असम सरकार ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बिप्लब सरमा समिति (Biplab Sarma Committee) की 67 सिफारिशों में से 57 को लागू करने का फैसला किया है।
तात्कालिक कारण: 22 अगस्त, 2024 को मध्य असम के धींग में एक नाबालिग लड़की के साथ कथित सामूहिक दुष्कर्म के बाद बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के मद्देनजर इन सिफारिशों को लागू किया जा रहा है।
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बिप्लब सरमा समिति
नियुक्ति: समिति को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा वर्ष 2019 में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ विरोध के मद्देनजर असम समझौते के खंड 6 को लागू करने के लिए नियुक्त किया गया था।
यह 14 सदस्यीय समिति है, जिसके अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति बिप्लब सरमा हैं।
सिफारिशें: समिति ने कुल 67 सिफारिशें दी हैं:-
असम राज्य सरकार ने अपने दायरे में आने वाली इन सिफारिशों में से 85% (57) को लागू करने का निर्णय लिया है।
67 सिफारिशों में से शेष 10 सिफारिशें केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में हैं और इन्हें केंद्र सरकार के समक्ष उठाया जाएगा।
कार्यान्वयन का रोडमैप
परामर्श प्रक्रिया: 57 सिफारिशों पर अखिल असम छात्र संघ (AASU) और अन्य संगठनों के साथ सहमति बनाने के लिए चर्चा की जाएगी।
छठी अनुसूची क्षेत्रों और बराक घाटी को छोड़कर राज्य में 57 सिफारिशें तुरंत लागू की जाएँगी।
छठी अनुसूची क्षेत्रों सहित: भाषा, संस्कृति और परंपराओं से जुड़ी संवेदनशीलता को ठेस पहुँचाने से बचने के लिए छठी अनुसूची के सभी क्षेत्रों (बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र, दीमा हसाओ स्वायत्त परिषद और कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद) से पूर्व अनुमोदन लिया जाएगा।
भारतीय संविधान की छठी अनुसूची
यह अनुसूची पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों में रहने वाली स्वदेशी जनजातीय आबादी की सांस्कृतिक पहचान और अधिकारों के शासन, प्रशासन तथा संरक्षण के लिए विशेष प्रावधानों को रेखांकित करती है।
विशेषताएँ
जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त जिलों (AD) के रूप में गठित किया गया है। ये एडी राज्य कार्यकारी प्राधिकरण के अंतर्गत आते हैं।
राज्यपाल स्वायत्त जिलों (AD) को संगठित और पुनर्गठित कर सकते हैं। राज्यपाल AD को कई स्वायत्त क्षेत्रों में भी विभाजित कर सकते हैं।
कार्यकाल: प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र में 5 वर्ष के कार्यकाल के लिए 30 सदस्यों की एक जिला परिषद होती है। (26 निर्वाचित + 4 राज्यपाल द्वारा मनोनीत) प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र में एक अलग क्षेत्रीय परिषद होती है।
प्राधिकार: असम के मामले में राज्यपाल केंद्रीय और राज्य दोनों अधिनियमों के लिए प्राधिकारी हैं, जबकि मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के मामले में केंद्रीय अधिनियमों के लिए राष्ट्रपति निर्देश देते हैं और राज्य अधिनियमों के संबंध में राज्यपाल निर्देश देते हैं।
केंद्रीय या राज्य अधिनियम स्वायत्त जिलों और स्वायत्त क्षेत्रों पर लागू नहीं होते हैं या विशिष्ट संशोधनों तथा अपवादों के साथ लागू होते हैं।
राज्यपाल की शक्तियाँ: राज्यपाल स्वायत्त क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित किसी भी मामले की जाँच करने और उस पर रिपोर्ट देने के लिए एक आयोग नियुक्त कर सकते हैं और ऐसे आयोग की सिफारिश पर जिला तथा क्षेत्रीय परिषद को भी भंग कर सकते हैं।
असम समझौते के बारे में
असम समझौता 1985 में अखिल असम छात्र संघ (AASU), अखिल असम गण संग्राम परिषद (AAGSP), केंद्र और राज्य सरकारों के बीच हस्ताक्षरित एक त्रिपक्षीय समझौता है।
कट-ऑफ तिथि
1 जनवरी, 1966: विदेशियों का पता लगाने और उनके नामों को हटाने के उद्देश्य से इसे कट-ऑफ तिथि के रूप में निर्धारित किया गया और कट-ऑफ तिथि से पहले ‘निर्दिष्ट क्षेत्र’ से असम आने वाले सभी व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करने की अनुमति दी गई।
1 जनवरी, 1966 से 24 मार्च, 1971: 1 जनवरी, 1966 से पहले और 24 मार्च, 1971 तक असम में आए सभी व्यक्तियों की पहचान विदेशी विषयक अधिनियम, 1946 और विदेशी विषयक (न्यायाधिकरण) आदेश, 1939 के प्रावधानों के अनुसार की जाएगी।
25 मार्च, 1971 के बाद: 25 मार्च, 1971 को या उसके बाद असम में आए विदेशियों को इन कानून के अनुसार पता लगाया जाएगा, उन्हें निष्कासित किया जाएगा।
असम समझौते का खंड 6: संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक सुरक्षा उपाय
असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषायी पहचान और विरासत की रक्षा, संरक्षण तथा संवर्द्धन के लिए यथासंभव संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक सुरक्षा उपाय प्रदान किए जाएँगे।
असमिया लोगों की परिभाषा: समाज के विभिन्न हितधारक एक साथ आकर “असमिया लोगों” की परिभाषा तैयार करेंगे।
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