100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनाए गए न्यायिक मूल्यों पर पुनर्विचार

Lokesh Pal September 16, 2024 02:58 58 0

संदर्भ

गणपति पूजा के लिए प्रधानमंत्री की मुख्य न्यायाधीश के निवास पर जाने को लेकर विपक्ष के नेताओं द्वारा आलोचना की गई। 

संबंधित तथ्य

  • यह आलोचना 7 मई, 1997 को सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण बैठक में न्यायिक मूल्यों पर अपनाए गए 16-सूत्रीय दस्तावेज पर आधारित है।  

प्रधानमंत्री के मुख्य न्यायाधीश के आवास पर जाने से संबंधित नैतिक मुद्दे

  • हितों का टकराव: इस तरह के व्यक्तिगत संपर्कों से वास्तविक या कथित हितों का टकराव उत्पन्न हो सकता है, जिससे न्यायाधीश की निष्पक्ष रहने की क्षमता प्रभावित हो सकती है, विशेष रूप से भारत सरकार से जुड़े मामलों में। 
  • संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढाँचे को कमजोर करना: संवैधानिक अधिकारियों द्वारा किसी धार्मिक आयोजन में सार्वजनिक भागीदारी संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का उल्लंघन करती है, जिससे धार्मिक पक्षपात संबंधी चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं। 

  • अनुचितता का आभास: भले ही कोई अनुचितता न हो, लेकिन अनुचितता का आभास जनता के विश्वास को प्रभावित कर सकता है। न्यायाधीश नैतिक रूप से ऐसी स्थितियों से बचने के लिए बाध्य हैं, जो किसी समझदार व्यक्ति को उनकी ईमानदारी पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित कर सकती हैं। 
  • न्यायिक निष्पक्षता: निष्पक्षता बनाए रखना बहुत आवश्यक है। कार्यपालिका के प्रमुख के साथ मेलजोल से न्यायाधीश की निष्पक्षता पर संदेह हो सकता है, जो निष्पक्ष निर्णय के नैतिक मानकों का उल्लंघन करता है। 
  • शक्तियों का पृथक्करण: नैतिक रूप से, न्यायाधीशों को शक्तियों के पृथक्करण के संवैधानिक सिद्धांत को बनाए रखना चाहिए। कार्यपालिका के साथ व्यक्तिगत जुड़ाव न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच स्पष्ट सीमाओं को धुँधला कर सकता है। 
  • जनता का विश्वास: न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अखंडता में जनता का विश्वास बनाए रखना न्यायाधीशों का नैतिक कर्तव्य है। 
  • नैतिक संहिताओं का पालन: न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन न्यायाधीशों को सलाह देता है कि वे अपने पद की गरिमा के अनुरूप एक सीमा तक अलगाव बनाए रखें तथा ऐसे कार्यों से बचें, जो न्यायपालिका के सम्मान को कम कर सकते हों। 
  • पूर्वाग्रह की संभावना: नैतिक मानकों के अनुसार, न्यायाधीशों को ऐसी स्थितियों से बचना चाहिए, जो सचेत या अचेतन पूर्वाग्रह को जन्म दे सकती हैं, ताकि निष्पक्ष और न्यायोचित कानूनी कार्यवाही सुनिश्चित हो सके।

शक्तियों का पृथक्करण सुनिश्चित करने वाले संवैधानिक प्रावधान और न्यायिक उदाहरण

शक्तियों का पृथक्करण एक संगठनात्मक संरचना है, जिसमें जिम्मेदारियाँ, प्राधिकार और शक्तियाँ केंद्रीय रूप से न होकर समूहों (सरकार के भाग) के बीच विभाजित होती हैं। 

  • अनुच्छेद-50 (राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत): यह अनुच्छेद स्पष्ट रूप से न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करने का आदेश देता है तथा लोक प्रशासन के मामलों में न्यायिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है। 

  • अनुच्छेद-13 (न्यायिक समीक्षा): यह न्यायपालिका को कार्यकारी और विधायी शाखाओं के कार्यों की समीक्षा करने का अधिकार देता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे संविधान का अनुपालन करते हैं। यह संवैधानिक उल्लंघनों पर निगरानी रखने वाली संस्था के रूप में न्यायपालिका की भूमिका स्थापित करता है। 
  • न्यायिक समीक्षा का सिद्धांत: न्यायपालिका के पास संविधान के साथ असंगत कानूनों और कार्यकारी कार्यों को रद्द करने की शक्ति है। यह सिद्धांत सुनिश्चित करता है कि न्यायपालिका अन्य भागों पर नियंत्रण के रूप में कार्य करती है। 
  • मूल संरचना सिद्धांत (केशवानंद भारती केस, 1973): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि शक्तियों का पृथक्करण संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है, जिसका अर्थ है कि इसे संशोधनों द्वारा बदला नहीं जा सकता है। 
  • न्यायाधीशों की नियुक्ति: न्यायपालिका कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से अपनी नियुक्तियों में शामिल होती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि न्यायाधीशों के चयन में कार्यपालिका का प्रभाव न्यूनतम हो। 
  • न्यायाधीशों के लिए आचार संहिता (न्यायिक मूल्यों का पुनर्कथन): यह दस्तावेज नैतिक सिद्धांतों को रेखांकित करता है, जिसमें कार्यपालिका से न्यायपालिका के अलगाव की आवश्यकता शामिल है, यह सुनिश्चित करना कि न्यायपालिका धारणा और व्यवहार में स्वतंत्र बनी रहे। 

न्यायिक जीवन के मूल्य

  • निष्पक्षता और धारणा: न्यायाधीशों को ऐसे तरीके से कार्य करना चाहिए, जिससे न्यायिक निष्पक्षता में जनता का विश्वास बना रहे तथा ऐसे किसी भी व्यवहार से बचना चाहिए, जिससे विश्वसनीयता कम हो। 
  • चुनावों से बचना: न्यायाधीशों को कानून से संबंधित मामलों को छोड़कर, क्लबों या सोसायटी में चुनाव नहीं लड़ना चाहिए या निर्वाचित पद धारण नहीं करना चाहिए। 
  • बार एसोसिएशन के साथ सीमित जुड़ाव: न्यायाधीशों को अपने न्यायालयों में अभ्यास करने वाले वकीलों के साथ घनिष्ठ व्यक्तिगत संबंध बनाने से बचना चाहिए। 
  • परिवार द्वारा मामले से अलग होना: न्यायाधीशों को अपने करीबी पारिवारिक सदस्यों, जो वकील हैं, को उनके समक्ष उपस्थित होने या उनके मामलों में शामिल होने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। 
  • व्यावसायिक कार्य के लिए न्यायिक आवास का उपयोग न करना: न्यायाधीशों को अपने परिवार के सदस्यों को व्यावसायिक कानूनी कार्य के लिए अपने आवास का उपयोग करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। 
  • गरिमापूर्ण दूरी बनाए रखना: न्यायाधीशों को अपने पद की गरिमा के अनुरूप उचित स्तर की दूरी बनाए रखनी चाहिए। 
  • परिवार और मित्रों के मामलों से अलग रहना: न्यायाधीशों को करीबी परिवार, मित्रों या निकट संबंधियों से जुड़े मामलों की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। 
  • सार्वजनिक राजनीतिक भागीदारी न करना: न्यायाधीशों को राजनीतिक मामलों या लंबित अथवा संभावित मामलों पर सार्वजनिक रूप से विचार व्यक्त नहीं करना चाहिए। 
  • अपने निर्णयों के माध्यम से व्यक्त करना: न्यायाधीशों को मीडिया साक्षात्कारों से बचना चाहिए तथा अपने निर्णयों के माध्यम से व्यक्त करना चाहिए। 
  • उपहार या आतिथ्य स्वीकार न करना: न्यायाधीशों को करीबी परिवार और मित्रों को छोड़कर, किसी से भी उपहार या आतिथ्य स्वीकार नहीं करना चाहिए।
  • हितों के टकराव का खुलासा: न्यायाधीशों को मामलों में किसी भी वित्तीय हित का खुलासा करना होगा तथा यदि आवश्यक हो तो स्वयं को इससे अलग रखना होगा। 
  • शेयरों में सट्टेबाजी नहीं: न्यायाधीशों को सट्टा आधारित वित्तीय गतिविधियों, जैसे स्टॉक या शेयरों व्यापार से बचना चाहिए।
  • व्यवसाय पर प्रतिबंध: न्यायाधीशों को लेखन या रुचि-संबंधी गतिविधियों को छोड़कर, व्यापार या कारोबार में संलग्न नहीं होना चाहिए। 
  • धन उगाहना निषेध: न्यायाधीशों को धन की माँग नहीं करनी चाहिए या किसी भी धन उगाहने वाली गतिविधि से संबद्ध नहीं होना चाहिए। 
  • वित्तीय लाभों का स्पष्टीकरण: न्यायाधीशों को अपने कार्यालय को स्पष्ट रूप से उपलब्ध वित्तीय लाभों से परे वित्तीय लाभों की माँग नहीं करनी चाहिए। 
  • सार्वजनिक जागरूकता: न्यायाधीशों को हमेशा अपनी सार्वजनिक छवि के प्रति सचेत रहना चाहिए और ऐसे कार्यों से बचना चाहिए, जो उनके पद की प्रतिष्ठा को कम करते हों।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.