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जीरो ‘प्रथम सूचना रिपोर्ट’ (FIR)

Lokesh Pal September 04, 2024 05:28 76 0

संदर्भ

हाल ही में गृह मंत्रालय ने केंद्रशासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि स्थानीय भाषाओं में दर्ज जीरो ‘प्रथम सूचना रिपोर्ट’ (FIR)  को यदि उन राज्यों को भेजा जाए, जहाँ अलग-अलग भाषाओं का उपयोग किया जाता है तो उसकी अनुवादित प्रति भी भेजी जाए।

जीरो ‘प्रथम सूचना रिपोर्ट’

FIR शब्द को भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 या किसी अन्य कानून में परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन पुलिस विनियमों या नियमों में, CrPC की धारा 154 के तहत दर्ज की गई जानकारी को FIR के रूप में जाना जाता है।

  • संदर्भित: संज्ञेय अपराधों के मामले में, किसी भी पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज की जा सकती है, चाहे क्षेत्राधिकार या अपराध जिस क्षेत्र में किया गया हो।
    • इसके बाद इसे नियमित FIR के रूप में पुनः पंजीकरण के लिए संबंधित पुलिस स्टेशन को भेज दिया जाता है, जो किसी अन्य राज्य में भी हो सकता है।
  • जीरो FIR की उत्पत्ति: जीरो FIR का प्रावधान न्यायमूर्ति वर्मा समिति की रिपोर्ट की सिफारिश के आधार पर स्थापित किया गया था। 
    • न्यायमूर्ति वर्मा समिति का गठन वर्ष 2012 के निर्भया सामूहिक दुष्कर्म मामले के बाद किया गया था।
  • जीरो FIR का उद्देश्य: पीड़ित को त्वरित निवारण प्रदान करना ताकि FIR दर्ज होने के बाद समय पर कार्रवाई की जा सके।
  • बाध्यता: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के तहत, जिसने CrPC की जगह ली है, पुलिस अब ‘जीरो FIR’ दर्ज करने के लिए बाध्य है।

FIR का अनिवार्य पंजीकरण- ललिता कुमारी मामले में सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश:

  • अनिवार्य पंजीकरण: यदि सूचना से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है और ऐसी स्थिति में कोई प्रारंभिक जाँच स्वीकार्य नहीं है तो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट का पंजीकरण अनिवार्य है।
  • संज्ञेय प्रकृति: यदि प्राप्त सूचना से संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं होता है, लेकिन जाँच की आवश्यकता का संकेत मिलता है, तो केवल यह पता लगाने के लिए प्रारंभिक जाँच की जा सकती है कि संज्ञेय अपराध का खुलासा हुआ है या नहीं।
  • सख्त कार्रवाई: यदि संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है तो पुलिस अधिकारी अपराध दर्ज करने के अपने कर्तव्य से बच नहीं सकता। यदि उन्हें प्राप्त सूचना से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है तो FIR दर्ज न करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की जानी चाहिए।

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