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निम्न और उच्च कुशल नौकरियों के बीच बढ़ता अंतर

Lokesh Pal September 17, 2024 12:49 25 0

संदर्भ

सेवा क्षेत्र द्वारा संचालित भारत की आर्थिक वृद्धि, परिधान और जूते जैसे पारंपरिक श्रम-प्रधान उद्योगों में गिरावट के साथ हुई है, जिससे लाखों कम-कुशल श्रमिक प्रभावित हुए हैं।

भारत में रोजगार के वर्तमान आँकड़े

  • विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता: विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता, जो लगभग 14% पर स्थिर बनी हुई है और लक्षित 25% से काफी कम है। इसने उच्च-कुशल और निम्न-कुशल नौकरियों के बीच अंतर को और बढ़ा दिया है।
  • IT क्षेत्र में वृद्धि: IT क्षेत्र में नौकरियों का सृजन हुआ है और विशेष रूप से भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) के उभार के साथ कुशल पेशेवरों के लिए आय में वृद्धि हुई है।
  • विनिर्माण की कमजोरियाँ: भारत का विनिर्माण क्षेत्र, कपड़ा उद्योग में बांग्लादेश, मशीनरी में थाईलैंड और इलेक्ट्रॉनिक्स में वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्द्धियों से पीछे रह गया है, जिससे निम्न-कुशल नौकरियों के सृजन में गिरावट आई है।
  • विविध रोजगार सृजन की आवश्यकता: अर्थशास्त्री इस बात पर जोर देते हैं कि 1.4 बिलियन की आबादी वाला भारत, रोजगार सृजन के लिए केवल सेवा क्षेत्र पर निर्भर नहीं रह सकता। पर्याप्त रोजगार सृजन के लिए सभी क्षेत्रों से योगदान की आवश्यकता है।
  • रोजगार सृजन लक्ष्य: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, भारत को बढ़ते कार्यबल को समायोजित करने के लिए वार्षिक लगभग 7.85 मिलियन गैर-कृषि रोजगार सृजित करने की आवश्यकता है।
  • बढ़ती बेरोजगारी: ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ ने जून 2024 में राष्ट्रीय बेरोजगारी दर में 7% से 9% तक की वृद्धि की सूचना दी।

भारत में कम कुशल और विनिर्माण नौकरियों का महत्त्व 

  • रोजगार सृजन: कम-कुशल, श्रम-गहन विनिर्माण नौकरियाँ बड़े पैमाने पर रोजगार प्रदान करने के लिए आवश्यक हैं, विशेष रूप से कृषि से आने वाले श्रमिकों के लिए।
    • भारत का 46% कार्यबल कम उत्पादकता वाली कृषि में लगा हुआ है, इसलिए विनिर्माण इस श्रम को अधिक उत्पादक क्षेत्रों में समाहित करने का एक अवसर प्रदान करता है।
  • आर्थिक विकास: विनिर्माण क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 15-16% का योगदान देता है और लगभग 27 मिलियन श्रमिकों को रोजगार देता है, जो सतत् आर्थिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है। यह निर्यात को बढ़ावा देकर और वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाकर विकास को गति देता है।
  • समावेशी विकास: IT सेवाओं के विपरीत, जो मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों और शिक्षित वर्ग को लाभ पहुँचाती हैं, विनिर्माण विभिन्न क्षेत्रों और सामाजिक स्तरों पर रोजगार उत्पन्न कर सकता है। इससे क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने और अधिक संतुलित, समावेशी विकास को बढ़ावा देने में मदद मिलती है।
  • निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता: कम-कौशल समायोजन करने वाला विनिर्माण क्षेत्र भारत की वैश्विक व्यापार स्थिति को बेहतर बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण है। विशेषकर चीन+1 रणनीति (China+1 Strategy) के तहत कपड़ा, चमड़ा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे निर्यात-संचालित उद्योगों पर ध्यान केंद्रित करके, भारत वैश्विक बाजारों का बड़ा हिस्सा हासिल कर सकता है।
  • औद्योगिक लचीलापन: दक्षिण कोरिया और वियतनाम जैसे देशों ने दिखाया है कि कम-कुशल, श्रम-गहन विनिर्माण तेजी से आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।

निम्न और उच्च कौशल वाली नौकरियों के बीच बढ़ते अंतर के कारण

  • श्रम प्रधान नौकरियों में गिरावट
    • निर्यात संरचना में बदलाव: भारत का निर्यात बास्केट तेजी से सेवाओं और उच्च-कौशल विनिर्माण की ओर स्थानांतरित हो गया है, ये ऐसे क्षेत्र हैं, जो कम-कुशल कार्यबल के बड़े हिस्से को अवशोषित करने में कम सक्षम हैं। इस बदलाव ने व्यापार की रोजगार सृजन क्षमता को कम कर दिया है।
    • निर्यात-संबंधित रोजगार में गिरावट: निर्यात-संबंधित नौकरियाँ वर्ष 2012 में 9.5% से घटकर वर्ष 2020 में 6.5% हो गई हैं, जो भारत के माल निर्यात से जुड़ी नौकरियों में कमी को दर्शाता है, जो काफी हद तक श्रम-प्रधान हैं।
    • माल/वस्तु निर्यात में कमी: भारत का माल/वस्तु निर्यात वैश्विक बाजार का केवल 1.8% है, जबकि इसके मजबूत सेवा निर्यात (वैश्विक बाजार का 4.3%) के विपरीत, कपड़ा और परिधान जैसे श्रम-प्रधान विनिर्माण क्षेत्रों में कम नौकरियाँ हैं।
    •  कम-कौशल वाले विनिर्माण क्षेत्र के अवसर का उपयोग करने में भारत की विफलता: वर्ष 2015 और 2022 के बीच कम-कौशल वाले विनिर्माण क्षेत्र से चीन के बाहर निकलने के बावजूद, भारत इस अवसर का उपयोग करने में विफल रहा है।
      • इसके बजाय बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों ने परिधान, चमड़ा और वस्त्र जैसे क्षेत्रों में चीन की कम होती बाजार हिस्सेदारी का लाभ उठाया है।
    • कौशल अंतर में वृद्धि: भारत के श्रम बल में कौशल अंतर बढ़ रहा है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जो श्रम-गहन नौकरियों से लाभान्वित हो सकते हैं। 
  • उच्च-कुशल रोजगार की ओर बदलाव
    • वैश्विक क्षमता केंद्रों (Global Capability Centres- GCCs) का उदय: बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ डेटा एनालिटिक्स, सॉफ्टवेयर विकास और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन जैसे उन्नत कार्यों के लिए भारत में तेजी से GCCs स्थापित कर रही हैं।
      • IT में उच्च-कुशल नौकरियों की ओर तथा पारंपरिक श्रम-प्रधान क्षेत्रों से दूर जाने के कारण, निम्न-कुशल श्रमिकों के लिए नौकरियों में कमी आई है।
    • श्रम-प्रधान विनिर्माण में मंदी: कपड़ा, परिधान और उपभोक्ता वस्तुओं जैसे पारंपरिक श्रम-प्रधान क्षेत्रों में मंदी देखी गई है, क्योंकि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उन्नत, उच्च-कौशल वाली भूमिकाओं पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
    • आईटी सेवाओं का विकास: बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (Business Process Outsourcing- BPO) से IT सेवाओं और अब उन्नत GCC में संक्रमण ने रोजगार में संरचनात्मक बदलाव किया है, जिसमें कुशल आईटी इंजीनियरों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है और कम कुशल विनिर्माण नौकरियों पर कम।
    • IT क्षेत्र में भर्ती में कमी: GCC के विकास के बावजूद, IT सेवा क्षेत्र में हाल ही में भर्ती में उल्लेखनीय कमी देखी गई है, TCS, इन्फोसिस और विप्रो जैसी प्रमुख कंपनियों ने वर्ष 2023 की तुलना में 2024 में सामूहिक रूप से 61,000 से अधिक नौकरियों में कटौती की है, जिससे कुशल और अर्द्ध-कुशल दोनों भूमिकाओं में नौकरी के विकास के अवसर सीमित हो गए हैं।

वैश्विक मूल्य शृंखला (GVCs) में कई देशों में उत्पादन प्रक्रियाओं का विभाजन शामिल है, जिससे प्रत्येक देश को विशिष्ट कार्यों में विशेषज्ञता हासिल करने की अनुमति मिलती है। इससे दक्षता, उत्पादकता और नए बाजारों तक पहुँच बढ़ती है।

  • वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में घटती भागीदारी
    • वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVCs) में कम भागीदारी: वैश्विक व्यापार का लगभग 70% GVC से संबंधित है, लेकिन इन शृंखलाओं में भारत के घटते एकीकरण ने व्यापार से संबंधित पर्याप्त रोजगार उत्पन्न करने की इसकी क्षमता को कम कर दिया है, विशेषकर श्रम-प्रधान क्षेत्रों में।
    • GDP के हिस्से के रूप में घटता व्यापार: तीव्र आर्थिक विकास के बावजूद, पिछले पाँच वर्षों में GDP के प्रतिशत के रूप में भारत का वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार कम हुआ है, जिससे निर्यात के माध्यम से रोजगार सृजन की संभावना सीमित हो गई है।
    • निर्यात प्रदर्शन में चुनौतियाँ: GVC से जुड़े भारतीय निर्यातक बेहतर प्रदर्शन करते हैं, लेकिन कई को कच्चे माल की खरीद में कठिनाइयों और उच्च परिवहन लागत जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में प्रतिस्पर्द्धा कम हो जाती है।
    • बढ़ते टैरिफ: भारत का औसत टैरिफ वर्ष 2014 में 13% से बढ़कर 2022 में 18.1% हो गया, जिससे वियतनाम, थाईलैंड और मैक्सिको जैसे देशों की तुलना में भारतीय निर्यात कम प्रतिस्पर्द्धी हो गया, जिससे वैश्विक व्यापार पर निर्भर क्षेत्रों में रोजगार वृद्धि में और कमी आई।
  • आवश्यक इनपुट सामग्रियों पर उच्च टैरिफ
    • उच्च आयात शुल्क: मध्यवर्ती इनपुट पर उच्च आयात शुल्क ने उत्पादन लागत में वृद्धि की है, जिससे भारतीय उत्पाद वैश्विक बाजारों में कम प्रतिेस्पर्द्धी हो गए हैं, जिससे श्रम-गहन रोजगार सृजन में कमी आई है।
    • शुल्क कटौती को वापस लेना: भारत ने 1990 के दशक की शुरुआत में शुरू की गई शुल्क कटौती को वापस ले लिया है, जिसके तहत वर्ष 2022 में सबसे पसंदीदा राष्ट्र का औसत शुल्क 18.1% तक बढ़ गया है, जबकि वर्ष 2016 में यह 13.4% था।
      • इससे भारतीय सामान अन्य देशों की तुलना में अधिक महंगे हो गए हैं, जिससे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में विकास सीमित हो गया है।
    • वैश्विक व्यापार बाधाएँ: टैरिफ तथा गैर-टैरिफ बाधाएँ भारत की वैश्विक व्यापार भागीदारी में तेजी से बाधा डाल रही हैं, जिससे उन उद्योगों में अवसर कम हो रहे हैं, जो उत्पादन के लिए लागत-कुशल आयात पर निर्भर हैं।
    • हालिया टैरिफ कटौतियों का सीमित प्रभाव: यद्यपि वित्त वर्ष 2025 के केंद्रीय बजट में कई वस्तुओं पर टैरिफ कटौती की गई, लेकिन ये कटौतियाँ इतनी व्यापक नहीं हैं कि श्रम-प्रधान उद्योगों में उत्पादन लागत में उल्लेखनीय कमी ला सकें।

आगे की राह

  • संतुलित क्षेत्रीय विकास: विनिर्माण क्षेत्र, विशेष रूप से कपड़ा और जूते जैसे श्रम-प्रधान उद्योगों को पुनर्जीवित करने पर ध्यान केंद्रित करना, जबकि सेवा क्षेत्र में विकास को बनाए रखना।
  • विनिर्माण को बढ़ावा देना: भारत को विनिर्माण क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए, विशेष रूप से कपड़ा, परिधान और जूते जैसे श्रम-गहन उद्योगों में, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से लाखों कम-कुशल श्रमिकों को रोजगार प्रदान किया है।
    • विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचे के निर्माण तथा अधिक रोजगार सृजन के लिए प्रधानमंत्री मित्र पार्क (PM MITRA Parks) तथा औद्योगिक रूप से स्मार्ट शहरों जैसी पहलों को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
    • विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकारी योजनाएँ
      • मेक इन इंडिया (Make in India)
      • उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (Production-Linked Incentive- PLI) योजना
      • राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (National Manufacturing Policy- NMP)
      • आत्मनिर्भर भारत (Atma Nirbhar Bharat)
  • वैश्विक मूल्य शृंखला (Global Value Chain- GVC) भागीदारी को मजबूत करना: भारत को टैरिफ कम करके और व्यापार प्रक्रियाओं को सरल बनाकर वैश्विक मूल्य शृंखला (GVC) में अपनी भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है।
    • इससे निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलेगा, विशेष रूप से श्रम-प्रधान क्षेत्रों में तथा व्यापार के माध्यम से रोजगार सृजन में वृद्धि होगी।
  • टैरिफ सुधार: विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने और उत्पादन लागत को कम करने के लिए, सभी क्षेत्रों, विशेषकर इनपुट सामग्रियों पर टैरिफ को कम करना जारी रखें।
  • निर्यात वृद्धि को बढ़ावा देना: उच्च कौशल विनिर्माण तथा वस्त्र एवं चमड़ा जैसे पारंपरिक क्षेत्रों को समर्थन देकर निर्यात क्षेत्र में विविधीकरण को प्रोत्साहित करना, जिसका लक्ष्य संतुलित रोजगार सृजन करना है।
  • रोजगार सृजन के लिए GCC का लाभ उठाएँ: जबकि वैश्विक क्षमता केंद्रों (Global Capability Centres- GCC) ने उच्च-कुशल नौकरियाँ उत्पन्न की हैं, भारत को GCC के विकास को स्थानीय विनिर्माण आवश्यकताओं के साथ संरेखित करने के तरीके तलाशने चाहिए। इससे यह सुनिश्चित हो सकता है कि ​वे कम कुशल रोजगार सहित व्यापक रोजगार सृजन में योगदान देते हैं।
  • नीतिगत सरलीकरण: व्यापार प्रक्रियाओं को सरल बनाने और भारत को वैश्विक बाजारों में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिए मौलिक परिवर्तन लागू करना।
  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भागीदारी को बढ़ावा देना: वैश्विक व्यापार प्रथाओं के साथ तालमेल बिठाते हुए, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में एकीकरण बढ़ाकर व्यापार से संबंधित नौकरियों में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना।

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