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आय में बढ़ती असमानता की चुनौती

Lokesh Pal September 07, 2024 02:36 53 0

संदर्भ

हाल ही में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के विश्व रोजगार और सामाजिक परिदृश्य अध्ययन (सितंबर 2024) ने श्रमिकों की आय में वैश्विक गिरावट को तकनीकी परिवर्तनों, विशेष रूप से स्वचालन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से जोड़ा है।

ILO अध्ययन पर महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, तकनीकी नवाचारों ने श्रम उत्पादकता एवं उत्पादन को बढ़ाया है, लेकिन श्रम आय में हिस्सेदारी को भी कम कर सकता है।

  • पिछले दो दशकों (2004-24) में वैश्विक श्रम आय में 1.6% की गिरावट आई है।
  • इस गिरावट का लगभग 40% हिस्सा वर्ष 2019- 2022 के महामारी वाले वर्षों में था।
  • अध्ययन में बताया गया है कि, वर्ष 2024 में, विश्व में 28.2% युवा महिलाएँ रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षित नहीं हैं, जो संख्या युवाओं (13.1%) के संदर्भ दोगुनी है।
  • यह लैंगिक असमानता भारत जैसे बड़ी कामकाजी आयु वाली आबादी वाले विकासशील देशों के लिए महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है, जहाँ 83% बेरोजगार युवा हैं।

भारत में आय असमानता की स्थिति

  • वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब (WIL) का निष्कर्ष: वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब (WIL) के हालिया कामकाजी अध्ययन, ‘भारत में आय तथा धन असमानता, वर्ष 1922-2023: अरबपति राज का उदय’ (Income and Wealth Inequality in India, 1922-2023: The Rise of the Billionaire Raj) के अनुसार, वर्ष 2022-23 में भारत की राष्ट्रीय आय का 22.6% शीर्ष 1% आबादी के पास है, जो पिछले 100 वर्षों में सबसे अधिक अनुपात है।
    • धन असमानता के लिए, शीर्ष 1% आबादी की संपत्ति में हिस्सेदारी वर्ष 2022-23 में 40.1% अधिक थी, जो वर्ष 1961 के बाद से इसका उच्चतम स्तर भी है।
    • शीर्ष 10% के बीच संपत्ति का हिस्सा वर्ष 1961 में 45% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 65% हो गया।
  • ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट: ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट (‘सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट: द इंडिया स्टोरी‘) के अनुसार-
    • धन का संकेंद्रण: भारत के 100 सबसे अमीर लोगों की संयुक्त संपत्ति 660 बिलियन डॉलर (54.12 लाख करोड़ रुपये) हो गई है।
    • आर्थिक असमानता: इसमें पाया गया है कि 5 प्रतिशत भारतीयों के पास देश की 60 प्रतिशत से अधिक संपत्ति है। इसकी तुलना में, आबादी के सबसे निचले 50 प्रतिशत लोगों के पास केवल 3 प्रतिशत संपत्ति है।
  • विश्व असमानता प्रयोगशाला के निष्कर्ष: भारत में, राष्ट्रीय आय में शीर्ष 1% का हिस्सा दुनिया में सबसे अधिक है तथा भारत आज एक समाज के रूप में ब्रिटिश शासन की तुलना में अधिक असमान है।
  • SBI रिसर्च रिपोर्ट: SBI रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, हाल के वर्षों में आय असमानता में कमी आई है, जिससे आय में वृद्धि और भारतीय मध्यम वर्ग के उत्थान के माध्यम से ऊपर की ओर प्रवास की प्रवृत्ति को समर्थन मिला है।
    • आयकर आधार प्रत्येक वर्ष बढ़ रहा है और आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या वर्ष  2022-23 में बढ़कर 74 मिलियन हो गई, जो वर्ष 2021-22 में 70 मिलियन थी।
    • वर्ष 2023-24 के लिए 31 दिसंबर, 2023 तक कुल 82 मिलियन आयकर रिटर्न दाखिल किए गए हैं।
    • SBI रिसर्च ने गणना की है कि वर्ष 2014-15 के दौरान गिनी गुणांक 0.472 से घटकर वर्ष 2022-23 के लिए 0.402 हो गया है।
    • 10 करोड़ रुपये से अधिक आय वाले शीर्ष 2.5% करदाताओं की हिस्सेदारी वर्ष 2013-14 में 2.81% से घटकर वर्ष 2020-21 में 2.28% हो गई है।
    • इसी अवधि के दौरान 100 करोड़ रुपये से अधिक आय वाले शीर्ष 1% करदाताओं की हिस्सेदारी 1.64% से घटकर 0.77% हो गई है।

गिनी गुणांक (Gini Coefficient)

  • गिनी गुणांक आय असमानता के सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले उपायों में से एक है।
  • गिनी गुणांक स्कोर 0 और 1 के बीच होता है, जहाँ पूर्ण समानता के परिणामस्वरूप गिनी गुणांक शून्य होगा और पूर्ण असमानता के परिणामस्वरूप 1 होगा।

आय असमानता के बारे में

आय असमानता से तात्पर्य समाज में व्यक्तियों या समूहों के बीच आय के असमान वितरण से है।

  • यह दर्शाता है कि किसी आबादी में आय किस हद तक असमान रूप से वितरित है। आय असमानता विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों, क्षेत्रों, लैंगिक या यहाँ तक कि जातीय समूहों के बीच भी प्रकट हो सकती है।
  • आय असमानता मापना
    • गिनी गुणांक: आय असमानता की एक सामान्य माप जो 0 (पूर्ण समानता) से 1 (अधिकतम असमानता) तक होती है।
    • लारेंज वक्र: यह आय वितरण को ग्राफीय रूप से प्रदर्शित करता है तथा जनसंख्या के संचयी प्रतिशत द्वारा अर्जित कुल आय के अनुपात को दर्शाता है।

भारत में आय असमानता के प्रमुख कारण

  • शिक्षा एवं कौशल: उच्च शिक्षा या विशिष्ट कौशल वाले व्यक्ति कम शिक्षा या कम कौशल वाले व्यक्तियों की तुलना में अधिक कमाते हैं।
    • अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (AISHE) ने वर्ष 2021-22 में दर्शाया कि 18-23 वर्ष आयु वर्ग के लिए उच्च शिक्षा में कुल सकल नामांकन अनुपात (GER) 28.4% था, लेकिन यह सामाजिक-आर्थिक स्थिति के अनुसार काफी भिन्न था। 
    • इंजीनियरिंग शिक्षा तक पहुँच में असमानता: 70% सीटें उच्च आय वाले राज्यों में हैं।
  • तकनीकी परिवर्तन: यद्यपि प्रौद्योगिकी रोजगार के नए अवसर उत्पन्न कर सकती है और उत्पादकता बढ़ा सकती है, लेकिन इससे नौकरियाँ भी समाप्त होती हैं और कौशल अंतर भी बढ़ता है।
    • उच्च-कुशल श्रमिक प्रायः तकनीकी प्रगति से लाभान्वित होते हैं, उन्हें उच्च वेतन मिलता है तथा नौकरी की सुरक्षा मिलती है, जबकि निम्न-कुशल श्रमिकों को नौकरी छूटने या वेतन में स्थिरता का सामना करना पड़ता है।
  • वैश्वीकरण: वैश्वीकरण, अर्थव्यवस्थाओं, संस्कृति, प्रौद्योगिकी और शासन को एकीकृत करके, आय असमानता को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है।
    • वैश्विक आर्थिक एकीकरण कुशल श्रमिकों और पूँजी मालिकों के पक्ष में हो सकता है, जिससे असमानता बढ़ सकती है।
  • सरकारी नीतियाँ: कराधान और सामाजिक कल्याण नीतियाँ आय असमानता को कम या बढ़ा सकती हैं।
    • भारत की केंद्र सरकार अपने कार्यबल के लगभग 8% हिस्से को आयकर के दायरे में लाती है; इसके पास उत्तराधिकार कर नहीं है तथा इसने संपत्ति कर भी समाप्त कर दिया है।
  • ऐतिहासिक कारक: अंग्रेजों और उद्योगपतियों ने केवल उन्हीं क्षेत्रों का विकास किया जिनमें समृद्ध विनिर्माण और व्यापारिक गतिविधियों की भरपूर संभावना थी। उदाहरण के लिए, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई।
  • श्रम बाजार संरचनाएँ: श्रमिक संघों की गिरावट, न्यूनतम मजदूरी कानून और सौदेबाजी की शक्ति मजदूरी वितरण को प्रभावित करती है।
    • श्रम बल असमानता: उत्तरी और मध्य राज्यों में श्रम बल भागीदारी दर और नियमित वेतन वाले श्रमिकों का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से नीचे है।
    • सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आँकड़ों के अनुसार, फरवरी 2022 में भारत में बेरोजगारी 8.1% थी।

भारत में आय असमानता के मुद्दे को हल करने के उपाय

  • प्रगतिशील कराधान: ऐसी कर नीतियों को लागू करना, जो धनी व्यक्तियों से धन को हाशिए पर पड़े समुदायों में पुनर्वितरित करें।
    • कर राजस्व का उपयोग स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल विकास और पर्यावरणीय स्थिरता जैसी सार्वजनिक सेवाओं के लिए करना।
    • निम्न आय वर्ग के लिए रोजगार सृजन और आर्थिक अवसरों को सुविधाजनक बनाने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • शिक्षा और कौशल विकास: सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करना तथा हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए समान अवसरों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • निरंतर कौशल उन्नयन और व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से कमाई की क्षमता में वृद्धि करना।
  • निष्पक्ष श्रम कानून: सुरक्षित कार्य स्थितियों और न्यूनतम मजदूरी विनियमों सहित श्रम अधिकारों को लागू करना।
    • बाल श्रम का उन्मूलन करना तथा श्रमिकों के शोषण के विरुद्ध सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • श्रमिकों को आर्थिक विकास से लाभान्वित करने के लिए सामूहिक सौदेबाजी के अधिकारों को मजबूत करना।
  • बुनियादी ढाँचे में निवेश: टिकाऊ बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश करके क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना।
    • परिवहन और अन्य महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे में समावेशन और स्थिरता सुनिश्चित करना।
  • अति धनी लोगों का योगदान: अरबपतियों तथा धनी लोगों को सार्वजनिक कल्याण के लिए अपनी संपत्ति दान करने के लिए प्रोत्साहित करना।
    • उदाहरण के लिए, बिल गेट्स तथा वॉरेन बफेट द्वारा शुरू की गई ‘गिविंग प्लेज’ जैसी पहल का समर्थन करना।
  • विशेष उत्तराधिकार कर की शुरुआत: यह केवल अति अमीरों और बड़ी संपत्ति हस्तांतरण पर लागू होता है। यह कर भारत में पहले भी कई लोगों द्वारा प्रस्तावित किया गया है। हालाँकि, भारत में विरासत पर फिलहाल कोई टैक्स नहीं लगता है।
    • कई उन्नत देशों में अगली पीढ़ी को धन हस्तांतरित करने से पहले एक विशेष विरासत कर (जापान 55%, दक्षिण कोरिया 50%, फ्राँस 45% और संयुक्त राज्य अमेरिका 40%) लगता है।
  • विकास के गांधीवादी मॉडल का अनुसरण: विकेंद्रीकरण, स्थानीय आवश्यकताओं, स्थानीय प्रतिभा, स्थानीय संसाधनों, स्थानीय उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करने वाला विकास का गांधीवादी मॉडल एक अत्यधिक वैश्वीकृत विश्व में सार्थक है।
    • भारत में 800 जिले हैं, जिनमें अद्वितीय जलवायु, प्राकृतिक संसाधन, क्षमताएँ और प्रतिभा है, जिससे विभिन्न प्रकार की वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए 800 उत्पादन केंद्र बनाए जा सकते हैं।
    • इसका तात्पर्य यह भी है कि आपूर्ति शृंखला, रसद, बाजार और वितरण केंद्र बनाने के लिए नेटवर्क बनाने हेतु 800 डिजिटल प्लेटफॉर्म हैं।

निष्कर्ष

लाखों लोगों को गरीबी और बेरोजगारी से बाहर निकालने के लिए आवश्यक संसाधनों का पता लगाने की आवश्यकता है और ऐसा ऐसे तरीकों से करने की आवश्यकता है, जो उत्पादन तथा दक्षता, गुणवत्ता एवं उपभोग के साथ-साथ समावेशन, स्थिरता, गरिमा और न्याय के माध्यम से मूल्य संवर्द्धन को प्रोत्साहित करें।

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