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भारत-आसियान संबंध और ‘एक्ट ईस्ट’ नीति पर चर्चा

Lokesh Pal September 09, 2024 05:15 43 0

संदर्भ: 

हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रुनेई और सिंगापुर जैसी उच्च स्तरीय यात्राएँ, पूर्व के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए भारत की नई प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं। इसके अतिरिक्त, वियतनाम और मलेशिया के प्रधानमंत्रियों के लिए लाल कालीन बिछाने के भारत के प्रयास इस प्रतिबद्धता को और अधिक महत्वपूर्ण बनाते हैं। आसियान-भारत शिखर सम्मेलन के लिए लाओस के साथ-साथ फिलीपींस और इंडोनेशिया की आगामी यात्राएँ पूर्व में क्षेत्रीय जुड़ाव को गहरा करने पर भारत के बढ़ते महत्व पर जोर देती हैं।

पृष्ठभूमि:

1990 के दशक की शुरुआत में, यूएसएसआर के 15 स्वतंत्र राज्यों में विघटन के बाद, भारत ने एक पुराना सहयोगी खो दिया और उसे नए दोस्तों और रणनीतिक भागीदारों की तलाश करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस अवधि के दौरान, भारत ने 1990 के दशक की शुरुआत में दक्षिण पूर्व एशिया के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए “लुक ईस्ट” नीति शुरू की।

2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद यह नीति “एक्ट ईस्ट” नीति में बदल गई। इस बदलाव ने पूर्व की ओर देखों की नीति के साथ ही पूर्व की ओर सक्रिय रूप से जुड़ने की दिशा में कदम बढ़ाया।

“एक्ट ईस्ट” नीति एक अधिक सक्रिय दृष्टिकोण पर जोर देती है, जिसमें न केवल आसियान देश शामिल हैं, बल्कि ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे अन्य इंडो-पैसिफिक देशों को भी शामिल करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस नीतिगत बदलाव ने क्षेत्र में भारत की कूटनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक भागीदारी को तेज कर दिया है, जिससे क्षेत्रीय साझेदारी और सहयोग के लिए एक व्यापक और अधिक गतिशील दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला गया है।

नोट: लुक ईस्ट और एक्ट ईस्ट नीति के बीच अंतर:

लुक ईस्ट नीति का ही एक उन्नत संस्करण एक्ट ईस्ट नीति हैं। इसका तात्पर्य यह है कि केवल देखना ही पर्याप्त नहीं है अतः हमको सक्रिय होकर कार्य भी करना है। जिसमें पूर्व के साथ आंतरिक, बाह्य, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक सामरिक व कूटनीतिक संबंधों को प्रगाढ़ करना प्रमुख है। 

ब्रुनेई के साथ संबंध:

  • पहली द्विपक्षीय यात्रा: ब्रुनेई के साथ भारत का जुड़ाव ऐतिहासिक रूप से सीमित रहा है, हाल ही में हुई यात्रा किसी भारतीय प्रधानमंत्री की ब्रुनेई की पहली द्विपक्षीय यात्रा है। यह यात्रा द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण कदम है।
  • ब्रुनेई का सामरिक महत्व: हालांकि ब्रुनेई एक छोटा देश है, लेकिन दक्षिण चीन सागर से इसकी निकटता के कारण इसका सामरिक महत्व है, जहां चीन का प्रभाव बढ़ रहा है। यह ब्रुनेई को भारत के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार बनाता है। इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ ब्रुनेई का गठबंधन इस क्षेत्र में इसके महत्व को और बढ़ाता है।
  • आर्थिक संबंध और व्यापार संबंध: ब्रुनेई तेल और गैस भंडारों में समृद्ध है, और भारत इन संसाधनों का एक महत्वपूर्ण आयातक रहा है। पिछले दशक में, जबकि भारत और आसियान देशों के बीच व्यापार दोगुना हो गया है, ब्रुनेई के साथ व्यापार में कमी आई है। यह गिरावट काफी हद तक 2022 के बाद रूस से भारत के बढ़े हुए तेल और गैस आयात के कारण है, जो कम कीमतों से प्रेरित है।
  • हाल के घटनाक्रम और चर्चाएँ: हालाँकि वर्तमान में भारत और ब्रुनेई के बीच कोई महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदारी नहीं है, लेकिन दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच हाल ही में हुई चर्चाओं में रक्षा और भू-रणनीतिक मुद्दों पर चर्चा हुई है। भारतीय प्रधानमंत्री ने दक्षिण चीन सागर के समुद्री मार्गों में मुक्त नौवहन की वकालत करके चीन की अप्रत्यक्ष या परोक्ष आलोचना की। इसके अतिरिक्त, दोनों देशों ने अंतरिक्ष सहयोग पर चर्चा की, जिसमें ब्रुनेई में संभावित रूप से इसरो स्टेशन की मेजबानी करने पर ध्यान केंद्रित किया गया, साथ ही अन्य संभावित साझेदारियों की खोज की गई।

सिंगापुर के साथ संबंध:

सेमीकंडक्टर उद्योग पर ध्यान केंद्रित करना 

  • सेमीकंडक्टर उद्योग : भारत के प्रधानमंत्री की सिंगापुर यात्रा ने सेमीकंडक्टर उद्योग पर महत्वपूर्ण जोर दिया, वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स आपूर्ति श्रृंखला में सिंगापुर की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया। चूंकि सेमीकंडक्टर की वैश्विक मांग लगातार बढ़ रही है, इसलिए उत्पादों की विस्तृत श्रृंखला में उनका उपयोग तेजी से महत्वपूर्ण होता जा रहा है।
    • संभावित व्यवधान के कारण विविधीकरण: जबकि ताइवान सेमीकंडक्टर का एक प्रमुख उत्पादक बना हुआ है, जिससे भारत वर्तमान में इन उत्पादों का आयात करता है, चीन और ताइवान के बीच चल रहा संघर्ष संभावित जोखिम प्रस्तुत करता है। भारत सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला में संभावित व्यवधानों के बारे में चिंतित है और इसलिए खरीद के लिए अतिरिक्त भागीदारों की तलाश कर रहा है।
    • विनिर्माण क्षमताओं को मजबूत करने के लिए विशेषज्ञता की आवश्यकता: भारत अपनी सेमीकंडक्टर विनिर्माण क्षमताओं को विकसित करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है। हालाँकि, वर्तमान समय में भारत के संदर्भ में इस क्षेत्र में आवश्यक विशेषज्ञता का अभाव है। सिंगापुर का समर्थन भारत को आवश्यक क्षमता निर्माण करने हेतु महत्वपूर्ण हो सकता है। भारत को विशेष रूप से दुर्लभ मृदा तत्व और चिप निर्माण में, अधिक तकनीकी विशेषज्ञता और निवेश की आवश्यकता है।
    • पारस्परिक लाभ: श्रमिकों की कमी का सामना कर रहे तथा बढ़ती श्रम लागत और भूमि संबंधी बाधाओं से जूझ रहे सिंगापुर को भारतीय श्रमिकों तक पहुंच से लाभ हो सकता है।
  • चिंताएँ: 2019 में आसियान के नेतृत्व वाली क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से बाहर निकलने के भारत के फैसले ने एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौते में इसकी भागीदारी को सीमित कर दिया। भारत ने आसियान के अनुरोध पर अपने फैसले पर पुनर्विचार करने से भी इनकार कर दिया है।

भारत के लिए, यह सहयोग ताइवान या चीन जैसे किसी एक देश पर खासकर क्षेत्रीय संघर्षों के संदर्भ में, अपनी निर्भरता को कम करने में मदद करेगा। इसके अतिरिक्त, भारत के सेमीकंडक्टर विनिर्माण क्षेत्र में सिंगापुर का निवेश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में हाल ही में आई गिरावट को कम करने में मदद कर सकता है। यह सहयोग दोनों देशों के लिए रणनीतिक रूप से फायदेमंद हो सकता है।

आगे की राह (भारत-आसियान):

  • 2009 में हस्ताक्षरित भारत-आसियान वस्तु व्यापार समझौते (एआईटीआईजीए) को नवीनीकृत करने की आवश्यकता है।
  • इसी प्रकार, सिंगापुर के साथ 2005 में हस्ताक्षरित व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (सीईसीए) को भी उन्नत करने की आवश्यकता है।
  • यद्यपि भारत-प्रशांत क्षेत्र में सभी महत्वपूर्ण रणनीतिक मुद्दों पर आसियान की केन्द्रीयता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता मजबूत है, तथापि म्यांमार, दक्षिण चीन सागर और आसियान देशों के साथ क्वाड भागीदारी जैसे भू-राजनीतिक और रणनीतिक मुद्दों पर निकट समन्वय आवश्यक है।

उपर्युक्त उपायों पर गंभीरता से विचार करने से भारत के लिए, यह सहयोग विशेषकर क्षेत्रीय संघर्षों के संदर्भ में, ताइवान या चीन जैसे किसी एक देश पर अपनी निर्भरता को कम करने में मदद करेगा। इसके अतिरिक्त, भारत के सेमीकंडक्टर विनिर्माण क्षेत्र में सिंगापुर का निवेश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में हाल ही में आई गिरावट को कम करने में मदद कर सकता है। यह सहयोग दोनों देशों के लिए रणनीतिक रूप से फायदेमंद हो सकता है।

निष्कर्ष:

अतः भारत को अपनी “एक्ट ईस्ट” नीति की पूरी क्षमता का गंभीरता से उपयोग करने के लिए, उसे आसियान देशों के साथ लगातार जुड़ना होगा, व्यापार और निवेश अंतराल को दूर करना होगा, और क्षेत्रीय भू-राजनीतिक मुद्दों को प्रभावी ढंग से हल करना होगा।

 

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न:

प्रश्न: आसियान देशों के साथ अपने संबंधों के संदर्भ में भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के रणनीतिक महत्व का विश्लेषण करें। इस नीति ने क्षेत्र में भारत की भू-राजनीतिक और आर्थिक गतिविधियों को कैसे प्रभावित किया है? 

(15 अंक, 250 शब्द)

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