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वैश्विक ऊर्जा संक्रमण

Lokesh Pal October 10, 2024 03:42 60 0

संदर्भ

इस वर्ष के लंदन मेटल एक्सचेंज (London Metal Exchange-LME) सप्ताह का प्रमुख विषय वैश्विक ऊर्जा संक्रमण (Global Energy Transition) था, जो विश्व के धातु उत्पादकों, उपयोगकर्ताओं एवं व्यापारियों का वार्षिक सम्मेलन है।

वैश्विक ऊर्जा संक्रमण (Global Energy Transition) के बारे में

  • वैश्विक ऊर्जा संक्रमण का अर्थ है जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, जैसे पवन और सौर ऊर्जा की ओर बदलाव, ताकि ऊर्जा से संबंधित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन तथा जलवायु परिवर्तन को कम किया जा सके।

  • ऊर्जा संक्रमण में शामिल हैं:-
    • जीवाश्म ईंधन का प्रतिस्थापन: तेल, प्राकृतिक गैस और कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन को नए विकल्पों से प्रतिस्थापित करना।
    • नई प्रौद्योगिकियों का विकास: ऊर्जा भंडारण, हाइड्रोजन और लीथियम-आयन बैटरी जैसी नई प्रौद्योगिकियों का विकास करना।
    • क्षेत्रों का विद्युतीकरण: अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों का विद्युतीकरण।
    • डिजिटलीकरण: ऊर्जा दक्षता में सुधार के लिए विद्युत ग्रिड और औद्योगिक प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण।

ऊर्जा संक्रमण का महत्त्व 

  • जलवायु परिवर्तन को सीमित करना: ऊर्जा संक्रमण, सदी के मध्य तक वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना: ऊर्जा उत्पादन एवं खपत अधिकांश मानव-जनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। 
  • रोजगार सृजन और आर्थिक विकास: निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था में ऊर्जा संक्रमण से नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और हरित प्रौद्योगिकियों जैसे क्षेत्रों में नवाचार एवं रोजगार सृजन को बढ़ावा मिल सकता है।
  • स्वास्थ्य में सुधार: प्रदूषण कम करने से स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।
  • एनर्जी पाॅवर्टी को कम करना: जीवाश्म ईंधन की उच्च कीमतें एनर्जी पाॅवर्टी का कारण बन सकती हैं।
  • ऊर्जा सुरक्षा में सुधार: ऊर्जा संक्रमण देशों को ऊर्जा आयात पर कम निर्भर बना सकता है।

भारत में ऊर्जा संक्रमण

  • विश्व आर्थिक मंच के वैश्विक ऊर्जा संक्रमण सूचकांक-2024 (Global Energy Transition Index- 2024) में भारत को 63वाँ स्थान दिया गया है।
  • भारत की प्रगति
    • भारत ऊर्जा समानता, सुरक्षा और स्थिरता के मामले में उत्कृष्ट है।
    • अक्षय ऊर्जा और बायोमास इसकी विद्युत उत्पादन क्षमता के 42% हिस्से का गठन करते हैं।
    • भारत अक्षय ऊर्जा के मामले में वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा
    • भारत ने वर्ष 2014 से अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में 250% की वृद्धि की है और अब इस क्षमता के साथ यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है।
    • भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपनी आधी ऊर्जा विद्युत नवीकरणीय स्रोतों से उत्पन्न करना है।
  • नीतिगत उपाय: भारत ने हरित ऊर्जा और प्रौद्योगिकी के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए नीतिगत उपाय और प्रोत्साहन प्रस्तुत किए हैं।
    • ग्रीन हाइड्रोजन: भारत ऊर्जा भंडारण के लिए ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग की खोज कर रहा है। सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (National Green Hydrogen Mission) शुरू किया है।
    • इलेक्ट्रिक मोबिलिटी: सरकार ने परिवहन क्षेत्र में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा देने के लिए योजनाएँ शुरू की हैं।
    • एथेनॉल मिश्रण: भारत पेट्रोल में एथेनॉल मिलावट को बढ़ावा दे रहा है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2025-26 तक 20% मिश्रण करना है।
    • उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना: स्वच्छ प्रौद्योगिकी के लिए विनिर्माण सुविधाएँ स्थापित करने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन प्रदान करती है।
    • पीएम कुसुम (PM KUSUM): कृषि क्षेत्र को समर्थन देने की पहल।
    • उज्ज्वला (UJJWALA): ग्रामीण क्षेत्रों में खाना पकाने में उपयोगी ऊर्जा के लिए योजना।
  • निवेश और उत्सर्जन
    • भारत, इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicles- EV) और ग्रीन हाइड्रोजन में सालाना करीब 10 बिलियन डॉलर का निवेश करता है।
    • भारत और चीन दोनों में कोयले पर निर्भरता उत्सर्जन तीव्रता में योगदान करती है।
  • वहनीयता एवं व्यवहार्यता: भारत आय सृजन और सूक्ष्म उद्यमों के लिए किफायती, आर्थिक रूप से व्यवहार्य अक्षय ऊर्जा समाधानों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • उत्सर्जन: भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन (1.7 टन CO2) वैश्विक औसत (4.4 टन) से 60% कम है।
    • भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है।
  • ऊर्जा संक्रमण में धीमी वृद्धि
    • हालाँकि ऊर्जा संक्रमण के संदर्भ में 120 देशों में से 107 देशों में प्रगति देखी गई है, ऊर्जा संक्रमण की समग्र वृद्धि धीमी हो गई है।
    • ऊर्जा संक्रमण संबंधी विभिन्न पहलुओं को संतुलित करना एक चुनौती बन गया है।

ऊर्जा संक्रमण में चुनौतियाँ

  • आर्थिक विकास: आर्थिक विकास एवं आर्थिक गतिविधियों के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी होता है।
  • संक्रमण की गति: इस बात पर आम सहमति का अभाव कि ऊर्जा संक्रमण (आंशिक रूप से इसके संभावित आर्थिक व्यवधानों के कारण) कितनी तेजी से होना चाहिए और कितनी तेजी से हो सकता है। 
  • ‘नॉर्थ-साउथ’ विभाजन: ऊर्जा संक्रमण में प्राथमिकताओं पर विकसित एवं विकासशील देशों के बीच एक बड़ा विभाजन विद्यमान है। 
  • नियामक अनिश्चितता: नियामक अनिश्चितता को डीकार्बोनाइजेशन के लिए एक संभावित अवरोध के रूप में देखा जाता है।
  • ऊर्जा प्रबंधन: ऊर्जा प्रबंधन माइक्रोग्रिड ऑपरेटरों की चुनौतियों में से एक है।
  • अस्थायी विद्युत: पवन एवं सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत अस्थायी हैं, इसलिए विद्युत की कुशलतापूर्वक आपूर्ति के लिए उपयोगिताओं और विद्युत ग्रिडों को पुनःसंयोजित करने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • नवीकरणीय ऊर्जा में तेजी लाना: जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिए सौर, पवन और जल विद्युत ऊर्जा संबंधी क्षेत्रों में निवेश को बढ़ाया जाना चाहिए।
  • ऊर्जा भंडारण और ग्रिड को बेहतर बनाना: नवीकरणीय ऊर्जा संबंधी विभिन्न बाधाओं को दूर करके नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के प्रबंधन के लिए बेहतर भंडारण एवं ग्रिड अवसंरचना विकसित करना।
    • उदाहरण के लिए: शहरी वातावरण के लिए ‘वर्टिकल एक्सिस विंड टर्बाइन’ (Vertical Axis Wind Turbines- VAWT)
  • हरित निवेश को बढ़ावा देना: सतत् नीतियों एवं प्रोत्साहनों के साथ स्थायी ऊर्जा परियोजनाओं के लिए सार्वजनिक और निजी वित्तपोषण को प्रोत्साहित करना।
  • वैश्विक सहयोग: उन्नत अर्थव्यवस्थाओं को प्रौद्योगिकी, वित्त और क्षमता निर्माण के साथ विकासशील देशों का समर्थन करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन
  • सतत् आपूर्ति शृंखला: स्वच्छ ऊर्जा के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए सतत् खनन का विस्तार एवं सुधार करना।

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