बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) के मुख्य अभियोजक ने भारत से अपदस्थ नेता शेख हसीना के प्रत्यर्पण की योजना की घोषणा की है।
इस न्यायाधिकरण की स्थापना वर्ष 2010 में बांग्लादेश के पूर्व प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान से वर्ष 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान किए गए अपराधों की जाँच के लिए की थी।
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (बांग्लादेश)
स्थापना: बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) की स्थापना वर्ष 2009 में घरेलू युद्ध अपराध न्यायाधिकरण के रूप में की गई थी।
उद्देश्य: न्यायाधिकरण की स्थापना वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान अत्याचारों के लिए जिम्मेदार लोगों की जाँच करने और उन पर मुकदमा चलाने के लिए की गई थी, जिसमें बांग्लादेश ने पाकिस्तान से स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी थी।
अभियोजन का फोकस: ICT, वर्ष 1971 के नरसंहार के दौरान पाकिस्तानी सेना और उनके स्थानीय सहयोगियों जैसे रजाकार, अल-बद्र और अल-शम्स द्वारा किए गए अपराधों की जाँच करता है।
पृष्ठभूमि
भारत में शरण: अगस्त 2024 के प्रारम्भ में बड़े पैमाने पर हुए विद्रोह के बाद शेख हसीना ने भारत में शरण ली थी, जिसके कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।
आपराधिक आरोप: सत्ता से हटने के बाद शेख हसीना और उनके सहयोगियों के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं।
इन आरोपों में शामिल हैं:- हत्या, यातना, अपहरण, मानवता के खिलाफ अपराध और नरसंहार।
राजनयिक पासपोर्ट रद्द करना: बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार ने शेख हसीना का राजनयिक पासपोर्ट रद्द कर दिया है।
द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि: इसके अतिरिक्त, भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि भी विद्यमान है, जो उसे मुकदमे का सामना करने के लिए वापस लौटने की अनुमति दे सकती है।
भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि
प्रत्यर्पण के बारे में: प्रत्यर्पण एक औपचारिक प्रक्रिया है जिसके तहत एक देश किसी अन्य देश के व्यक्ति से अनुरोध करता है और उसे आत्मसमर्पण करवाता है ताकि वह आपराधिक आरोपों का सामना कर सके या अनुरोधकर्ता देश के अधिकार क्षेत्र में किए गए अपराध के लिए सजा काट सके।
प्रत्यर्पण संधि (2013): भारत और बांग्लादेश ने अपनी साझा सीमाओं पर उग्रवाद और आतंकवाद के मुद्दों से निपटने के लिए वर्ष 2013 में एक प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए।
संशोधन (2016): दोनों देशों द्वारा वांछित भगोड़ों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया को सरल बनाने तथा सुगम प्रत्यर्पण की सुविधा प्रदान करने के लिए वर्ष 2016 में संधि में संशोधन किया गया।
प्रत्यर्पण का कानूनी औचित्य: शेख हसीना का प्रत्यर्पण अंतरराष्ट्रीय अपराध (न्यायाधिकरण) अधिनियम, 1973 के तहत उनके मुकदमे की निष्पक्षता सुनिश्चित करने और न्यायिक आदेशों को लागू करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
प्रत्यर्पण के उदाहरण: इस संधि ने पहले ही उल्लेखनीय प्रत्यर्पणों को सुगम बनाया है, जिनमें शामिल हैं:-
शेख मुजीबुर रहमान हत्याकांड (2020): शेख मुजीबुर रहमान की वर्ष 1975 की हत्या में शामिल दो दोषियों को फांसी की सजा के लिए बांग्लादेश प्रत्यर्पित किया गया।
अनूप चेतिया (उल्फा नेता): भारत ने प्रतिबंधित यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) के महासचिव अनूप चेतिया को ढाका में 18 साल की कैद के बाद प्रत्यर्पित कराने में सफलता प्राप्त की।
प्रत्यर्पण मानदंड
न्यूनतम सजा की आवश्यकता: संधि में ऐसे अपराधों के लिए आरोपित या दोषी ठहराए गए व्यक्तियों के प्रत्यर्पण का प्रावधान है, जिनके लिए न्यूनतम एक वर्ष के कारावास की सजा का प्रावधान है।
दोहरी आपराधिकता सिद्धांत (Dual Criminality Principle): प्रत्यर्पण के लिए यह आवश्यक है कि अपराध भारत और बांग्लादेश दोनों में दंडनीय हो।
चूँकि शेख हसीना के खिलाफ आरोप भारत में अभियोजन योग्य हैं तथा उनमें भारी दंड का प्रावधान है, इसलिए वह प्रत्यर्पण के लिए योग्य हैं।
अपराधों का दायरा: संधि में न केवल प्रत्यक्ष आपराधिक कृत्य शामिल हैं, बल्कि अपराध करने का प्रयास, साथ ही सहायता करना, उकसाना या सहयोगी के रूप में कार्य करना भी शामिल है।
प्रत्यर्पण संधि में वर्ष 2016 का संशोधन
साक्ष्य की आवश्यकता में कमी: वर्ष2016 के संशोधन ने प्रत्यर्पण के लिए अपराधी के विरुद्ध ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने की आवश्यकता को समाप्त कर दिया।
गिरफ्तारी वारंट का पर्याप्त होना: संधि के अनुच्छेद 10 के तहत, प्रत्यर्पण प्रक्रिया शुरू करने के लिए अनुरोधकर्ता देश के सक्षम न्यायालय से गिरफ्तारी वारंट पर्याप्त है।
भारत द्वारा शेख हसीना के प्रत्यर्पण से इनकार करने के आधार
अपराध की राजनीतिक प्रकृति (अनुच्छेद 6)
राजनीतिक अपराध के लिए छूट: यदि अपराध ‘राजनीतिक प्रकृति’ का है तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है।
राजनीतिक छूट पर सीमाएँ: हत्या, आतंकवाद से संबंधित अपराध और अपहरण जैसे अपराधों को राजनीतिक के रूप में वर्गीकृत करने से बाहर रखा गया है।
शेख हसीना के आरोप: हत्या, जबरन गायब कर देना और यातना जैसे आरोप राजनीतिक अपराध छूट के दायरे से बाहर हैं, जिससे भारत के लिए इन आधारों पर प्रत्यर्पण से इनकार करना असंभव है।
सद्भावना या न्याय का अभाव (अनुच्छेद 8): यदि अनुरोध सद्भावना से नहीं किया गया है या न्याय के हित में नहीं है तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है।
सैन्य अपराध से छूट: यदि अपराध सैन्य है और सामान्य आपराधिक कानून के तहत मान्यता प्राप्त नहीं है तो छूट देने से इनकार किया जा सकता है।
संभावित राजनीतिक उत्पीड़न: भारत यह तर्क दे सकता है कि शेख हसीना को राजनीतिक उत्पीड़न या अनुचित मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है, विशेष रूप से उन रिपोर्टों के मद्देनजर कि बांग्लादेश में गिरफ्तारी के दौरान कैबिनेट मंत्रियों के साथ दुर्व्यवहार किया गया।
आसन्न प्रत्यर्पण के कूटनीतिक और राजनीतिक निहितार्थ
प्रत्यर्पण की कोई गारंटी नहीं: संधि शेख हसीना के प्रत्यर्पण की गारंटी नहीं देती है, क्योंकि अंतिम निर्णय कूटनीतिक वार्ता और राजनीतिक कारकों पर निर्भर करेगा।
राजनयिक संबंधों पर प्रभाव: कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि यदि भारत प्रत्यर्पण अनुरोध को अस्वीकार भी कर देता है, तो यह एक सामान्य राजनीतिक संकट होगा और इससे द्विपक्षीय संबंधों को कोई विशेष नुकसान नहीं होगा।
द्विपक्षीय व्यापार: बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार वित्तीय वर्ष 2022-23 में 15.9 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया।
व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA): शेख हसीना के पद से हटने से पहले, दोनों देश आर्थिक संबंधों को और मजबूत करने के लिए CEPA पर चर्चा शुरू करने की तैयारी कर रहे थे।
शासन-परिवर्तन के बाद भारत द्वारा समर्थन: बांग्लादेश में शासन-परिवर्तन के बाद, भारतीय प्रधानमंत्री ने नई अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस से बात की और क्रियान्वित विकास परियोजनाओं के लिए निरंतर समर्थन को दुहराया।
भारत और प्रत्यर्पण संधियाँ
भारत ने कई देशों के साथ प्रत्यर्पण संधियाँ की हैं। ये प्रत्यर्पण संधियाँ भारतीय प्रत्यर्पण अधिनियम 1962 द्वारा शासित होती हैं।
भारतीय प्रत्यर्पण अधिनियम 1962
भारतीय प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 एक व्यापक कानून है जो भारत एवं अन्य देशों के बीच भगोड़े अपराधियों के प्रत्यर्पण को नियंत्रित करता है।
इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत में है।
इस अधिनियम में समग्र अपराधों को भी शामिल किया गया है, जो ऐसे कृत्य हैं जो आंशिक रूप से भारत में तथा आंशिक रूप से विदेशों में घटित होते हैं, लेकिन समग्र रूप से क्रियान्वित करने पर प्रत्यर्पण अपराध बनते हैं।
प्रत्यर्पण के सिद्धांत
शामिल अपराध: प्रत्यर्पण केवल संधि में निर्दिष्ट अपराधों पर लागू होता है।
दोहरी आपराधिकता: अपराध को अनुरोधकर्ता और अनुरोधित दोनों देशों में अपराध के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
प्रथम दृष्टया मामला: अनुरोधकर्ता देश को यह विश्वास होना चाहिए कि आरोपी के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला विद्यमान है।
विशिष्ट अपराध: प्रत्यर्पण केवल उस अपराध के लिए दिया जाता है जिसके लिए इसका अनुरोध किया गया हो।
निष्पक्ष सुनवाई की गारंटी: अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए।
प्रत्यर्पण संधि [धारा 2 (d), भारतीय प्रत्यर्पण अधिनियम 1962] के बारे में: ‘प्रत्यर्पण संधि’ भारत और किसी विदेशी राष्ट्र के बीच भगोड़े अपराधियों के प्रत्यर्पण के लिए एक संधि, समझौता या व्यवस्था है।
बाध्यकारी प्रकृति: ऐसी संधियाँ भारत और संबंधित विदेशी राज्य दोनों पर बाध्यकारी होती हैं।
नोडल प्राधिकरण: विदेश मंत्रालय का यह प्रभाग प्रत्यर्पण अधिनियम का प्रशासन करता है तथा प्रत्यर्पण अनुरोधों (आने वाले और जाने वाले दोनों) पर कार्रवाई करता है।
मामलों के प्रकार: प्रत्यर्पण की प्रक्रिया जाँच के अधीन, विचाराधीन तथा दोषसिद्ध अपराधियों के लिए शुरू की जा सकती है।
जाँच मामलों के लिए सावधानियाँ: जाँच के अधीन मामलों में, कानून प्रवर्तन एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके पास विदेशी न्यायालय में आरोपों को प्रमाणित करने के लिए प्रथम दृष्टया सबूत मौजूद हों।
वर्तमान प्रत्यर्पण संधियाँ
सितंबर, 2024 तक, भारत की 48 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधियाँ (देशों के बीच एक औपचारिक, कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता) हैं, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, UAE, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।
इसके अतिरिक्त, भारत ने 12 अन्य देशों, जैसे आर्मेनिया, फिजी, श्रीलंका और सिंगापुर के साथ प्रत्यर्पण व्यवस्था (दो देशों के बीच एक कम औपचारिक समझौता, जिसका प्रयोग अक्सर तब किया जाता है जब कोई मौजूदा संधि नहीं होती) की है।
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