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‘ग्लोबल कमीशन ऑन द इकोनॉमिक्स ऑफ वाटर’

Lokesh Pal October 19, 2024 04:13 78 0

संदर्भ 

‘ग्लोबल कमीशन ऑन द इकोनॉमिक्स ऑफ वाटर’ द्वारा हाल ही में जारी ‘जल का अर्थशास्त्र: वैश्विक साझा हित के रूप में जल विज्ञान चक्र का मूल्यांकन’ (The Economics Of Water: Valuing the Hydrological Cycle as a Global Common Good’ by the Global Commission on the Economics of Water) शीर्षक वाली रिपोर्ट में बढ़ते वैश्विक जल संकट और निम्न आय वाले देशों पर इसके असंगत आर्थिक प्रभाव पर प्रकाश डाला गया है।

संबंधित तथ्य

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
  • आर्थिक नुकसान: अनुमान है कि निम्न आय वाले देशों को वर्ष 2050 तक औसतन 15% तक की सकल घरेलू उत्पाद की हानि का सामना करना पड़ेगा, जो वर्ष 2024 में 8% की वैश्विक औसत हानि से लगभग दोगुना है।
  • भारत पर प्रभाव: वर्ष 2050 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 14.34% की हानि जल संकट के कारण होगी।
  • संकट के कारक: इसमें इस संकट के लिए खराब आर्थिक प्रथाओं, असंतुलित भूमि उपयोग और जल कुप्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया गया है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण और भी जटिल हो गया है।
  • मानवजनित प्रभाव: पहली बार, मानवीय गतिविधियाँ प्राकृतिक जल चक्र को बाधित कर रही हैं, जिससे आर्थिक स्थिरता और मानव कल्याण को नुकसान पहुँच रहा है।
  • बुनियादी आवश्यकता बनाम सम्मानजनक जीवन की जरूरत (Basic need Vs Dignified life need): रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को आवश्यक उपभोग और खाद्य सुरक्षा सहित सम्मानजनक जीवन के लिए प्रतिदिन लगभग 4,000 लीटर जल की आवश्यकता होती है।
  • यह आवश्यकता बुनियादी स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिए 50-100 लीटर के सामान्य आँकड़े से कहीं अधिक है।
  • जैसे-जैसे जल की उपलब्धता कम होती जाती है, खाद्य सुरक्षा और मानव विकास खतरे में पड़ता जाता है।
  • ग्रीन एंड ब्लू वाटर: रिपोर्ट में ‘ग्रीन वाटर’ (मृदा में नमी) और ‘ब्लू वाटर’ (सतही एवं भूजल) के मध्य भी अंतर किया गया है।
    • इसमें वर्षा, जलवायु स्थिरता और आर्थिक लचीलेपन के लिए हरित जल के महत्त्व पर जोर दिया गया।

संकट से उबरने के लिए सुझाए गए उपाय

  • जल सार्वजनिक वस्तु के रूप में: आयोग ने जल प्रशासन पर पुनर्विचार करने का सुझाव दिया तथा कहा कि जल को एक वैश्विक सार्वजनिक वस्तु के रूप में माना जाना चाहिए, न कि एक व्यक्तिगत वस्तु के रूप में।
  • सहयोगात्मक प्रयास की आवश्यकता: रिपोर्ट में इस संकट से निपटने के लिए राष्ट्रों में सामूहिक कार्रवाई पर जोर दिया गया है।
  • पाँच सूत्रीय एजेंडा: आयोग ने पाँच सूत्रीय एजेंडा प्रस्तावित किया, जिसमें शामिल हैं:
    • कृषि में जल के उपयोग को कम करने के लिए खाद्य प्रणालियों में क्रांतिकारी बदलाव लाना।
    • प्राकृतिक आवासों का संरक्षण करना और खराब हो चुके पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करना।
    • अपशिष्ट जल से मीठे जल को पुनः प्राप्त करने के लिए एक ‘सर्कुलर वाटर इकोनॉमी’  (Circular Water Economy) की स्थापना करना।
    • संधारणीय नवाचारों को प्रोत्साहित करना।
    • स्वच्छ जल तक समान पहुँच सुनिश्चित करना।

‘ग्लोबल कमीशन ऑन द इकोनॉमिक्स ऑफ वाटर’ (GCEW)

  • उद्देश्य: विभिन्न समाजों द्वारा जल को नियंत्रित करने, उपयोग करने और महत्त्व देने के तरीके में परिवर्तन को बढ़ावा देने के वैश्विक प्रयास में एक महत्त्वपूर्ण एवं महत्त्वाकांक्षी योगदान देना।
  • आयोग का अंतिम लक्ष्य एक ‘वैश्विक जल संधि’ (Global Water Pact) है, जो वैश्विक स्तर पर जल प्रशासन को वित्तपोषण को और बेहतर बनाने के लिए प्रावधान करता है, यह मानते हुए कि जल संकट अब लगभग सभी सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के लिए खतरा है।
  • इसे मई 2022 में दो वर्ष के अधिदेश के साथ शुरू किया गया था।
  • इसने जलवायु एवं जल संबंधी विवाद का समाधान, स्थिरता तथा खाद्य-ऊर्जा-जल सुरक्षा का समर्थन करने के लिए नीति, व्यावसायिक दृष्टिकोण और वैश्विक सहयोग में बदलाव के लिए साक्ष्य व मार्ग प्रस्तुत किए।
  • आयोग का गठन नीदरलैंड सरकार द्वारा किया गया है और आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) द्वारा इसकी सुविधा प्रदान की जाती है।
  • कार्यकारी भागीदार: GCEW को निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रतिष्ठित नीति निर्माताओं और शोधकर्ताओं के एक स्वतंत्र और विविध समूह द्वारा क्रियान्वित किया जाता है:
    • आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD)
    • पोट्सडैम इंस्टिट्यूट फॉर क्लाइमेट रिसर्च
    • इंडियन इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमन सेटेलमेंट 
    • यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन
    • ऑस्ट्रेलियन नॅशनल यूनिवर्सिटी 
    • यूनिवर्सिटी ऑफ एम्स्टर्डम।

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