भारत के एथलीट के दल ने पेरिस पैरालिंपिक्स में 7 स्वर्ण, 9 रजत और 13 कांस्य पदक सहित 29 पदक जीतकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया।
भारतीय महिला पैरा-एथलीटों ने आठ वर्षों में तीन पैरालिंपिक खेलों में अपनी पदक संख्या 1 से बढ़ाकर 11 तक पहुँचाकर महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
पेरिस पैरालिंपिक्स (Paris Paralympics) के बारे में
भारतीय भागीदारी: टोक्यो 2020 में केवल नौ की तुलना में रिकॉर्ड 84 पैरा-एथलीटों ने 12 खेलों में प्रतिस्पर्द्धा करते हुए भारत का प्रतिनिधित्व किया।
भारत ने पेरिस में तीन खेलों में भी पदार्पण किया: पैरा साइक्लिंग (Para Cycling), पैरा रोइंग (Para Rowing) और ब्लाइंड जूडो (Blind Judo)।
भारत का प्रदर्शन: भारत ने 29 पदक जीते, जिससे पैरालंपिक खेलों के इतिहास में कुल 50 पदकों का आँकड़ा पार हो गया।
भारत 18वें स्थान पर रहा।
शीर्ष पदक विजेता
प्रतियोगिता के अंतिम दिन सभी स्पर्द्धाएँ पूरी होने के बाद, चीन 94 स्वर्ण सहित 220 पदकों के साथ पैरालिंपिक पदक तालिका में शीर्ष पर रहा।
पैरालिंपिक्स (Paralympics) के बारे में
पैरालिंपिक्स दिव्यांग एथलीटों के लिए सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय आयोजन है और यह ओलंपिक खेलों के तुरंत बाद आयोजित किया जाता है।
यह दिव्यांग एथलीटों के लिए ओलंपिक शैली का खेल है, जिसका आयोजन पहली बार वर्ष 1960 में रोम में किया गया था।
इसकी देखरेख अंतरराष्ट्रीय पैरालंपिक समिति (International Paralympic Committee-IPC) द्वारा की जाती है, जो IOC द्वारा मान्यता प्राप्त निकाय है।
पैरालिंपिक खेलों का महत्त्व
समानता और समावेशन: पैरालिंपिक दिव्यांग एथलीटों के समावेशन को बढ़ावा देते हैं, सामाजिक बाधाओं को चुनौती देते हैं और वैश्विक मंच पर अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करके समानता को बढ़ावा देते हैं।
दूसरों को प्रेरित करना: पैरालिंपिक एथलीटों की कहानियाँ प्रतिकूल परिस्थितियों पर नियंत्रण पाने, दृढ़ता और दृढ़ संकल्प की कहानियाँ हैं। ये एथलीट न केवल दिव्यांग लोगों के लिए बल्कि अपने जीवन में चुनौतियों का सामना करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए रोल मॉडल के रूप में कार्य करते हैं।
मानवीय गरिमा का सम्मान: एथलीट अपनी उपलब्धियों के लिए दया नहीं बल्कि मान्यता चाहते हैं, दर्शकों से आग्रह करते हैं कि वे उनके दृढ़ संकल्प और कौशल के लिए कृपालुता के बजाय प्रशंसा के साथ प्रतिक्रिया दें।
सहयोग के साथ आगे बढ़ना: पैरालिंपिक ने खेल और समाज दोनों में सुलभता को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। खेलों ने दिव्यांग लोगों के लिए खेल सुविधाओं, परिवहन और प्रौद्योगिकी तक बेहतर पहुँच के लिए जोर दिया है।
सामाजिक परिवर्तन: पैरालिंपिक बड़े पैमाने पर सामाजिक परिवर्तन भी लाता है।
उदाहरण के लिए: बीजिंग में वर्ष 2008 के पैरालिंपिक खेलों ने दिव्यांगता के प्रति चीन के दृष्टिकोण को महत्त्वपूर्ण रूप से बदल दिया।
पैरालिंपिक में भारत के बेहतर प्रदर्शन के कारण
भागीदारी में वृद्धि: बड़ी संख्या में पैरा-एथलीट, पुरुष और महिला दोनों, इस क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं, जो बेहतर प्रदर्शन में योगदान दे रहे हैं। यह वृद्धि पेशेवर गतिविधियों के रूप में पैरा-स्पोर्ट्स के बारे में अधिक जागरूकता और स्वीकृति के कारण है।
खेलों के माध्यम से सशक्तीकरण: खेल अब दिव्यांग महिलाओं के लिए सशक्तीकरण के स्रोत और एक व्यवहार्य कॅरियर मार्ग के रूप में देखे जाते हैं, जो उन्हें पारंपरिक सामाजिक अपेक्षाओं से मुक्त होने में मदद करते हैं।
पैरा-स्पोर्ट्स को मुख्यधारा में लाना: सक्षम खेलों के समान नीतियों के तहत पैरा-स्पोर्ट्स को एकीकृत करने से संरचना पेशेवर हो गई है, जिससे पैरा-एथलीटों को प्रतिेस्पर्द्धी खेलों का समर्थन करने के उद्देश्य से सरकारी नीतियों और संसाधनों से लाभ मिल रहा है।
एथलीट-केंद्रित महासंघ: भारतीय पैरालिंपिक समिति के एथलीट-केंद्रित मॉडल में बदलाव ने एथलीट प्रशिक्षण, विकास और समर्थन में सुधार किया है, जिससे पैरा-एथलीटों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर बेहतर परिणाम प्राप्त करने में मदद मिली है।
सरकारी वित्तपोषण कार्यक्रम: ‘टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम’ (TOPS) जैसे कार्यक्रम शीर्ष एथलीटों को पूर्ण वित्तपोषण प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें अपने प्रशिक्षण को अनुकूलित करने और वित्तीय बाधाओं के बिना उत्कृष्टता पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।
नव निर्वाचित भारतीय पैरालिंपिक समिति (PCI) ने सभी खेलों को समर्थन दिया तथा टारगेट ओलंपिक पोडियम, खेलो इंडिया और राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र योजनाओं के अंतर्गत कुल व्यय लगभग 74 करोड़ रुपये रहा।
वैज्ञानिक प्रशिक्षण तक पहुँच: भारतीय पैरा-एथलीटों के पास अब उन्नत प्रशिक्षण पद्धतियों तक पहुँच है, जिसमें कंडीशनिंग कोच, फिजियोथेरेपिस्ट, मानसिक शक्ति प्रशिक्षक आदि शामिल हैं।
पैरालिंपिक्स में शामिल नैतिक चुनौतियाँ
वर्गीकरण और निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा: समान स्तर की दिव्यांगता वाले एथलीटों को समूहीकृत करके निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने के लिए तैयार की गई वर्गीकरण प्रणाली, अत्यधिक संवेदनशील है। एथलीटों को प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त हासिल करने के लिए अपनी दिव्यांगताओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के लिए जाना जाता है, जिससे पैरालिंपिक के भीतर निष्पक्षता एवं अखंडता के बारे में नैतिक चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
मीडिया में कम प्रतिनिधित्व: पैरालिंपियन को ओलंपियन की तुलना में कम मीडिया कवरेज मिलता है, अक्सर उनकी एथलेटिक क्षमता के बजाय दिव्यांगता पर नियंत्रण पाने के नजरिए से चित्रित किया जाता है, जिससे रूढ़िवादिता को बल मिलता है।
संसाधन असमानता: पैरालिंपियन को आम तौर पर कम फंडिंग, प्रायोजन और रसद सहायता मिलती है, जिसमें आयोजनों में व्यक्तिगत सहायकों पर प्रतिबंध शामिल हैं।
तकनीकी असमानताएँ: उन्नत प्रोस्थेटिक्स और सहायक तकनीकों तक पहुँच असमान खेल का स्तर उत्पन्न कर सकती है, जिससे कुछ एथलीटों को लाभ मिल सकता है।
मनोसामाजिक दबाव: पैरालिंपियन को अतिरिक्त तनाव का सामना करना पड़ता है जैसे- अपनी दिव्यांगताओं को उच्च स्तरीय प्रतियोगिता की माँगों के साथ संतुलित करना और मानसिक स्वास्थ्य का प्रबंधन करना।
सामाजिक कलंक: दिव्यांगताओं से जुड़ा सामाजिक कलंक एथलीटों के आत्मसम्मान और अपनेपन की भावना को प्रभावित करता है।
भारत के पैरालिंपिक प्रदर्शन को बेहतर बनाने की दिशा में आगे की राह
जमीनी स्तर पर विकास को मजबूत करना: खेलो इंडिया कार्यक्रम जैसी पहलों के समान, जमीनी स्तर से प्रतिभाओं की पहचान करने और उन्हें विकसित करने के लिए प्रभावी जिला पैरालिंपिक समितियों की स्थापना करना। इससे प्रतिभाओं का एक बड़ा समूह तैयार होगा और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में प्रतिनिधित्व में सुधार होगा।
राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का विस्तार: युवा पैरा-एथलीटों के लिए प्रदर्शन और प्रतिस्पर्द्धी मंच प्रदान करने के लिए नियमित रूप से राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम, जैसे कि राष्ट्रीय युवा पैरा गेम्स आयोजित करना।
महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना: पैरालिंपिक में महिलाओं के प्रदर्शन को बढ़ावा देने के लिए, खेलों में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने और उनका समर्थन करने हेतु अधिक प्रयास किए जाने चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि उन्हें समान अवसर और संसाधन प्राप्त हों।
खेल संस्कृति का निर्माण: दिव्यांग लोगों की खेलों में भागीदारी बढ़ाने के लिए, स्कूलों, समुदायों और कार्यस्थलों सहित समाज के सभी स्तरों पर फिटनेस तथा खेलों की व्यापक संस्कृति को बढ़ावा देना।
सहायता प्रणाली: पैरा-एथलीटों को उनके प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करने और अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (TOPS) जैसी सरकारी योजनाओं के माध्यम से वित्तीय, अवसंरचनात्मक और वैज्ञानिक प्रशिक्षण सहायता प्रदान करना जारी रखना।
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