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भारत-अमेरिका संबंध : 6वां क्वाड शिखर सम्मेलन

Lokesh Pal September 19, 2024 05:30 6 0

संदर्भ: 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21-23 सितंबर तक अमेरिकी राष्ट्रपति बिडेन के गृहनगर विलमिंगटन, डेलावेयर में एक महत्वपूर्ण 6वां क्वाड शिखर सम्मेलन के लिए अमेरिका की यात्रा पर हैं, जो इस आयोजन को दोनों नेतृत्वकर्ताओं का एक व्यक्तिगत स्पर्श भी प्रदान करेगा। यह शिखर सम्मेलन पिछले चार वर्षों में भारत-अमेरिका साझेदारी में हुई प्रगति को प्रदर्शित करेगा, जिसमें प्रमुख उपलब्धियों को भी मान्यता दी जाएगी। इसके साथ ही जो महत्वपूर्ण रणनीतिक चर्चाएँ हुई हैं, विशेष रूप से उच्च प्रौद्योगिकी, रक्षा और क्षेत्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में, वर्तमान ध्यान इन विचारों को कार्रवाई में बदलने पर भी रहेगा। अतः इस यात्रा का मुख्य लक्ष्य लंबित योजनाओं को लागू करना और दोनों देशों के साझा दृष्टिकोण को आगे बढ़ाते हुए ठोस परिणाम प्राप्त करना है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

जो बिडेन से पूर्व भारत-अमेरिका संबंध: जब बिडेन ने पहली बार पदभार ग्रहण किया था, तो विदेश नीति विशेषज्ञ  भारत-अमेरिका संबंधों के बारे में आशावादी थे। यहाँ तक कि अमेरिकी रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक दोनों ही पार्टियों ने ऐतिहासिक रूप से भारत को एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में देखा था।

  • क्लिंटन की भारत यात्रा: (2000): वर्ष 2000  में अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की ऐतिहासिक भारत यात्रा के बाद  भारत-अमेरिका संबंध काफी गहरे होने लगे, जो सकारात्मक और निरंतर जुड़ाव की शुरुआत थी।
  • क्लिंटन के बाद भारत-अमेरिका संबंध : क्लिंटन के बाद से प्रत्येक अमेरिकी राष्ट्रपति – जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रम्प और वर्तमान में, जो बिडेन ने भारत के साथ संबंधों को मजबूत किया है।

हालांकि, शुरुआत में भारत-अमेरिका संबंध अनिश्चितता से भरे थे, क्योंकि कई लोगों को आश्चर्य था कि क्या बिडेन ट्रम्प प्रशासन के दौरान भी मौजूदा स्थापित मजबूत गति को बनाए रखने में सक्षम होंगे। ट्रम्प की रणनीतिक प्रगति पर बिडेन की क्षमता के बारे में शुरुआती संदेह के बावजूद, विशेष रूप से भारत में, बिडेन ने उम्मीदों को आत्मसात करते हुए, महत्वपूर्ण मुद्दों पर भारत के साथ और भी मजबूत जुड़ाव प्रदर्शित किया है।

ट्रम्प प्रशासन का योगदान:

  • रणनीतिक नीतियों में बदलाव: ट्रम्प के राष्ट्रपतित्व काल के दौरान, अमेरिकी विदेश नीति में महत्वपूर्ण बदलावों ने निम्नलिखित तरीकों से व्यापक भू-राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित किया:
    • अफ़गानिस्तान से सैन्य वापसी: अफ़गानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने के ट्रम्प के प्रयास ने एक निर्णायक क्षण को चिह्नित किया, जिसका उद्देश्य अफ़गानिस्तान की अमेरिका पर निर्भरता को कम करना और उस सैन्य उपस्थिति को समाप्त करना था जिसे वह महंगा और अस्थिर मानते थे।
    • चीन के साथ टकराव: ट्रम्प ने उच्च टैरिफ के माध्यम से चीन के साथ आर्थिक तनाव को बढ़ाया और एक व्यापार युद्ध शुरू किया। इस प्रतिकूल रुख ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रणनीतिक संरेखण की बढ़ती आवश्यकता को भी उजागर किया।
    • इंडो-पैसिफिक रणनीति: ट्रम्प के इंडो-पैसिफिक रणनीति पर जोर ने भारतीय और प्रशांत महासागरों में स्थिरता बनाए रखने में अमेरिका और भारत के बीच साझा हितों को मान्यता दी। इसने चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए समान विचारधारा वाले देशों को एकीकृत करने के महत्व पर प्रकाश डाला।
    • क्वाड गठबंधन का पुनरुद्धार: ट्रम्प के प्रमुख योगदानों में से एक क्वाड गठबंधन (ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान, यू.एस.) को पुनर्जीवित करना, अधिक क्षेत्रीय सहयोग के लिए मंच तैयार करना और इसे इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में स्थापित करना था।

भारत-अमेरिका संबंधों के प्रति बिडेन का दृष्टिकोण

बिडेन को वैश्विक मुद्दों पर ट्रम्प के तनाव भरे दृष्टिकोण से आकार लेने वाली विदेश नीति विरासत में मिली। जबकि डेमोक्रेटिक पार्टी ऐतिहासिक रूप से बहुपक्षवाद का पक्षधर रही है, बिडेन को इस विरासत को बदलते भू-राजनीतिक माहौल की माँगों के साथ संतुलित करने की चुनौती का सामना करना पड़ा।

  • बिडेन का निरंतरता का सिद्धांत : शुरुआती उम्मीदों के विपरीत, बिडेन ने एशिया में, खासकर चीन के संबंध में, ट्रम्प की कई नीतियों को बनाए रखा, जबकि अनेक महत्वपूर्ण रणनीतिक बदलाव भी किए। उनका ध्यान केवल द्विपक्षीय कूटनीति पर निर्भर रहने के बजाय गठबंधनों और बहुपक्षीय साझेदारी को मजबूत करने की ओर स्थानांतरित हो गया।
  • अफगानिस्तान से सैन्य वापसी का प्रभाव : 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने का बिडेन का फैसला विश्व राजनीति में एक बड़ा क्षण था। अमेरिका के जाने के साथ, अमेरिकी विदेश नीति में पाकिस्तान का भी सामान्य महत्व कम हो गया, और अमेरिका ने दुनिया भर के बड़े रणनीतिक मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया।
  • चीन और इंडो-पैसिफिक पर ध्यान: बिडेन ने चीन पर ट्रम्प के टैरिफ को जारी रखा और चिप्स जैसी उन्नत तकनीकों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने सहित आर्थिक उपायों को बढ़ाया। उनका प्रशासन लगातार चीन के प्रभाव का मुकाबला करने में मुखर रहा है। चीन की बढ़ती मुखरता के प्रति अमेरिकी विरोध ने भारत के साथ उसके संबंधों को और मजबूत किया, जिससे भारत इंडो-पैसिफिक में एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में स्थापित हुआ।
    • बिडेन ने ट्रम्प प्रशासन के क्वाड (अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया) को भी बढ़ाकर, इसे शिखर-स्तरीय साझेदारी में बदल दिया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने AUKUS (ऑस्ट्रेलिया, यूके, अमेरिका) जैसे नए गठबंधन शुरू किए, जो चीन का मुकाबला करने के उद्देश्य से एक मजबूत रणनीतिक संकेत देते हैं।
  • तकनीकी और आर्थिक पहल: ICET (महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल): इसे जनवरी 2023 में लॉन्च किया गया था, इस पहल ने दोनों देशों की सरकारों, व्यवसायों और शैक्षणिक संस्थानों के बीच रणनीतिक प्रौद्योगिकी साझेदारी और रक्षा औद्योगिक सहयोग को बढ़ाया और विस्तारित किया। इसके तहत उभरती प्रौद्योगिकियों के सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों में सेमीकंडक्टर, जेट इंजन और राष्ट्रीय क्षमता निर्माण शामिल हैं।
    • आपूर्ति शृंखला पहल: लचीली वैश्विक आपूर्ति शृंखला बनाने की बिडेन की रणनीति ने, खास तौर पर चीन से आपूर्ति शृंखलाओं को अलग करने के प्रयास के हिस्से के रूप में, भारत को केंद्र में रखा है। उभरती प्रौद्योगिकियों में भारत के विकास का समर्थन करने के लिए अमेरिका अपने सहयोगियों को जुटा रहा है।
  • अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भारत का योगदान: यद्यपि भारत-अमेरिका संबंध एकतरफा नहीं है। भारतीय प्रतिभा, स्टार्टअप और रक्षा निर्यात अमेरिकी अर्थव्यवस्था और सुरक्षा में तेजी से योगदान दे रहे हैं। यह पारस्परिक गतिशीलता दीर्घकालिक साझेदारी को मजबूत करती है।

गैर-सैन्य साझेदारी और क्षेत्रीय स्थिरता

  • क्वाड की गैर-सैन्य भूमिका: बिडेन ने क्वाड को सैन्य गठबंधन के बजाय सार्वजनिक वस्तुओं का प्रदाता मानने के भारत के दृष्टिकोण से सहमति जताई। इसमें आपदा प्रतिक्रिया, मानवीय सहायता और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे क्षेत्रों में सहयोग शामिल है। 
  • क्षेत्रीय सहयोग का विस्तार: बिडेन प्रशासन ने समुद्री क्षेत्र में जागरूकता, मानवीय सहायता, आपदा राहत, साइबर सुरक्षा और स्वास्थ्य साझेदारी जैसे क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार किया है, जो समग्र रूप व्यापक क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान दे रहे हैं।

रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के तटस्थ रुख के परिणामस्वरूप जहां भारत ने अमेरिका के निर्णयों से सहमत न होने का फैसला किया और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद भी रूस से तेल खरीदना जारी रखा। यहाँ तक कि बांग्लादेश पर नीतिगत मतभेदों और भारत के खिलाफ विभिन्न आरोपों के बावजूद, भारत और अमेरिका के बीच समग्र संबंध लचीले बने हुए हैं। मौजूदा अंतरराष्ट्रीय मुद्दे, हालांकि विवादास्पद हैं, लेकिन व्यापक रणनीतिक साझेदारी व सहयोग को पटरी से नहीं उतारने में नाकाम सिद्ध हुए हैं।

निष्कर्ष 

भारत-अमेरिका सहयोग हिंद-प्रशांत में साझा रणनीतिक चिंताओं पर आधारित है, जैसे कि चीन की चुनौती का प्रबंधन, गलवान झड़पों जैसे सीमा तनावों को संबोधित करना और आर्थिक सुरक्षा को बढ़ाना आदि। दोनों देशों ने नए तंत्रों के माध्यम से अपने सहयोग को मजबूत किया है, आर्थिक और सुरक्षा संबंधों को गहरा किया है और अपने निजी क्षेत्रों के बीच घनिष्ठ संबंधों को वरीयता दी है। राष्ट्रपति बिडेन के प्रशासन द्वारा स्थापित भारत-अमेरिका संबंधों की मजबूत नींव यह सुनिश्चित करती है कि भविष्य के अमेरिकी नेतृत्व की परवाह किए बिना – चाहे वह हैरिस हो, ट्रम्प हो या कोई और व्यक्ति भारत-अमेरिका संबंध निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर रहेंगे, जो हिंद-प्रशांत और उससे आगे आपसी स्थिरता और प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न 

प्रश्न: पिछले दशक के दौरान हुए भारत-अमेरिका सामरिक संबंधों, विशेष रूप से आर्थिक और रक्षा सहयोग के संदर्भ में, विकास पर चर्चा करें,। 

(10 अंक, 150 शब्द)

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