मुंबई पुलिस ने ‘बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट’ (Bone Ossification Test) के जरिए पुष्टि की है कि अपराधी नाबालिग नहीं है।
संबंधित तथ्य
इस मामले में आरोपी धर्मराज कश्यप शामिल था, जिसने महाराष्ट्र के पूर्व विधायक बाबा सिद्दीकी की हत्या की जाँच के दौरान खुद को 17 वर्ष का बताया था।
विशेष रूप से किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 [Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015] के संबंध में यह भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में आयु निर्धारण के महत्त्व को सामने लाता है।
बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट के बारे में
ऑसिफिकेशन (Ossification): यह हड्डियों के निर्माण की प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो किशोरावस्था के अंत तक जारी रहती है। हड्डियों के विकास का चरण किसी व्यक्ति की अनुमानित आयु निर्धारित करने में मदद करता है।
परीक्षण की प्रक्रिया: मानव हड्डियों में कंकाल विकास की डिग्री निर्धारित करने के लिए कुछ हड्डियों, जैसे कि हँसली, उरोस्थि और श्रोणि का एक्स-रे लिया जाता है।
इन हड्डियों को इसलिए चुना जाता है क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ इनके आकार में सबसे अत्यधिक बदलाव आते हैं।
परिणामों की तुलना हड्डियों की परिपक्वता के लिए मानक संदर्भ बिंदुओं से की जाती है।
विश्वसनीयता: यद्यपि अस्थिभंग परीक्षण अनुमानित आयु सीमा प्रदान करता है, लेकिन हड्डियों की परिपक्वता में व्यक्तिगत भिन्नताओं के कारण यह पूरी तरह सटीक नहीं है।
विनोद कटारा बनाम यूपी राज्य (2022): सत्र न्यायालय ने कहा कि ‘बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट’ एक सटीक विज्ञान नहीं है, जो हमें व्यक्ति की सही उम्र बता सके।
त्रुटि का मार्जिन: न्यायालयों ने इस परिवर्तनशीलता को स्वीकार किया है तथा प्रायः दो वर्ष तक की त्रुटि का मार्जिन स्वीकृत करते हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि POCSO अधिनियम के मामलों में जहाँ पीड़ित की उम्र ऑसिफिकेशन टेस्ट के माध्यम से निर्धारित की जाती है, वहाँ परीक्षण की संदर्भ सीमा में ऊपरी आयु पर विचार किया जाना चाहिए।
न्यायालयों ने यह स्थापित किया है कि ऑसिफिकेशन टेस्ट आयु के वैध दस्तावेजी साक्ष्य को खारिज नहीं कर सकता।
दस्तावेजी प्रमाण (जैसे आधार कार्ड या जन्म प्रमाण-पत्र) को प्राथमिकता दी जाती है तथा परीक्षण का उपयोग केवल तभी किया जाता है, जब ऐसे दस्तावेज उपलब्ध न हों या विवादित हों।
आयु निर्धारण के लिए कानूनी ढाँचा
किशोर न्याय अधिनियम की धारा 94: यदि किसी व्यक्ति के रूप-रंग से स्पष्ट संकेत मिलता है कि वह नाबालिग है, तो किशोर न्याय बोर्ड (JJB) बिना किसी अतिरिक्त आयु पुष्टि के आगे बढ़ सकता है।
हालाँकि, यदि संदेह हो तो पूरी प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए, जिसकी शुरुआत स्कूल प्रमाण-पत्र या जन्म प्रमाण-पत्र जैसे दस्तावेजी साक्ष्य से की जानी चाहिए।
ऑसिफिकेशन टेस्ट का प्रयोग: वैध दस्तावेजी साक्ष्य के अभाव में ही ऑसिफिकेशन जैसे चिकित्सीय परीक्षण का प्रयोग अंतिम उपाय के रूप में किया जाना चाहिए।
आपराधिक न्याय में आयु निर्धारण का महत्त्व
किशोर स्थिति: भारत में 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को नाबालिग माना जाता है तथा कानून के तहत उनके साथ व्यवहार वयस्कों से काफी भिन्न होता है।
नाबालिगों पर किशोर न्याय (JJ) अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जाता है, जिसमें सजा के बजाय पुनर्वास और सुधार पर जोर दिया जाता है।
किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board- JJB): कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे को JJB के समक्ष लाया जाता है, जिसमें एक मजिस्ट्रेट और दो सामाजिक कार्यकर्ता शामिल होते हैं।
किशोर न्याय बोर्ड को पुनर्वास उपायों, जैसे सामुदायिक सेवा या विशेष गृह में तीन वर्ष तक की अवधि, के निर्धारण में विवेकाधिकार प्राप्त है।
16 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों के लिए विशेष मामले: किशोर न्याय अधिनियम में वर्ष 2021 का संशोधन जघन्य अपराधों (सात या अधिक वर्ष के कारावास से दंडनीय) के आरोपी 16 से 18 वर्ष की आयु के नाबालिगों पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाने की अनुमति देता है, यदि यह आकलन किया जाता है कि उनमें अपराध की प्रकृति और परिणामों को समझने की मानसिक और शारीरिक क्षमता है।
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