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फैक्ट चेक यूनिट (FCU)

Lokesh Pal September 23, 2024 04:04 9 0

संदर्भ

बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र के संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (IT) नियम, 2023 को रद्द कर दिया है, जिसके तहत प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) के तहत एक फैक्ट चेक यूनिट (FCU) की स्थापना की गई थी, जिसका कार्य सोशल मीडिया सामग्री को फर्जी, गलत या भ्रामक के रूप में चिह्नित करना था।

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस इकाई को इसकी अस्पष्टता तथा मुक्त भाषण एवं व्यापार पर इसके संभावित प्रभाव के कारण असंवैधानिक पाया।

फैक्ट चेक यूनिट (FCU) के बारे में

  • वर्ष 2019 में स्थापना: PIB के तहत फैक्ट चेक यूनिट की स्थापना नवंबर 2019 में की गई थी, जिसका उद्देश्य फर्जी खबरों एवं गलत सूचनाओं के निर्माताओं एवं प्रसारकों के खिलाफ निवारक के रूप में कार्य करना था।
  • अधिदेश और संचालन: ‘फैक्ट चेक यूनिट को सरकारी नीतियों, पहलों और योजनाओं के बारे में गलत सूचनाओं का स्वसंज्ञान से या शिकायतों के माध्यम से मुकाबला करने का दायित्व सौंपा गया है।
    • यह लोगों को भारत सरकार से संबंधित संदिग्ध और संदेहास्पद जानकारी की रिपोर्ट करने का आसान माध्यम भी प्रदान करता है।

सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम 2023

  • IT नियम, 2021 में संशोधन: सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम 2023, IT नियम, 2021 में संशोधन करता है। 
  • संशोधन से फैक्ट चेक यूनिट की स्थिति में बदलाव: एक आधिकारिक फैक्ट चेक यूनिट चार वर्षों से अधिक समय से PIB के अधीन कार्य कर रही है। 
    • हालाँकि, इस संशोधन ने फैक्ट चेक यूनिट को कानूनी अधिकार और फेसबुक तथा ट्विटर (X) जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर फैक्ट चेक यूनिट द्वारा ‘फर्जी’ करार दी गई, किसी भी सामग्री को हटाने के लिए कानूनी दायित्व लागू करने की शक्ति प्रदान की। 
    • सरकार ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) की FCU को केंद्र सरकार की फैक्ट चेक यूनिट के रूप में नामित किया। 
  • सेफ हार्बर की स्थिति: फैक्ट चेक यूनिट (FCU) द्वारा ‘नकली या भ्रामक’ के रूप में चिह्नित सामग्री को ऑनलाइन मध्यस्थों द्वारा हटाया जाना होगा, यदि वे अपने ‘सेफ हार्बर’ (तीसरे पक्ष की सामग्री के विरुद्ध कानूनी प्रतिरक्षा) को बनाए रखना चाहते हैं। 

FCU को रद्द करने के लिए न्यायालय द्वारा बताए गए कारण

  • IT अधिनियम के अधिकार क्षेत्र से बाहर: यह नियम सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम के अधिकार क्षेत्र से बाहर था। 
    • यह संशोधन अधिकार-बाह्य था, क्योंकि यह आयकर अधिनियम, 2000 का अनुपालन नहीं करता था तथा न ही इसे अधिनियम, 2000 की धारा 87 के अनुसार संसद के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। 
    • यह संशोधन एक प्रत्यायोजित विधान था।

  • अनुच्छेद-14 और 19 का उल्लंघन: सूचना प्रौद्योगिकी (IT) नियम, 2023 के नियम 3(1)(B)(V) ने भारतीय संविधान के प्रमुख प्रावधानों, विशेष रूप से अनुच्छेद-14 (कानून के समक्ष समानता), अनुच्छेद-19(1)(A) (वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद-19(1)(G) (किसी भी पेशे या व्यवसाय का अभ्यास करने की स्वतंत्रता) का उल्लंघन किया है। 
  • अनुच्छेद-19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों का उल्लंघन: संशोधन ने मुक्त भाषण पर प्रतिबंध लगाए, जो अनुच्छेद-19(2) के तहत अनुमत उचित प्रतिबंधों के अनुरूप नहीं थे। 
  • ‘नकली, झूठे या भ्रामक’ शब्दों में अस्पष्टता: संशोधित IT नियमों में “नकली, झूठे या भ्रामक” शब्द बहुत अस्पष्ट एवं अतिव्यापक हैं, जिससे उनके आवेदन में अनिश्चितता उत्पन्न होती है। 
  • आनुपातिकता के स्तर पर प्रभावी न होना: यह नियम आनुपातिकता के स्तर पर प्रभावी नहीं है, जिसका अर्थ है कि इसने मुक्त वाक् एवं अभिव्यक्ति पर अत्यधिक प्रतिबंध लगा दिए, जो न्यायोचित या संतुलित नहीं थे। 
  • अनुच्छेद-19(1)(A) के तहत सत्य का कोई अधिकार नहीं: वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता [अनुच्छेद-19(1)(A)] के तहत कोई संवैधानिक ‘सत्य का अधिकार’ नहीं है। 
    • इसके अलावा, यह सुनिश्चित करना भी राज्य की जिम्मेदारी नहीं है कि नागरिकों को केवल वही ‘सूचना’ प्राप्त करने का अधिकार है जो नकली, झूठी या भ्रामक न हो, जैसा कि FCU ने पहचाना है। 
  • डिजिटल और प्रिंट मीडिया के साथ असंगत व्यवहार: डिजिटल रूप में उपलब्ध सूचना को प्रिंट मीडिया से अलग मानने का कोई आधार या औचित्य नहीं था, जिससे केंद्र सरकार से संबंधित सूचना के मूल्यांकन में असंगतता उत्पन्न हुई। 
  • बिचौलियों पर नकारात्मक प्रभाव: इस नियम के परिणामस्वरूप बिचौलियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा, क्योंकि उन्हें तीसरे पक्ष की सामग्री की मेजबानी करने के कारण ‘सुरक्षित आश्रय’ या उनकी कानूनी प्रतिरक्षा खोने का खतरा था। 

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