लोकपाल ने एक आदेश के तहत लोक सेवकों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार संबंधी अपराधों की प्रारंभिक जाँच के लिए एक जाँच शाखा का गठन किया है।
अधिसूचना के मुख्य निष्कर्ष
कानूनी प्रावधान: लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 की धारा 11 में निर्दिष्ट लोक सेवकों और पदाधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दंडनीय किसी भी अपराध की प्रारंभिक जाँच करने के लिए एक जाँच शाखा के गठन का आदेश दिया गया है।
संरचना: स्टाफिंग पैटर्न के लिए एक “संगठन” को मंजूरी दी गई है। यह जाँच शाखा के लिए आवश्यक उपयुक्त अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या निर्दिष्ट करता है।
जाँच निदेशक: यह लोकपाल अध्यक्ष के अधीन कार्य करेगा।
सहायक: निदेशक को तीन पुलिस अधीक्षकों द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी।
SP (सामान्य), SP (आर्थिक और बैंकिंग) और SP (साइबर)।
प्रत्येक SP को जाँच अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी।
लोकपाल
स्थापना: लोकपाल संस्था (संवैधानिक लोकपाल) एक वैधानिक निकाय है, जिसकी स्थापना लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 द्वारा की गई थी।
लोकपाल संस्था विधायिका के प्रति प्रशासनिक जवाबदेही के सिद्धांत पर आधारित है।
पृष्ठभूमि: लोकपाल संस्था की शुरुआत अन्ना हजारे के नेतृत्व में ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन मूवमेंट’ से हुई थी।
हालाँकि लोकपाल और लोकायुक्त शब्द सबसे पहले डॉ. एल.एम. सिंघवी द्वारा गढ़े गए थे।
पहला लोकपाल: सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य श्री पिनाकी चंद्र घोष भारत के पहले भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल थे।
नियुक्ति प्रक्रिया
लोकपाल के सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा चयन समिति की सिफारिश पर की जाती है।
चयन समिति: इसमें प्रधानमंत्री, जो इसके अध्यक्ष हैं, लोकसभा अध्यक्ष, विपक्षी दल के नेता या भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं।
संरचना: लोकपाल एक बहु-सदस्यीय निकाय है, जिसमें एक अध्यक्ष और अधिकतम 8 सदस्य (1+8) होते हैं।
अध्यक्ष: वह या तो भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश होना चाहिए अथवा,
भ्रष्टाचार विरोधी नीति, लोक प्रशासन, सतर्कता, बीमा और बैंकिंग सहित वित्त, कानून और प्रबंधन से संबंधित मामलों में न्यूनतम 25 वर्षों का विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता रखने वाला एक प्रतिष्ठित व्यक्ति होना चाहिए।
सदस्य: अधिकतम 8 सदस्यों में से आधे न्यायिक सदस्य होंगे और न्यूनतम 50% सदस्य अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक और महिलाएँ होंगी।
न्यायिक सदस्य: वह या तो सर्वोच्च न्यायालय का भूतपूर्व न्यायाधीश होना चाहिए अथवा उच्च न्यायालय का भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए।
गैर-न्यायिक सदस्य: चार गैर-न्यायिक सदस्य होते हैं, जो निष्ठावान और योग्य होते हैं, तथा भ्रष्टाचार विरोधी, लोक प्रशासन, वित्त, कानून और प्रबंधन में कम-से-कम 25 वर्ष का अनुभव रखते हैं।
कार्यकाल: लोकपाल अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक होता है।
अधिकार क्षेत्र: इसमें प्रधानमंत्री, मंत्री, संसद के सदस्य, समूह A, B, C और D के अधिकारी और केंद्र सरकार के अधिकारी शामिल हैं।
प्रधानमंत्री के लिए अपवाद: अंतरराष्ट्रीय संबंधों, सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से संबंधित भ्रष्टाचार के आरोपों को छोड़कर प्रधानमंत्री लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में हैं।
प्रधानमंत्री के खिलाफ शिकायतों की जाँच तब तक नहीं की जाएगी जब तक कि लोकपाल की पूरी पीठ जाँच शुरू करने पर विचार न कर ले और कम-से-कम 2/3 सदस्य इसकी मंजूरी न दे दें।
शक्तियाँ और कार्य
प्रारंभिक जाँच: यदि कोई शिकायत भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत किसी लोक सेवक के खिलाफ अपराध से संबंधित है, तो लोकपाल अपनी जाँच शाखा द्वारा प्रारंभिक जाँच का आदेश दे सकता है या इसे CBI और CVC (केंद्र सरकार के कर्मचारियों से संबंधित शिकायतें) जैसी अन्य एजेंसी को जाँच के लिए भेज सकता है।
लोकपाल को यह निर्धारित करना होगा कि क्या प्रथम दृष्टया मामला मौजूद है।
समय आधारित जाँच: जाँच शाखा या किसी अन्य एजेंसी को अपनी प्रारंभिक जाँच पूरी करनी होगी और 60 दिनों के भीतर लोकपाल को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
प्रारंभिक जाँच के उद्देश्य से ये शक्तियाँ सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत आती हैं।
प्रारंभिक जाँच रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद लोकपाल पूरी जाँच का आदेश दे सकता है या विभागीय कार्यवाही शुरू करने अथवा कार्यवाही बंद करने का निर्देश दे सकता है।
अभियोजन शाखा: कम-से-कम तीन सदस्यों की एक पीठ रिपोर्ट पर विचार करेगी और एजेंसी के आरोप-पत्र के आधार पर लोक सेवक के खिलाफ आगे की प्रक्रिया के लिए अभियोजन शाखा को मंजूरी दे सकती है।
तलाशी, जब्ती और कुर्की की शक्तियाँ: लोकपाल को तलाशी और जब्ती तथा संपत्तियों की कुर्की करने एवं भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए अन्य कदम उठाने की शक्ति प्राप्त है।
अधीक्षण: लोकपाल को सीबीआई सहित किसी भी केंद्रीय जाँच एजेंसी पर अधीक्षण और निर्देश देने की शक्ति होगी, जो लोकपाल द्वारा उन्हें भेजे गए मामलों के लिए होगी।
लोकपाल के कामकाज में चुनौतियाँ
लोकपाल अधिनियम के तहत लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अभियोजन विंग का गठन किया जाना है, जिसका नेतृत्व “अभियोजन निदेशक” करेंगे।
रिक्तियाँ: लोकपाल में दो सदस्यों का पद रिक्त है, जिनमें से एक न्यायिक और एक गैर-न्यायिक है। जाँच निदेशक और अभियोजन निदेशक जैसे महत्त्वपूर्ण पद रिक्त हैं।
जाँच: जुलाई 2024 तक भ्रष्टाचार से संबंधित 82 शिकायतें थीं, जिनमें से केवल 32 का निपटारा किया गया और 52 लंबित थीं।
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