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भारत में पोषण असमानता : ग्लोबल हंगर इंडेक्स (2024)

Lokesh Pal October 11, 2024 05:45 131 0

संदर्भ : 

वैश्विक भूख सूचकांक 2024 में भारत को 127 देशों में 105 वें स्थान पर रखा गया है, जो दर्शाता है कि कुपोषण, बौनापन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी अभी भी व्यापक रूप से व्याप्त है।

पोषण असमानता का आशय 

  • हालांकि भारत ने खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है और यह खाद्य निर्यात के क्षेत्र में भी प्रगति कर रहा है, फिर भी भारत में भुखमरी की समस्या बनी हुई है। 
  • भारत में कुपोषण और छिपी हुई भूख जैसी समस्याएं बनी हुई हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2023   में भारत 125 देशों में 111वें स्थान पर था, परंतु वर्ष 2024 में भारत को 127 देशों में 105 वें स्थान पर रखा गया है ।

छिपी हुई भूख या अदृश्य भूख 

  • छिपी हुई भूख, या सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी, तब होती है जब लोगों द्वारा खाए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता उनकी पोषक तत्वों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है, इसलिए उन्हें उनके विकास और वृद्धि के लिए आवश्यक विटामिन और खनिज नहीं मिल पाते हैं।

  • वर्ष 2024 के हंगर इंडेक्स में भारत का स्कोर 27.3 है, जो गंभीर पोषण असमानता को दर्शाता है। 
  • वर्ष 2024 के हंगर इंडेक्स में श्रीलंका 56 , नेपाल 68, बांग्लादेश 84वें तथा पाकिस्तान 109 वें स्थान पर है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5, 2019-2021) से पता चलता है कि कुपोषण अभी भी बना हुआ है – पाँच वर्ष से कम आयु के 35.5 प्रतिशत बच्चे बौने हैं और 19.3 प्रतिशत बच्चे दुर्बलता से पीड़ित हैं।

  • बाल दुर्बलता: पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों का हिस्सा जिनका वजन उनकी ऊंचाई के हिसाब से कम है, वह तीव्र कुपोषण को दर्शाता है।
  • बाल बौनापन: पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों का हिस्सा जिनका वजन उनकी उम्र के हिसाब से कम है, वह दीर्घकालिक कुपोषण को दर्शाता है।

खाद्य असुरक्षा और छिपी हुई भूख को बढ़ाने वाले कारण

  • आय असमानता : आय असमानता कुछ क्षेत्रों में खाद्य असुरक्षा को बढ़ाती है। गरीबी के कारण अनेक लोग पर्याप्त भोजन नहीं खरीद पाते, जिससे उन्हें लगातार भूख से जूझना पड़ता है।
    • पोषक तत्वों के स्रोतों के बारे में जागरूकता की कमी अमीरों में छिपी हुई भूख का कारण हो सकती है।
  • लैंगिक असमानता। 
  • सीमित स्वास्थ्य सेवा पहुँच। 

समाधान : समुदाय-संचालित पोषण केंद्र

  • स्थानीय ज्ञान और नेतृत्व : समुदाय-नेतृत्व वाले पोषण केंद्र स्थानीय ज्ञान और नेतृत्व का लाभ उठाकर खाद्य असुरक्षा का जमीनी स्तर पर समाधान प्रदान करते हैं।
    • ये केंद्र टिकाऊ, संदर्भ-विशिष्ट दृष्टिकोणों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, भौगोलिक आवश्यकताओं के अनुरूप संतुलित आहार को बढ़ावा देते हैं, स्वस्थ समुदायों के लिए मात्र कैलोरी सेवन पर पोषण को प्राथमिकता देते हैं।
  • संतुलित और विविध खाद्य पदार्थों को प्रोत्साहन : पोषण केंद्र संतुलित आहार के लिए आवश्यक फलों, सब्जियों, फलियों और पशु उत्पादों सहित विविध खाद्य पदार्थों के सेवन को प्रोत्साहित करते हैं।
  • कमजोर समूहों तक पँहुच : ये केंद्र बच्चों, गर्भवती महिलाओं, गरीबों और बुजुर्गों जैसी कमजोर आबादी तक प्रभावी ढंग से पहुँचते हैं।
    • वे विशिष्ट पोषण संबंधी आवश्यकताओं पर अनुरूप पोषण सहायता, फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थ, पूरक और शिक्षा प्रदान करते हैं।

फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थ

  • फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थ वे होते हैं जिनमें ऐसे पोषक तत्व मिलाए जाते हैं जो भोजन में प्राकृतिक रूप से नहीं होते।

  • स्थानीय कृषि का लाभ उठाना : ऐसे केंद्र स्थानीय खाद्य उत्पादन और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा दे सकते हैं और उनका समर्थन कर सकते हैं, जिससे ताज़े, पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक पहुँच बढ़ सकती है।
    • इस प्रथा से बाहरी सहायता पर निर्भरता कम होगी। इससे कीमत भी कम होगी जो अक्सर परिवहन लागत के कारण बढ़ जाती है।
  • सामुदायिक नेतृत्व वाले पोषण केंद्रों का प्रभाव : खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार पोषण केंद्रों की शुरुआत के बाद उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में बौनेपन की दर में 20 प्रतिशत की कमी आई है।

अन्य समाधान

  • भागीदार के रूप में पुरुष (लिंग समानता) : अक्सर पोषक तत्वों और खाद्य सुरक्षा का भार महिलाओं पर होता है। पुरुषों को भी पोषण केंद्रों में भाग लेना चाहिए, इसके लिए पोषक उत्पादों की खेती, खाना पकाना या सामुदायिक आयोजन में भागीदारी की जा सकती है।
  • युवाओं की भागीदारी बढ़ाना : इन प्रयासों में युवाओं को शामिल करने से समुदाय द्वारा संचालित पहलों की निरंतरता सुनिश्चित हो सकती है। क्योंकि युवा पीढ़ी नए विचार और ऊर्जा लाने में सक्षम हैं।
  • स्थानीय सरकार का समर्थन : स्थानीय सरकारें वित्तपोषण, नीति समर्थन और बुनियादी ढाँचा प्रदान करके इन पहलों का समर्थन और विस्तार कर सकती हैं, जिससे पोषण केंद्र सामुदायिक विकास का अभिन्न अंग बन सकते हैं।

निष्कर्ष

“विकसित भारत @2047” के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और सामुदायिक नेतृत्व वाली पहलों के माध्यम से लचीलापन बढाना आवश्यक है। सभी सदस्यों को शामिल करते हुए समग्र समाज का दृष्टिकोण सभी के लिए संतुलित और समावेशी भविष्य बनाने के लिए आवश्यक है। वैश्विक भूख सूचकांक 2024 इन समस्याओं को रेखांकित करती है।

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