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चाइल्ड पोर्नोग्राफी

Lokesh Pal September 25, 2024 12:03 7 0

संदर्भ

चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर कानून की कठोर व्याख्या करते हुए हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ऐसी सामग्री को देखना, रखना और उसकी रिपोर्ट न करना भी यौन अपराध संरक्षण (Protection of Children from Sexual Offences-POCSO) अधिनियम, 2012 के तहत दंडनीय है, भले ही इसे साझा किया जाए या आगे प्रसारित किया जाए। 

पॉक्सो (POCSO) अधिनियम की धारा 15: ‘बच्चे से संबंधित अश्लील सामग्री के भंडारण के लिए दंड संबंधी प्रावधान’ 

  • वर्ष 2019 में पॉक्सो (POCSO) अधिनियम में संशोधन किया गया, जिसके तहत धारा 15 के तहत तीन संबंधित अपराधों को शामिल किया गया तथा दंड की श्रेणी में वृद्धि की गई।
    • धारा 15(1): चाइल्ड पोर्नोग्राफिक सामग्री का भंडारण या अपने पास रखना, किंतु इसे साझा करने अथवा प्रसारित करने के उद्देश्य से इसे नष्ट न करना या नामित प्राधिकारी को रिपोर्ट करने में विफल रहने पर कम-से-कम पाँच हजार रुपये के जुर्माने के लिए उत्तरदायी होगा। 
    • धारा 15(2): रिपोर्टिंग या न्यायालय में साक्ष्य के रूप में उपयोग के उद्देश्य को छोड़कर किसी भी तरीके से प्रसारित या प्रचारित अथवा प्रदर्शित या वितरित करने के लिए चाइल्ड पोर्नोग्राफिक सामग्री संगृहीत करने/रखने पर तीन वर्ष तक की कैद या जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किया जाएगा।
    • धारा 15(3): कोई भी व्यक्ति, जो वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए किसी भी रूप में बच्चे से संबंधित अश्लील सामग्री संगृहीत करता है या रखता है, उसे कम-से-कम तीन वर्ष की कैद की सजा दी जाएगी, जिसे पाँच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।

पृष्ठभूमि

  • याचिकाकर्ता: यह निर्णय ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस’ (Just Rights for Children Alliance) द्वारा दायर याचिका पर आया है।
  • पृष्ठभूमि: उच्चतम न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश पीठ के आदेश को खारिज कर दिया है, जिसमें 28 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया गया था, जिस पर अपने मोबाइल फोन पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करने एवं रखने का आरोप था।
    • आरोप: आरोपी पर धारा 14(1) का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया, जो पोर्नोग्राफिक उद्देश्यों के लिए बच्चों का उपयोग करने को दंडित करता है और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 67B का उल्लंघन करता है।
    • आरोपी के बरी होने का आधार: आरोपी द्वारा पोर्नोग्राफिक उद्देश्यों के लिए बच्चे का उपयोग करने या उसके पास मौजूद सामग्री को प्रसारित करने, साझा करने या प्रकाशित करने का कोई सुबूत नहीं था।

उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बारे में

  • न्यायालय ने POCSO अधिनियम की धारा 15 की व्याख्या पर विस्तार से चर्चा की, जो ‘बच्चे से संबंधित अश्लील सामग्री के भंडारण के लिए दंड’ से संबंधित है।
  • ‘अधूरा’ अपराध (‘Inchoate’ Offense): यहाँ तक ​​कि बिना किसी प्रसारण या साझा किए चाइल्ड पोर्नोग्राफिक सामग्री को अपने पास रखना भी अपराध करने की दिशा में उठाया गया एक ‘अपरोक्ष कदम’ माना जाएगा, यानी धारा 15 का इस्तेमाल ऐसे कृत्य को करने के ‘उद्देश्य’ को दंडित करने के लिए भी किया जा सकता है।
    • अपरोक्ष अपराध (Inchoate offenses) वे कार्य हैं, जो किसी अन्य आपराधिक कृत्य को करने की प्रत्याशा या तैयारी में किए जाते हैं।
  • परिभाषित ‘आधिपत्य’ (Possession): चाइल्ड पोर्नोग्राफी मामलों में ‘आधिपत्य’ सिर्फ भौतिक आधिपत्य से कहीं अधिक है और इसमें ‘रचनात्मक आधिपत्य’ भी शामिल है, यानी संबंधित सामग्री को नियंत्रित करने की शक्ति एवं ऐसे नियंत्रण के प्रयोग का ज्ञान।
    • इसने माना कि ऐसी सामग्री को देखना, वितरित करना या प्रदर्शित करना, चाहे वह साझा की गई हो या प्रेषित की गई हो, फिर भी धारा 15 के तहत अभियुक्त के ‘आधिपत्य’ में माना जाएगा।
    • उदाहरण: नियंत्रण की शक्ति एवं ज्ञान में बिना डाउनलोड किए गए इंटरनेट पर छवियों को स्ट्रीम करना या उन्हें प्रिंट करने, सहेजने, अग्रेषित करने अथवा हटाने आदि की क्षमता शामिल है।
  • रिपोर्टिंग पर जोर: किसी व्यक्ति को चाइल्ड पोर्नोग्राफिक सामग्री रखने के दायित्व से तभी मुक्त किया जाएगा, जब वह निर्दिष्ट प्राधिकारियों को इसकी रिपोर्ट करेगा।
    • जुर्माना: मामले की रिपोर्ट न करने पर प्रथम दृष्टया कम-से-कम पाँच हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है।
  • उत्तरदायित्व तय करना: किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सकता है यदि यह स्थापित हो जाता है कि उसके पास ‘किसी भी समय’ चाइल्ड पोर्नोग्राफिक सामग्री थी, जरूरी नहीं कि FIR दर्ज करने के समय ही हो।
    • इसका अर्थ यह है कि यदि कोई व्यक्ति चाइल्ड पोर्नोग्राफी संगृहीत करने एवं देखने के तुरंत बाद उसे FIR दर्ज होने से पहले हटा देता है, तो भी उसे धारा 15 के तहत उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
  • ‘उद्देश्य’ का निर्धारण: अभियुक्त के उद्देश्य या मनःस्थिति का निर्धारण उस ‘तरीके’ के आधार पर किया जा सकता है जिसमें ऐसी सामग्री संगृहीत या अधिपत्य में है और ‘परिस्थितियों’ में उसे हटाया, नष्ट या रिपोर्ट नहीं किया गया था।
    • चाइल्ड पोर्नोग्राफी को हटाने, नष्ट करने या रिपोर्ट करने में विफलता न्यायालय को ‘अप्रत्यक्ष रूप से’ यह अनुमान लगाने की अनुमति देगी कि संबंधित व्यक्ति धारा 15(1) के तहत इसे साझा या वितरित करने का इरादा रखता था।
  • मामला दर्ज करना: न्यायालय ने पुलिस और निचली अदालतों को मामला दर्ज करते समय धारा 15 के तहत सभी उप-धाराओं के संबंध में जाँच करने का निर्देश दिया।
    • धारा 15 की उपधारा (1), (2) और (3) एक दूसरे से स्वतंत्र हैं। यदि कोई मामला किसी एक उपधारा के अंतर्गत नहीं आता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह पूरी धारा 15 के अंतर्गत नहीं आता है।
  • शब्दावली में बदलाव: न्यायालय ने संसद से कहा है कि वह अध्यादेश लाकर चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द को ‘बाल यौन शोषणकारी और अपमानजनक सामग्री’ (Child Sexual exploitative and abusive Material) शब्द में संशोधित करे।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जिम्मेदारियाँ: सोशल मीडिया मध्यस्थ चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामलों में आईटी अधिनियम की धारा 79 के तहत देयता से छूट का दावा नहीं कर सकते हैं और उन्हें ऐसी सामग्री को हटाने और POCSO अधिनियम के तहत निर्दिष्ट तरीके से संबंधित पुलिस इकाइयों को ऐसी सामग्री की तत्काल रिपोर्ट करने के लिए उचित कार्यवाही का पालन करना होगा।

चाइल्ड पोर्नोग्राफी (Child Pornography) के बारे में

  • चाइल्ड पोर्नोग्राफी ‘किसी नाबालिग से संबंधित यौन रूप से स्पष्ट आचरण का कोई भी दृश्य चित्रण है’ अर्थात् 18 वर्ष से कम आयु का। ये चित्रण कई अलग-अलग मीडिया में हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:-
    • फोटोग्राफ, वीडियो, डिजिटल चित्र या वीडियो, अनडेवलप्ड फिल्म, कंप्यूटर द्वारा उत्पादित चित्र जो वास्तविक लघु चित्र से अलग न पहचाने जा सकें।

  • चाइल्ड पोर्न मार्केट: अमेरिका स्थित नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रन (National Centre for Missing and Exploited Children- NCMEC) के अनुसार,
    • विश्व में ऑनलाइन बाल यौन शोषण संबंधी चित्रों की अधिकतम संख्या भारत में है, जहाँ भारतीय उपयोगकर्ताओं ने वर्ष 2024 की पहली छमाही में 25,000 चित्र या वीडियो अपलोड किए।
      • चाइल्ड पोर्न अपलोड की अधिकतम संख्या के मामले में दिल्ली शीर्ष पर है, जिसके बाद महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल का स्थान है।
    • NCRB डेटा: नवीनतम NCRB रिपोर्ट, 2018 के अनुसार, भारत में चाइल्ड पोर्न बनाने या संगृहीत करने के 781 मामले सामने आए, जिनमें ओडिशा में ऐसे मामलों की अधिकतम संख्या (333) दर्ज की गई।
      • NCRB का अनुमान है कि भारत में प्रत्येक 15 मिनट में एक बच्चा यौन शोषण का शिकार होता है।

चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित कानूनी प्रावधान

  • आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 67B (Section 67B of The IT Act, 2000): यह विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक रूप में चाइल्ड पोर्नोग्राफी को प्रकाशित करने, ब्राउजिंग करने या प्रसारित करने के लिए कठोर दंड का प्रावधान करती है।
  • आईटी अधिनियम की धारा 79 और सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश) नियम 2011: इसके अनुसार सोशल मीडिया मध्यस्थों को उपयोगकर्ता के बारे में अधिकारियों को सूचित करने के लिए उचित सावधानी बरतनी होगी।
  • POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 14 (Section 14 of the POCSO Act, 2012): यह पोर्नोग्राफिक उद्देश्यों के लिए किसी बच्चे या बच्चों का उपयोग करने पर पाँच वर्ष तक की कारावास की सजा देता है।
  • POCSO की धारा 15 (Section 15 of POCSO): यह बच्चों से संबंधित किसी भी रूप में किसी भी अश्लील सामग्री को व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए संगृहीत करने के कृत्य को दंडित करती है, जिसके लिए तीन वर्ष तक के कारावास की सजा हो सकती है।
  • किशोर न्याय अधिनियम की धारा 107 (Section 107 of Juvenile Justice Act): POCSO नियम, 2020 विशेष किशोर पुलिस इकाई (JJ की धारा 107) को बाल पोर्नोग्राफी मामलों से निपटने का अधिकार देता है।
  • भारतीय न्याय संहिता की धारा 95: यह धारा उस व्यक्ति को दंडित करती है, जो 18 वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति को अपराध करने के लिए नियुक्त करता है, कार्य पर रखता है या उससे कार्य करवाता है। यौन शोषण या पोर्नोग्राफी के लिए बच्चे का उपयोग करना इसके अर्थ में शामिल है।

बच्चों और समाज पर पोर्नोग्राफी का प्रभाव

  • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: पोर्न देखने वाले बच्चे आमतौर पर अवसाद, क्रोध और चिंता के शिकार हो सकते हैं, जिससे मानसिक पीड़ा हो सकती है।
  • यौन लत: पोर्न देखने से यौन संतुष्टि एवं जुनून की भावना उत्पन्न होती है, जो लत का रूप ले सकती है जो बच्चों के दैनिक कामकाज, उनकी बायोलॉजिकल क्लॉक, कार्य और समाज के साथ उनके रिश्ते को प्रभावित कर सकती है।
  • यौन वस्तुकरण (Sexual Objectification): किशोरों में पोर्नोग्राफी लैंगिक रूढ़िवादिता को बढ़ावा देती है, विशेषकर पुरुषों पर जो महिलाओं को सेक्स सामग्री के रूप में देखते हैं, जो महिलाओं के खिलाफ यौन दुर्व्यवहार एवं हिंसा के प्रति सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण को बढ़ावा दे सकता है।
  • असुरक्षित सेक्स में शामिल होना: पोर्न देखने वाले बच्चे असुरक्षित यौन संबंधी प्रथाओं को अपना सकते हैं।

चुनौतियाँ

  • ढीला रवैया (Lax Attitude): सोशल मीडिया मध्यस्थ (Social Media Intermediaries) ऐसी सामग्री को हटाने में तेजी से कार्य नहीं कर रहे हैं, इसके बजाय वे अपेक्षाकृत कम कड़े कानूनों वाले देशों में राजस्व एवं अधिकतम दृश्यता पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
    • उदाहरण: अमेरिका में, ये मध्यस्थ कंपनियाँ चाइल्ड पोर्न मामलों को रिकॉर्ड करती हैं और एक शासी निकाय को रिपोर्ट करती हैं और इसे सार्वजनिक भी करती हैं।
  • विस्तृत नेटवर्क: चाइल्ड पोर्न वस्तुतः किसी भी व्यक्ति द्वारा बनाया जा सकता है, चाहे वह परिवार का कोई सदस्य हो, कोई आपराधिक गिरोह या साइबर अजनबी हो या फिर खुद भी बनाया गया हो। नेटवर्क में निर्माता, वितरक, उपभोक्ता सभी एक दूसरे से अलग होते हैं, इसलिए उनका पता लगाना मुश्किल होता है।
  • साइबर ग्रूमिंग (Cyber Grooming): बच्चों को सोशल मीडिया के दोस्तों, साथियों या ऑनलाइन संचालित तस्करी रैकेट के माध्यम से यौन गतिविधियों में भाग लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है, उन्हें जबरदस्ती, ब्लैकमेल या केवल बहला-फुसलाकर तैयार किया जा रहा है।
    • रिपोर्टों के अनुसार, 70-90 प्रतिशत बाल दुर्व्यवहार बच्चे के परिचित लोगों द्वारा किया जाता है।
  • दुर्व्यवहार का चक्र बनाना: बाल यौन दुर्व्यवहार मुख्य रूप से बच्चे द्वारा अपने परिवेश में सामना किए जाने वाले अधिक अंतरंग अनुभवों का परिणाम है, जैसे कि यौन व्यवहार और यौन कृत्यों के संपर्क में आने वाला रोगात्मक पारिवारिक वातावरण, बचपन में छेड़छाड़, यौन रुचियाँ एवं अन्वेषण, समलैंगिक कृत्यों के लिए मजबूर करना, जिससे उनके युवा यौन अपराधी बनने का जोखिम बढ़ जाता है।
  • डार्क वेब पर आसान उपलब्धता: क्रिप्टोकरेंसी, ऑनियन रूटिंग (Onion Routing), एन्क्रिप्टेड चैट और प्रोटोनमेल (जिसे ट्रैक भी नहीं किया जा सकता) में लेन-देन डार्क वेब की जाँच को अत्यधिक समय लेने वाली और थकाऊ प्रक्रिया बना देता है, जिसके लिए केवल एक विशेष एजेंसी की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण: ऑनियन लैंड (Onion Land) और ऑनियन डायर (Onion Dir) जैसे सर्च इंजन बच्चों पर अत्याचार के वीडियो, आक्रामक जानवरों के साथ बच्चों की तस्वीरें और नग्न सेल्फी लेते बच्चों की तस्वीरें आदि दिखाते हैं।

आगे की राह

  • पोर्नोग्राफी और बच्चों एवं समाज पर इसके प्रभाव पर राज्यसभा की तदर्थ समिति (2020) की सिफारिशें
    • POCSO का दायरा बढ़ाएँ: 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के साथ यौन गतिविधियों के लिए साइबर ग्रूमिंग, सिफारिश या परामर्श को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम [Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act] के तहत अपराध बनाया जाना चाहिए।
    • इंटरनेट से बाल यौन शोषण सामग्री (Child Sexual Abuse Material-CSAM) हटाना: आईटी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश) नियम 2011 को संशोधित करना, ताकि मध्यस्थों को बाल यौन शोषण सामग्री (CSAM) की सक्रिय रूप से पहचान करने और उसे हटाने के साथ-साथ राष्ट्रीय साइबर अपराध पोर्टल के तहत भारतीय अधिकारियों को इसकी रिपोर्ट करने के लिए जिम्मेदार बनाया जा सके।

    • पोर्नोग्राफिक सामग्री तक बच्चों की पहुँच की निगरानी करना: MeitY को मौजूदा स्क्रीन-मॉनिटरिंग ऐप को अनिवार्य बनाना चाहिए या इसे Google के फैमिली लिंक ऐप की तरह विकसित करने के लिए उद्योग साझेदारी को प्रोत्साहित करना चाहिए और इसे ISP, कंपनियों, स्कूलों और अभिभावकों के लिए स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराना चाहिए।
    • बाल पोर्नोग्राफी के लिए एक नोडल एजेंसी: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights- NCPCR) को चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मुद्दे से निपटने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया जाना चाहिए, जिसमें जाँच, साइबर पुलिसिंग और अभियोजन की अतिरिक्त जिम्मेदारियाँ भी शामिल हों।
    • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत को पारस्परिक कानूनी सहायता संधि के तहत डार्क वेब जाँच में जानकारी साझा करने और ऑनलाइन सामग्री को हटाने के अनुरोधों को तेजी से पूरा करने के लिए अन्य देशों के साथ आपसी समझौतों पर हस्ताक्षर करना चाहिए।
  • शिक्षा और जागरूकता: डिजिटल सुरक्षा शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए और माता-पिता आदि के लिए कार्यशालाओं के माध्यम से भी शामिल किया जाना चाहिए। बच्चों को यौन शिक्षा के माध्यम से उनके शरीर एवं अधिकारों के बारे में अधिक जागरूक बनाया जाना चाहिए।
  • डार्क वेब पर निगरानी: भारत में एक साइबर अपराध जाँच एजेंसी स्थापित करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से डार्क वेब पर निगरानी रखने के लिए, क्योंकि यहीं पर पोर्न का एक बड़ा हिस्सा देखा जा रहा है।
    • उदाहरण: ऑनियन लैंड जैसे विशेष एन्क्रिप्टेड सर्च इंजन पर, ‘चाइल्ड पोर्न’ सर्च करने पर 130 से अधिक वेबसाइट लिंक्स आती हैं, और ‘चाइल्ड पोर्न इंडिया’ सर्च करने पर लगभग 50 वेबसाइट लिंक्स आती हैं।

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