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Lokesh Pal October 04, 2024 05:45 82 0
आज के डिजिटल युग में, शिक्षा को परिमाणित करने का चलन बढ़ रहा है, वैश्विक रैंकिंग एजेंसियां हर साल विश्वविद्यालयों का मूल्यांकन कर उन्हें रैंकिंग प्रदान करती हैं। कई लोगों का मानना है कि किसी विशेष मानदंड के अभाव में इस प्रकार से रैंकिंग प्रदान करना उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और अखंडता को कमज़ोर कर सकता है।
नोट: भारत में विभिन्न मापदंडों के आधार पर विश्वविद्यालयों का मूल्यांकन कर उन्हें रैंकिंग प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) का उपयोग किया जाता है। |
वर्तमान रैंकिंग प्रणाली के निहितार्थ :
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यद्यपि विश्वविद्यालयों को यह समझना चाहिए कि वैज्ञानिक प्रगति और आर्थिक विकास के लिए शोध पत्र आवश्यक हैं, लेकिन प्रभाव स्कोर और जर्नल रैंकिंग जैसे कारकों को मूल मिशन पर हावी नहीं होना चाहिए। शिक्षण और मार्गदर्शन को समान रूप से महत्व दिया जाना चाहिए, क्योंकि विश्वविद्यालय ज्ञान के निर्माण और प्रसार दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे एक समृद्ध समाज का निर्माण होता है।
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