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भारत में सड़क सुरक्षा की चुनौतियाँ

Lokesh Pal September 11, 2024 02:46 339 0

संदर्भ

हाल ही में IIT दिल्ली द्वारा जारी ‘सड़क सुरक्षा पर भारत स्थिति रिपोर्ट 2024’ में सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने में भारत की धीमी प्रगति पर प्रकाश डाला गया है।

भारत में दुर्घटना निगरानी की आवश्यकता

  • अपर्याप्त राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा डेटा: भारत की राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा डेटा प्रणालियाँ सार्वजनिक नीति का मार्गदर्शन करने के लिए अपर्याप्त हैं।
    • वर्तमान में, कोई नेशनल क्रैश-लेवल (National Crash-Level ) डेटाबेस नहीं है।
  • सड़क सुरक्षा सांख्यिकी का स्रोत: राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर सड़क सुरक्षा डेटाबेस को अलग-अलग पुलिस स्टेशन के रिकॉर्ड से संकलित किया जाता है, जिन्हें प्रकाशित होने से पहले जिला, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर एकत्रित किया जाता है।
    • ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज’ (GBD) सेंटर और सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) के डेटासेट के साथ तुलना करने पर महत्त्वपूर्ण डेटा में अशुद्धियाँ सामने आती हैं, जैसे कि पीड़ित के परिवहन का माध्यम, जिससे प्रभावी सड़क सुरक्षा प्रबंधन सीमित हो जाता है।
  • दुर्घटना निगरानी की अनुपस्थिति का प्रभाव: दुर्घटना निगरानी प्रणाली के अभाव के कारण प्रथम सूचना रिपोर्ट और प्रशासनिक ऑडिट पर निर्भरता बढ़ जाती है, जिससे डेटा विश्लेषण की व्यापकता सीमित हो जाती है और भारत में प्रभावी सड़क सुरक्षा प्रबंधन में बाधा उत्पन्न होती है।

‘सड़क सुरक्षा पर भारत स्थिति रिपोर्ट 2024’ 

  • डेटा स्रोत: यह रिपोर्ट छह राज्यों से प्राप्त प्रथम सूचना रिपोर्टों (FIR) के डेटा और सड़क सुरक्षा प्रशासन पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए राज्यों के अनुपालन के ऑडिट का उपयोग करके भारत में सड़क सुरक्षा का विश्लेषण करती है। 
  • सामान्य पीड़ित और दुर्घटना के लिए जिम्मेदार वाहन: पैदल यात्री, साइकिल चालक तथा दोपहिया वाहन चालक सड़क दुर्घटनाओं के सबसे अधिक शिकार होते हैं।
    • ट्रक घातक दुर्घटनाओं में शामिल प्रमुख वाहन हैं।
  • हेलमेट का प्रयोग: केवल सात राज्यों में 50% से अधिक दोपहिया वाहन चालक हेलमेट का उपयोग करते हैं।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में हेलमेट का प्रयोग विशेष रूप से कम है।
  • ऑडिट कवरेज और बुनियादी ढाँचा: केवल आठ राज्यों ने अपने राष्ट्रीय राजमार्गों के कुछ भाग  का ऑडिट किया है।
  • बुनियादी यातायात सुरक्षा उपायों का अभाव: कई राज्यों में अभी भी बुनियादी यातायात सुरक्षा उपायों, जैसे यातायात नियंत्रण, चिह्नांकन और यातायात संकेतों का अभाव है।
  • संयुक्त राष्ट्र सड़क सुरक्षा लक्ष्यों को पूरा करने में विफलता: अधिकांश भारतीय राज्यों द्वारा वर्ष 2030 तक यातायात से होने वाली मौतों को आधा करने के संयुक्त राष्ट्र सड़क सुरक्षा कार्रवाई दशक के लक्ष्य को पूरा करने की संभावना नहीं है।
    • वर्ष 2021 सड़क यातायात दुर्घटना सांख्यिकी: वर्ष 2021 में भारत में सड़क यातायात दुर्घटना, मृत्यु का 13वाँ प्रमुख कारण थीं।
      • दिव्यांगता-समायोजित जीवन वर्ष (Disability-adjusted Life Years- DALYs) के अनुसार सड़क यातायात दुर्घटना, दिव्यांगता में वृद्धि का 12 वां प्रमुख कारण है।
      • दिव्यांगताता-समायोजित जीवन वर्ष (DALYs) समग्र रोग भार का एक माप है, जिसमें अस्वस्थता, दिव्यांगता या समय से पहले असामयिक मृत्यु शामिल हैं।
  • राज्यवार सड़क सुरक्षा प्रदर्शन: तमिलनाडु, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में मृत्यु दर सबसे अधिक है (क्रमशः 21.9, 19.2 और 17.6 प्रति 1,00,000 व्यक्ति) है ।
    • पश्चिम बंगाल और बिहार में यह दर सबसे कम (प्रति 1,00,000 पर 5.9) है।
    • भारत में होने वाली सभी यातायात दुर्घटनाओं में से लगभग आधी दुर्घटनाएँ छह राज्यों (उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु) में घटित होती हैं।
  • तुलनात्मक सड़क सुरक्षा आँकड़े
    • वर्ष 1990 में, स्वीडन तथा अन्य स्कैंडिनेवियाई देशों जैसे विकसित देशों के व्यक्तियों की तुलना में भारतीयों की सड़क दुर्घटना में मरने की संभावना 40% अधिक थी।
    • वर्ष 2021 तक, यह असमानता बढ़कर 600% हो गई

सड़क दुर्घटना में योगदान देने वाले कारक

  • खराब बुनियादी ढाँचा और दोषपूर्ण सड़क डिजाइन: कई सड़क दुर्घटनाएँ दोषपूर्ण सड़क डिजाइन और इंजीनियरिंग का परिणाम होती हैं।
    • सड़क अवसंरचना का अनुचित रखरखाव भी समस्या को बढ़ाता है।
  • कानून का पालन न करना: यातायात कानूनों की अनदेखी करने से दुर्घटनाओं का खतरा काफी बढ़ जाता है।
  • तेज गति से वाहन चलाना: तेज गति से वाहन चलाना दुर्घटना से संबंधित मौतों और चोटों से जुड़े मुख्य कारणों  में से एक है।
  • बाल सुरक्षा के बारे में जागरूकता की कमी: उदाहरण के लिए, सेवलाइफ फाउंडेशन द्वारा वर्ष 2019 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि सर्वेक्षण में शामिल लगभग 76 प्रतिशत अभिभावक ‘बाल संयम प्रणाली’ (Child Restraint System- CRS) के बारे में अनभिज्ञ थे।
    • जिनको CRS के बारे में जानकारी थी, उनमें से केवल 3.5 प्रतिशत ने ही कभी न कभी बूस्टर सीट सहित इसका उपयोग किया था।
  • असंगत सुरक्षा विनियमन: भारत में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही स्तर के वाहन मौजूद हैं, जिनकी सुरक्षा रेटिंग विकसित देशों की तुलना में लगभग नगण्य है।
    •  भारत में समान प्रकार की चोट से घायल व्यक्ति की मृत्यु की संभावना अमेरिका की तुलना में 16 गुना अधिक है।
  • पर्यावरणीय परिस्थितियाँ: घना कोहरा, तेज हवाएँ, वर्षा क्षेत्र में दुर्घटना दर को प्रभावित कर सकती हैं।
  • अन्य कारक
    • शराब के नशे में गाड़ी चलाना,
    • सड़क के गलत साइड पर गाड़ी चलाना,
    • गाड़ी चलाते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना,
    • उचित  गुणवत्ता वाला हेलमेट न पहनना,
    • सीट बेल्ट न पहनना।

भारत में सड़क दुर्घटनाओं के प्रभाव

  • जनसांख्यिकीय प्रभाव: सड़क यातायात दुर्घटनाओं से होने वाली मृत्यु और दीर्घकालिक दिव्यांगता का सबसे बड़ा हिस्सा 15 से 64 वर्ष की आयु के व्यक्तियों को प्रभावित करता है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सड़क यातायात दुर्घटनाएँ 5-29 वर्ष की आयु के बच्चों और युवा वयस्कों की मृत्यु का प्रमुख कारण हैं।
  • सामाजिक प्रभाव
    • गरीबी चक्र: विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि सड़क दुर्घटनाएँ गरीब परिवारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं, तथा उन्हें गरीबी और कर्ज के चक्र में धकेल देती हैं।
      • सड़क दुर्घटना में मरने वाले प्रत्येक व्यक्ति का औसत सामाजिक-आर्थिक प्रभाव या लागत लगभग 91 लाख रुपये थी तथा वर्ष 2018 के दौरान गंभीर रूप से घायल प्रत्येक पीड़ित के मामले में यह 3.6 लाख रुपये के करीब है।
  • आर्थिक प्रभाव
    • आर्थिक लागत: विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं से भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रतिवर्ष सकल घरेलू उत्पाद के 5 से 7 प्रतिशत के बीच नुकसान होने का अनुमान है।
    • बीमा प्रीमियम: दुर्घटना दर में वृद्धि के कारण बीमा प्रीमियम में वृद्धि होती है, जिससे व्यक्तियों और व्यवसायों के लिए कवरेज की सामर्थ्य पर असर पड़ता है।
  • मानवीय लागत
    • हानि और कष्ट: सड़क दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में जीवन की हानि होती है और गंभीर चोटें आती हैं, जिसके परिणामस्वरूप मानव को काफी कष्ट, स्थायी दिव्यांगता, भावनात्मक आघात और परिवारों तथा समुदायों के लिए संकट उत्पन्न होता है।
  • स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर दबाव
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, सड़क दुर्घटनाएँ एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या हैं, क्योंकि दुर्घटनाओं के कारण प्रति वर्ष 1.25 मिलियन से अधिक लोग मारे जाते हैं तथा लगभग 50 मिलियन लोग घायल होते हैं, जिनमें से 90% दुर्घटनाएँ विकासशील देशों में होती हैं।
    • चिकित्सा एवं पुनर्वास लागत: चिकित्सा उपचार, आपातकालीन देखभाल और पुनर्वास से जुड़ी उच्च लागतें व्यक्तियों और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर महत्त्वपूर्ण वित्तीय बोझ डालती हैं।

भारत में सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए पहल

  • इंजीनियरिंग उपाय: योजना स्तर पर सड़क सुरक्षा को सड़क डिजाइन का एक अभिन्न अंग बनाया गया है।
  • सड़क सुरक्षा ऑडिट: सभी राजमार्ग परियोजनाओं के लिए सड़क सुरक्षा ऑडिट (RSA) को सभी चरणों अर्थात् डिजाइन, निर्माण, संचालन और रखरखाव आदि पर तीसरे पक्ष के लेखा परीक्षकों के माध्यम से अनिवार्य कर दिया गया है।
  • राष्ट्रीय राजमार्गों पर ब्लैक स्पॉट (दुर्घटना संभावित स्थान) की पहचान और सुधार: सड़क सुरक्षा अधिकारी को राष्ट्रीय राजमार्गों पर, ब्लैक स्पॉट सुधार और अन्य सड़क सुरक्षा संबंधी कार्यों की देखभाल के लिए नामित किया गया है।
  • कूच कवच (Kooch Kavach): केंद्र सरकार ने भारत में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को कम करने के लिए एक अभिनव तरीके से स्टील बैरियर के स्थान पर बाँस के क्रैश बैरियर लगाने का प्रस्ताव दिया था।
  • इलेक्ट्रॉनिक विस्तृत दुर्घटना रिपोर्ट (Electronic Detailed Accident Report- e-DAR) परियोजना: यह परियोजना देश भर में सड़क दुर्घटनाओं के आँकड़ों की रिपोर्टिंग, प्रबंधन और विश्लेषण के लिए एक केंद्रीय डेटाबेस स्थापित करने के लिए शुरू की गई है।
  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की अधिसूचना
    • वाहन की आगे की सीट पर बैठे यात्री के लिए एयरबैग का प्रावधान अनिवार्य।
    • चार वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए, जो मोटरसाइकिल चला रहे हों बच्चों के लिए सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिए।
    • सीट बेल्ट रिमाइंडर, सेंट्रल लॉकिंग सिस्टम के लिए मैनुअल ओवरराइड, ओवर स्पीड वार्निंग सिस्टम, एंटी-लॉक ब्रेकिंग सिस्टम आदि जैसी सुरक्षा प्रौद्योगिकियों को अनिवार्य किया गया है।
  • भारत न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (Bharat New Car Assessment Programme – Bharat NCAP): भारत NCAP एक पहल है, जो भारत में 3.5 टन वजन वाले मोटर वाहनों के लिए सुरक्षा मानकों में वृद्धि करती है।
    • यह बाजार में उपलब्ध विभिन्न मोटर वाहनों की दुर्घटना सुरक्षा की तुलना करने के लिए एक उपकरण प्रदान करके उपभोक्ताओं को सशक्त बनाता है और व्यापक परीक्षण परिणामों के आधार पर वयस्क यात्रियों तथा बच्चों की सुरक्षा के लिए स्टार रेटिंग प्रदान करता है।
  • मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019: मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 में यातायात नियमों के उल्लंघन के लिए अनुपालन सुनिश्चित करने और रोकथाम बढ़ाने तथा प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से सख्त प्रवर्तन के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।
  • गुड सेमेरिटन (Good Samaritan): सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने गुड सेमेरिटन की सुरक्षा के लिए नियम प्रकाशित किए हैं, जो दुर्घटना स्थल पर पीड़ितों को सद्भावपूर्वक आपातकालीन सहायता प्रदान करते हैं।

सड़क सुरक्षा से संबंधित वैश्विक पहल

  • सड़क सुरक्षा पर ब्रासीलिया घोषणा (वर्ष 2015): ब्रासीलिया घोषणा, ब्राजील में आयोजित सड़क सुरक्षा पर दूसरे वैश्विक उच्च स्तरीय सम्मेलन में अपनाई गई।
    • भारत ब्रासीलिया घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षरकर्ता देश है।
    • सतत् विकास लक्ष्य 3.6 को प्राप्त करना है अर्थात् वर्ष 2030 तक सड़क यातायात दुर्घटनाओं से होने वाली वैश्विक मौतों और चोटों की संख्या को आधा करना है।
  • सड़क सुरक्षा के लिए कार्रवाई का दशक-2021-2030: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वैश्विक सड़क सुरक्षा में सुधार के लिए एक प्रस्ताव अपनाया, जिसका महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य वर्ष 2030 तक कम-से-कम 50% सड़क यातायात मौतों और चोटों को रोकना है।
  • अंतरराष्ट्रीय सड़क मूल्यांकन कार्यक्रम (International Road Assessment Programme- iRAP): यह एक पंजीकृत चैरिटी संस्था है, जो सुरक्षित सड़कों के माध्यम से जीवन बचाने के लिए समर्पित है।
  • UNITAR की सड़क सुरक्षा पहल: संयुक्त राष्ट्र प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान (UNITAR) का लक्ष्य सरकारों को वैश्विक सड़क सुरक्षा प्रदर्शन लक्ष्यों तक पहुँचने में मदद करना और सड़क सुरक्षा कार्रवाई दशक 2021-2030 के वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ना है।

आगे की राह

  • सड़क सुरक्षा कानूनों को मजबूत बनाना: उभरते जोखिमों से निपटने के लिए विनियमों को अद्यतन करके तथा यातायात उल्लंघनों के लिए कठोर दंड लागू करके सड़क सुरक्षा कानूनों को सख्त बनाया जाना चाहिए।
  • राष्ट्रीय डेटाबेस की स्थापना: डेटा संग्रह और विश्लेषण को बढ़ाने के लिए विशेष रूप से घातक दुर्घटनाओं के लिए एक राष्ट्रीय डेटाबेस विकसित करना।
  • सार्वजनिक पहुँच और समझ को बढ़ाना: विशिष्ट जोखिमों को बेहतर ढंग से समझने और राज्यों द्वारा कार्यान्वित हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए दुर्घटना डेटाबेस तक सार्वजनिक पहुँच सुनिश्चित करना।
  • बुनियादी ढाँचे में सुधार: सुरक्षित क्रॉसिंग, बेहतर साइनेज और पैदल यात्री सुविधाओं को शामिल करने के लिए सड़क डिजाइन को बेहतर बनाने की आवश्यकता है। साथ ही, खतरों को कम करने और दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सड़कों के नियमित रखरखाव और मरम्मत की आवश्यकता है।
  • वाहन सुरक्षा सुनिश्चित करना: उच्च वाहन सुरक्षा मानकों को लागू करने और नियमित निरीक्षण करने तथा एंटी-लॉक ब्रेकिंग और टक्कर से बचाव प्रणालियों सहित उन्नत सुरक्षा प्रौद्योगिकियों को अपनाने को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • अन्य
    • पैदल यात्रियों और साइकिल चालकों के लिए समर्पित लेन और सुरक्षित क्रॉसिंग लागू करके सड़क उपयोगकर्ताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
    • सड़क दुर्घटनाओं के प्रति प्रतिक्रिया में सुधार के लिए ट्रॉमा सेंटरों को मजबूत करना आवश्यक है।
    • दुर्घटनाओं के बाद क्रिटिकल गोल्डन आवर (Critical Golden Hour) के दौरान सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए एंबुलेंस सेवाओं और प्राथमिक चिकित्सा वितरण सेवाओं को बेहतर बनाना।

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