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यूरोपीय संघ का कार्बन कर

Lokesh Pal October 11, 2024 04:47 84 0

संदर्भ 

केंद्रीय वित्त मंत्री ने कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism-CBAM) और वनों की कटाई के नियमों जैसे यूरोपीय संघ की पहलों को ‘एकतरफा’ और ‘मनमाना’ बताया।

संबंधित  तथ्य

  • वित्त मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यूरोपीय संघ द्वारा स्टील और सीमेंट जैसे भारतीय उत्पादों पर कार्बन टैक्स लगाने का निर्णय भारतीय उद्योगों को नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से लिया गया है।

  • यह शुल्क यूरोपीय संघ के अपने ‘खराब’ इस्पात को दूसरे की तुलना में हरित इस्पात में परिवर्तित करने का एक दिखावा है।
  • भारत ने यूरोपीय संघ के इस्पात टैरिफ के विरुद्ध कार्रवाई करने का फैसला किया है, जिसके कारण वर्ष 2018 से 2023 तक 4.41 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा हुआ है।

‘फिट फॉर 55 इन 2023 पैकेज’

  • जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के अपने प्रयासों में यूरोपीय संघ (EU) का समग्र लक्ष्य वर्ष 2050 तक जलवायु तटस्थता हासिल करना है।
  • इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, जलवायु कानून को अधिनियमित किया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी यूरोपीय संघ की नीतियों का लक्ष्य जलवायु तटस्थता हो।
  • इस कानून को जुलाई 2021 में ‘फिट फॉर 55 पैकेज’ के माध्यम से लागू किया गया था। इसमें 55 का अंक 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक GHG को कम-से-कम 55% कम करने के लक्ष्य का प्रतीक है। 
  • इस पैकेज में जलवायु, ऊर्जा, भूमि उपयोग, यातायात और करों के क्षेत्र में इस लक्ष्य को लागू करने के लिए कानूनी उपकरण शामिल हैं।

कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism-CBAM)

  • यह यूरोपीय संघ के ‘फिट फॉर 55 पैकेज’  का हिस्सा है।
  • इसका उद्देश्य वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में 55% की कमी लाने का लक्ष्य हासिल करना है।
  • आयातकों को प्रत्येक वर्ष CBAM प्रमाण-पत्रों की इसी संख्या को सरेंडर करना होगा।
  • प्रयोज्यता: यूरोपीय संघ में आयातित वस्तुओं में निहित वास्तविक घोषित कार्बन सामग्री पर लागू होता है।
  • यूरोपीय संघ की उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETS): यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा कर का उद्देश्य यूरोपीय संघ-ETS की तरह कार्य करना है, जो अनुमत GHG उत्सर्जन की मात्रा पर एक सीमा निर्धारित करता है।
    • आयातकों को ये प्रमाण-पत्र कार्बन लागत को प्रतिबिंबित करने वाली कीमतों पर प्राप्त करने होंगे, जिससे वैश्विक स्तर पर स्वच्छ उत्पादन प्रथाओं को प्रोत्साहन मिलेगा।

CBAM कार्यान्वयन के पक्ष और विपक्ष

पक्ष 

  • समान अवसर: कार्बन लीकेज को रोकता है, यह सुनिश्चित करता है कि यूरोपीय संघ की कंपनियों को कम कठोर जलवायु नीतियों वाले देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करके नुकसान न हो।
  • जलवायु कार्रवाई को प्रोत्साहन: गैर-यूरोपीय संघ के देशों को टैरिफ से बचने के लिए अधिक महत्त्वाकांक्षी उत्सर्जन कटौती लक्ष्य अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • राजस्व सृजन: CBAM यूरोपीय संघ के लिए राजस्व उत्पन्न कर सकता है, जिसका उपयोग जलवायु शमन और अनुकूलन परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए किया जा सकता है।

विपक्ष

  • व्यापार बाधाएँ: व्यापार लागत में वृद्धि हो सकती है और वैश्विक व्यापार में बाधा उत्पन्न हो सकती है, विशेष रूप से कम विकसित जलवायु नीतियों वाले विकासशील देशों के लिए।
  • जटिलता: CBAM को लागू करना प्रशासनिक रूप से जटिल हो सकता है, जिसके लिए उत्सर्जन और उत्पाद जीवन चक्रों की सटीक ट्रैकिंग की आवश्यकता होती है।
  • प्रतिशोध: अन्य देश अपने स्वयं के कार्बन सीमा उपायों के साथ प्रतिशोध उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे व्यापार संबंधी संघर्ष उत्पन्न हो सकता है।

CBAM के निहितार्थ

  • प्रतिकूल प्रभाव: भारत उन शीर्ष 8 देशों में शामिल है, जो CBAM से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होंगे।
    • CBAM से स्टील जैसे कुछ मुख्य क्षेत्र बहुत प्रभावित होंगे।
    • भारत अपने 8.2 बिलियन डॉलर मूल्य के 27% लौह, इस्पात और एल्युमीनियम उत्पादों का निर्यात यूरोपीय संघ को करता है।
  • महँगा निर्यात: यूरोपीय संघ के कार्बन टैरिफ से भारतीय निर्यात की लागत 20% से 35% तक बढ़ सकती है, जिसका असर खास तौर पर लोहा, इस्पात और एल्युमीनियम पर पड़ेगा।
  • जटिल प्रक्रिया: भारतीय निर्यातक CBAM की जटिल नियमों के संदर्भ में चिंतित हैं, जिसमें उत्पादन विधियों के बारे में लगभग 1,000 डेटा पॉइंट प्रस्तुत करना शामिल है।

  • अन्य विनियम: यूरोपीय संघ का वन-उन्मूलन  विनियमन, आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकता है और अनुपालन करने वाले देशों के लिए संक्रमण लागत बढ़ा सकता है।
    • यूरोपीय संघ ने कई देशों के विरोध के कारण वनों की कटाई संबंधी विनियमन के कार्यान्वयन को एक वर्ष तक विलंबित करने का प्रस्ताव दिया है।

हरित परिवर्तन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता

  • भारत हरित ऊर्जा सहित उभरते क्षेत्रों के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना जैसी पहलों के माध्यम से अपने हरित परिवर्तन को आगे बढ़ा रहा है।
  • भारत सरकार वर्ष 2070 तक के अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है तथा वर्ष 2030 के लिए अंतरिम लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं।
  • हरित परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण का समर्थन करने तथा सतत् निवेश के लिए अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देने के लिए नए मिश्रित वित्त विकल्पों की खोज करने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।

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