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राज्यों में खाद्य सुरक्षा कानून

Lokesh Pal October 04, 2024 02:33 20 0

संदर्भ

हाल ही में उत्तर प्रदेश (UP) सरकार ने यह अनिवार्य कर दिया है कि खाद्य प्रतिष्ठान पारदर्शिता एवं सुरक्षा बढ़ाने के लिए अपने मालिकों के नाम और पते प्रदर्शित करें, जो भारत में सख्त खाद्य सुरक्षा नियमों की ओर व्यापक रुझान को दर्शाता है।

उत्तर प्रदेश में भोजनालयों के लिए निर्देश

  • खाद्य पदार्थों में थूकने तथा मानव मल मिलाए जाने की खबरों सहित खाद्य संदूषण की चिंताजनक घटनाओं के जवाब में उत्तर प्रदेश सरकार ने नए दिशा-निर्देश लागू किए हैं, जिनमें शामिल हैं:-
    • सभी खाद्य प्रतिष्ठान संचालकों, स्वामियों और प्रबंधकों के नाम एवं पते का अनिवार्य प्रदर्शन।
    • खाना के प्रबंधन के समय शेफ और वेटर को मास्क एवं दस्ताने पहनने चाहिए।
    • अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए रेस्तराँ और होटलों में सीसीटीवी लगाना।
    • खाद्य-संबंधित प्रतिष्ठानों में सभी कर्मचारियों का गहन निरीक्षण और पुलिस सत्यापन।
  • उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि ‘अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम में आवश्यक संशोधन किए जाने चाहिए’

संबंधित तथ्य 

  • हिमाचल प्रदेश में भोजनालयों के लिए निर्देश: उत्तर प्रदेश के बाद, हिमाचल प्रदेश के मंत्री ने घोषणा की कि राज्य में भोजनालयों को भी मालिक का पहचान-पत्र प्रदर्शित करना होगा, हालाँकि बाद में सरकार ने इस बयान से इनकार कर दिया।
  • सर्वोच्च न्यायालय की रोक: 22 जुलाई को उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड पुलिस द्वारा कांवड़ यात्रा के मार्ग में आने वाले भोजनालयों को मालिक का नाम प्रदर्शित करने के लिए जारी किए गए इसी प्रकार के आदेशों पर रोक लगा दी थी।

  • कोडेक्स एलीमेंटेरियस (लैटिन में ‘खाद्य कोड’) भोजन, खाद्य उत्पादन, खाद्य लेबलिंग तथा खाद्य सुरक्षा से संबंधित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानकों का एक संग्रह है।
  • इसे संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा प्रकाशित किया जाता है।

खाद्य सुरक्षा के बारे में

  • खाद्य सुरक्षा से तात्पर्य उन उपायों तथा प्रथाओं से है, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि भोजन उपभोग के लिए सुरक्षित है तथा हानिकारक संदूषकों, रोगाणुओं और मिलावटों से मुक्त है।
  • इसमें उत्पादन, प्रसंस्करण, वितरण और तैयारी सहित खाद्य आपूर्ति शृंखला के सभी पहलू शामिल हैं।
  • खाद्य सुरक्षा के प्रमुख घटकों में शामिल हैं
  • स्वच्छता संबंधी व्यवहार: संदूषण को रोकने के लिए भोजन का प्रबंधन और भोजन तैयार करने के दौरान स्वच्छता बनाए रखना।
  • सही तरीके से खाना पकाना और भंडारण: यह सुनिश्चित करना कि भोजन को सुनिश्चित तापमान पर पकाया जाए और सूक्ष्मजीवों के विकास को रोकने के लिए उचित तरीके से संगृहीत किया जाए।
    • नियामक मानक: भोजन की गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) और कोडेक्स एलिमेंटेरियस द्वारा निर्धारित स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय कानूनों एवं दिशा-निर्देशों का पालन करना।
    • उपभोक्ता जागरूकता: उपभोक्ताओं को उनके स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सुरक्षित खाद्य प्रबंधन, तैयारी एवं भंडारण प्रथाओं के बारे में शिक्षित करना।

भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख कानून: खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006

  • अधिनियम के बारे में: यह अधिनियम भारत में खाद्य कानूनों को समेकित करता है तथा खाद्य पदार्थों के लिए विज्ञान आधारित मानक निर्धारित करने हेतु भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण की स्थापना करता है।
  • खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम (FSSA) के उद्देश्य
    • मानव उपभोग के लिए सुरक्षित और पौष्टिक भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
    • खाद्य सुरक्षा से संबंधित मौजूदा कानूनों को एकीकृत करना।
    • भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) की स्थापना करना।
    • खाद्य पदार्थों के उत्पादन, भंडारण, बिक्री और आयात को विनियमित करना।
  • कार्यक्षेत्र: अधिनियम में खाद्य सुरक्षा और मानकों से संबंधित या आकस्मिक सभी मामले शामिल हैं।
  • अधिनियम ने प्रत्येक राज्य के लिए FSSAI तथा राज्य खाद्य सुरक्षा प्राधिकरणों की स्थापना की है।

खाद्य सुरक्षा विनियमों के लाभ

  • खाद्य जनित बीमारियों की रोकथाम: खाद्य सुरक्षा विनियम यह सुनिश्चित करके गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं एवं मौतों को रोकने में मदद करते हैं कि भोजन उपभोग के लिए सुरक्षित है तथा हानिकारक परजीवी, वायरस और बैक्टीरिया से मुक्त है, जो खाद्य विषाक्तता का कारण बनते हैं।
  • उचित खाद्य भंडारण सुनिश्चित करना: खाद्य सुरक्षा नियमों में कहा गया है कि सूक्ष्मजीवों के विकास को रोकने के लिए खाद्य पदार्थों को उचित तरीके से संगृहीत किया जाना चाहिए तथा क्रॉस-संदूषण से बचने के लिए कच्चे और पके हुए खाद्य पदार्थों को अलग-अलग रखना चाहिए, जिससे खाद्य विषाक्तता का खतरा कम हो।
  • निगरानी एवं अनुपालन: उत्पादकों, प्रसंस्करणकर्ताओं और पैकेजर्स की नियमित निगरानी सुरक्षा मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करती है तथा प्रकोपों ​​को रोकती है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ावा: खाद्य प्रसंस्करण कर्मचारियों के पर्यवेक्षण से गुणवत्ता मानकों के बारे में जागरूकता बढ़ती है, सामान्य स्वास्थ्य के लिए जोखिम कम होता है और जनसंख्या के स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  • उद्योग के लिए लागत प्रभावी: खाद्य सुरक्षा के बारे में जागरूकता बढ़ने से खाद्य उद्योग की परिचालन लागत कम हो जाती है, जबकि जनसंख्या के समग्र स्वास्थ्य और दीर्घायु में सुधार होता है।

भारत में खाद्य पदार्थ बेचने के लिए कानूनी ढाँचा

खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत भारत में खाद्य पदार्थों की बिक्री के लिए निम्नलिखित प्रावधान हैं:-

  • अनिवार्य पंजीकरण और लाइसेंस
    • सभी खाद्य व्यवसायों को भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) से पंजीकरण कराना होगा या लाइसेंस प्राप्त करना होगा।
    • छोटे पैमाने के संचालकों (छोटे खाद्य निर्माता) को पंजीकरण कराना होगा, पंजीकरण प्रमाण-पत्र और पहचान-पत्र प्राप्त करना होगा, जिसे उनके परिसर में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
    • बड़े संचालकों को लाइसेंस प्राप्त करने की आवश्यकता होती है, जिसे भी प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
  • पहचान प्रदर्शित करने की आवश्यकता: मौजूदा नियमों के तहत खाद्य प्रतिष्ठानों को पहले से ही अपने FSSAI द्वारा जारी दस्तावेजों के माध्यम से मालिकों की पहचान प्रदर्शित करना आवश्यक है।
  • गैर-अनुपालन के लिए दंड: खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम की धारा 63 के तहत, बिना लाइसेंस के खाद्य व्यवसाय करने वाले किसी भी संचालक को छह महीने तक की जेल और 5 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।

खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम (FSSA) के तहत राज्यों की शक्तियाँ

  • नियम बनाने के लिए राज्य प्राधिकरण: FSSA की धारा 94(1) के तहत, राज्य सरकारें केंद्र सरकार और खाद्य प्राधिकरण के नियमों के अधीन नियम बना सकती हैं।
    • राज्यों को प्रस्तावित नियम प्रकाशित करने होंगे तथा खाद्य प्राधिकरण से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना होगा।
  • राज्य नियम-निर्माण का दायरा: धारा 94(2)(a) के तहत, राज्य उन मामलों पर नियम बना सकते हैं, जो ‘धारा 30 की उपधारा (2) के खंड (f) के तहत खाद्य सुरक्षा आयुक्त के अन्य कार्यों’ के अंतर्गत आते हैं।
    • यह राज्य सरकार को किसी भी अन्य आवश्यक मामले के लिए नियम बनाने में सक्षम बनाता है।
  • विधायी अनुमोदन: धारा 94(3) के अनुसार, नियम को यथाशीघ्र अनुमोदन के लिए राज्य विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • खाद्य सुरक्षा आयुक्त की भूमिका: आयुक्त की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा धारा 30 के अंतर्गत की जाती है, और वह खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम एवं इसके नियमों के कुशल कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार होता है।

नाम प्रदर्शित करने के संबंध में राज्य सरकार के निर्देशों के संबंध में चिंताएँ

  • सर्वोच्च न्यायालय की चिंता: सर्वोच्च न्यायालय ने काँवड़ यात्रा के दौरान भोजनालयों को उत्तर प्रदेश सरकार के निर्देश पर चिंता जताई और इस बात पर जोर दिया कि व्यक्तियों को अपने नाम का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
    • न्यायालय ने आदेश पर अस्थायी रूप से रोक लगाते हुए स्पष्ट किया कि भोजनालयों को केवल उनके द्वारा परोसे जाने वाले खाद्य पदार्थों के नाम प्रदर्शित करने होंगे।
  • पहचान के खुलासे पर चिंता: इस बात की चिंता है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भोजनालयों में नाम प्रदर्शित करने के लिए अनिवार्य निर्देश व्यक्तियों को अपनी धार्मिक और जातिगत पहचान का खुलासा करने के लिए बाध्य करेंगे। इससे सामाजिक, सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा मिल सकता है और पूर्वाग्रह को बढ़ावा मिल सकता है।
  • संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन: निर्देशों ने संविधान के अनुच्छेद-15(1) का उल्लंघन किया, जो धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
  • आर्थिक भेदभाव का दावा: ये आदेश अल्पसंख्यकों के आर्थिक बहिष्कार को बढ़ावा देने वाली स्थितियाँ उत्पन्न कर सकते हैं, जो अनुच्छेद-19(1)(g) के तहत किसी भी पेशे को अपनाने के अधिकार का उल्लंघन है।
  • अस्पृश्यता संबंधी चिंताएँ: ये निर्देश अप्रत्यक्ष रूप से अस्पृश्यता का समर्थन करते हैं, जिसे संविधान के अनुच्छेद-17 के तहत समाप्त और निषिद्ध किया गया है।

खाद्य सुरक्षा विनियमों और राज्य के निर्देशों के संदर्भ में नैतिक आयाम

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य बनाम व्यक्तिगत अधिकार: सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के नैतिक दायित्व को धर्म की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत पसंद सहित व्यक्तिगत अधिकारों के सम्मान के साथ संतुलित करने की आवश्यकता है।
  • समानता और निष्पक्षता: यह सुनिश्चित करना कि दिशा-निर्देश धर्म, जाति या सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर हाशिए पर रहने वाले समुदायों को असंगत रूप से प्रभावित नहीं करते हैं।
  • सुरक्षित भोजन तक पहुँच: सभी लोगों के लिए सुरक्षित भोजन तक समान पहुँच सुनिश्चित करना, चाहे उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, एक प्रमुख नैतिक दायित्व है।
  • संरक्षण का कर्तव्य: ‘किसी को कोई नुकसान न पहुँचाएँ’ का नैतिक सिद्धांत उन विनियमों के कार्यान्वयन का समर्थन करता है, जो खाद्य जनित बीमारियों को रोकते हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं।
  • सूचित करने की जिम्मेदारी: खाद्य व्यवसायों की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे शुद्ध भोजन उपलब्ध कराएँ और उपभोक्ताओं को संभावित जोखिमों के बारे में सूचित करें।
  • विविध व्यक्तिगत विकल्प: उपभोक्ता की स्वायत्तता तथा प्राथमिकताओं का सम्मान करना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि व्यक्तियों के स्वाद और आहार विकल्प भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, जो उनके भोजन उपभोग को प्रभावित करते हैं।

आगे की राह

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन की आवश्यकता: हालाँकि खाद्य जनित बीमारियों को रोकने और स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए राज्य का हस्तक्षेप आवश्यक है, लेकिन ऐसे उपायों से संवैधानिक अधिकारों का अनुपातहीन रूप से उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
  • कोडेक्स एलीमेंटेरियस के साथ संरेखण: भारत के खाद्य सुरक्षा विनियमों को कोडेक्स एलीमेंटेरियस के साथ संरेखित करने से सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा में वृद्धि होगी तथा अंतरराष्ट्रीय व्यापार में सुविधा होगी।
  • विनियमन को मजबूत करना: विनियामक ढाँचे को बढ़ाने के लिए राज्य सरकारों और FSSAI के बीच भूमिकाओं तथा जिम्मेदारियों को स्पष्ट करना।
  • हितधारकों को शामिल करना: खाद्य सुरक्षा मानकों के बारे में जागरूकता और अनुपालन को बढ़ावा देने के लिए खाद्य व्यवसायों, उपभोक्ताओं तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों को शामिल करना है।

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