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निजी निवेश मॉडल : प्रभाव एवं चुनौतियाँ

Lokesh Pal October 15, 2024 06:00 65 0

निजी निवेश मॉडल का आशय : 

  • यह एक ऐसे निवेश मॉडल को संदर्भित करता है जिसमें निजी क्षेत्र विभिन्न उपक्रमों में निवेश करता है। ऐसा निवेश घरेलू या अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) या प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के रूप में आ सकता है।

अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र के निवेश की भूमिका

  • सरकारी संसाधनों की पूर्ति करने में सहायक : निजी निवेश मूल्य सृजन में सरकारी संसाधनों की पूर्ति करता है, खासकर तब जब कर राजस्व आर्थिक मांगों को पूरा करने में विफल हो जाता है (उदाहरण के लिए सड़क , स्वास्थ्य और शिक्षा अवसंरचना में)।
  • दक्षता में सुधार करने में सहायक : यह बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धा, पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं और अधिक लचीलेपन के माध्यम से दक्षता को बढ़ाता है। (उदाहरण के लिए मोबाइल कंपनी)
  • नवाचार को बढ़ावा देने में सहायक : निजी निवेश अनुसंधान और विकास और उपभोक्ता व्यवहार मानचित्रण पर जोर देता है, जिससे अधिक नवाचार को बढ़ावा मिलता है (उदाहरण के लिए टाटा, टेस्ला जैसी कंपनियां आदि)।
  • विदेशी प्रौद्योगिकी तक पहुंच में सहायक : प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) विदेशी प्रौद्योगिकी से संपर्क बनती है, जिससे प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ती है।
  • वैश्विक धारणा के बदलाव में सहायक : निजी निवेश में वृद्धि आर्थिक प्रगति का संकेत देती है, जिससे वैश्विक धारणा में बदलाव आता है।
  • उद्यमी जोखिम को प्रोत्साहित करणे में सहायक : यह उद्यमशीलता जोखिम लेने को अपनाता है, रोजगार सृजन, धन सृजन और आय वृद्धि को बढ़ावा देता है।

निजी क्षेत्र के  निवेश की कमियाँ :

  • उन्नत राज्यों के पक्ष में : निजी क्षेत्र का निवेश मौजूदा बुनियादी ढांचे वाले क्षेत्रों, बिहार और झारखंड जैसे वंचित गरीब राज्यों के पक्ष में कम  देखा जाता है।
  • वैश्विक उतार-चढ़ाव : निजी निवेश, विशेष रूप से विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) के माध्यम से, वैश्विक आर्थिक उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील बना रहता है।
  • सार्वजनिक धारणा एवं आरोप : लाभ के उद्देश्यों से प्रेरित, निजी निवेश पर अक्सर क्रोनी पूंजीवाद के आरोप लगते हैं। जिससे इसके प्रति लोगों की धारणा नकारात्मक होती है।
  • आर्थिक मंदी के दौरान कमजोर : निजी निवेश आर्थिक मंदी के दौरान कमजोर प्रभाव को दर्शाता है, जबकि ऐसे समय में यह महत्वपूर्ण होना चाहिए ।
  • असमानता बढ़ना : निजी क्षेत्र से होने वाला लाभ अक्सर कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित हो जाता है, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों के बीच असमानता बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, भारत में 1991 के आर्थिक सुधारों और महामारी लॉकडाउन के बाद इस प्रभाव को देखा गया।

निष्कर्ष 

यद्यपि निजी निवेश आर्थिक विकास को गति देने और नवाचार को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन यह ऐसी चुनौतियां भी प्रस्तुत करता है जिनका समयपर समाधान किया जाना आवश्यक है ताकि सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों का समावेशी और सतत विकास सुनिश्चित किया जा सके।

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