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उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश दलितों पर अत्याचार के मामले में शीर्ष पर

Lokesh Pal September 24, 2024 01:00 12 0

संदर्भ 

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत नवीनतम सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, अनुसूचित जनजातियों (ST) के खिलाफ अधिकांश अत्याचार भी 13 राज्यों में केंद्रित थे, जहाँ वर्ष 2022 में सभी मामलों का 98.91% दर्ज किया गया। ये आँकड़े अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत जाँच और आरोप-पत्र की स्थिति से एकत्र किए गए हैं।

  • साथ ही इस रिपोर्ट में अनुसूचित जाति (SCs) के खिलाफ अत्याचार के मामलों पर भी प्रकाश डाला गया है।

SCs एवं STs के खिलाफ अत्याचार पर मुख्य निष्कर्ष (2022)

  • अनुसूचित जाति के खिलाफ अत्याचार के 97.7% मामले 13 राज्यों से दर्ज किए गए, जिनमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं मध्य प्रदेश सबसे शीर्ष पर हैं।
    • उत्तर प्रदेश: 12,287 मामलों (23.78%) के साथ अनुसूचित जाति के खिलाफ अत्याचार की सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई।
  • राजस्थान एवं ओडिशा: दोनों राज्य SCs एवं STs से संबंधित अपराधों में महत्त्वपूर्ण रूप से शामिल हैं।
  • STs के खिलाफ 98.91% अत्याचार भी 13 राज्यों में केंद्रित थे, जिनमें मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे।
    • मध्य प्रदेश: 2,979 मामलों (30.61%) के साथ ST मामलों में सबसे आगे है।
  • संबंधित अधिनियम के तहत दोषसिद्धि दर में गिरावट आई है, जो वर्ष 2020 में 39.2% से घटकर वर्ष 2022 में 32.4% हो गई है।
  • कई राज्यों में अभी भी इन मामलों को कुशलतापूर्वक निपटाने के लिए आवश्यक विशेष न्यायालयों का अभाव है।

दलित (Dalit) के बारे में

  • दलित, जिन्हें अनुसूचित जाति (SCs) के रूप में भी जाना जाता है, भारत में एक सामाजिक रूप से वंचित समूह है।
  • ऐतिहासिक रूप से, उन्हें ‘अछूत’ माना जाता था एवं मुख्यधारा के समाज से गंभीर भेदभाव तथा बहिष्कार का सामना करना पड़ता था।

अनुसूचित जाति के अधिकारों की रक्षा के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-15(1): धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है।
  • अनुच्छेद-17: अस्पृश्यता को समाप्त करता है।
  • अनुच्छेद-23: जबरन श्रम या बेगार प्रथा पर रोक लगाता है।  
  • अनुच्छेद-46: राज्य को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के कल्याण को बढ़ावा देने का निर्देश देता है।
  • अनुच्छेद-16(4) एवं 16(5): अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए सेवाओं तथा पदों में आरक्षण प्रदान करना।
  • अनुच्छेद-21: जीवन एवं स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें भेदभाव से मुक्त होने का अधिकार भी शामिल है।
  • अनुच्छेद 335: राज्य को राज्य के अधीन सेवाओं एवं पदों में SCs तथा STs का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का निर्देश देता है।
  • अनुसूचित मामले एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989

  • इस अधिनियम को SCs एवं STs के खिलाफ अत्याचारों को रोकने के लिए मजबूत कानूनी आधार सुनिश्चित करने के लिए अधिनियमित किया गया।
  • इस अधिनियम के तहत अपराधों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों में मुकदमा चलाया जाता है।
  • जाति आधारित हिंसा एवं दुर्व्यवहार का सामना करने वाले कमजोर समुदायों को सुरक्षा तथा न्याय प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

हालिया संशोधन

  • वर्ष 2015 का संशोधन: इस संशोधन में SCs/STs महिलाओं की यौन उत्पीड़न से सुरक्षा के लिए प्रावधान प्रस्तुत किए गए।
  • वर्ष 2019 का संशोधन: यह संशोधन उच्चतम न्यायालय के वर्ष 2018 के निर्णय के जवाब में पारित किया गया था, जिसमें SC/ST अधिनियम के तहत गिरफ्तारी के लिए कुछ प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय प्रस्तुत किए गए थे। 
  • वर्ष 2019 के संशोधन ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय को खारिज करते हुए अधिनियम के मूल प्रावधानों को पुनर्स्थापित कर दिया। 

कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ

  • सजा की घटती दर एवं विलंबित जांच संबंधी न्याय हासिल करने में बड़ी बाधाएं उत्पन्न करती हैं।
  • अपर्याप्त विशेष न्यायालय: 14 राज्यों के 498 जिलों में से केवल 194 में विशेष न्यायालय स्थापित किए गए हैं।
  • उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में, अधिक संख्या में मामलों के बावजूद, किसी भी अत्याचार-प्रवण क्षेत्र की सूचना नहीं है।
  • SC/ST ‘सुरक्षा इकाई’ मौजूद हैं, लेकिन उनकी प्रभावकारिता सभी राज्यों में असमान है।

आगे की राह

  • विशेष न्यायालयों को मजबूत करना: त्वरित सुनवाई के लिए एवं अधिक विशेष न्यायालयों की स्थापना सुनिश्चित करना।
  • दोषसिद्धि दर में सुधार: जाँच प्रक्रियाओं में सुधार एवं कानूनी खामियों को दूर करने पर ध्यान देना।
  • अत्याचार-प्रवण क्षेत्रों की पहचान करना: राज्यों को लक्षित हस्तक्षेप के लिए उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों को पहचानना एवं संबोधित करना चाहिए।
  • जागरूकता एवं संवेदनशीलता: अत्याचारों को रोकने तथा SCs/STs अधिनियम के बेहतर कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए जागरूकता अभियान चलाना।

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