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Lokesh Pal September 17, 2024 05:30 26 0
हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार अमेरिका में आर्थिक मंदी आने की संभावना है, जिसके वैश्विक अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से भारत, जो अमेरिका के प्रमुख व्यापारिक भागीदारों में से एक है, पर महत्त्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं। दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं का परस्पर जुड़ाव संभावित चुनौतियों का आकलन करने तथा किसी भी नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए भारत को तैयार करने के महत्त्व को उजागर करता है।
न्यूयॉर्क फेडरल रिज़र्व के अनुसार, 62% संभावना है कि अगले 12 महीनों में अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी में प्रवेश कर जाएगी, जो बढ़ते कर्ज, मुद्रास्फीति के दबाव और धीमे आर्थिक संकेतकों के कारण होगी।
मंदी को सामान्यतः नकारात्मक जीडीपी वृद्धि की दो लगातार तिमाहियों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो आर्थिक मंदी का संकेत है | अमेरिका विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, इसलिए यदि यह मंदी में चला जाता है, तो इसका प्रभाव वैश्विक स्तर पर महसूस किया जा सकता है।
जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी में प्रवेश करती है, तो इसका प्रभाव भारत सहित वैश्विक वित्तीय बाजारों पर पड़ता है। आमतौर पर, ऐसे समय में निवेशक जोखिम से बचने लगते हैं और सुरक्षित निवेश विकल्पों की तलाश करते हैं। इससे निम्नलिखित परिणाम सामने आ सकते हैं :
भारत की अर्थव्यवस्था कई कारकों के कारण सकारात्मक व्यवहार प्रदर्शित करती है, जिससे उसे वैश्विक मंदी जैसी समस्याओं का सामना करने में मदद मिलती है, जैसा कि वर्ष 2008 की मंदी के दौरान स्पष्ट हुआ था। कुछ प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं :
2008 के वित्तीय संकट के अनुभवों से यह स्पष्ट है कि एक और वैश्विक मंदी के संभावित प्रभावों को कम करने के लिए सक्रिय उपाय आवश्यक हैं। सरकार को अर्थव्यवस्था की सुरक्षा के लिए पहले से तैयारी करते हुए एक पूर्व-निवारक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इसमें वित्तीय विनियमन को मजबूत करना, कमजोर क्षेत्रों का समर्थन करना तथा बाह्य समस्याओं से बचने के लिए घरेलू खपत को बढ़ाना इत्यादि शामिल हैं । इन कदमों को अपनाकर, भारत भविष्य की आर्थिक चुनौतियों से निपटने हेतु बेहतर स्थिति प्राप्त कर सकता है।
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