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एक राष्ट्र, एक चुनाव

Lokesh Pal September 20, 2024 03:29 6 0

संदर्भ

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पहल के संबंध में  पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति की अनुशंसाओं को स्वीकार कर लिया है।

संबंधित तथ्य 

  • प्रस्ताव में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं तथा स्थानीय निकायों के चुनाव चरणबद्ध तरीके से एक साथ कराने की बात कही गई है।
  • चुनाव एक साथ दो चरणों में होंगे:
    • प्रथम चरण: लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे और,
    • दूसरा चरण: यह पहले चरण के संपन्न होने के 100 दिनों के भीतर होगा, स्थानीय निकाय चुनाव इसमें शामिल किए जाएँगे।

एक साथ चुनाव/एक राष्ट्र, एक चुनाव के बारे में

  • अर्थ (Meaning): एक साथ चुनाव से तात्पर्य लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने से है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पूरे देश में चुनाव चक्र एक जैसा हो।
  • प्रक्रिया: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव एक ही दिन या चरणबद्ध तरीके से प्रत्येक पाँच वर्ष में होंगे, जिससे नागरिकों को दोनों के लिए एक साथ मतदान करने का अवसर मिलेगा।
  • एक साथ चुनावों का ऐतिहासिक संदर्भ
    • प्रारंभिक एक साथ चुनाव (वर्ष 1951-67): भारत में वर्ष 1951-52, 1957, 1962 और वर्ष 1967 में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए।
    • व्यवधान: क्षेत्रीय दलों के उदय और राज्य विधानसभाओं में अनुच्छेद-356 (राष्ट्रपति शासन) के लगातार उपयोग सहित राजनीतिक अस्थिरता के कारण यह समन्वय बाधित हुआ।
  • वे देश, जहाँ एक साथ चुनाव आयोजित किए जाते हैं: दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन।

भारत में एक साथ चुनाव के लिए आवश्यक संवैधानिक परिवर्तन

  • एक साथ चुनाव कराने के लिए कोविंद समिति ने भारत के संविधान में 15 संशोधनों की सिफारिश की थी, जिन्हें दो संविधान संशोधन विधेयकों के माध्यम से लागू किया जाना था।
  • पहला संशोधन विधेयक: पहला विधेयक एक साथ चुनाव प्रणाली में परिवर्तन तथा कार्यकाल समाप्त होने से पहले लोकसभा या राज्य विधानसभा के लिए नए चुनाव की प्रक्रिया से संबंधित होगा।
    • संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है (अनुच्छेद-368)।
  • दूसरा संशोधन विधेयक: दूसरा विधेयक नगरपालिका और पंचायत चुनावों के साथ-साथ भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा एकल मतदाता सूची के निर्माण से संबंधित होगा, जिसमें प्रत्येक मतदाता और उस सीट का विवरण होगा, जिसके लिए वे मतदान करने के पात्र हैं।
    • इसके लिए विशेष बहुमत और कम-से-कम आधे राज्यों के अनुमोदन की आवश्यकता होती है, क्योंकि ‘स्थानीय सरकार’ राज्य सूची के अंतर्गत आती है।
  • अनुच्छेद-83 तथा अनुच्छेद-172 में संशोधन: समिति ने अनुच्छेद-83, जो लोकसभा के कार्यकाल को नियंत्रित करता है और अनुच्छेद-172, जो राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को नियंत्रित करता है, में संशोधन का प्रस्ताव दिया है।
  • संवैधानिक संशोधन: समिति ने पंचायत और नगरपालिका स्तर पर एक साथ चुनाव कराने के लिए अनुच्छेद-324A लागू करने तथा एकीकृत मतदाता सूची और फोटो पहचान-पत्र के लिए अनुच्छेद 325 में संशोधन करने का सुझाव दिया है।

एक साथ चुनाव संबंधी कोविंद समिति के प्रमुख प्रस्ताव

  • लोकसभा सत्र के लिए नियत तिथि: आम चुनावों के बाद, राष्ट्रपति समन्वय बनाए रखते हुए लोकसभा के सत्र बुलाने की तिथि अधिसूचित करेंगे।
    • यह अधिसूचना अनुच्छेद-82A (पहले विधेयक के माध्यम से प्रस्तुत एक नया अनुच्छेद) को अधिनियमित करेगी, जिससे एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया को सुगम बनाया जा सकेगा।
      • प्रस्तावित अनुच्छेद-82A में कहा गया है कि ‘नियत तिथि’ के बाद होने वाले किसी भी आम चुनाव में गठित सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति पर समाप्त हो जाएगा।
  • नई राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल छोटा किया जाएगा: समन्वय के बाद गठित नई राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले आम चुनावों के अनुरूप छोटा किया जाएगा।
  • सदन में मतभेद या अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में: सदन में मतभेद या अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में, नए चुनाव कराए जाएँगे, लेकिन नया कार्यकाल अगले निर्धारित आम चुनावों तक ही चलेगा।
  • नई लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के लिए शर्तें: यदि सदन में अविश्वास प्रस्ताव आता है तो नए चुनाव होंगे।
    • नई लोकसभा पिछले कार्यकाल का शेष कार्यकाल पूरा करेगी, जबकि राज्य विधानसभाएँ लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने तक जारी रहेंगी, जब तक कि उन्हें पहले ही भंग न कर दिया जाए।
  • एकीकृत मतदाता सूची तथा पहचान-पत्र प्रणाली: सभी चुनावों के लिए एकीकृत मतदाता सूची और पहचान-पत्र प्रणाली का प्रस्ताव, जिसके लिए राज्यों द्वारा संवैधानिक संशोधन और अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी।
    • संविधान के नए अनुच्छेद-325(2) के अंतर्गत राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा सभी चुनावों के लिए एकीकृत मतदाता सूची तैयार की जाएगी।

नैतिक आचार संहिता (Moral Code of Conduct)

  • नैतिक आचार संहिता के बारे मे: यह भारत के चुनाव आयोग द्वारा राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को विनियमित करने तथा संविधान के अनुच्छेद-324 के अनुसार स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए जारी दिशा-निर्देशों का एक समूह है।

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का महत्त्व

  • लागत दक्षता: एक साथ चुनाव कराने से सरकार और राजनीतिक दलों दोनों के लिए चुनाव खर्च में कमी करके लागत दक्षता में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
  • नीतिगत निरंतरता: एक साथ चुनाव कराने से बार-बार होने वाले चुनाव चक्रों के प्रभाव को कम करके नीतिगत निरंतरता को बढ़ाया जा सकता है, जिससे सरकारों को अल्पकालिक राजनीतिक रणनीतियों की तुलना में दीर्घकालिक योजना और कार्यान्वयन को प्राथमिकता देने में सहायता प्राप्त होती है।
  • आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) का प्रभाव: चुनाव चक्रों की संख्या कम करके, शासन पर MCC के प्रभाव को कम किया जा सकता है, जिससे अधिक निरंतर और प्रभावी नीति कार्यान्वयन की अनुमति मिल सकती है।
  • काले धन में कमी: कम चुनाव होने से चुनाव प्रचार में प्रयुक्त बेहिसाब धन के प्रचलन में कमी आ सकती है।
  • सार्वजनिक सेवाएँ: चुनाव ड्यूटी के लिए सरकारी कर्मचारियों की बार-बार तैनाती के कारण सार्वजनिक सेवाओं में होने वाले व्यवधान को रोकता है।
  • राष्ट्रीय एकता: चुनावी प्रक्रिया में क्षेत्रीय की अपेक्षा राष्ट्रीय दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जाता है।

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-85: संसद का सत्र, सत्रावसान तथा विघटन
    • राष्ट्रपति संसद को बुलाता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि सत्रों के बीच छह महीने से अधिक का अंतराल न हो।
    • राष्ट्रपति किसी भी सदन को स्थगित कर सकता है तथा लोकसभा को भंग कर सकता है।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-356: राज्यों में राष्ट्रपति शासन
    • राष्ट्रपति राज्य की कार्यपालिका का नियंत्रण अपने नियंत्रण में ले सकते हैं, यदि ऐसा माना जाए कि राज्य सरकार संविधान के अनुसार नहीं चल सकती, जिसके परिणामस्वरूप केंद्रीय सरकार का नियंत्रण हो जाएगा और राज्य विधानमंडल निलंबित हो जाएगा।

एक साथ चुनाव लागू करने की चुनौतियाँ

  • संवैधानिक संशोधन: एक राष्ट्र, एक चुनाव को लागू करने के लिए अनुच्छेद-85, अनुच्छेद-356 और अन्य जैसे कई संवैधानिक प्रावधानों में बदलाव की आवश्यकता है।
    • इससे संविधान के मूल ढाँचे में बदलाव आएगा। उदाहरण के लिए, इससे संविधान का संघीय चरित्र प्रभावित होगा।
  • तार्किक चुनौतियाँ: देश भर में एक साथ चुनाव आयोजित करने में महत्त्वपूर्ण तार्किक बाधाएँ आती हैं, जैसे सुरक्षा बलों का समन्वय करना, बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) का आयोजन करना।
  • संघवाद के विरुद्ध: यह भारत के संघीय ढाँचे को कमजोर कर सकता है, क्योंकि राज्य-विशिष्ट मुद्दे राष्ट्रीय चिंताओं से प्रभावित हो सकते हैं।
    • एक साथ चुनाव कराने से देश को संविधान में परिकल्पित संघीय व्यवस्था के बजाय एकात्मक राज्य की ओर ले जाने की प्रवृत्ति है।
  • क्षेत्रीय मुद्दे गौण हो सकते हैं: एक साथ होने वाले चुनावों में राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय मुद्दों का सम्मिश्रण स्थानीय चिंताओं को कम सकता है, प्राथमिकताओं को बदल सकता है तथा असंतुलन पैदा कर सकता है, जिससे राष्ट्रीय दलों को क्षेत्रीय दलों पर अनुचित लाभ मिल सकता है।
  • मतदान व्यवहार: साक्ष्य दर्शाते हैं कि जब मतदाताओं को राज्य और केंद्र दोनों सरकारों के लिए एक ही समय पर, एक ही मतदान केंद्र पर और एक ही दिन मतदान करना होता है, तो मतदाता अक्सर राज्य और केंद्र दोनों सरकारों के लिए एक ही पार्टी को वोट देते हैं।
  • व्यवहार्यता: यदि गठबंधन वाली केंद्रीय सरकार गिर जाती है तो सभी राज्य सरकारों में चुनाव कराने की व्यवहार्यता पर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।

आगे की राह

  • चुनाव चक्रों को संरेखित करना: एक समन्वित चुनावी चक्र बनाने के लिए, छः महीने से एक वर्ष पहले या बाद में समाप्त होने वाले कार्यकालों के लिए विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनावों के साथ ही निर्धारित करना आवश्यक है।
  • स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना: चुनाव व्यय की निगरानी करने तथा सभी स्तरों पर चुनावों की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग की नियामक भूमिका और निगरानी क्षमताओं को मजबूत करना।
  • इलेक्ट्रॉनिक मतदाता पहचान पत्र लागू करना: मतदाता सूची से फर्जी प्रविष्टियों को समाप्त करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मतदाता पहचान-पत्र जैसे IT-सक्षम उपकरणों का उपयोग करना, जिससे मतदाता पंजीकरण की सटीकता और अखंडता में सुधार हो।
  • चुनावों के लिए राज्य वित्तपोषण पर विचार करना: राजनीति में धन के प्रभाव को कम करने तथा सभी उम्मीदवारों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए राज्य वित्तपोषण के विकल्पों पर विचार करने की आवश्यकता है।

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