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क्वाड नेताओं का सम्मेलन : भारत-प्रशांत सुरक्षा को मजबूत करना

Lokesh Pal October 08, 2024 05:15 81 0

संदर्भ:

  • क्वाड लीडर्स समिट में, प्रधानमंत्री मोदी की हालिया भागीदारी, भारत-प्रशांत सुरक्षा को मजबूत करने और वैश्विक शांति निर्माता के रूप में इसकी भूमिका के लिए भारत के प्रयासों पर प्रकाश डालती है। 
  • साथ ही यह भागीदारी बदलती वैश्विक गतिशीलता के बीच रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए अपनी विदेश नीति को पुनर्संतुलित करती है।

क्वाड (Quad) : 

  • अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया से मिलकर बना क्वाड एक रणनीतिक गठबंधन है जिसका उद्देश्य स्वतंत्र, खुले और सुरक्षित हिंद-प्रशांत को बढ़ावा देना है।
  • उद्देश्य:  इसका उद्देश्य प्रशांत सुरक्षा को मजबूत करने तथा उस क्षेत्र में, चीन के बढ़ते प्रभाव जैसी क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान करते हुए सुरक्षा,आर्थिक और तकनीकी मुद्दों पर सहयोग बढ़ाना है।

भारत की आकांक्षा और पहल

  • कूटनीतिक संतुलन बनाना : भारत प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ अनेक वार्ताओं के माध्यम से कूटनीतिक संतुलन बनाने का निरंतर प्रयास कर रहा है।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक हित: छठे क्वाड लीडर्स शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी क्वाड देशों के बीच सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने के उसके उद्देश्य पर प्रकाश डालती है।
  • चुनौतियों का मुकाबला करना : यह सहयोग संशोधनवादी शक्तियों की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था बनाए रखने पर केंद्रित है। 
  • चीन के साथ संबंधों में संतुलन: भारत चीन के साथ अपने जटिल संबंधों को सक्रियता से प्रबंधित करने का प्रयास कर रहा है, जैसा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ चर्चा से स्पष्ट होता है। 
  • सैन्य तनाव को हल करना : राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ हुई वार्ता, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य तनाव को हल करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। 
  • वैश्विक शांति निर्माता : रूसी राष्ट्रपति के साथ डोभाल की हालिया बातचीत वैश्विक शांति निर्माता के रूप में भारत की आकांक्षाओं को दर्शाती है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों में मध्यस्थ की भूमिका : मोदी की यूक्रेन शांति योजना का प्रस्ताव देकर भारत स्वयं को अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों में मध्यस्थ के रूप में स्थापित करना चाहता है, जिससे उसकी कूटनीतिक छवि मजबूत होगी। 

संबद्ध भू-राजनीतिक चुनौतियाँ

  • रूस-चीन संबंध : रूस और चीन के बीच मजबूत होते सैन्य और आर्थिक संबंध भारत के लिए महत्वपूर्ण सुरक्षा चुनौतियां पेश करते हैं। 
  • राष्ट्रीय हितों की रक्षा : हिमालयी सीमाओं पर चीन की बढ़ती आक्रामक गतिविधियां इन जोखिमों को बढ़ा रही हैं, जिससे भारत को राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए अपनी कूटनीतिक रणनीतियों को सावधानीपूर्वक संचालित करने की आवश्यकता हो रही है। 
  • रूस-यूक्रेन संघर्ष की कूटनीतिक जांच : रूस-यूक्रेन संघर्ष के बीच भारत द्वारा लगातार रियायती रूसी तेल की खरीद ने पश्चिमी देशों के बीच चिंता पैदा कर दी है, जिससे वैश्विक मानदंडों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के बारे में जांच शुरू हो गई है। 
  • संभावित कूटनीतिक चुनौतियां : यह दृष्टिकोण भारत के लिए संभावित कूटनीतिक चुनौतियां पेश करता है, क्योंकि भारत का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय चिंताओं को संबोधित करते हुए रूस के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को संतुलित करना चाहता है। 
  • रूस की नजर में क्वाड एक पश्चिमी गठबंधन  : जबकि क्वाड का उद्देश्य चीनी आक्रामकता का मुकाबला करना है, रूस इसे एक पश्चिमी गठबंधन के रूप में देखता है, जिससे मॉस्को के साथ भारत के घनिष्ठ संबंधों पर चिंता बढ़ जाती है। 
  • रूस के साथ संतुलित संबंध बनाना : यद्यपि भारत इस भू-राजनीतिक परिदृश्य में रूस के साथ संतुलित संबंध बनाए रखना चाहता है।
  • क्वाड और ब्रिक्स की गतिशीलता को नियंत्रित करना : भारत दोनों समूहों में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहता है; हालांकि, ब्रिक्स के भीतर चीन का बढ़ता प्रभुत्व, रूस के प्रभाव के विपरीत, प्रतिस्पर्धी हितों के बीच एक संतुलित विदेश नीति बनाए रखने के भारत के प्रयासों को जटिल बनाता है।
  • संघर्षों में मध्यस्थ की भूमिका : अमेरिका या ब्रिटेन के विपरीत, अनुपालन के लिए बाध्य करने हेतु, अपने  प्रभाव की कमी के कारण भारत वैश्विक संघर्षों में मध्यस्थ की भूमिका नहीं निभा पा रहा है।

आगे की राह

  • व्यावहारिक विदेश नीति को अपनाने की आवश्यकता : भारत को रूस के साथ शीत युद्ध के दौर के संबंधों से हटकर एक अधिक व्यावहारिक विदेश नीति अपनाने की ज़रूरत है जो वर्तमान वैश्विक गतिशीलता को प्रतिबिंबित करती हो।  
  • इस बदलाव के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
    • रूस के साथ व्यावहारिक संबंध: जैसे-जैसे वैश्विक गतिशीलता बदल रही है, भारत को व्यावहारिकता और वर्तमान भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्राथमिकता देने के लिए अपनी विदेश नीति को अनुकूलित करने की आवश्यकता है। 
    • साझेदारी के पुनर्मूल्यांकन करना : समकालीन संघर्षों में गारंटीकृत रूसी समर्थन की अनुपस्थिति इस दीर्घकालिक साझेदारी के पुनर्मूल्यांकन को अनिवार्य बनाती है, क्योंकि अतीत का समर्थन भविष्य की नीतियों के साथ संरेखण सुनिश्चित नहीं करता है। 
    • अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी: अमेरिका के साथ भारत के संबंध पूर्व की तुलना में, विशेष रूप से भारत-चीन संबंधों में संरचनात्मक चुनौतियों के मद्देनजर, अधिक महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। 
  • महत्वपूर्ण मुद्दे : अतः इस प्रकार ज्ञात होता है कि इसमें वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सुरक्षा संबंधी मुद्दे, क्षेत्रीय मुद्दे (जैसे अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड का सीमांत क्षेत्र), हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी नौसेना की उपस्थिति और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) शामिल हैं। 

निष्कर्ष:

अतः भारत को अपनी विदेश नीति को पुनः संतुलित करना चाहिए ताकि वह एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपना सके जो वैश्विक गतिशीलता को दर्शाता हो। रूस के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को संतुलित करते हुए, अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत करके, भारत जटिल भू-राजनीतिक चुनौतियों से निजात पा सकता है, अपने रणनीतिक हितों को मजबूत कर सकता है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वैश्विक मध्यस्थ के रूप में अपनी भूमिका को बढ़ा सकता है।

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