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भारत-अमेरिका संबंध

Lokesh Pal September 24, 2024 05:20 18 0

संदर्भ

हाल ही में क्वाड बैठक के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच हुई बैठक में भारत-अमेरिका संबंधों को वैश्विक शांति, समृद्धि और सुरक्षा की आधारशिला के रूप में पुनः पुष्टि की गई।

भारत-अमेरिका संबंध के बारे में

  • आधार: संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच रणनीतिक साझेदारी लोकतंत्र के प्रति आपसी समर्पण और नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखने पर आधारित है। 
  • पृष्ठभूमि और विकास
    • वर्ष 1949: प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संयुक्त राज्य अमेरिका के दौरे पर अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन से मुलाकात की थी।
    • वर्ष 1998: भारत ने कई परमाणु परीक्षण किए, जिसके कारण अमेरिका के साथ संबंधों में तनाव की स्थिति बनी रहती थी।
    • वर्ष 2008: परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को छूट दी, जिससे परमाणु मुख्यधारा तथा प्रौद्योगिकी निषेध व्यवस्था से भारत का अलगाव प्रभावी रूप से समाप्त हो गया। इस छूट ने परमाणु प्रौद्योगिकी एवं व्यापार में सहयोग बढ़ाने की अनुमति दी गई थी।
    • वर्ष 2010: पहली अमेरिका-भारत रणनीतिक वार्ता आयोजित की गई थी।
    • वर्ष 2016: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित किया।
    • वर्ष 2023: अमेरिका ने भारतीय प्रधानमंत्री की राजकीय यात्रा की मेजबानी की।
  • संबंधों को मजबूत करना
    • संवाद तंत्र: दोनों सरकारों ने प्रभावी संचार एवं सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए 50 से अधिक द्विपक्षीय संवाद तंत्र स्थापित किए हैं।
    • कई क्षेत्रों में सहयोग: कोविड-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, भारत और अमेरिका ने रक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा, व्यापार, अर्थव्यवस्था, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी आदि जैसे कई क्षेत्रों में सक्रिय रूप से सहयोग किया है।
  • अतीत की बाधाओं में कमी: जम्मू और कश्मीर से संबंधित चिंताओं तथा पाकिस्तान के साथ संबंधों की गतिशीलता (डी-हाइफनेशन) जैसे ऐतिहासिक मुद्दों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया गया है।

भारत तथा अमेरिका के बीच रक्षा समझौते

  • सैन्य सूचना का सामान्य सुरक्षा समझौता (General Security of Military Information Agreement- GSOMIA): वर्ष 2002 में हस्ताक्षरित इस समझौते में यह गारंटी दी गई है कि दोनों देश आपस में साझा की जाने वाली किसी भी वर्गीकृत सूचना या प्रौद्योगिकी की सुरक्षा करेंगे।
  • रसद विनिमय समझौता (Logistics Exchange Agreement- LEMOA): इस समझौते पर वर्ष 2016 में हस्ताक्षर किए गए थे और यह सैन्य रसद साझा करने के लिए रूपरेखा प्रदान करता है।
  • संचार सुरक्षा समझौता (Communications Security Agreement- COMCASA): वर्ष 2018 में हस्ताक्षरित, यह अमेरिका को अपने मालिकाना एन्क्रिप्टेड संचार उपकरण और प्रणालियों के साथ भारत को आपूर्ति करने में सक्षम बनाता है, जिससे दोनों पक्षों के उच्च-स्तरीय सैन्य नेताओं के बीच सुरक्षित शांतिकाल और युद्धकालीन संचार की अनुमति मिलती है।
  • बुनियादी विनिमय सहयोग समझौता (Basic Exchange Cooperation Agreement- BECA): वर्ष 2020 में हस्ताक्षरित यह समझौता भारत को अमेरिकी भू-स्थानिक खुफिया जानकारी तक वास्तविक समय पर पहुँच प्राप्त करने में मदद करेगा, जिससे मिसाइलों और सशस्त्र ड्रोन जैसी स्वचालित प्रणालियों और हथियारों की सटीकता में वृद्धि होगी।

भारत-अमेरिका बैठक के मुख्य परिणाम

  • रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना: दोनों नेताओं ने मजबूत वैश्विक रणनीतिक साझेदारी की पुष्टि की, साझा लोकतांत्रिक मूल्यों पर जोर दिया तथा रक्षा, प्रौद्योगिकी और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में संरेखण किया।
  • भारत की वैश्विक भूमिका के लिए समर्थन: राष्ट्रपति बाइडेन ने G20 तथा ग्लोबल साउथ में भारत के नेतृत्व की प्रशंसा की तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारत के प्रयास के प्रति अमेरिकी समर्थन की पुनः पुष्टि की गई।
  • रक्षा और एयरोस्पेस सहयोग: रक्षा सहयोग में प्रगति पर प्रकाश डाला गया, जिसमें MQ-9B ड्रोन की खरीद और C-130J विमान के लिए रखरखाव, मरम्मत और निरीक्षण (MRO) सुविधा की शुरुआत शामिल है।
  • प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम प्रौद्योगिकी और संयुक्त NASA-ISRO अनुसंधान में सहयोग बढ़ाने की प्रतिबद्धताओं के साथ iCET पहल की सफलता का जश्न मनाया गया।
  • IPEF समझौता: भारत ने स्वच्छ और निष्पक्ष अर्थव्यवस्था पर अमेरिका के नेतृत्व वाले 14-सदस्यीय इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी (IPEF) ब्लॉक के समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
  • स्वच्छ ऊर्जा सहयोग: नेताओं ने स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाओं को मजबूत करने, नवीकरणीय परियोजनाओं के लिए 1 बिलियन डॉलर का वित्तपोषण करने और हरित प्रौद्योगिकी का समर्थन करने के प्रयासों का समर्थन किया।
  • स्वास्थ्य और आर्थिक पहल: सिंथेटिक ड्रग तस्करी से निपटने के लिए एक नया यू.एस.-भारत ड्रग पॉलिसी फ्रेमवर्क शुरू किया गया, साथ ही कैंसर अनुसंधान, SME सहयोग और जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रथाओं में पहल की गई।
  • प्राचीन वस्तुओं की वापसी: अमेरिका ने अपने सांस्कृतिक संपत्ति समझौते के हिस्से के रूप में भारत को 297 चोरी या तस्करी की गई प्राचीन वस्तुएँ लौटा दीं।

भारत-अमेरिका संबंधों का महत्त्व 

  • रक्षा सहयोग
    • आधारभूत रक्षा समझौते: भारत तथा अमेरिका ने LEMOA, COMCASA और BECA सहित प्रमुख रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। ये समझौते अंतर-संचालन क्षमता और सुरक्षित सैन्य संचार को बढ़ाते हैं।
    • रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार: भारत ने MQ-9B सीगार्डियन ड्रोन खरीदे हैं और रक्षा औद्योगिक सहयोग रोडमैप के तहत, अमेरिका भारत में GE F414 जेट इंजन का सह-उत्पादन कर रहा है।
  • आर्थिक संबंध
    • द्विपक्षीय व्यापार: अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसका वस्तुओं एवं सेवाओं का व्यापार वर्ष 2022 में 191 बिलियन डॉलर को पार कर गया। अमेरिका भारतीय निर्यात के लिए एक प्रमुख बाजार है, विशेषकर फार्मास्यूटिकल्स और IT सेवाओं जैसे क्षेत्रों में।
    • निवेश पहल: अमेरिका भारत में शीर्ष निवेशकों में से एक है, जिसने वर्ष 2022-23 के दौरान 6.04 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) किया है।
  • रणनीतिक आधार
    • वैश्विक कूटनीति: भारत तथा अमेरिका QUAD, I2U2 जैसे बहुपक्षीय संस्थानों में मिलकर कार्य करते हैं तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों की सिफारिश करते हैं।
      • अमेरिका स्थायी सदस्यता के लिए भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करता है।
  • ऊर्जा साझेदारी/जलवायु एवं स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा 2030
    • रणनीतिक स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी (Strategic Clean Energy Partnership- SCEP): वर्ष 2021 में स्थापित इस साझेदारी का उद्देश्य सौर, पवन और परमाणु ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग का विस्तार करना है।
      • अमेरिका-भारत जलवायु एवं स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा 2030 का लक्ष्य स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी विकास है।
    • संयुक्त स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाएँ: अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय विकास वित्त निगम (DFC) ने भारतीय कंपनियों को ऋण देकर भारत के सौर ऊर्जा क्षेत्र में निवेश किया है।
    • महत्त्वपूर्ण खनिज साझेदारी: दोनों देश अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करने में सहयोग करते हैं।
  • शिक्षा एवं सांस्कृतिक सहयोग
    • फुलब्राइट-नेहरू कार्यक्रम: यह कार्यक्रम अकादमिक आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाता है तथा भारतीय और अमेरिकी विद्वानों के बीच शैक्षिक सहयोग को बढ़ाता है।
    • शैक्षणिक नेटवर्क की वैश्विक पहल (Global Initiative of Academic Networks- GIAN): इस पहल के माध्यम से, अमेरिकी संकाय सदस्य भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाते हैं, जिससे उच्च शिक्षा सहयोग को बढ़ावा मिलता है।
    • सांस्कृतिक संपत्ति समझौता (Cultural Property Agreement- CPA): वर्ष 2024 में हस्ताक्षरित CPA का उद्देश्य सांस्कृतिक कलाकृतियों की अवैध तस्करी को रोकना और भारतीय पुरावशेषों की वापसी सुनिश्चित करना है।
  • प्रवासी/लोगों के बीच संबंध
    • अमेरिका में भारतीय प्रवासी: अमेरिका में भारतीय मूल के 4.4 मिलियन से अधिक लोग रहते हैं, अमेरिका-भारत ज्ञान पहल और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे कार्यक्रम गहरे संबंधों को बढ़ावा देते हैं, जिससे द्विपक्षीय संबंध और मजबूत होते हैं।

भारत-अमेरिका संबंधों में चुनौतियाँ

  • भू-राजनीतिक मतभेद
    • रूस-यूक्रेन युद्ध: भारत की तटस्थता और यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र के मतदान से दूर रहने के कारण अमेरिका के साथ टकराव उत्पन्न हुआ है, जो अंतरराष्ट्रीय कानून एवं मानवीय चिंताओं पर जोर देता है।
    • रूस से तेल खरीद: यूक्रेन संकट के दौरान भारत द्वारा रियायती दरों पर रूसी तेल के बढ़ते आयात ने भारत की अमेरिकी साझेदारी और रूस पर निर्भरता के बीच संतुलन के बारे में सवाल खड़े कर दिए हैं।
  • व्यापार संरक्षणवाद
    • अमेरिकी व्यापार में बाधाएँ: अमेरिका ने भारत की संरक्षणवादी नीतियों की आलोचना की है, जैसे कि उच्च टैरिफ और विदेशी निवेश के लिए प्रवेश बाधाएँ, जो अमेरिकी बाजार तक पहुँच को सीमित करती हैं।
    • सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP): अमेरिका ने व्यापार संरक्षणवाद के कारण वर्ष 2019 में भारत के GSP लाभों को रद्द कर दिया, जिससे द्विपक्षीय व्यापार प्रभावित हुआ।
  • प्रौद्योगिकी और निर्यात नियंत्रण
    • निर्यात नियंत्रण: भारत के वर्ष 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद भारत को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर अमेरिकी प्रतिबंधों ने रक्षा और उभरती प्रौद्योगिकियों जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग के प्रयासों को धीमा कर दिया है।
    • हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा (IPEF): यद्यपि भारत IPEF के कई मंचों में भाग लेता है, फिर भी वह पर्यावरण और श्रम प्रतिबद्धताओं से संबंधित चिंताओं के कारण व्यापार मंच में शामिल होने में असहज महसूस करता है।
  • मानवाधिकार और लोकतंत्र संबंधी चिंताएँ: अमेरिका ने भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड के बारे में चिंताएँ जताई हैं, जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता, अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार और लोकतांत्रिक पतन से संबंधित मुद्दे शामिल हैं।
  • H-1B वीजा का प्रभुत्व: अमेरिकी H-1B वीजा पूल में भारतीय नागरिकों की संख्या अधिक है, जिससे अमेरिका में बेरोजगारी बढ़ने पर, विशेष रूप से सेवा क्षेत्र में, तनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • सामरिक अभिसरण तथा चीन
    • चीन एक कारक के रूप में: दोनों देश चीन के आक्रामक व्यवहार का मुकाबला करने के लिए एकमत हैं, विशेषकर भारत की सीमाओं पर और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में। हालाँकि, भारत का बहुध्रुवीय दृष्टिकोण कभी-कभी अमेरिकी रणनीतियों से अलग हो जाता है। 
    • बहुध्रुवीयता बनाम अमेरिकी सर्वोच्चता: बहुध्रुवीय दुनिया के लिए भारत की इच्छा, जहाँ यह अधिक महत्त्वपूर्ण स्वतंत्र भूमिका निभाता है, कभी-कभी वैश्विक नेतृत्व बनाए रखने के अमेरिकी प्रयासों के साथ टकराती है। ब्रिक्स जैसे मंचों में भारत की भागीदारी और कुछ वैश्विक संघर्षों में इसका गुटनिरपेक्ष रुख कभी-कभी टकराव का कारण बनता हैI 
  • जासूसी और गुप्त अभियान
    • खालिस्तान आंदोलन: अमेरिका में खालिस्तान समर्थक समूहों की गतिविधियों ने तनाव उत्पन्न किया है। इन समूहों के प्रति भारत के आक्रामक रुख तथा नागरिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी चिंताओं के कारण कूटनीतिक तनाव उत्पन्न हुआ है।
    • कथित साजिश: भारतीय अधिकारियों द्वारा अमेरिकी नागरिक को निशाना बनाने की कथित साजिश का पता चलने और पिछले जासूसी आरोपों के कारण दोनों देशों के बीच अविश्वास उत्पन्न हुआ है।

आगे की राह 

  • चिंताओं का समाधान: भारत और अमेरिका को लोकतंत्र तथा कथित साजिशों पर चिंताओं का समाधान करके कूटनीतिक तनावों को हल करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • अमेरिका और विकासशील देशों के बीच भारत का संतुलन: संयुक्त राज्य अमेरिका बहुपक्षीय मंचों जैसे कि G20 और SCO में भारत के नेतृत्व पर पूरा ध्यान देता है। भारत अपने नेतृत्व की स्थिति का उपयोग पश्चिम और विकासशील देशों के बीच सेतु के रूप में कार्य करने के लिए कर सकता है।
  • क्षेत्रीय स्थिरता के लिए आतंकवाद विरोधी सहयोग को बढ़ाना: तालिबान के नेतृत्व वाले अफगानिस्तान के प्रबंधन के लिए रणनीतियों का समन्वय करना और आतंकवादी समूहों के लिए समर्थन छोड़ने के लिए पाकिस्तानी सैन्य खुफिया परिसर पर दबाव डालने के लिए बहुपक्षीय प्रयासों का नेतृत्व करना सहित आतंकवाद विरोधी सहयोग पर अधिक-से-अधिक सहयोग करना चाहिए।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में सहयोग: उभरती प्रौद्योगिकियों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में सहयोग को बढ़ाना क्योंकि डेटा विनियमन, सूचना साझाकरण और गोपनीयता संरक्षण राष्ट्रीय सुरक्षा के संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण मुद्दे बनते जा रहे हैं।
  • बहुपक्षीय समन्वय को आगे बढ़ाना: बहुपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर समन्वय को मजबूत करना, जिसमें हाल ही में प्रमुखता प्राप्त करने वाले दो बहुपक्षीय रणनीतिक संवादों (क्वाड और पश्चिम एशियाई क्वाड या I2U2) को प्राथमिकता देना शामिल है।
  • आर्थिक जुड़ाव को बढ़ावा देना: भारत और अमेरिका के बीच निवेश और व्यापार प्रवाह को बढ़ाना आर्थिक विकास, बाजार पहुँच और तकनीकी सहयोग के लिए महत्त्वपूर्ण है। भारत-अमेरिका iCET पहल एक सकारात्मक कदम है।

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