रौद्योगिकी मंच तैयार करके, गाद के लिए सामुदायिक मांग उत्पन्न करने के लिए स्थानीय गैर सरकारी संगठनों को धन मुहैया कराकर इस प्रक्रिया का समर्थन किया।
    • केस स्टडी: छतरपुर (मध्य प्रदेश): 

बुंदेलखंड में सूखाग्रस्त छतरपुर जिला समुदाय-केंद्रित जल प्रबंधन के प्रभाव का एक सर्वोत्तम उदाहरण प्रस्तुत करता है। 2022 में, नीति आयोग द्वारा 164 जल निकायों को पुनर्जीवित करने के प्रयासों के परिणामस्वरूप 1.5 मिलियन लीटर पानी का अतिरिक्त भंडारण हुआ, जिससे 182 गांवों के 270,000 लोगों को लाभ हुआ। क्षेत्र के किसानों ने जल स्तर और फसल की पैदावार में उल्लेखनीय सुधार का अनुभव किया। उदाहरण के लिए, एक स्थानीय किसान जिसने अपने एक एकड़ में फैले के खेत में साफ किए गए तालाब से 90 लोड्स गाद का उपयोग किया। इस खेत में उसने टमाटर और मिर्च की बेहतर फसल के साथ अपनी आय दोगुनी देखी। एक किसान की सफलता की यह कहानी पूरे भारत में जल-संकट वाले क्षेत्रों को बदलने के लिए इसी तरह की परियोजनाओं की क्षमता को रेखांकित करती है।

अन्य सफलता की कहानियाँ

        महाराष्ट्र गल मुक्त धारण (Maharashtra’s Gal Mukt Dharan)

        गुजरात सुजलाम जल अभियान (Gujarat’s Sujalam Sufalam Jal Abhiyan)

निष्कर्ष

भारत के बढ़ते जल संकट के समाधान के लिए गाद भरे जल निकायों का पुनरुद्धार एक व्यवहार्य और लागत प्रभावी समाधान है। जल भंडारण को बढ़ाकर, भू-जल को फिर से भरकर और मिट्टी की उर्वरता में सुधार करके, गाद हटाने की पहल जल सुरक्षा सुनिश्चित करने, कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देने और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हालाँकि, इन प्रयासों को स्थायी बनाने के लिए इनका क्रियान्वयन न केवल सरकार द्वारा बल्कि स्थानीय समुदायों द्वारा भी संचालित होना चाहिए। जल की कमी और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम एक टिकाऊ और संपन्न ग्रामीण भारत बनाने के लिए सभी हितधारकों के बीच सहयोगात्मक कार्रवाई आवश्यक है।

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