USA फेडरल रिजर्व जल्द ही ब्याज दरों में कटौती करेगा, जिसका वैश्विक बाजारों और विशेष रूप से भारत पर व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है।
यह मार्च 2020 के बाद से अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा की गई पहली ब्याज दर कटौती होगी।
फेडरल रिजर्व अपनी प्रमुख ब्याज दर में 25 आधार अंकों की कटौती करके इसे 5.00%-5.25% तक ला सकता है या 50 आधार अंकों की कटौती करके इसे 4.75%-5.00% तक ला सकता है।
संभावना: दरों में कटौती भविष्य में भी जारी रहेगी, क्योंकि व्यापक रूप से यह उम्मीद की जा रही है कि केंद्रीय बैंक वर्ष के अंत तक दरों को घटाकर 4.5% या 4% तक ले आएगा तथा वर्ष 2025 में और अधिक कटौती की जाएगी।
लक्ष्य: मंदी की स्थिति उत्पन्न किए बिना मुद्रास्फीति के उच्च स्तर को निरंतर नीचे लाना।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व के दर निर्णय के पीछे कारक
कम मुद्रास्फीति: अमेरिका में मुद्रास्फीति, वर्ष 2022 के मध्य के 9% से अधिक के शीर्ष से घटकर 2.5% हो गई है।
श्रम बल दरों में गिरावट: भर्ती और वेतन वृद्धि धीमी हो गई है, प्रति कर्मचारी नौकरी के अवसरों की संख्या में गिरावट आई है और पूर्णकालिक रोजगार की तुलना में अंशकालिक रोजगार में वृद्धि हुई है।
हाल ही में बेरोजगारी दर बढ़कर 4.2% हो गई।
घटता विनिर्माण क्षेत्र: ब्याज दरों में कटौती से उधार दरें कम होंगी, जिससे अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ेगा और परिणामस्वरूप रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न होंगे।
पिछले 12 महीनों में अमेरिकी विनिर्माण क्षेत्र में 11वीं बार गिरावट आई है, जो समग्र उत्पादन और माँग में गिरावट का संकेत है।
उल्टा यील्ड वक्र (Inverted Yield-Curve): यील्ड वक्र 10-वर्षीय यील्ड और 2-वर्षीय यील्ड के बीच अंतर को दर्शाता है, जो अमेरिका में मंदी का सूचक है।
यील्ड वक्र ‘उल्टा’ हो गया है, जिससे मंदी की आशंकाएँ बढ़ गई हैं, जिसके कारण फेडरल रिजर्व को आने वाले महीनों में अधिक महत्त्वपूर्ण और लगातार दर कटौती लागू करनी पड़ रही है।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दर परिवर्तन के बारे में
फेडरल फंड्स रेट, अमेरिकी फेडरल रिजर्व के पास एक प्राथमिक मौद्रिक नीति उपकरण है, जिसके माध्यम से यह अर्थव्यवस्था में ऋण की उपलब्धता और लागत को नियंत्रित करके रोजगार और मुद्रास्फीति को प्रभावित करता है।
प्रभाव: संघीय निधि दर में परिवर्तन अन्य ब्याज दरों को प्रभावित करता है, जो बदले में परिवारों और व्यवसायों के लिए उधार लेने की लागत के साथ-साथ व्यापक वित्तीय स्थितियों को भी प्रभावित करता है।
प्राधिकरण: फेडरल ओपन मार्केट्स कमेटी अमेरिकी बैंकों के बीच ओवरनाइट ऋण देने के लिए फेडरल फंड्स रेट निर्धारित करती है।
भारत पर प्रभाव
निवेश आकर्षित करना: फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती के कारण, अमेरिका और अन्य देशों की ब्याज दरों के बीच अंतर बढ़ जाता है, जिससे भारत जैसे देश मुद्रा कैरी ट्रेड के लिए अधिक आकर्षक बन जाते हैं।
अमेरिका में दर जितनी कम होगी, मध्यस्थता का अवसर उतना ही अधिक होगा।
शेयर बाजार में तेजी: फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती से आमतौर पर भारत सहित उभरते बाजारों में विदेशी निवेश बढ़ता है। जैसे-जैसे अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड में कमी आती है, निवेशक भारतीय इक्विटी में अधिक रिटर्न की तलाश कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से शेयर की कीमतें बढ़ सकती हैं।
बैंकिंग, रियल्टी और ऑटोमोबाइल क्षेत्र जैसे कुछ दर-संवेदनशील क्षेत्रों को अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों में कटौती के कारण काफी लाभ मिलता है।
मुद्रा बाजार: भारतीय रुपया मजबूत होने से आयात सस्ता और निर्यात महँगा होने की संभावना है।
सोने की कीमतें: सोने की कीमतों में बढ़ोतरी की उम्मीद है, क्योंकि कम ब्याज दरों के कारण बॉण्ड जैसे निश्चित आय वाले निवेश कम आकर्षक हो जाएँगे, जिससे इसकी माँग बढ़ जाएगी।
वैश्विक विकास को बढ़ावा: ब्याज दर में कटौती से अमेरिकी डॉलर में उधार लेने की लागत कम हो जाती है, जिससे दुनिया भर की कंपनियों के लिए तरलता की स्थिति आसान हो जाती है।
उभरते बाजारों में धन का प्रवाह: कम अमेरिकी ब्याज दरों से ट्रेजरी जैसी अमेरिकी परिसंपत्तियों पर उपलब्ध लाभ में भी कमी आएगी, जिससे निवेशक बेहतर लाभ के लिए उभरते बाजारों की ओर आकर्षित होंगे।
RBI नीति दर रुख को प्रभावित करना: RBI भी अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह अमेरिकी फेड द्वारा दिए गए संकेतों के आधार पर नीति दर में परिवर्तन शुरू करता है।
RBI ने पिछली बार अमेरिकी फेड की तरह कोविड-19 महामारी के दौरान मई 2020 में रेपो दर में 40 आधार अंकों की कटौती कर इसे 4% कर दिया था।
Latest Comments