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भारत में कपड़ा उद्योग

Lokesh Pal October 10, 2024 05:24 130 0

संदर्भ

भारतीय कपड़ा तथा परिधान क्षेत्र का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 350 बिलियन डॉलर का वार्षिक कारोबार करना है, जिससे 3.5 करोड़ रोजगार उत्पन्न होंगे, लेकिन इस क्षेत्र की वृद्धि के लिए 10% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) हासिल करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

कपड़ा उद्योग: समग्र अवलोकन

  • बाजार का आकार: वर्ष 2021 तक, कपड़ा तथा परिधान उद्योग का मूल्य लगभग 153 बिलियन डॉलर था, जिसमें घरेलू कारोबार का योगदान लगभग 110 बिलियन डॉलर था।
  • निर्यात स्थिति: वित्त वर्ष 2022 में, भारत 5.4% बाजार हिस्सेदारी हासिल करके वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा कपड़ा निर्यातक रहा है।
  • विनिर्माण क्षमता: भारत कपड़ा क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी विनिर्माण क्षमता रखता है, जो मूल्य शृंखला में मजबूत क्षमताओं का प्रदर्शन करता है।
  • आर्थिक योगदान: इस क्षेत्र ने वित्त वर्ष 2021 में सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 2.3% का योगदान दिया और वित्त वर्ष 2023 में कुल विनिर्माण सकल मूल्य वर्द्धित (GVA) का 10.6% हिस्सा रहा।
  • रोजगार: कपड़ा तथा परिधान क्षेत्र प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 105 मिलियन लोगों को रोजगार देता है।
  • सरकारी निर्यात लक्ष्य: भारत सरकार का लक्ष्य वित्त वर्ष 2022 में 44 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2047 तक 600 बिलियन डॉलर का कपड़ा निर्यात हासिल करना है।

भारत में कपड़ा क्षेत्र के प्रमुख घटक

  • कपास: भारत कपास (श्वेत सोना) का सबसे बड़ा उत्पादक है तथा यहाँ कपास की सभी चार प्रजातियों को उगाया जाता है:- गोसीपियम आर्बोरियम (Gossypium Arboreum) तथा जी. हर्बेशियम (G. Herbaceum) (एशियाई कपास), जी. बारबाडेंस (G. Barbadense) (मिस्र कपास), तथा जी. हिर्सुटम (G. hirsutum) (अमेरिकी अपलैंड कपास)
  • ऊन (Wool): भारत विश्व का नौवाँ सबसे बड़ा ऊन उत्पादक देश है।
    • भारत में ऊन की तीन मुख्य श्रेणियाँ उत्पादित होती हैं: कालीन ग्रेड (Carpet Grade), परिधान ग्रेड (Apparel Grade) तथा मोटे परिधान ग्रेड (Coarser Grade)।
  • रेशम (Silk): भारत, विश्व में रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
    • भारत में चार प्रकार के प्राकृतिक रेशम का उत्पादन होता है: शहतूत, एरी, टसर तथा मूगा।
  • मानव निर्मित रेशे (MMF): मानव निर्मित रेशे (MMF) उद्योग भारत के वस्त्र निर्यात में 17% का योगदान देता है तथा भारत, MMF वस्त्रों का विश्व का छठा सबसे बड़ा निर्यातक है।
  • तकनीकी वस्त्र: ये ऐसे वस्त्र उत्पाद हैं, जिनका प्राथमिक ध्यान तकनीकी प्रदर्शन तथा कार्यक्षमता पर होता है। इनका उपयोग निर्माण, कृषि, एयरोस्पेस, ऑटोमोटिव, स्वास्थ्य सेवा, सुरक्षात्मक गियर तथा घरेलू देखभाल सहित विभिन्न उद्योगों में किया जाता है।

कपड़ा क्षेत्र में हालिया गिरावट

  • मंदी का प्रभाव: वर्ष 2022 में शुरू हुई माँग में गिरावट वित्त वर्ष 2024 में निर्यात तथा घरेलू माँग दोनों में गिरावट के साथ और भी बदतर हो गई।
  • विनिर्माण क्षेत्र में बाधाएँ: इस गिरावट से विनिर्माण क्षेत्र पर काफी प्रभाव पड़ा।
    • उदाहरण के लिए, तमिलनाडु, जो देश में सर्वाधिक कताई क्षमता वाला राज्य है, में पिछले दो वर्षो में लगभग 500 कपड़ा मिलें बंद हो गई हैं।
    • बुने गए वस्त्रों के उत्पादन के केंद्र तिरुपुर में कई इकाइयों ने वित्त वर्ष 2023 के दौरान कारोबार में 40% की गिरावट दर्ज की है।

कपड़ा क्षेत्र में निर्यात में गिरावट एवं इसके कारण

  • भू-राजनीतिक कारक: रूस-यूक्रेन संघर्ष, लाल सागर संकट और इजरायल-हमास संघर्ष ने हाल ही में भारतीय निर्यातकों के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार परिदृश्य को काफी चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
    • उदाहरण: हूती विद्रोहियों के कारण माल ढुलाई की लागत में 40-50% की वृद्धि होने से स्वेज नहर के माध्यम से व्यापार पर निर्भर कपड़ा निर्यातकों को समस्या हो सकती है।
  • वैश्विक माँग का कमजोर होना: मई 2024  ITMF ‘ग्लोबल टेक्सटाइल इंडस्ट्री सर्वे’ (GTIS) ने कपड़ा क्षेत्र में ठहराव का संकेत दिया है, सितंबर 2022 से कमजोर माँग प्राथमिक चिंता बनी हुई है।
  • उच्च कच्चे माल की लागत: कच्चे माल, विशेष रूप से कपास और मानव निर्मित फाइबर (MMF) की बढ़ती कीमतों ने स्थिति को और अधिक खराब कर दिया है।
  • कपास पर आयात शुल्क: कपास पर 10% आयात शुल्क लगाने से भारतीय कपास की लागत बढ़ गई, जिससे यह अंतरराष्ट्रीय कीमतों की तुलना में कम प्रतिस्पर्द्धी हो गई।
  • गुणवत्ता नियंत्रण आदेश: MMF के लिए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश लागू होने से कच्चे माल की उपलब्धता और मूल्य स्थिरता बाधित हुई, जिससे उत्पादन प्रभावित हुआ।
  • आयात प्रतिस्पर्द्धा: कपड़ों तथा परिधानों के बढ़ते आयात से बाजार में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ गई।

भारतीय कपड़ा क्षेत्र में समग्र चुनौतियाँ

  • कच्चे माल की समस्या: कपास का सबसे बड़ा उत्पादक होने तथा मजबूत कच्चे माल का आधार होने के बावजूद, भारत को उच्च संदूषण स्तर तथा खराब फाइबर गुणवत्ता जैसी महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • भारत में 94% कपास के बीज आनुवंशिक रूप से संशोधित BT कपास हैं, जिसके कारण किसानों को प्रतिवर्ष नए बीज खरीदने पड़ते हैं, जबकि पारंपरिक किस्मों के विपरीत, वे बीजों का पुनः उपयोग कर सकते हैं।
  • क्षेत्र का विकेंद्रीकृत होना: कपड़ा क्षेत्र अत्यधिक विखंडित है, जिसमें कई MSME का प्रभुत्व है, जिसमें सीमित उत्पाद विविधीकरण, तकनीकी प्रगति की कमी जैसी चुनौतियाँ हैं।
  • कार्यबल में कौशल अंतराल: श्रम-प्रधान होने के बावजूद, उद्योग को कुशल श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उत्पादकता एवं नवाचार सीमित हो रहा है।
  • अन्य देशों से प्रतिस्पर्द्धा
    • उच्च परिचालन लागत: भारत में भूमि, श्रम तथा पूँजी की उच्च लागत इसे बांग्लादेश, फिलीपींस तथा वियतनाम जैसे देशों की तुलना में कम प्रतिस्पर्द्धी बनाती है।
    • मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) का अभाव वैश्विक बाजार में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त में बाधा डालता है।
  • रसद संबंधी चुनौतियाँ: रसद भारतीय निर्यातकों के लिए प्रमुख बाधाओं में से एक है।
    • उदाहरण के लिए, ऑर्डर से डिलीवरी तक का समय (Turnaround Time- TAT) बांग्लादेश के लिए 50 दिन तथा भारत के लिए 63 दिन है, जबकि बंदरगाह तक पहुँचने में लगने वाला समय बांग्लादेश के लिए एक दिन तथा भारत के लिए 7-10 दिन है। 
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: विशेष रूप से हरित उत्पादन विधियों की ओर वैश्विक बदलाव के कारण वस्त्र निर्माण में जल-गहन प्रक्रियाएँ तथा उच्च ऊर्जा खपत पर्यावरणीय स्थिरता संबंधी चिंताएँ बढ़ाती हैं।
  • प्रौद्योगिकी अपनाने में धीमी गति: यह क्षेत्र उन्नत प्रौद्योगिकियों एवं स्वचालन को अपनाने में धीमी गति से आगे बढ़ रहा है, जिससे दक्षता एवं वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित हो रही है।
  • अन्य चुनौतियाँ
    • ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रत्यक्ष खुदरा बिक्री, परिधान और घरेलू वस्त्र निर्माताओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है तथा कई स्टार्टअप इस बाजार में प्रवेश कर रहे हैं।
    • स्थिरता पर ध्यान: विदेशी ब्रांड अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में पर्यावरण, सामाजिक तथा शासन (ESG) स्थिरता प्रथाओं को अपनाने में तेजी ला रहे हैं तथा अपने विक्रेताओं के लिए विशिष्ट स्थिरता लक्ष्य निर्धारित कर रहे हैं।

कपड़ा क्षेत्र के लिए नीतिगत समर्थन एवं प्रोत्साहन

  • निवेश सहायता: कपड़ा क्षेत्र में स्वचालित मार्ग से 100% FDI की अनुमति है।
    • अप्रैल 2000 से मार्च 2024 के बीच कपड़ा क्षेत्र में कुल FDI प्रवाह 4.47 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा है।
    • संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन निधि योजना (Amended Technology Upgradation Fund Scheme- ATUFS): यह योजना वित्तीय प्रोत्साहन के साथ कपड़ा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी उन्नयन को समर्थन देती है तथा इसका उद्देश्य उत्पादन क्षमता में सुधार लाना एवं रोजगार को बढ़ावा देना है।
    • उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना: पाँच वर्ष की अवधि में मानव निर्मित फाइबर तथा तकनीकी वस्त्रों के लिए 10,683 करोड़ रुपये (1.44 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की PLI योजना शुरू की गई है।
  • कर नीति प्रोत्साहन: भारत सरकार ने 1 जनवरी, 2022 से मानव निर्मित कपड़े (MMF), MMF यार्न तथा परिधान पर 12% की एक समान वस्तु एवं सेवा कर (GST) दर स्थापित की है।
    • विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ): SEZ में स्थित कपड़ा इकाइयों को विभिन्न कर छूट प्राप्त होती हैं, जिनमें आयकर छूट, सीमा शुल्क छूट तथा आपूर्ति पर GST छूट शामिल हैं।
  • कौशल विकास पहल
    • समर्थ (SAMARTH) योजना (वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण योजना) कौशल विकास पर केंद्रित है, जिसका लक्ष्य वस्त्र-संबंधी नौकरियों के लिए 10 लाख व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराना है।
    • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY): कपड़ा उद्योग में रोजगार क्षमता में सुधार के लिए अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करती है।
    • वस्त्र क्षेत्र कौशल परिषद (TSSC): राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) के तत्त्वावधान में इसका उद्देश्य व्यापार योग्यता के प्रशिक्षण तथा मान्यता के लिए पाठ्यक्रम निर्धारित करके कपड़ा क्षेत्र हेतु कुशल कार्यबल विकसित करना है।
  • बुनियादी ढाँचा समर्थन 
    • पीएम-मित्र [मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल पार्क्स (Mega Integrated Textile Region and Apparel Parks)] पहल का उद्देश्य एकीकृत टेक्सटाइल पार्कों की स्थापना करके, निवेश आकर्षित करके तथा कपड़ा क्षेत्र में निर्यात को बढ़ावा देकर विश्व स्तरीय औद्योगिक बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना है।
    • एकीकृत वस्त्र पार्क योजना (Scheme for Integrated Textile Parks- SITP) का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय मानकों के वस्त्र पार्क विकसित करना है, इस पहल के तहत 54 पार्क स्वीकृत किए गए हैं।
    • पॉवर-टेक्स इंडिया का लक्ष्य प्रौद्योगिकी उन्नयन तथा बाजार विस्तार के लिए सब्सिडी प्रदान करके पावरलूम क्षेत्र को बढ़ावा देना है।
  • तकनीकी वस्त्र के लिए पहल: कपड़ा मंत्रालय ने इस क्षेत्र की तीव्र वृद्धि का लाभ उठाते हुए, भारत में तकनीकी वस्त्रों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय तकनीकी कपड़ा मिशन भारत (NTTM) शुरू किया है।

आगे की राह 

  • आयात शुल्क कम करना: भारत को कपड़ा क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिए आवश्यक कच्चे माल और उन्नत मशीनरी पर आयात शुल्क कम करने पर विचार करना चाहिए।
  • कार्यबल का कौशल उन्नयन: कर्मचारी के प्रदर्शन को बढ़ाने, कौशल अंतराल को कम करने और उद्योग में समग्र प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करने के लिए कार्यबल के कौशल उन्नयन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • तकनीकी वस्त्रों में अवसरों का लाभ उठाना: सरकार को निवेश को प्रोत्साहित करके तथा अनुसंधान एवं विकास क्षमताओं को बढ़ाकर तकनीकी वस्त्रों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना चाहिए।
    • इस फोकस से इस क्षेत्र में विकास को बढ़ावा मिलेगा, जिसके वर्ष 2026 तक 42 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जिससे भारत वैश्विक अभिकर्ता के रूप में स्थापित हो जाएगा।
  • MMF बाजार हिस्सेदारी में वृद्धि: फर्मों को अनुसंधान और विकास में निवेश करना चाहिए, गुणवत्ता नियंत्रण में सुधार करना चाहिए तथा MMF उत्पादन में कुशल कार्यबल को प्रशिक्षित करने के लिए क्षमता निर्माण पहल को मजबूत करना चाहिए।
  • विविधीकरण और मूल्य शृंखला संवर्द्धन: भारत को अपने वस्त्र निर्यात में विविधता लानी चाहिए, जिसमें पतलून और जैकेट जैसी उच्च माँग वाली वस्तुएँ शामिल हों, साथ ही जापान, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के उभरते बाजारों को लक्ष्य बनाना चाहिए।
    • इसके अतिरिक्त, नवीन डिजाइनों तथा उन्नत प्रौद्योगिकियों में निवेश से वैश्विक मूल्य शृंखला में इसकी स्थिति मजबूत होगी।
  • स्टार्ट-अप इकोसिस्टम का लाभ उठाना: सरकार-उद्योग-अकादमिक सहयोग और उद्योग-उद्योग सहयोग के माध्यम से बाजार में बदलाव के लिए तेजी से अनुकूलन को सक्षम करने, पता लगाने और टिकाऊ वस्त्रों में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए भारत के स्टार्ट-अप इकोसिस्टम का उपयोग करने की आवश्यकता है।
  • आपूर्ति शृंखला दक्षता में वृद्धि: लीड समय तथा लागत को कम करने के लिए आपूर्ति शृंखला संचालन को सुव्यवस्थित करना महत्त्वपूर्ण है।
    • इन्वेंट्री प्रबंधन और माँग पूर्वानुमान के लिए डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करने से बाजार में होने वाले परिवर्तनों के प्रति प्रतिक्रिया में सुधार हो सकता है।
  • स्थायित्व संबंधी पहल: वस्त्र उद्योग को कार्बन उत्सर्जन तथा अपशिष्ट को कम करने के लिए पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए चक्रीय मॉडल अपनाना चाहिए।
    • टिकाऊ वस्त्रों के लिए यूरोपीय संघ की रणनीति जैसे अंतरराष्ट्रीय स्थिरता मानकों के साथ सामंजस्य स्थापित करने से अनुपालन में वृद्धि होगी तथा वैश्विक बाजार में भारत की स्थिति मजबूत होगी।

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