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उच्चतम न्यायालय ने बाल सगाई पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया

Lokesh Pal October 21, 2024 03:43 71 0

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाव दिया है कि संसद, बाल विवाह रोकथाम अधिनियम (PCMA), 2006 में संशोधन करके ‘बाल सगाई’ (Child Betrothals) को गैर-कानूनी घोषित करने पर विचार कर सकती है।

संबंधित तथ्य 

  • सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय ‘सोसायटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन’ द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) पर आया, जिसमें बाल सगाई पर रोक लगाने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया गया था।
  • इसने बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006 के कार्यान्वयन के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं तथा घोषित किया है कि यह सभी व्यक्तिगत कानूनों को दरकिनार कर देगा।

बाल विवाह पर वैश्विक स्थिति

  • बाल विवाह की उच्च घटना: यूनिसेफ (UNICEF) की रिपोर्ट के अनुसार, प्रत्येक वर्ष लगभग 12 मिलियन लड़कियों की शादी बचपन में ही कर दी जाती है।
  • दक्षिण एशिया में प्रगति: पिछले दशक में 18 वर्ष से पहले लड़कियों की शादी होने का जोखिम एक-तिहाई से भी अधिक कम हो गया है, जो लगभग 50% से घटकर 30% से भी कम हो गया है। 
    • हालाँकि, यह प्रगति अभी भी अपर्याप्त है और पूरे क्षेत्र में असंगत है।

बाल सगाई  (Child Betrothals) के बारे में

  • परिभाषा: बाल सगाई, बाल विवाह प्रथाओं का एक घटक है, जहाँ एक जोड़ा बचपन से लेकर विवाह के लिए कानूनी उम्र तक सगाई कर लेता है, जिससे संभावित रूप से वयस्कता में विवाह हो सकता है।
    • भारत में बाल विवाह की व्यापकता वर्ष 2015-16 में 47% से घटकर 27% तथा वर्ष 2019-2021 में 23.3% हो गई है।
  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights- NCPR) की रिपोर्ट: भारत में 11.5 लाख से अधिक बच्चे बाल विवाह के खतरे में हैं।
    • उत्तर प्रदेश इस सूची में सबसे ऊपर है जहाँ 5 लाख से अधिक बच्चे असुरक्षित हैं, असम में 1.5 लाख बच्चे हैं तथा मध्य प्रदेश में करीब 1 लाख ऐसे बच्चे हैं।
  • बाल विवाह पर NFHS रिपोर्ट 
    • NFHS-5 के आँकड़ों के अनुसार, बाल विवाह में मामूली गिरावट आई है।
    • पश्चिम बंगाल, बिहार और त्रिपुरा इस सूची में शीर्ष पर हैं, जहाँ 20-24 वर्ष आयु की 40% से अधिक विवाहित महिलाएँ 18 वर्ष से कम उम्र में विवाहित हैं।

बाल सगाई (Child Betrothals) के परिणाम

  • स्वायत्तता की हानि: बाल सगाई युवा व्यक्तियों की विवाह के बारे में व्यक्तिगत निर्णय लेने की स्वतंत्रता को सीमित कर देती है तथा प्रायः उन्हें अपने परिवार या समुदाय की इच्छाओं के अधीन कर देती है।
  • स्वास्थ्य जोखिम में वृद्धि: बाल विवाह की तरह, सगाई भी समय से पहले गर्भधारण का कारण बन सकती है, जिससे युवा लड़कियों के लिए स्वास्थ्य संबंधी गंभीर खतरे उत्पन्न हो सकते हैं, जिनमें चिंता, अवसाद, प्रसव के दौरान जटिलताएँ तथा माताओं एवं नवजात शिशुओं दोनों के लिए उच्च मृत्यु दर शामिल हैं।
  • भावी पीढ़ियों पर नकारात्मक प्रभाव: बाल माता-पिता द्वारा उत्पन्न हुए बच्चों को प्रायः स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, शिक्षा की कमी और गरीबी का अधिक खतरा रहता है, जिससे असुविधा का चक्र चलता रहता है।
  • शैक्षिक व्यवधान: जिन बच्चों की सगाई हो जाती है, उन्हें अक्सर घरेलू जिम्मेदारियाँ उठानी पड़ती हैं, जिससे स्कूल छोड़ने की संभावना बढ़ जाती है।
  • हिंसा के प्रति संवेदनशीलता: जिन लोगों की सगाई कम उम्र में हो जाती है, वे घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं, क्योंकि अक्सर उनके पास अपने रिश्तों में समझौता करने की कम शक्ति होती है।

बच्चों की सगाई के लिए जिम्मेदार कारक

  • सांस्कृतिक परंपराएँ: कुछ समाज बाल विवाह को एक आदर्श मानते हैं, जो अक्सर धार्मिक प्रथाओं पर आधारित होता है, जो परिवार के सम्मान को बनाए रखने या सुरक्षित संबंध बनाने के लिए कम उम्र में विवाह पर जोर देते हैं। उदाहरण: राजस्थान, हरियाणा। 
  • लैंगिक मानदंड और शिक्षा का अभाव: लड़कियों के लिए शिक्षा तक सीमित पहुँच बाल विवाह के चक्र को जारी रख सकती है, जहाँ यह अपेक्षा की जाती है कि लड़कियों की शादी जल्दी हो जाए, जिससे पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएँ मजबूत होंगी, जो शिक्षा एवं व्यक्तिगत विकास की तुलना में विवाह और मातृत्व को प्राथमिकता देती हैं।
  • आर्थिक विचार
    • वित्तीय प्रोत्साहन: परिवार बच्चे की सगाई को दहेज या अन्य वित्तीय लाभ प्राप्त करने के एक तरीके के रूप में देखते हैं, उनका मानना ​​है कि जल्दी सगाई करने से उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो सकती है।
    • घरेलू बोझ कम करना: छोटी उम्र में बेटियों की शादी कर देना, विशेष रूप से गरीब परिवारों में, बच्चों के पालन-पोषण की वित्तीय जिम्मेदारियों को कम करने की रणनीति के रूप में देखा जा सकता है।
    • आर्थिक गठबंधन: बाल विवाह से परिवारों के बीच आर्थिक संबंध मजबूत हो सकते हैं, आपसी सहयोग, भूमि समझौते या साझा संसाधन सुनिश्चित हो सकते हैं, जो कृषि प्रधान या पारंपरिक समाजों में महत्त्वपूर्ण हैं।
  • विवाह में किशोरों के विकल्प: किशोर अपनी स्वतंत्रता को स्थापित करने या गरीबी या पारिवारिक हिंसा जैसी चुनौतीपूर्ण स्थितियों से बचने के लिए विवाह करने अथवा अनौपचारिक संबंध बनाने का विकल्प चुन सकते हैं।
  • कानूनी अंतराल: बाल विवाह और सगाई के संबंध में अपर्याप्त कानूनी ढाँचे या प्रवर्तन तंत्र इस प्रथा को जारी रहने में सक्षम बना सकते हैं।

बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाने के लिए उच्चतम न्यायालय की सिफारिशें

  • बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006 में खामियाँ
    • बाल सगाई पर प्रावधानों का अभाव: यद्यपि PCMA बाल विवाह पर रोक लगाने का प्रयास करता है, लेकिन इसमें सगाई पर कोई प्रावधान नहीं है।
    • दंड से बचाव: यह अंतर परिवारों को PCMA के तहत दंड से बचने का अवसर देता है, क्योंकि वे बच्चों की नाबालिग होने के दौरान सगाई कर देते हैं, तथा बाद में, जब वे कानूनी उम्र के हो जाते हैं, तो उनकी शादी तय कर देते हैं।
    • संसद में संशोधन विधेयक लंबित: न्यायालय ने इस मुद्दे पर अधिक गहराई से विचार न करते हुए कहा कि दिसंबर 2021 में प्रस्तुत एक संशोधन विधेयक, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि PCMA व्यक्तिगत कानूनों को दरकिनार कर देगा, वर्तमान में संसद में लंबित है।
  • बाल सगाई को गैर-कानूनी घोषित करने की आवश्यकता: न्यायालय ने संसद से आग्रह किया कि वह बाल सगाई को गैर-कानूनी घोषित करे तथा जिस बच्चे की शादी तय हो गई हो, उसे किशोर न्याय अधिनियम के तहत ‘देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाला नाबालिग’ घोषित करे।
  • बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन: इसमें कहा गया है कि किसी बच्चे की कम उम्र में तय की गई शादी उसके ‘स्वतंत्र विकल्प’, ‘स्वायत्तता’ और ‘बचपन’ के मूल अधिकार का उल्लंघन करती है।
  • पर्सनल लॉ और PCMA के बीच असमंजस की स्थिति: मुख्य न्यायाधीश ने भारत में पर्सनल लॉ और बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA) के बीच संबंध को लेकर चल रही असमंजस की स्थिति पर ध्यान दिलाया। 
  • CEDAW निषेध: न्यायालय ने महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women- CEDAW), 1975 का उल्लेख किया, जो स्पष्ट रूप से नाबालिगों की सगाई पर प्रतिबंध लगाता है तथा भारत द्वारा अपने कानूनों को वैश्विक मानदंडों के अनुरूप बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
    • भारत ने महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women- CEDAW) पर हस्ताक्षर किए हैं, जो महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव को समाप्त करने के उद्देश्य से एक अंतरराष्ट्रीय संधि है।
  • बाल विवाह के शिकार लड़के: बचपन का अधिकार सार्वभौमिक है और सभी प्रकार के व्यक्तियों पर लागू होता है।
    • पहली बार न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बाल विवाह में लड़के भी लड़कियों के समान ही पीड़ित होते हैं।
  • POCSO जैसे आधुनिक कानूनों पर खतरा: बाल विवाह की सदियों पुरानी प्रथा, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (Protection of Children from Sexual Offences- POCSO) अधिनियम जैसे आधुनिक कानूनों के उद्देश्यों के लिए खतरा उत्पन्न करती है, जिसका उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण से बचाना है।
    • बाल विवाह की स्थिति में बाल वधुओं के यौन शोषण की संभावना बनी रहती है।
  • यौनिकता के अधिकार का उल्लंघन (Violation of the Right to Sexuality): बाल विवाह में व्यक्ति के लैंगिक अधिकार को व्यवस्थित रूप से समाप्त कर दिया जाता है।
    • किसी व्यक्ति की यौन इच्छा को स्वाभाविक रूप से अनुभव करने तथा अंतरंगता में अपनी पसंद का चयन करने की क्षमता को परंपरा के नाम पर मिटा दिया जाता है।

भारत में बाल विवाह और सगाई से निपटने में चुनौतियाँ

  • व्यक्तिगत कानूनों में परिवर्तनशीलता: विवाह को नियंत्रित करने वाले विविध व्यक्तिगत कानूनों की मौजूदगी कानूनी परिदृश्य को जटिल बनाती है। इन कानूनों की अलग-अलग व्याख्याएँ और अनुप्रयोग ऐसी खामियाँ उत्पन्न कर सकते हैं, जो बाल विवाह को जारी रहने देती हैं। उदाहरण:
    • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत विवाह के लिए न्यूनतम कानूनी आयु महिलाओं के लिए 18 वर्ष और पुरुषों के लिए 21 वर्ष है।
    • मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत, प्यूबिर्टी (puberty) प्राप्त कर चुके नाबालिग का विवाह वैध माना जाता है।
  • कानूनों का अपर्याप्त कार्यान्वयन: जैसे बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम और लैंगिक अपराधों से बाल संरक्षण अधिनियम।

भारत में बाल विवाह से निपटने के लिए कानून और नीतिगत हस्तक्षेप

  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2017 में ‘इंडिपेंडेंट थॉट बनाम भारत संघ मामले’ में निर्णय दिया कि 18 वर्ष से कम उम्र की पत्नियों के साथ यौन संबंध को दुष्कर्म माना जाना चाहिए। 
  • बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006: बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत विवाह की कानूनी आयु पुरुषों के लिए 21 वर्ष तथा महिलाओं के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई है।
    • बाल विवाह निषेध अधिनियम की धारा 16 राज्य सरकार को विशिष्ट क्षेत्रों के लिए ‘बाल विवाह निषेध अधिकारी’ (CMPO) नियुक्त करने की अनुमति देती है।
  • बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021: सरकार ने महिलाओं की विवाह की आयु बढ़ाकर 21 वर्ष करने के लिए विधेयक पेश किया है ताकि उसे पुरुषों के बराबर बनाया जा सके।
  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012: यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 का उद्देश्य बच्चों को यौन दुर्व्यवहार, शोषण और पोर्नोग्राफी से बचाना है।
  • केंद्रीकृत योजनाएँ: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, धनलक्ष्मी योजना (सशर्त नकद हस्तांतरण कार्यक्रम) जैसी केंद्र सरकार की पहलों का उद्देश्य बाल विवाह में योगदान देने वाले कारकों को दूर करना है।
  • राज्य स्तरीय पहल: विभिन्न राज्यों ने बाल विवाह से जुड़े कारकों को लक्षित करते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और जागरूकता सहित कार्यक्रम शुरू किए हैं:
    • पश्चिम बंगाल सरकार की कन्याश्री प्रकल्प योजना (Kanyashree Prakalpa Scheme): उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाली लड़कियों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
    • ओडिशा की अद्विका योजना (Advika Scheme): बाल विवाह को रोकने के लिए शिक्षा और सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से किशोरियों को सशक्त बनाना।
    • साइकिल योजना (बिहार और अन्य राज्य): इसका उद्देश्य लड़कियों के लिए स्कूल तक सुरक्षित परिवहन सुनिश्चित करना है।
    • उत्तर प्रदेश स्कूल पुनर्एकीकरण योजना (UP School Reintegration Scheme): लड़कियों को विवाह या बच्चे के जन्म के बाद शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सरकार को जारी दिशा-निर्देश

  • स्कूलों में आयु-उपयुक्त यौन शिक्षा: न्यायालय ने बच्चों के लिए सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और आयु-उपयुक्त यौन शिक्षा को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करने की सिफारिश की।
  • ‘बाल विवाह मुक्त गाँव’ पहल: न्यायालय ने ‘खुले में शौच मुक्त गाँव’ पहल की तर्ज पर ‘बाल विवाह मुक्त गाँव’ अभियान शुरू करने का प्रस्ताव रखा, जिसमें बाल विवाह उन्मूलन में मदद के लिए स्थानीय और सामुदायिक नेताओं को शामिल किया जाएगा।
  • ऑनलाइन रिपोर्टिंग पोर्टल: निर्णय में केंद्रीय गृह मंत्रालय से एक ऑनलाइन पोर्टल बनाने का आग्रह किया गया, जहाँ बाल विवाह के मामलों की आसानी से रिपोर्ट की जा सके।
  • बाल विवाह से मुक्त लड़कियों के लिए मुआवजा योजना: केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को सलाह दी गई कि वह बाल विवाह से मुक्त हुई लड़कियों के लिए मुआवजा योजना शुरू करे।
  • रोकथाम और सहायता के लिए वार्षिक बजट: न्यायालय ने सिफारिश की कि सरकार बाल विवाह को रोकने तथा इस प्रथा से प्रभावित व्यक्तियों को सहायता प्रदान करने के लिए विशेष रूप से वार्षिक बजट आवंटित करे।
  • अन्य
    • CMPO की नियुक्ति: राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UT) को बाल विवाह निषेध अधिकारी (Child Marriage Prohibition Officer- CMPO) की नियुक्ति करनी चाहिए, जो जिला स्तर पर बाल विवाह के मुद्दों से निपटने के लिए पूरी तरह जिम्मेदार होंगे। 
    • विशेष पुलिस इकाइयाँ (Specialized Police Units- SPUs): राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को बाल विवाह के मामलों से निपटने के लिए विशेष पुलिस इकाइयाँ स्थापित करनी चाहिए।
    • विशेष बाल विवाह निषेध इकाइयाँ (Special Child Marriage Prohibition Units- SCMPUs): बाल विवाह रोकथाम प्रयासों को और मजबूत करने के लिए SCMPU का गठन।
    • मजिस्ट्रेट का अधिकार: बाल विवाह रोकने के लिए मजिस्ट्रेटों को स्वतः संज्ञान से कार्रवाई करने तथा निवारक आदेश जारी करने का अधिकार देना।
    • फास्ट-ट्रैक कोर्ट: बाल विवाह के मामलों में तेजी लाने के लिए विशेष फास्ट-ट्रैक कोर्ट की स्थापना की संभावना तलाशी जा रही है।

निष्कर्ष 

बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाने के लिए उच्चतम न्यायालय का दबाव बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित करता है, लेकिन बाल विवाह की प्रभावी रोकथाम और परिवारों को शिक्षा एवं व्यावसायिक सहायता तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए आर्थिक बाधाओं को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।

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