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Lokesh Pal
September 20, 2024 05:30
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सितंबर 2023 में केंद्र सरकार ने “एक राष्ट्र, एक चुनाव” प्रस्ताव की जांच के लिए पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के नेतृत्व में एक पैनल का गठन किया। आयोग ने इस पहल के लिए समर्थन व्यक्त किया है, और 2029 से इसके कार्यान्वयन की सिफारिश की है। हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भी इसे मंजूरी दे दी है, जो भारत में चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है। “एक राष्ट्र, एक चुनाव” पहल को लागू करने के लिए 15 संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी। हालांकि इसमें कुछ संशोधनों के लिए, राज्य की सहमति की आवश्यकता नहीं है परंतु अन्य के लिए आधे से अधिक राज्यों की सहमति की आवश्यकता होगी। विपक्ष ने पहले ही प्रस्ताव के खिलाफ अपनी असहमति व्यक्त कर दी है, जिससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या सरकार कार्यान्वयन के लिए आवश्यक समर्थन हासिल कर पाएगी।
नोट: पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के नेतृत्व में गठित समिति ने “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के संदर्भ में, पहले कदम के रूप में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने का प्रस्ताव रखा, जिसके बाद आम चुनाव के 100 दिनों के भीतर नगरपालिका और पंचायत चुनाव कराए जाने का प्रस्ताव रखा गया। |
उदाहरण के लिए, पंचायत चुनाव गाँव के विकास और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर केंद्रित होते हैं, जबकि राज्य और राष्ट्रीय चुनाव विचारधारा, उम्मीदवारों या पार्टियों पर जोर दे सकते हैं।
अतः “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के सम्पूर्ण प्रस्ताव में लाभ और चुनौतियों का एक मिश्रित समूह प्रस्तुत किया गया है। जबकि यह संभावित लागत बचत और अधिक सुव्यवस्थित चुनावी प्रक्रिया का वादा करता है, परंतु एक लोकतान्त्रिक देश में , मध्यावधि चुनावों की जटिलताओं और संघवाद के क्षरण के बारे में चिंताओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसलिए, ऐसे सुधारों के निहितार्थों का आकलन करने के लिए हितधारकों के साथ व्यापक बातचीत आवश्यक है, यह सुनिश्चित करते हुए कि चुनावी ढांचे में कोई भी बदलाव लोकतांत्रिक सिद्धांतों को मजबूत करता है और प्रभावी शासन को बढ़ाता है।
मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्नप्रश्न: भारत में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की प्रणाली लागू करने के संभावित प्रभावों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। (15 मिनट, 250 शब्द) |
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