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अस्थायी पुलिस महानिदेशक (DGP) की नियुक्ति

Lokesh Pal October 18, 2024 03:28 72 0

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने योग्य अधिकारियों की उपलब्धता के बावजूद अस्थायी पुलिस महानिदेशक (DGP) नियुक्त करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) और संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के साथ आठ राज्यों को अवमानना ​​नोटिस जारी किया। 

संबंधित तथ्य

  • शामिल राज्य: झारखंड, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल।
  • उठाया गया मुद्दा: योग्य अधिकारी उपलब्ध होने के बावजूद राज्य सरकारों द्वारा नियमित DGP नियुक्त न करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
  • राज्यों का गैर-अनुपालन: उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पंजाब में एक वर्ष से अधिक समय से अस्थायी DGP हैं।
    • उत्तराखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों में महीनों तक अस्थायी DGP रहे। ओडिशा ने अगस्त 2023 में एक नियमित DGP नियुक्त किया, जबकि झारखंड ने जुलाई में एक कार्यवाहक DGP नियुक्त किया।
  • यूपी का विशिष्ट मामला: मई 2022 से उत्तर प्रदेश में चार कार्यवाहक DGP हैं, जिनमें नवीनतम प्रशांत कुमार हैं, जिन्हें वरिष्ठता सूची में 19वें स्थान पर होने के बावजूद नियुक्त किया गया।

DGP के बारे में

  • DGP किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में सर्वोच्च पद का पुलिस अधिकारी होता है। DGP को राज्य पुलिस प्रमुख के रूप में भी जाना जाता है।
  • भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ: राज्य पुलिस बल की देखरेख, कानून और व्यवस्था को लागू करना और सुरक्षा तथा सार्वजनिक सुरक्षा बनाए रखने के लिए अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय करना।

DGP की नियुक्ति प्रक्रिया

  • संस्तुति: राज्य सरकार राज्य के नियमों के आधार पर संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) या राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) को डीजीपी के पद के लिए एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की संस्तुति करती है।

  • चयन समिति: आमतौर पर मुख्यमंत्री या गृह मंत्री की अध्यक्षता में।
  • पात्रता की समीक्षा: UPSC या SPSC वरिष्ठता, अनुभव और प्रदर्शन जैसे मानदंडों के आधार पर अनुशंसित अधिकारी की पात्रता की समीक्षा करता है।
  • नियुक्ति आदेश: उम्मीदवार के स्वीकृत हो जाने के बाद, राज्य सरकार अधिकारी को DGP के रूप में नियुक्त करने के लिए आधिकारिक नियुक्ति आदेश जारी करती है।

न्यायालय की अवमानना

  • संवैधानिक प्रावधान: जब संविधान को अपनाया गया था, तो न्यायालय की अवमानना ​​को भारत के संविधान के अनुच्छेद-19(2) के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों में से एक के रूप में संदर्भित किया गया था।
    • संविधान के अनुच्छेद-129 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को स्वयं की अवमानना ​​के लिए दंडित करने की शक्ति प्रदान की गई है। 
    • अनुच्छेद-215 के तहत उच्च न्यायालयों को भी इसी प्रकार की शक्ति प्रदान की गई है।
  • वैधानिक समर्थन: वर्ष 1961 में तत्कालीन अतिरिक्त महाधिवक्ता एच. एन. सान्याल की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी।
    • उन्होंने भारत एवं विभिन्न बाहरी देशों में प्राप्त स्थिति के आलोक में न्यायालय की अवमानना ​​से संबंधित कानून और समस्याओं की व्यापक जाँच की। 
    • उनकी सिफारिश पर न्यायालय की अवमानना ​​अधिनियम, 1971 पारित किया गया, जो इस विचार को वैधानिक समर्थन देता है।
  • न्यायालय की अवमानना ​​के प्रकार: न्यायालय की अवमानना ​​अधिनियम, 1971 के अनुसार, न्यायालय की अवमानना ​​के प्रकार:
    • सिविल अवमानना (Civil Contempt): यह न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री, निर्देश, आदेश, रिट या अन्य प्रक्रिया की जानबूझकर अवज्ञा करना या न्यायालय को दिए गए वचन का जानबूझकर उल्लंघन करना है।
    • आपराधिक अवमानना (Criminal Contempt): यह किसी भी मामले का प्रकाशन या कोई अन्य कार्य करना है, जो किसी भी न्यायालय के अधिकार को बदनाम या कम करता है या किसी भी न्यायिक कार्यवाही के उचित क्रम में हस्तक्षेप करता है अथवा किसी अन्य तरीके से न्याय के प्रशासन को बाधित करता है।

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