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जनसांख्यिकीय लाभांश : भारतीय अर्थव्यवस्था की लाभप्रद स्थिति

Lokesh Pal September 19, 2024 05:45 8 0

संदर्भ: 

भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश और तीव्र आर्थिक विकास के साथ एक महत्वपूर्ण मोड़ पर स्थित है। भारत, वर्तमान समय में लगभग  63% कार्यशील आयु वर्ग की आबादी और लगभग 28 वर्ष की औसत आयु के साथ  स्वयं को एक वैश्विक आर्थिक प्रभुत्वपूर्ण शक्ति के रूप में आगे बढ़ाने हेतु अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग करने की क्षमता रखता है। हालाँकि, इस वृद्धि को बनाए रखने के लिए श्रम बल भागीदारी एवं कौशल और प्रौद्योगिकी अपनाने से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है।

कार्यशील- आयु की जनसंख्या का अर्थ 

कार्यशील- आयु की जनसंख्या  से तात्पर्य आबादी के उस हिस्से से है, जिसे आम तौर पर कार्य करने और श्रम बल में योगदान देने में सक्षम माना जाता है। इसमें आम तौर पर एक विशिष्ट आयु सीमा के भीतर के व्यक्ति शामिल होते हैं, जिन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से काम करने के लिए स्वस्थ व  सक्षम माना जाता है, भले ही वे वर्तमान में कार्यरत न हों।

अधिकांश देशों में, कार्यशील आयु की जनसंख्या को 15 से 64 वर्ष की आयु के लोगों के रूप में परिभाषित किया गया है, हालांकि यह आयु सीमा स्थानीय परिभाषाओं या सेवानिवृत्ति मानदंडों के आधार पर थोड़ी भिन्न हो सकती है। यह समूह किसी देश की आर्थिक उत्पादकता की कुंजी माना जाता है, क्योंकि यही समूह देश के संभावित श्रम शक्ति होते हैं।

प्रमुख चुनौतियाँ

  • श्रम बल भागीदारी अंतर: भारत, वैश्विक स्तर पर विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, श्रम बल भागीदारी संबंधी एक महत्वपूर्ण चुनौती का सामना कर रहा है। देश की 63% आबादी कार्यशील आयु की होने के बावजूद, वर्ष 2022 में भारत की श्रम बल भागीदारी दर केवल 55.2% थी (आईएलओ की रिपोर्ट)। यह अंतर चिंताजनक माना जा रहा  है क्योंकि इससे यह पता चलता है कि कार्यशील आयु वाली आबादी का एक बड़ा हिस्सा अर्थव्यवस्था में सक्रिय रूप से योगदान नहीं दे पाने के कारण भारत की क्षमता को सीमित कर रहा है।
  • सेवा आधारित विकास: भारत की आर्थिक वृद्धि का सबसे बड़ा स्त्रोत मुख्य रूप से सेवा क्षेत्र माना जाता है, जो अत्यधिक उत्पादक होने के बावजूद अपने कौशल और पूंजी-गहन प्रकृति के कारण बड़ी संख्या में श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध नहीं कर सकता। विनिर्माण क्षेत्र, जिसमें अधिक श्रम-केंद्रित रोजगार प्रदान करने की क्षमता है, का भी अधिक विकास नहीं हो पाया है। अतः यह क्षेत्रीय असंतुलन एक विविध विकास रणनीति की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, जहां सेवा क्षेत्र के पूरक के तौर पर विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा दिया जा सके।

भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का पूर्ण रूप से उपयोग करने के लिए, ऐसे उद्योगों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जो कार्यबल के एक बड़े हिस्से को अवशोषित कर सकें। पर्यटन, लॉजिस्टिक्स और श्रम-गहन उत्पादन जैसे क्षेत्रों के साथ-साथ विनिर्माण क्षेत्र भी व्यापक रोजगार के अवसर उत्पन्न कर सकता है, जिसमें श्रम बल भागीदारी अंतर और कार्य क्षेत्रों के मध्य असमान विकास को संतुलित करने की क्षमता है।

आगे की राह 

  • विकास को बनाए रखने या तीव्र करने की आवश्यकता: 
    • उत्पादकता में वृद्धि करना : भारत के आर्थिक विकास पथ को बनाए रखने या बढ़ाने के लिए, उत्पादकता संबंधी सुधार पर ध्यान देना आवश्यक है। इसके लिए न केवल आउटपुट बढ़ाने की जरुरत है बल्कि उस आउटपुट को प्राप्त करने हेतु उपयोग किये जाने वाले इनपुट को भी धारणीय बनाना आवश्यक है। इससे अधिकतम उत्पादकता के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित हो सकेगा कि आर्थिक विकास कुशल और टिकाऊ दोनों है।  
    • राज्य सरकारों की भूमिका: हालाँकि केंद्र सरकार द्वारा व्यापार सुगमता संबंधी सुधार सुनिश्चित करने के संबंध में उल्लेखनीय प्रगति की गयी है, लेकिन अब राज्य सरकारों की भी भूमिका समान रूप से महत्वपूर्ण होती जा रही है। इन्हीं सुधारों का किर्यान्वयन देश के विभिन्न राज्यों में कार्यात्मक रूप में होता है जिसे देखते हुए राज्यों को भी अब कारोबारी माहौल और नियामक ढांचे में अधिक से अधिक सुधार लाने के लिए कदम उठाने चाहिए।
      • केंद्र-राज्य सहयोग: प्रभावी और एकीकृत सुधार संबंधी रणनीतियों के लिए केंद्र और राज्यों के मध्य सुदृढ़  सहयोग की आवश्यकता होती है। एक समन्वित दृष्टिकोण के तहत ही यह सुनिश्चित हो पाता है कि चुनौतियों के समाधान और सुधारों को व्यापक रूप से लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों का मिलकर काम करना जरुरी है। केंद्र और राज्यों के सकारात्मक दृष्टिकोण से आर्थिक विकास के संबंध में अधिक अनुकूल वातावरण निर्मित हो पाता है ।
  • श्रम-गहन विकास की आवश्यकता: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 भारत की विकास गतिशीलता के संबंध में निम्नलिखित महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रकट करता है:
    • पूंजी से उत्पादन अनुपात में गिरावट: आधुनिक समय में, तकनीकी व प्रौद्योगिकी संबंधी विकास ने समान मात्रा में उत्पादन हेतु पूंजी की आवश्यकता को कम कर दिया है। हालांकि यह स्थिति दक्षता संबंधी उपलब्धि को इंगित करता है लेकिन साथ ही यह पूंजी और श्रम को संतुलित करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है।
    • पूंजी से श्रम अनुपात में वृद्धि: श्रम नियोजन संबंधी लागत में हुयी वृद्धि भारत जैसे विकासशील देशों  के लिए एक चिंताजनक स्थिति है, जहां श्रम अधिशेष की स्थिति व्याप्त है। परिवर्तन की यह स्थिति उन रणनीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है, जिससे भारत की प्रचुर श्रम शक्ति का बेहतर उपयोग संभव हो सकेगा।
      • गौरतलब है कि पूंजी-सघन विकास पर भारत की वर्तमान निर्भरता इसके श्रम-समृद्ध जनसांख्यिकीय के लिए उपयुक्त नहीं है। उपलब्ध कार्यबल का पूर्ण लाभ उठाने के लिए अधिक श्रम-गहन उद्योगों और अभ्यासों की ओर बढ़ना देश की अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है।
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग और बड़े व्यवसायों के लिए चुनौतियाँ:
    •  सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों  की अरुचि : कई सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (एमएसएमई), अनुपालन और नियामक संबंधी जटिलताओं और भार के कारण आगे बढ़ने के प्रयासों व अवसरों से वंचित हो रहे हैं। मौजूदा नियमों और पुराने श्रम कानूनों की जटिलता के कारण उनका विकास अवरुद्ध हो गया है।
    • बड़े व्यवसायों की अनिच्छा: बड़े उद्यम, उच्च लागत और जटिल एवं बोझिल अनुपालन आवश्यकताओं और पुराने श्रम नियमों के कारण श्रम-गहन क्षेत्रों में निवेश करने में अनिच्छुक दिखाई पड़ते हैं।
    • सक्रिय कार्यान्वयन की आवश्यकता: इन चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए राज्यों को श्रम सुधार कानूनों को लागू करने में सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है। नियमों को सरल और आधुनिक बनाने हेतु बनाये गए नए श्रम कोड को, अनुपालन संबंधी भार में कमी लाने के लिए तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग एवं बड़े व्यवसायों को श्रम-गहन क्षेत्रों में प्रवेश करने में सहायता करने के लिए , सक्रिय रूप से व्यवहार में लाया जाना चाहिए।  
    • हालाँकि वर्तमान समय में, श्रम संहिताओं की संख्या को 44 से 4 कर सुव्यवस्थित कर दिया गया है, लेकिन कई राज्यों में कार्यान्वयन संबंधी अभी भी देरी है, जिससे व्यवसायों और निवेशकों के लिए अनिश्चितता उत्पन्न हो गई है।
  • कृषि क्षेत्र के बजाय अन्य क्षेत्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता :
    •  कृषि क्षेत्र की वर्तमान अवस्थिति : गौरतलब है कि कृषि क्षेत्र 45% कार्यबल को रोजगार देता है लेकिन सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान केवल 18% है। आर्थिक संतुलन के लिए कृषि उत्पादकता में वृद्धि और वैकल्पिक रोजगार के अवसरों की खोज महत्वपूर्ण है।
    • असंगठित और गैर-कृषि क्षेत्र की अवस्थिति : वर्तमान समय में देश का लगभग 19% कार्यबल खंडित एवं  कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों में संलग्न है। ये क्षेत्र अक्सर अनियमित और निम्न तकनीकी विकास वाले होते  हैं,  जिन्हें समर्थन और महत्वपूर्ण सुधार की आवश्यकता है।
    • उच्च विकास क्षमता वाले क्षेत्र: विकासशील देशों में, खिलौने, परिधान, पर्यटन और लॉजिस्टिक्स जैसे क्षेत्र रोजगार के पर्याप्त अवसर प्रदान करते हैं और रोजगार अंतराल को दूर करने में भी मदद करते हैं। इन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर आर्थिक विविधीकरण और कौशल विकास को बढ़ावा मिल सकेगा, जिससे उच्च मूल्य वाले रोजगार सृजन को प्रोत्साहित किया जा सकेगा ।
  • कौशल का महत्व: भारत को तकनीकी व अन्य कौशल संबंधी कमी का अत्यधिक सामना करना पड़ता हैI गौरतलब है कि 15-29 आयु वर्ग के केवल 4.4% कार्यबल औपचारिक रूप से कुशल हैं, जो कार्यबल को प्राप्त शिक्षा और बाजार की जरूरतों के मध्य एक महत्वपूर्ण अंतर को रेखांकित करता है। वर्तमान समय में, कौशल प्रदान करने वाले संस्थान, यथा आईटीआई, उद्योगों की वांछित  मांगों को पर्याप्त रूप से पूरा नहीं कर पा रहे हैं, जिससे इस चुनौती में और वृद्धि हो रही हैं।
    •  उद्योगों  की भागीदारी: उद्योगों की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए, सरकार के नेतृत्व वाले कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों और उद्योग की आवश्यकताओं के मध्य  बेहतर तालमेल बनाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा दिया जा सकता है। उद्योगों की अधिक भागीदारी के द्वारा पाठ्यक्रम डिजाइन और नौकरी के समय प्रशिक्षण को सुनिश्चित किया जा सकता है, जिससे गुणवत्ता युक्त व उन्नत कौशल से युक्त कार्यबल की पुष्टि हो सकेगी। 
    • सांस्कृतिक बदलाव: आजीवन सीखने संबंधी दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करना जरुरी है I नौकरी की परिवर्तित होती भूमिकाओं के साथ सामंजस्य हेतु निरंतर कौशल विकास और अनुकूलनशीलता को बढ़ावा देना आवश्यक है। हालाँकि, भारत में सरकारी नौकरियां प्राप्त करने के संबंध में  एक सुदृढ़ सांस्कृतिक जुनून देखा गया है, जिसे अक्सर स्थायित्व और प्रतिष्ठा के रूप में देखा जाता है। यह मानसिकता व्यक्तियों को कौशल वृद्धि के अवसर तलाशने और निजी क्षेत्र की उभरती जरूरतों के अनुरूप ढलने से रोक सकती है। विकासोन्मुख मानसिकता को बढ़ावा देने के लिए, आरंभिक रोजगार से इतर सीखने संबंधी संस्कृति को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है, जिससे लोगों को वर्तमान के डायनेमिक जॉब मार्केट में अधिक लचीले और विविध कैरियर पथों के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
  • शिक्षा नीति: नई शिक्षा नीति (2020) (एनईपी) मूलभूत कौशल और संज्ञानात्मक विकास पर बल देती है। हालाँकि, तेजी से बदलते वैश्विक संदर्भ में प्रासंगिक बने रहने के लिए इसकी समय-समय पर समीक्षा और इसे अद्यतन किया जाना जरुरी है ।
  • एआई/एमएल का प्रभाव: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग (एमएल) जैसी प्रौद्योगिकियां जॉब मार्केट को नया आकार दे रही हैं। हालाँकि ये प्रौद्योगिकियाँ निम्न कौशल, आवृति कार्यों ( दोहराए जाने वाले कार्य ) यथा डेटा प्रविष्टि आदि के संदर्भ में जोखिम पैदा करती हैं लेकिन  फिर भी ये प्रौद्योगिकियां  सभी नौकरियों को प्रतिस्थापित नहीं कर सकती। 
  • विशेष रूप से जटिल और सूक्ष्म कार्य, जिन्हें एआई पूरी तरह से दोहरा नहीं सकता, के संबंध में मानवीय निरीक्षण और हस्तक्षेप की आवश्यकता अभी भी महत्वपूर्ण बनी हुई है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग (एमएल)  के लाभों को अधिकतम करने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण को अपनाना आवश्यक है, जिसमें निम्न उपायों को शामिल किया जा सकता है :
    • उचित विनियम: उचित  विनियमों को लागू कर यह सुनिश्चित किया जा सकता  है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग (एमएल)  प्रौद्योगिकियों का संभावित दुरुपयोग से बचाव कर उनका उत्तरदायी और नैतिक रूप से उपयोग संभव है।
    • लाभ का दोहन: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग (एमएल)  की क्षमताओं का लाभ उठाकर विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार और दक्षता में अभिवृद्धि की जा  सकती है, जो आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
      •   बाजार अनुमान: वर्ष 2030 तक वैश्विक रूप से  आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग (एमएल)  बाजार में  वृद्धि हो कर 826.73 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद की गयी है, जो आर्थिक प्रभाव और तकनीकी विकास के संबंध में पर्याप्त क्षमता का संकेत देता है।
      • भारत की क्षमता : भारत के पास आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग (एमएल)  के संबंध में वैश्विक स्तर पर प्रतिभा के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैहालाँकि, मांग और आपूर्ति के मध्य  एक महत्वपूर्ण अंतराल व्याप्त  है। 
      • यह अंतर विकास के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है, बशर्ते कि देश इस बढ़ती वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए अपने प्रतिभा पूल को प्रभावी ढंग से संलग्न कर  उसका उपयोग कर सके।

निष्कर्ष: 

विशाल युवा और आकांक्षी आबादी को रोजगार देना एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश करता है, लेकिन अधिक उम्र वाली आबादी से जुड़ी कठिनाइयों की तुलना में यह स्थिति अधिक अनुकूल प्रतीत होती है। भारत अपने पर्याप्त जनसांख्यिकीय लाभांश के साथ स्वयं  को “लाभप्रद स्थिति ” में पाता है, जो विकास के अवसर और जिम्मेदारियाँ दोनों प्रदान करता है। इस लाभ को पूरी तरह से प्राप्त करने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों और कौशल विकास में निवेश करना आवश्यक है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा  सके कि श्रम बल का न केवल भारत के भीतर प्रभावी ढंग से उपयोग हो बल्कि वह वैश्विक मंच पर योगदान करने के लिए भी प्रस्तुत हो। अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग करके भारत पर्याप्त आर्थिक विकास और नवाचार को बढ़ावा दे सकता है, जिससे देश और दुनिया दोनों को बड़े पैमाने पर लाभ प्राप्त हो सकेगा ।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न:

प्रश्न: भारत की आर्थिक वृद्धि में बढ़ते पूंजी से श्रम अनुपात के निहितार्थ की जांच करें। श्रम प्रचुर देश में रोजगार सृजन की आवश्यकता के साथ नीति निर्माता तकनीकी प्रगति को कैसे संतुलित कर सकते हैं I

(15 अंक, 250 शब्द)

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