भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सात सप्ताह की बढोतरी के बाद पहली बार 700 बिलियन डॉलर से अधिक होकर 704.89 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया।
विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ (FCA)
विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ (FCA), जो RBI के विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है, वे US ट्रेजरी बिल जैसी परिसंपत्तियाँ हैं, जिन्हें RBI द्वारा विदेशी मुद्राओं का उपयोग करके खरीदा जाता है।
FCA भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक है।
विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights- SDR)
वर्ष 1969 में RBI द्वारा निर्मित एक अंतरराष्ट्रीय आरक्षित परिसंपत्ति;
यह न तो कोई मुद्रा है और न ही IMF पर कोई दावा है। बल्कि, यह IMF सदस्यों की स्वतंत्र रूप से प्रयोग योग्य मुद्राओं पर एक संभावित दावा है।
SDR का मूल्य: यह पाँच मुद्राओं की एक बास्केट (डॉलर, यूरो, रेनमिनबी, येन और पाउंड स्टर्लिंग) पर आधारित है।
आरक्षित अंश (Reserve Tranche)
आरक्षित अंश मुद्रा के आवश्यक कोटे का एक हिस्सा है, जिसे प्रत्येक सदस्य देश को IMF को प्रदान करना होता है।
इसका उपयोग देश द्वारा बिना किसी सेवा शुल्क या आर्थिक सुधार की शर्तों के अपने उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।
संबंधित तथ्य
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वर्ष 2024 में 87.6 बिलियन डॉलर की वृद्धि हुई है, जो पिछले वर्ष की लगभग 62 बिलियन डॉलर की कुल वृद्धि को पार कर गया है।
27 सितंबर, 2024 को समाप्त सप्ताह में, भंडार में 12.6 बिलियन डॉलर की वृद्धि हुई, जो जुलाई 2023 के मध्य के बाद से सबसे बड़ी साप्ताहिक वृद्धि है।
भारत अब चीन, जापान और स्विट्जरलैंड के बाद 700 बिलियन डॉलर से अधिक विदेशी मुद्रा भंडार वाला वैश्विक रूप से चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के कारक
निवेश में वृद्धि: वर्ष 2013 से भारत ने बेहतर व्यापक आर्थिक स्थितियों के माध्यम से अपने विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत किया है, जिससे विदेशी निवेश आकर्षित हुआ है।
विदेशी निवेश: वर्ष 2024 में विदेशी निवेश 30 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है, जो मुख्य रूप से जे. पी. मॉर्गन इंडेक्स में शामिल स्थानीय ऋण निवेशों द्वारा प्रेरित है।
RBI का हस्तक्षेप: हालिया वृद्धि आंशिक रूप से RBI द्वारा 4.8 बिलियन डॉलर की डॉलर खरीद तथा अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड, डॉलर की मजबूती और सोने की बढ़ती कीमतों से जुड़े मूल्यांकन लाभ से 7.8 बिलियन डॉलर की वृद्धि के कारण हुई।
बाजार स्थिरता: पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार मुद्रा की अस्थिरता को कम करने में मदद करता है, जिससे भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप करने की क्षमता मिलती है।
नियंत्रित अस्थिरता: RBI ने रुपये की अस्थिरता को नियंत्रित किया है, जिससे यह उभरते बाजार की मुद्राओं के बीच स्थिर बना हुआ है।
विदेशी मुद्रा भंडार के बारे में
विदेशी मुद्रा भंडार विदेशी मुद्रा में मूल्यवर्द्धित परिसंपत्तियाँ हैं, जिन्हें केंद्रीय बैंक द्वारा आरक्षित रखा जाता है।
भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 विदेशी मुद्रा भंडार को नियंत्रित करने के लिए कानूनी प्रावधान निर्धारित करते हैं।
भारत की विदेशी मुद्रा की संरचना (अवरोही क्रम में)
विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ
स्वर्ण भंडार
विशेष आहरण अधिकार (SDR)
IMF में रिजर्व स्थिति
विदेशी मुद्रा भंडार का महत्त्व
आर्थिक संकट तरलता: संकट के समय, केंद्रीय बैंक स्थानीय मुद्रा के लिए विदेशी मुद्रा का विनिमय कर सकते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कंपनियाँ आयात एवं निर्यात में प्रतिस्पर्द्धी बनी रहें।
मुद्रा अवमूल्यन: जापान, अस्थिर विनिमय दर का उपयोग करते हुए, येन को डॉलर के मुकाबले कम रखने के लिए अमेरिकी ट्रेजरी खरीदता है, जिससे निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ती है।
अंतरराष्ट्रीय वित्तीय दायित्व: विदेशी मुद्रा भंडार अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद करता है, जैसे कि ऋण का भुगतान करना और आयात का वित्तपोषण करना।
आंतरिक परियोजना वित्तपोषण: विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग घरेलू बुनियादी ढाँचे और उद्योग परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए किया जा सकता है।
निवेशकों को आश्वासन: विदेशी मुद्रा भंडार रखने से अशांति या अनिश्चितता के समय में विदेशी निवेशकों में विश्वास उत्पन्न हो सकता है।
पोर्टफोलियो विविधीकरण: केंद्रीय बैंक विभिन्न मुद्राओं तथा परिसंपत्तियों को धारण करके अपने भंडार में विविधता लाते हैं, जिससे निवेश में गिरावट से होने वाले जोखिम को कम किया जा सकता है।
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