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पराली जलाना स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार का उल्लंघन: सर्वोच्च न्यायालय

Lokesh Pal October 25, 2024 01:30 65 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पराली जलाने के लगातार मामले जारी रहना तथा पंजाब एवं हरियाणा सरकारों द्वारा कुछ लोगों को दंडित करने तथा कई उल्लंघनकर्ताओं को मामूली जुर्माना भरने के बाद छोड़ देने की ‘चुनकर कार्य करने’ की नीति अपनाना, नागरिकों के प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के अधिकार का उल्लंघन है।

संबंधित तथ्य 

  • पंजाब तथा हरियाणा में पराली जलाना उत्तर भारत, विशेषकर दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
  • सर्वोच्च  न्यायालय ने पराली जलाने पर रोक लगाने और उल्लंघनकर्ताओं पर मुकदमा चलाने में प्रभावी कार्रवाई न करने के लिए दोनों राज्यों की आलोचना की।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग

  • यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग, अधिनियम 2021 (Commission for Air Quality Management in National Capital Region and Adjoining Areas, Act 2021) के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
  • संरचना
    • इसमें एक अध्यक्ष होता है।
    • 5 पदेन सदस्य (दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विभाग के प्रभारी मुख्य सचिव या सचिव)
    • 3 पूर्णकालिक तकनीकी सदस्य
    • गैर-सरकारी संगठनों से 3 सदस्य; CPCB, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और नीति आयोग से तकनीकी सदस्य।
  • उद्देश्य
    • वायु प्रदूषण नियंत्रण: CAQM का मुख्य लक्ष्य NCR में वायु प्रदूषण को रोकना, निगरानी करना और नियंत्रित करना है।
    • अनुसंधान और विकास: CAQM वायु प्रदूषकों की पहचान करने और वायु गुणवत्ता में सुधार करने के लिए अनुसंधान तथा विकास करता है।

सर्वोच्च  न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • राज्यों द्वारा अवहेलना 
    • न्यायालय ने पंजाब तथा हरियाणा पर अपराधियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई न करके ‘अवज्ञाकारी रवैया’ दिखाने का आरोप लगाया।
    • हरियाणा ने दावा किया कि इसरो से सटीक स्थानों की जानकारी मिलने के बावजूद वे आग का पता नहीं लगा सके।
    • पंजाब में 1,000 से अधिक घटनाओं का पता चलने के बावजूद केवल कुछ ही उल्लंघनकर्ताओं पर मुकदमा चलाया गया।
  • शिथिल प्रवर्तन 
    • नाममात्र जुर्माना प्रणाली ने उल्लंघनकर्ताओं को गंभीर दंड से बचने की अनुमति दी, जिससे समस्या की निवारण प्रक्रिया कमजोर हुई।
    • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 15 के तहत दंडात्मक प्रावधान, जिसमें कारावास और भारी जुर्माना शामिल है, लगातार लागू नहीं किए गए।
  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
    • न्यायालय ने कहा कि पराली जलाना महज कानून का उल्लंघन नहीं है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद-21 (जीवन का अधिकार) के अंतर्गत नागरिकों को प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
    • इसमें इस मौलिक अधिकार की रक्षा करने में प्राधिकारियों की विफलता की आलोचना की गई।
  • वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (Commission for Air Quality Management- CAQM) 
    • न्यायालय ने CAQM की प्रभावशीलता पर सवाल उठाया, इसके सदस्यों की अनुपस्थिति को नोट किया तथा वायु प्रदूषण प्रबंधन में उनकी विशेषज्ञता पर संदेह जताया।
  • सरकारी जवाबदेही
    • न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह:-
      • पर्यावरण अधिनियम के तहत दंडात्मक कार्रवाई के लिए उचित तंत्र तैयार करें।
      • इस मुद्दे से निपटने के लिए पंजाब के अतिरिक्त निधियों के अनुरोध पर विचार करें।
      • शहरी वायु प्रदूषण, विशेष रूप से दिल्ली में, जहाँ कचरा जलाने से वायु विषाक्तता बढ़ती है, पर ध्यान दे।

संविधान का अनुच्छेद-21 

  • जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा: किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा।
    • इसका तात्पर्य है कि प्रत्येक व्यक्ति को जीने का अधिकार है और निर्धारित कानूनी प्रक्रियाओं के अनुसार ही उसको मृत्यु की सजा दी जा सकती है।
      • जीवन के अधिकार में विभिन्न पहलू शामिल हैं, जिनमें सम्मान के साथ जीने का अधिकार, आजीविका का अधिकार और स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार शामिल हैं।
  • इसमें यह भी कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
    • व्यक्तिगत स्वतंत्रता में अबाध रूप से घूमने की स्वतंत्रता, अपना निवास स्थान चुनने की स्वतंत्रता तथा कोई भी वैध व्यवसाय या पेशा अपनाने की स्वतंत्रता शामिल है।
  • यह अधिकार नागरिकों और विदेशियों दोनों को उपलब्ध है।

पर्यावरण संरक्षण को संवैधानिक दर्जा

  • भारतीय संविधान पर्यावरण संरक्षण को संवैधानिक दर्जा देने वाला दुनिया का पहला संविधान है।
  • संविधान (42वाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 में दो महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद [अनुच्छेद-48-A और 51A (g)] शामिल किए गए।
    • अनुच्छेद-48-A: राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा करने का प्रयास करेगा।
    • अनुच्छेद-51A(g): पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।

स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय का महत्त्वपूर्ण निर्णय 

  • ग्रामीण मुकदमेबाजी और अधिकार केंद्र बनाम राज्य (वर्ष 1988): संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत स्वस्थ वातावरण में रहने के अधिकार को मान्यता दी गई।
  • एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (वर्ष 1987): संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के अधिकार को जीवन के मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में माना गया।
  • वीरेंद्र गौर बनाम हरियाणा राज्य (वर्ष 1994): मान्यता है कि स्वच्छ वातावरण का अधिकार स्वस्थ जीवन के अधिकार का एक अभिन्न पहलू है।
  • एम. के. रंजीत सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य (वर्ष 2024): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि लोगों को अनुच्छेद-14 तथा अनुच्छेद-21 के तहत जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त रहने का अधिकार है।
    • अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का भी उल्लंघन होगा क्योंकि जलवायु परिवर्तन कुछ लोगों को अन्य की तुलना में अधिक प्रभावित करेगा।

पराली जलाने के बारे में

  • यह धान, गेहूँ आदि जैसे अनाज की कटाई के बाद जमीन पर बचे पुआल (पराली) को आग लगाकर खेत से कृषि अपशिष्ट को हटाने की एक प्रथा है।
  • यह ज्यादातर पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के सिंधु-गंगा के मैदानों में अक्टूबर और नवंबर में रबी की फसल की बुवाई के लिए खेतों को साफ करने के लिए किया जाता है।

पराली जलाने से जुड़ी चुनौतियाँ

  • वायु प्रदूषण: प्रत्येक वर्ष वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता है और AQI ‘गंभीर’ और ‘खतरनाक’ स्तर तक पहुँच जाता है।

  • हानिकारक स्वास्थ्य प्रभाव: यह वायुमंडल में विषैले प्रदूषकों का उत्सर्जन करता है, जिसमें कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), मेथेन (CH4), NH3, SO2, कैंसरकारी पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) जैसी हानिकारक गैसें शामिल है।
  • ऊष्मा का प्रवेश (Heat Penetration): पराली जलाने से उत्पन्न ऊष्मा मिट्टी में प्रवेश कर जाता है, जिससे नमी और उपयोगी सूक्ष्मजीवों की हानि होती है।
    • उदाहरण के लिए, धान के पुआल को जलाने से उत्पन्न ऊष्मा मिट्टी में 1 सेंटीमीटर तक प्रवेश कर जाती है, जिससे तापमान लगभग 400 सेल्सियस तक बढ़ जाता है।
  • मिट्टी की उर्वरता: जमीन पर भूसा जलाने से मिट्टी में पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं, जिससे मिट्टी कम उपजाऊ हो जाती है।
  • ग्लोबल वार्मिंग: पराली जलाने के दौरान CO2, N2O, O3 आदि ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं।

पराली जलाने की प्रथा को समाप्त करने के उपाय

इन-सीटू मैनेजमेंट- ऑन-फील्ड मैनेजमेंट

  • फसल अवशेषों को सीधे खेत में ही प्रबंधित करने के लिए विशेष मशीनरी या जैव-रसायनों का उपयोग करना, जिससे उन्हें जलाने की आवश्यकता कम हो जाएगी।
  • पूसा डीकंपोजर (Pusa Decomposer): भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित एक सूक्ष्मजीवी घोल जो पराली को खाद में बदल देता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।

  • हैप्पी सीडर (Happy Seeder): एक मशीन जो धान के भूसे को काटती और उठाती है, गेहूँ बोती है तथा भूसे को गीली घास के रूप में फैलाती है।

एक्स-सीटू प्रबंधन- ऑफ-फील्ड प्रबंधन

  • फसल अवशेषों को वैकल्पिक उपयोगों के लिए अन्य स्थानों पर ले जाना जैसे:-
    • खाद बनाना (Composting): पराली को जैविक खाद में बदलना।
    • बायोगैस उत्पादन (Biogas Production): बायोगैस संयंत्रों के लिए फीडस्टॉक के रूप में फसल अवशेषों का उपयोग करना।
    • बायोचार (Biochar): मृदा सुधार के लिए पराली को बायोचार में बदलना।
  • पैलेटाइजेशन (Palletization): यह एक ऐसी तकनीक है, जिसमें चावल के भूसे को पैकेजिंग, फर्नीचर और अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग करने योग्य बोर्ड में बदलना शामिल है।
  • थर्मल प्लांट में को-फायरिंग (Co-Firing): धान के भूसे को पैलेट्स में बदल दिया जाता है और थर्मल पॉवर प्लांट में ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है, जिससे कोयले पर निर्भरता कम हो जाती है।

वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा देना

  • किसानों को ऐसी फसल किस्मों या कृषि प्रणालियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना, जिनमें पराली हटाने की कम आवश्यकता होती है।
  • कम अवधि वाली धान की किस्मों, दलहन, तिलहन या बागवानी फसलों को बढ़ावा देना।

टेक्नो-कमर्शियल पायलट प्रोजेक्ट

  • आपूर्ति शृंखला विकास: फसल अवशेषों के सतत् उपयोग के लिए किसानों और उद्योगों के बीच आपूर्ति शृंखला स्थापित करना।
  • वित्तीय सहायता
    • पराली प्रबंधन के लिए मशीनरी और उपकरणों की लागत का 65% तक कवर करने के लिए सरकारी सहायता।
    • कार्यशील पूँजी: उद्योग और लाभार्थियों द्वारा संयुक्त वित्तपोषण या कृषि अवसंरचना कोष (AIF) और नाबार्ड जैसे तंत्रों के माध्यम से।
    • भूमि व्यवस्था (Land Arrangements): अवशेष प्रबंधन के लिए भंडारण भूमि को सुरक्षित करने और तैयार करने की जिम्मेदारी किसानों की होगी।

फसल अवशेष प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय नीति (NPMCR)

  • इसे वर्ष 2014 में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा तैयार किया गया था।
  • उद्देश्य: फसल अवशेषों को जलाने और उसके परिणामस्वरूप होने वाले पर्यावरणीय क्षरण तथा मृदा के पोषक तत्त्वों की हानि को रोकना।
  • इस नीति का उद्देश्य है:-
    • इन-सीटू प्रबंधन को बढ़ावा देना: इसमें फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाना, मल्चिंग करना तथा ईंधन या चारे के रूप में उपयोग के लिए इसका प्रबंधन करना शामिल है।
    • विविध उपयोग: फसल अवशेषों का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है, जिसमें चारकोल गैसीकरण, विद्युत उत्पादन, तथा बायो-इथेनॉल, कागज और पैकिंग सामग्री के लिए कच्चे माल के रूप में उपयोग शामिल है।
    • जागरूकता बढ़ाना: हितधारकों को फसल अवशेषों को जलाने के नकारात्मक प्रभावों तथा इसे प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने एवं उपयोग करने के तरीके के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए।
    • उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग का उपयोग: राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग एजेंसी (NRSA) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) फसल अवशेष प्रबंधन की निगरानी के लिए उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग का उपयोग कर सकते हैं।
    • वित्तीय सहायता प्रदान करना: मंत्रालय नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता के लिए नवीन विचारों और परियोजनाओं हेतु वित्तीय सहायता प्रदान कर सकते हैं।

नीतिगत समर्थन

  • संशोधित फसल अवशेष प्रबंधन दिशा-निर्देश: पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए।
  • फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय नीति (NPMCR): इस नीति का उद्देश्य फसल अवशेषों को जलाने और इसके परिणामस्वरूप होने वाले पर्यावरणीय क्षरण तथा मिट्टी के पोषक तत्त्वों की हानि को रोकना है।
  • वित्तीय प्रोत्साहन
    • परियोजना आधारित सहायता: सरकारी योजनाओं के तहत विशिष्ट मशीनरी और उपकरणों के लिए वित्तीय सहायता।
    • राज्य सरकार की स्वीकृति: परियोजनाओं को परियोजना स्वीकृति समितियों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।
  • जैविक खाद में परिवर्तित करना: पराली से उच्च श्रेणी की जैविक खाद प्राप्त कर सकते है।
    • छत्तीसगढ़ में गौठान स्थापित करके अभिनव प्रयोग किया गया।
    • गौठान प्रत्येक गाँव के लिए साझा तौर पर पाँच एकड़ का एक भूखंड होता है, जहाँ पराली दान के माध्यम से सभी अप्रयुक्त पराली (पैराइन छत्तीसगढ़ी) एकत्र की जाती है तथा ग्रामीण युवाओं द्वारा जैविक खाद में परिवर्तित की जाती है।
    • सरकार केवल खेत से निकटतम गौठान तक पराली के परिवहन का खर्च वहन करती है।
  • उद्योग का योगदान: उद्योग परियोजना लागत का 25% योगदान देता है।
  • किसान या समूह का योगदान: किसान या समूह परियोजना लागत का 10% योगदान करते है।

अन्य उपाय

  • किसान शिक्षा और जागरूकता अभियान: पराली जलाने के प्रतिकूल प्रभावों और वैकल्पिक तरीकों के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
  • कस्टम हायरिंग सेंटर (CHC): CHC के माध्यम से फसल अवशेष प्रबंधन के लिए मशीनरी तक आसान पहुँच प्रदान करना।
  • मशीनरी के लिए सब्सिडी और प्रोत्साहन: किसानों पर लागत का बोझ कम करने के लिए हैप्पी सीडर, रोटावेटर और मल्चर जैसे उपकरणों के लिए सब्सिडी की पेशकश करना।

पराली जलाने की प्रथा को समाप्त करने में चुनौतियाँ

  • मशीनरी की उच्च लागत: किसानों को सब्सिडी के बावजूद हैप्पी सीडर्स तथा सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम जैसी मशीनरी खरीदने या किराये पर लेने में महत्त्वपूर्ण वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
    • विशेषकर छोटे तथा सीमांत किसानों को इन प्रौद्योगिकियों को वहन करने में कठिनाई होती है।
  • फसलों के बीच कम समय अंतराल: धान की कटाई तथा गेहूँ की बुवाई के बीच कम समय अंतराल (10-15 दिन) के कारण वैकल्पिक पराली प्रबंधन विधियों के लिए बहुत कम समय बचता है।
    • इससे किसान पराली जलाने की तीव्र तथा सस्ती विधि अपनाने लगे हैं।
  • जागरूकता तथा प्रशिक्षण का अभाव: कई किसान पराली जलाने के दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रभावों और टिकाऊ विकल्पों के लाभों से अनभिज्ञ हैं।
    • इन-सीटू तथा एक्स-सीटू प्रबंधन के लिए नई प्रौद्योगिकियों के उपयोग पर प्रशिक्षण भी सीमित है।
  • कानूनों का कमजोर प्रवर्तन: पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत दंडात्मक प्रावधानों जैसे मौजूदा कानूनों का खराब ढंग से प्रवर्तन किया जाता है।
    • नाममात्र का जुर्माना और लगातार अभियोजन का अभाव पराली जलाने को रोकने के लिए पर्याप्त निवारक के रूप में कार्य नहीं करता है।
  • एक्स-सीटू प्रबंधन के लिए सीमित बुनियादी ढाँचा: वैकल्पिक उपयोगों (जैसे, जैव ईंधन, खाद) के लिए उद्योगों तक फसल अवशेषों को ले जाने के लिए आपूर्ति शृंखलाएँ, भंडारण सुविधाएँ और बुनियादी ढाँचा अविकसित हैं, जिससे एक्स-सीटू प्रबंधन का दायरा सीमित हो गया है।
  • सामाजिक-आर्थिक दबाव: किसानों को उपज और लाभ को अधिकतम करने के लिए आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ता है।
    • अक्सर उन्हें जलाने जैसे सबसे अधिक लागत प्रभावी तथा समय-कुशल तरीकों को चुनने के लिए प्रेरित किया जाता है, खासकर जब टिकाऊ विकल्पों के लिए प्रोत्साहन अपर्याप्त या विलंबित होते हैं।
    • सामाजिक प्रतिरोध: कुछ किसान पारंपरिक खेती के तरीकों तथा सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण नई प्रथाओं को अपनाने का विरोध कर सकते हैं।

आगे की राह 

  • किसान प्रोत्साहन कार्यक्रमों को सुदृढ़ बनाना: पर्यावरण अनुकूल विकल्प अपनाने के लिए किसानों को प्रत्यक्ष वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना, यह सुनिश्चित करना कि सहायता सीमांत और छोटे किसानों तक शीघ्र पहुँचे।
  • बेहतर नीति समन्वय: पराली प्रबंधन नीतियों पर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करना।
  • सस्ती प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान और विकास: कम लागत वाली, सुलभ प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए आरएंडडी में निवेश करें, जिन्हें छोटे किसान वहन कर सकें।
  • कस्टम हायरिंग सेंटर (CHC) का विस्तार: फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी की किराये पर उपलब्धता में सुधार के लिए कस्टम हायरिंग सेंटरों का विस्तार करना।
  • समुदाय आधारित पहल और किसान सहकारिताएँ: किसानों को सहकारी समितियों या समूहों में संगठित करके समुदाय-नेतृत्व वाले समाधानों को बढ़ावा देना, जो सामूहिक रूप से फसल अवशेषों का प्रबंधन कर सके।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा और पंजाब सरकारों की पराली जलाने के प्रति नरम रुख अपनाने के लिए आलोचना की, जिससे उत्तर भारत में वायु प्रदूषण और भी बदतर हो गया है। इसने संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत नागरिकों के प्रदूषण मुक्त पर्यावरण के अधिकार की रक्षा के लिए कानूनों के सख्त क्रियान्वयन की आवश्यकता पर जोर दिया।

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