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सोशल मीडिया और बच्चों का समग्र विकास

Lokesh Pal September 23, 2024 03:30 118 0

संदर्भ

आस्ट्रेलियाई सरकार बच्चों के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक पहुँच हेतु न्यूनतम आयु निर्धारित करने की योजना बना रही है।

  • ऑस्ट्रेलिया की संघीय सरकार ने 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के सोशल मीडिया अकाउंट पर प्रतिबंध लगाने के उद्देश्य से आयु सत्यापन प्रौद्योगिकी के परीक्षण के लिए 6.5 मिलियन डॉलर देने का वादा किया है।

भारत एवं विश्व में प्रतिबंध/विनियमन के प्रयास

  • कर्नाटक उच्च न्यायालय: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक मौखिक आदेश में केंद्र सरकार को सोशल मीडिया के उपयोग के लिए आयु सीमा लाने का सुझाव दिया।
  • भारत का डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA)
    • धारा 9 में 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के डेटा के लिए तीन शर्तें तय की गई है:-
      • माता-पिता की सत्यापन योग्य सहमति प्राप्त करना।
      • व्यक्तिगत डेटा का प्रसंस्करण बच्चे के कल्याण के अनुरूप होना चाहिए।
      • बच्चों की ट्रैकिंग या व्यावहारिक निगरानी अथवा बच्चों पर लक्षित विज्ञापन पर प्रतिबंध।
  • यूटाह (Utah), संयुक्त राज्य अमेरिका: यह बच्चों की सोशल मीडिया तक पहुँच को विनियमित करने वाले कानून को अपनाने वाला पहला संयुक्त अमेरिकी राज्य बन गया है।
  • फ्लोरिडा सोशल मीडिया विनियमन कानून: सोशल मीडिया कंपनियों को उन अकाउंट्स को बंद करना होगा, जिनका उपयोग 14 वर्ष से कम आयु के नाबालिगों द्वारा किया जा रहा है या माता-पिता अथवा नाबालिगों के अनुरोध पर खातों को रद्द करना होगा तथा खातों से सभी जानकारी हटानी होगी।
  • बाल कलाकारों पर कानून 
    • भारत: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा मनोरंजन उद्योग में बच्चों तथा किशोरों की भागीदारी के लिए वर्ष 2023 में जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, किसी भी दृश्य-श्रव्य सामग्री में किसी बच्चे के अभिनय करने से पहले निर्माताओं को जिला मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होगी।
    • फ्राँस: इस कानून के अनुसार, यदि 16 वर्ष से कम आयु का कोई बच्चा इन्फ्लूऐंसर है तथा आय अर्जित करता है, तो उसके माता-पिता उस आय का तब तक उपयोग  नहीं सकते, जब तक कि बच्चा 16 वर्ष का नहीं हो जाता है।

 सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश करने के कारण

  • साइबर बुलिंग (Cyber Bullying): युवा बच्चे, विशेषकर लड़कियाँ साइबर बुलिंग का सबसे आसान लक्ष्य होती हैं तथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इसके उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं।
    • उदाहरण: चीनी ऐप टिकटॉक अक्सर युवा लड़कियों को साइबर बुलिंग का शिकार बनाने के लिए समाचारों में रहता है।

  • पोर्नोग्राफी: बच्चे इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर पोर्नोग्राफिक सामग्री देख सकते हैं, जो उनके संवेदनशील दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, क्योंकि वे आसानी से इसके आदी हो सकते हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2022 में, भारत में बाल पोर्नोग्राफी के एक हजार से अधिक मामले दर्ज किए गए, जिनमें कर्नाटक में सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई थी।
  • फीडबैक लूप में फँसने की लत एवं खतरा: सोशल मीडिया को उपयोगकर्ताओं के ध्यान का ह्रास करने के लिए डिजाइन किया गया है, जो एक जोखिम उत्पन्न करता है, क्योंकि छोटे बच्चे आसानी से ऐसे डोपामाइन-संचालित फीडबैक लूप के शिकार हो जाएँगे तथा इसके आदी हो जाएँगे।
  • मानसिक अस्थिरता: ऑनलाइन उपस्थिति बढ़ने से बच्चों के संज्ञानात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, क्योंकि इससे वे अलग-थलग पड़ जाते हैं, उनके सामाजिक कौशल पर असर पड़ता है, जिसका असर उनके भविष्य की मानसिक शांति तथा स्थिरता पर पड़ता है।
    • प्रोफेसर जोनाथन हैडट की मनोविज्ञान पुस्तक ‘द एंग्जियस जेनरेशन: हाउ द ग्रेट रीवायरिंग ऑफ चाइल्डहुड इज कॉजिंग एन एपिडेमिक ऑफ मेंटल इलनेस’ युवाओं के खराब मानसिक स्वास्थ्य तथा कल्याण एवं स्मार्टफोन व सोशल मीडिया के उदय के कारणों के बीच सीधा संबंध बताती है।
  • हिंसा: सोशल मीडिया पर हिंसक वायरल सामग्री जैसे- यौन अपमानजनक सामग्री, बदमाशी, अपशब्द, सॉफ्ट पोर्न, अभद्र भाषा आदि के संपर्क में आने वाले बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति विकसित हो सकती है।
    • उदाहरण: मुंबई स्थित एसोसिएशन ऑफ एडोलसेंट एंड चाइल्ड केयर इन इंडिया (AACCI) ने मुंबई  तथा गुरुग्राम के स्कूलों का सर्वेक्षण किया और पाया कि आक्रामकता बढ़ रही है।
  • स्वास्थ्य प्रभाव: सोशल मीडिया की लत मानसिक नुकसान/ अति सक्रियता विकार (ADHD), आक्रामकता, स्मृति समस्याओं, सिरदर्द, आँख और पीठ में तकलीफ, तनाव, संचार कठिनाइयों, सुस्ती और यहाँ तक ​​कि अवसाद के रूप में प्रकट हो सकती है।
    • सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग के कारण बच्चों की नींद प्रभावित होती है।
  • गलत सूचना का शिकार होना: सोशल मीडिया गलत सूचनाओं का अड्डा है। दुष्प्रचार के जरिए बच्चों का दिमाग आसानी से परिवर्तित किया जा सकता है।
    • यूनिसेफ (UNICEF) के एक अध्ययन के अनुसार, केवल 2% बच्चों तथा युवाओं के पास ही वह महत्त्वपूर्ण साक्षरता कौशल है, जो यह निर्णय लेने के लिए आवश्यक है कि कोई समाचार सच है या झूठा।

सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध के खिलाफ तर्क 

  • प्रवर्तन संबंधी चुनौतियाँ: डिजिटल वातावरण में प्रतिबंधों को लागू करना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि बच्चे आसानी से इन बाधाओं को पार कर सकते हैं।
    • उदाहरण: जब दक्षिण कोरिया ने सिंड्रेला कानून पारित कर मध्य रात्रि से सुबह 6 बजे तक गेमिंग पर प्रतिबंध लगा दिया, तो गेमिंग प्लेटफॉर्मों तक पहुँच बनाने के लिए बच्चों द्वारा पहचान की चोरी में वृद्धि हुई।
  • साझा डिवाइस उपयोग: भारत में, चूँकि डिजिटल साक्षरता काफी कम है, बच्चे अपने माता-पिता को इंटरनेट पर नेविगेट करने में मदद करते हैं, इसलिए माता-पिता से यह अपेक्षा करना कि वे बच्चों को सुरक्षित ऑनलाइन उपयोग के बारे में मार्गदर्शन देंगे, व्यवहार्य नहीं है।
    • उदाहरण: भारत के टियर 2 और टियर 3 शहरों तथा सरकारी स्कूलों के 10,000 बच्चों पर किए गए सर्वेक्षण से पता चला कि 80% बच्चों ने अपने अभिभावकों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर नेविगेट करने में मदद की।
  • कम डिजिटल साक्षरता: ID आधारित सत्यापन जैसी आयु सत्यापन प्रौद्योगिकियों का उपयोग उन लोगों के लिए कठिन होगा, जो कम साक्षर हैं।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 केवल 40% भारतीय जानते थे कि कंप्यूटर पर फाइलों को कैसे कॉपी या स्थानांतरित किया जाता है।
  • जवाबदेही से मुक्ति: पूर्ण प्रतिबंध से प्रौद्योगिकी कंपनियाँ जिम्मेदारी लेने से हतोत्साहित होंगी तथा बाल सुरक्षा मापदंडों को ध्यान में रखते हुए प्लेटफॉर्म डिजाइन करने की अनिवार्यता कम होगी।
  • सकारात्मक डिजिटल जुड़ाव का निषेध: सोशल मीडिया बच्चों को आलोचनात्मक ढंग से सोचने और समान रुचियों वाले लोगों के साथ जुड़ने में मदद कर सकता है, जिससे इसके व्यापक संसाधनों के साथ भविष्य के लिए महत्त्वपूर्ण सामाजीकरण, संचार कौशल का निर्माण होता है।
    • उदाहरण: ग्रेटा थनबर्ग जैसी जलवायु कार्यकर्ता ने अपने संदेश के प्रचार-प्रसार के लिए सोशल मीडिया का उपयोग किया तथा समान विचारधारा वाले बच्चों का एक समुदाय बनाया। 
  • शिक्षण उपकरण: डिजिटल युग और सोशल मीडिया ने बच्चों तथा युवाओं के लिए संवाद करने, सीखने, सामाजीकरण और खेलने के अभूतपूर्व अवसर उत्पन्न किए हैं, जिससे उन्हें नए विचारों और सूचना के अधिक विविध स्रोतों से परिचित होने का अवसर मिला है।

आगे की राह

बच्चों के लिए सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना उचित नहीं है क्योंकि आज के युग में इंटरनेट सर्वव्यापी है, इसलिए कुछ उपायों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, जैसे-

  • आयु-उपयुक्त डिजाइन अपनाएँ: UK के वर्ष 2020 आयु-उपयुक्त डिजाइन मॉडल का पालन करें, जहाँ बच्चों के प्लेटफॉर्म से जुड़ने पर उनके लिए बेहतर डिफॉल्ट सेटिंग होती है तथा उन्हें न्यूनतम जोखिम का सामना करना पड़ता है।
  • प्रौद्योगिकी डिजाइनों पर निरंतर प्रतिक्रिया: प्लेटफॉर्मों को निरंतर प्रौद्योगिकी डिजाइन उन्नयन में संलग्न रहना चाहिए, जब भी कोई नया जोखिम आता है, साथ ही बच्चों के व्यवहार में देखे गए परिवर्तनों की निगरानी के लिए एक प्रतिक्रिया तंत्र भी होना चाहिए।
    • एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि मेटा, गूगल, टिकटॉक तथा स्नैपचैट जैसे प्लेटफॉर्मों ने बाल सुरक्षा और गोपनीयता से संबंधित 128 बदलाव किए हैं।
  • डिजिटल सुरक्षा साक्षरता: बच्चों को उनके मुख्य पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में डिजिटल सुरक्षा अभ्यास सिखाया जाना चाहिए, जैसे हम उन्हें भौतिक दुनिया में सुरक्षा अभ्यास सिखाते हैं।
  • ‘शेयरेंटिंग’ (Sharenting) पर विधिक चर्चा: यह एक ऐसी प्रथा है, जिसमें माता-पिता अपने बच्चों के बारे में संभावित रूप से संवेदनशील सामग्री को इंटरनेट प्लेटफॉर्मों पर बड़ी मात्रा में प्रचारित करते हैं।
    • उदाहरण: असम पुलिस अपने सोशल मीडिया का उपयोग माता-पिता को ‘शेयरेंटिंग’ के विरुद्ध चेतावनी देने के लिए कर रही है।
  • माता-पिता रोल मॉडल के रूप में: सोशल मीडिया का उपयोग बच्चों तक सीमित रखना तथा इसे अपने मनोरंजन के लिए इस्तेमाल करना, बच्चे को और अधिक क्रोधित तथा धोखेबाज बना देगा। इसलिए, माता-पिता को भी अपने प्लेटफॉर्म के उपयोग को नियंत्रित करना होगा।
    • शोध से पता चलता है कि जब माता-पिता अपने बच्चे को ऑनलाइन होने के लाभों को अधिकतम करने में सहायता करते हैं, तो इससे नुकसान भी कम होता है।
  • साक्ष्य आधारित नीति: उच्च गुणवत्ता वाले, बाल-केंद्रित अनुसंधान को प्रमुख प्लेटफॉर्मों द्वारा नीतियों और डिजाइनों का मार्गदर्शन करना चाहिए तथा उद्योग-व्यापी मानकों को विकसित करना चाहिए, जो यह परिभाषित करते हैं कि विभिन्न आयु के बच्चों के लिए किस प्रकार की सामग्री उपयुक्त है।
    • इसमें त्वरित अनुसंधान प्रक्रियाएँ शामिल हैं, जो उभरते डिजिटल जोखिमों के साथ तालमेल बनाए रखती हैं।
  • सुरक्षा-द्वारा-डिजाइन सिद्धांतों को लागू करना: ऑस्ट्रेलियाई ई-सुरक्षा आयुक्त द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय सिद्धांत का उद्देश्य तकनीकी उत्पादों और प्लेटफॉर्मों के डीएनए में सुरक्षा सुविधाओं को शामिल करना है ताकि उनके फीड से यौन, हिंसक और अन्य आयु-अनुचित सामग्री को समाप्त किया जा सके।
    • नाबालिगों को डिफॉल्ट रूप से गोपनीयता प्रदान करना।
    • विभिन्न प्लेटफॉर्म पर मानकीकृत, आसानी से सुलभ और अच्छी तरह से समझाई गई रिपोर्टिंग प्रक्रियाएँ प्रदान करना।
    • बच्चों के साथ बातचीत करने का प्रयास करने वाले बुरे लोगों का पता लगाने के लिए AI का उपयोग करना।

सोशल मीडिया और इसका उपयोग

  • सोशल मीडिया के बारे में: यह एक प्रकार की डिजिटल तकनीक है, जो पाठ, ऑडियो और दृश्य प्रारूपों तथा आभासी नेटवर्क एवं समुदायों के माध्यम से अपने उपयोगकर्ताओं के बीच विचारों व सूचनाओं को साझा करने की सुविधा प्रदान करती है।
    • उदाहरण: फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स (पूर्व में ट्विटर), यूट्यूब, व्हाट्सऐप, लिंक्डइन कुछ उल्लेखनीय सोशल मीडिया कंपनियाँ हैं।

  • उपयोगकर्ता: सोशल मीडिया के 5 बिलियन से अधिक सक्रिय उपयोगकर्ता हैं, जो विश्व की लगभग 62% जनसंख्या के बराबर है।
  • भारतीय उपयोगकर्ता: सोशल मीडिया, वीडियो/ओटीटी और ऑनलाइन गेमिंग के संबंध में 9-17 वर्ष की आयु के बच्चों की दैनिक इंटरनेट खपत के संबंध में लोकलसर्किल्स द्वारा वर्ष 2022 में किए गए सर्वेक्षण में कहा गया है,
    • 61% शहरी भारतीय बच्चे प्रतिदिन औसतन 3 घंटे या उससे अधिक समय इंटरनेट पर बिताते हैं, जिनमें से 46% 3-6 घंटे और 15% 6 घंटे से अधिक समय बिताते हैं।
    • 39% किशोर रोजाना 1-3 घंटे गैजेट का इस्तेमाल करते हैं।
    • एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (Annual Status of Education Report- ASER) के अनुसार, 90% से अधिक किशोर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं।

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